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बिहार : पूर्व मुख्यमंत्री का परिवार दाने-दाने को मोहताज - family of former CM starving

बिहार के पूर्व सीएम भोला पासवान शास्त्री की अपनी कोई औलाद नहीं थी. इसलिए वह भतीजे विरंची पासवान को ही अपना बेटा मानते थे. उनके दिवगंत होने पर भतीजे विरंची पासवान ने उनका दाह संस्कार किया और मुखाग्नि दी. आज विरंची का परिवार दाने-दाने को मोहताज है.

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Published : Jun 2, 2020, 10:04 PM IST

पूर्णिया : लॉकडाउन ने रोजाना खाने-कमाने वाले परिवारों के सामने रोजी रोटी की गंभीर समस्या पैदा कर दी है. आपको यह जानकर हैरानी होगी इस लॉकडाउन में एक पूर्व मुख्यमंत्री का परिवार भी दाने-दाने को मोहताज हो गया है.

60 के दशक में बिहार के तीन बार मुख्यमंत्री रहे भोला पासवान शास्त्री के परिवार की जिंदगी किसी तरह मुफलिसी में कट रही थी. लेकिन इस कोरोना काल में घर के कमाने वालों की कमाई ऐसी छिनी कि अब इस घर के बच्चे भूख से रोते बिलखते नजर आ रहे हैं.

Former CM bhola paswan shastri family upset in lockdown
पूर्व सीएम का घर

मदद की राह ताकते चेहरे पर आ गईं झुर्रियां
जिले के बैरगाछी में रहने वाले इस परिवार की माली हालत इतनी खराब हो गई है कि अब इस परिवार के सामने भुखमरी की नौबत आ गई है. हैरत की बात यह है कि पूर्व सीएम भोला पासवान शास्त्री को दिवगंत हुए तीन दशक से ज्यादा हो गए हैं. गुजरते वक्त के साथ सरकारी मदद की टकटकी लगाए उनके परिजनों के चेहरे पर झुर्रियां भी आ गईं, पर भोला पासवान के परिवार की तंगहाली दूर न हो सकी.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

लॉकडाउन से हुए और भी बदतर हालत
लॉकडाउन में रोजाना खाने-कमाने वाले इस परिवार के सामने दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करना भी मुश्किल हो गया. इसके बाद पूर्व सीएम के भतीजे विरंची के परिवार के सामने भुखमरी की नौबत आ गई है. मजदूरी कर खाने कमाने वाले विरंची के बेटों को शहर जाकर वापस लौटना पड़ रहा है. चौका-बर्तन का काम न मिलने से घर की महिलाएं परेशान हैं. 25 सदस्यों वाले इस परिवार को आज तक कोई बड़ी मदद नहीं मिली.

Former CM bhola paswan shastri family upset in lockdown
पूर्व सीएम का घर

ये भी पढ़ेंः पीएम के आत्मनिर्भरता के मूल मंत्र को साकार करता है बिहार का यह गांव

चावल का माड़ तक नहीं हो रहा नसीब
विरंची के बेटे असंत पासवान कहते हैं कि लॉकडाउन की शुरुआत में एक महीने किसी तरह बच्चों और मां-बाबा की दूध-दवाई के लिए ग्रुप से पैसे उठाए. मजदूरी की छूट मिलने के बाद वो काम की तलाश में शहर तो गए मगर घण्टों इंतेजार के बाद भी उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ रहा है. कोरोना के डर से पहले ही घर की बहुओं के चौका-बर्तन का काम ठप पड़ा है. लिहाजा नौबत इतनी खराब हो चली है कि दूध तो दूर घर वालों के सामने चावल के माड़ तक की किल्लत आन पड़ी है.

25 सदस्य पर सिर्फ एक राशन कार्ड
इस 25 सदस्य वाले परिवार का एक ही राशन कॉर्ड है. जिसपर मिलने वाला अनाज दो सप्ताह भी नहीं चल पाता है. घर के रखे सारे पैसे भी खर्च हो गए, जिसे विरंची के तीनों बेटों और बहुओं ने टूटे घर की मरम्मती के लिए रखे थे. अलग-अलग राशन कार्ड को लेकर उन्होंने मुखिया अपील की है, लेकिन उनकी कोई सुनने नहीं आया.

