नई दिल्ली : भारत आक्रामक चीन के उत्थान के कारण तेजी से विकसित होती सुरक्षा और भू-राजनीतिक स्थिति का सामना कर रहा है. दोनों एशियाई दिग्गजों के बीच दक्षिण एशियाई क्षेत्र के कई देशों के बीच प्रभाव बनाने और उसे मजबूत करने की एक होड़ लगी हुई है. पनडुब्बियों से लेकर सैन्य उपकरणों और कोविड -19 का मुकाबला करने में सहायता देने तक दोनों देश अपनी मौजूदगी को महसूस कराने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं.
भारत के रक्षा सचिव अजय कुमार ने बुधवार को घोषणा की कि चीन को ध्यान में रखते हुए भारत ने कम्यूनिस्ट देश के प्रभाव वाले नेपाल, म्यांमार, बांग्लादेश और मालदीव जैसे देशों को प्रतिष्ठित नेशनल डिफेंस कॉलेज (एनडीसी) में ज्यादा स्थान देने का फैसला किया है.
उन्होंने कहा कि हम मित्र देशों को, जिनके यहां से मांग बहुत ज्यादा है, अधिक सीटें देने में सक्षम होंगे. इस संबंध में आवश्यक बुनियादी संरचना तैयार किया जा रहा है. हम उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान, फिलीपींस, इंडोनेशिया और मालदीव की नई सीटों के अलावा नेपाल, म्यांमार, बांग्लादेश को अतिरिक्त सीटें देने जा रहे हैं.
रक्षा सचिव ने कहा कि हम दूसरे देशों के लिए मौजूदा 25 सीटों में 10 नई सीटें और फिर 2022 में और 10 सीटें बढ़ाएंगे.
उन्होंने कहा कि श्रीलंका के साथ भी बातचीत हुई है, क्योंकि वह एनडीसी जैसा ही अपना एक कार्यक्रम शुरू करना चाहता है.
एक शीर्ष सैन्य अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि हम पाठ्यक्रम और सामग्री तैयार करने में सक्रिय रूप से श्रीलंका की मदद कर रहे हैं. इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि एनडीसी में वर्षों से पाकिस्तानी या चीन की उपस्थिति नहीं है.
एक शीर्ष सैन्य अधिकारी ने कहा कि करीब 10 साल पहले केवल एक बार एनडीसी में एक पाकिस्तानी अधिकारी रहे थे, जबकि चीन के अधिकारियों को आमंत्रित नहीं किया गया है, क्योंकि चीन में इस प्रस्ताव के अनुरूप कोई कार्यक्रम नहीं हैं. चीन के अधिकतर कार्यक्रम पहले से ही बहुत संगठित हैं, जो पेशेवर सैनिकों, राजनयिकों और अन्य लोगों को अधिक पसंद नहीं हैं.
एनडीसी की डायमंड जुबली पर गुरुवार और शुक्रवार को दो दिवसीय वेबिनार आयोजित किया जाएगा. इस कार्यक्रम के लिए तैयार एक अवधारणा नोट में कहा गया है कि चीनी प्रभाव का एक बड़ा असर एशियाई क्षेत्र में महसूस किया जा रहा है, जिसमें चीन सैन्य और आर्थिक ताकत का उपयोग भारत जैसी क्षेत्रीय शक्तियों पर अपने प्रभुत्व को और मजबूत करने के लिए कर रहा है.
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इस साल अप्रैल-मई के बाद से भारतीय और चीनी सैनिक पूर्वी लद्दाख में एक दूसरे के सामने डटे हैं, जिसके कारण वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर सैनिकों और सैन्य संपत्ति की अभूतपूर्व लामबंदी हुई है. अभी एक लाख से अधिक सैनिक इस क्षेत्र में तैनात हैं. यहां तक कि वे शुरू हो गई कड़कड़ाती ठंड को भी मात दे रहे हैं.
भारत का प्रतिष्ठित एनडीसी अपने आप में एकलौता है जिसे सुरक्षा, सेना, कूटनीति और रणनीतिक विचारकों के मंथन करने के लिए जाना जाता है. वर्ष 1960 में जब इसने अपना पहला पाठ्यक्रम पेश किया, तब से यह अपने छात्र के रूप में दो पूर्व राष्ट्राध्यक्षों (बांग्लादेश और घाना), एक राजा (भूटान), 74 विदेशी सेना के प्रमुख के अलावा बहुत सारे प्रभावशाली व्यक्तियों को देने के लिए गिना जाता है.
देश में एनडीसी कार्यक्रम के पूर्ववर्ती छात्रों में सेवारत सीडीएस, दो राज्यपाल, वर्तमान एनएसए, दो चुनाव आयुक्त, 30 सेवा प्रमुख, 74 विदेश सेवा के अधिकारी, 20 से अधिक राजदूत, चार रक्षा सचिव और पांच विदेश सचिव हैं. ये इसकी सूची के कुछ ही नाम हैं.