भतीजे विरंची पासवान को ही मानते थे बेटा
दरअसल भोला पासवान शास्त्री की अपनी कोई संतान नहीं थी. इसलिए वह भतीजे विरंची पासवान को ही अपना बेटा मानते थे. उनके दिवगंत होने पर भतीजे विरंची पासवान ने उनका अंतिम संस्कार किया. 60 के दशक में जब देश जात-पात के दलदल में फंसा था. जिले के नगर प्रखंड स्थित बैरगाछी ने बिहार को पहला दलित मुख्यमंत्री दिया. गणेशपुर पंचायत की गलियों में ही भोला पासवान शास्त्री का बचपन बीता. मुख्यमंत्री रहते हुए भी उनके पास अपनों को देने के लिए मामूली सी चटाई, खूब सारे आदर-सत्कार और उसूलों भरी बातों के अलावा कुछ नहीं था. इसी ईमानदारी का नतीजा रहा कि एक दो नहीं बल्कि 3 बार बिहार ने इन्हें सीएम बनाकर सर आखों पर बिठाया.

जानें कैसे थे तीन बार मुख्यमंत्री रहे भोला पासवान
अक्सर लोगों को लगता है कि जीतन राम मांझी बिहार के पहले दलित मुख्यमंत्री थे, बहुत कम लोग ही यह जानते हैं कि भोला पासवान शास्त्री बिहार के पहले दलित मुख्यमंत्री थे. 1968 में वह पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बनाए गए. इसके बाद वह 1969 में दोबारा मुख्यमंत्री बने. तीसरी बार 1971 में उन्हें फिर से सीएम बनने का अवसर मिला. जनता के प्रति उनके समर्पण और सक्रियता का ही असर रहा कि सियासी सफर तय करते हुए वह केंद्रीय मंत्री ,राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष और चार बार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष चुने गए.

कर्मठता और ईमानदारी की थे मिसाल
भोला पासवान शास्त्री को सियासी जगत में उनकी सादगी, कर्मठता और ईमानदारी के लिए जाना जाता है. दलित समाज से आने वाले वह एक ऐसा व्यक्तित्व थे जो हमेशा उसूलों के पक्के और बेदाग रहे.

पूर्णिया : लॉकडाउन ने रोजाना खाने-कमाने वाले परिवारों के सामने रोजी रोटी की गंभीर समस्या पैदा कर दी है. आपको यह जानकर हैरानी होगी इस लॉकडाउन में एक पूर्व मुख्यमंत्री का परिवार भी दाने-दाने को मोहताज हो गया है.

60 के दशक में बिहार के तीन बार मुख्यमंत्री रहे भोला पासवान शास्त्री के परिवार की जिंदगी किसी तरह मुफलिसी में कट रही थी. लेकिन इस कोरोना काल में घर के कमाने वालों की कमाई ऐसी छिनी कि अब इस घर के बच्चे भूख से रोते बिलखते नजर आ रहे हैं.

Former CM bhola paswan shastri family upset in lockdown
पूर्व सीएम का घर

मदद की राह ताकते चेहरे पर आ गईं झुर्रियां
जिले के बैरगाछी में रहने वाले इस परिवार की माली हालत इतनी खराब हो गई है कि अब इस परिवार के सामने भुखमरी की नौबत आ गई है. हैरत की बात यह है कि पूर्व सीएम भोला पासवान शास्त्री को दिवगंत हुए तीन दशक से ज्यादा हो गए हैं. गुजरते वक्त के साथ सरकारी मदद की टकटकी लगाए उनके परिजनों के चेहरे पर झुर्रियां भी आ गईं, पर भोला पासवान के परिवार की तंगहाली दूर न हो सकी.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

लॉकडाउन से हुए और भी बदतर हालत
लॉकडाउन में रोजाना खाने-कमाने वाले इस परिवार के सामने दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करना भी मुश्किल हो गया. इसके बाद पूर्व सीएम के भतीजे विरंची के परिवार के सामने भुखमरी की नौबत आ गई है. मजदूरी कर खाने कमाने वाले विरंची के बेटों को शहर जाकर वापस लौटना पड़ रहा है. चौका-बर्तन का काम न मिलने से घर की महिलाएं परेशान हैं. 25 सदस्यों वाले इस परिवार को आज तक कोई बड़ी मदद नहीं मिली.

Former CM bhola paswan shastri family upset in lockdown
पूर्व सीएम का घर

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चावल का माड़ तक नहीं हो रहा नसीब
विरंची के बेटे असंत पासवान कहते हैं कि लॉकडाउन की शुरुआत में एक महीने किसी तरह बच्चों और मां-बाबा की दूध-दवाई के लिए ग्रुप से पैसे उठाए. मजदूरी की छूट मिलने के बाद वो काम की तलाश में शहर तो गए मगर घण्टों इंतेजार के बाद भी उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ रहा है. कोरोना के डर से पहले ही घर की बहुओं के चौका-बर्तन का काम ठप पड़ा है. लिहाजा नौबत इतनी खराब हो चली है कि दूध तो दूर घर वालों के सामने चावल के माड़ तक की किल्लत आन पड़ी है.

25 सदस्य पर सिर्फ एक राशन कार्ड
इस 25 सदस्य वाले परिवार का एक ही राशन कॉर्ड है. जिसपर मिलने वाला अनाज दो सप्ताह भी नहीं चल पाता है. घर के रखे सारे पैसे भी खर्च हो गए, जिसे विरंची के तीनों बेटों और बहुओं ने टूटे घर की मरम्मती के लिए रखे थे. अलग-अलग राशन कार्ड को लेकर उन्होंने मुखिया अपील की है, लेकिन उनकी कोई सुनने नहीं आया.

भतीजे विरंची पासवान को ही मानते थे बेटा
दरअसल भोला पासवान शास्त्री की अपनी कोई संतान नहीं थी. इसलिए वह भतीजे विरंची पासवान को ही अपना बेटा मानते थे. उनके दिवगंत होने पर भतीजे विरंची पासवान ने उनका अंतिम संस्कार किया. 60 के दशक में जब देश जात-पात के दलदल में फंसा था. जिले के नगर प्रखंड स्थित बैरगाछी ने बिहार को पहला दलित मुख्यमंत्री दिया. गणेशपुर पंचायत की गलियों में ही भोला पासवान शास्त्री का बचपन बीता. मुख्यमंत्री रहते हुए भी उनके पास अपनों को देने के लिए मामूली सी चटाई, खूब सारे आदर-सत्कार और उसूलों भरी बातों के अलावा कुछ नहीं था. इसी ईमानदारी का नतीजा रहा कि एक दो नहीं बल्कि 3 बार बिहार ने इन्हें सीएम बनाकर सर आखों पर बिठाया.

जानें कैसे थे तीन बार मुख्यमंत्री रहे भोला पासवान
अक्सर लोगों को लगता है कि जीतन राम मांझी बिहार के पहले दलित मुख्यमंत्री थे, बहुत कम लोग ही यह जानते हैं कि भोला पासवान शास्त्री बिहार के पहले दलित मुख्यमंत्री थे. 1968 में वह पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बनाए गए. इसके बाद वह 1969 में दोबारा मुख्यमंत्री बने. तीसरी बार 1971 में उन्हें फिर से सीएम बनने का अवसर मिला. जनता के प्रति उनके समर्पण और सक्रियता का ही असर रहा कि सियासी सफर तय करते हुए वह केंद्रीय मंत्री ,राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष और चार बार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष चुने गए.

कर्मठता और ईमानदारी की थे मिसाल
भोला पासवान शास्त्री को सियासी जगत में उनकी सादगी, कर्मठता और ईमानदारी के लिए जाना जाता है. दलित समाज से आने वाले वह एक ऐसा व्यक्तित्व थे जो हमेशा उसूलों के पक्के और बेदाग रहे.

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