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हार के बाद कांग्रेस और लेफ्ट के लिए वापसी मुश्किल : विशेषज्ञ - वाम मोर्चा

लोकसभा चुनावोे में हार के बाद कांग्रेस और लेफ्ट दलों के भविष्य पर सवालिया निशान लग गए हैं. पिछले चुनावों से भी कम सीट पर सिमट कर रह जाने वाले वाम दलों के लिए वापसी बहुत मुश्किल लग रही है. वहीं, कांग्रेस के साथ भी कुछ मुश्किलें हैं. जानें विशेषज्ञों की राय...

राहुल गांधी
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Published : May 25, 2019, 10:48 PM IST

नई दिल्ली: कांग्रेस कार्यकारिणी समिति (सीडब्ल्यूसी) की बैठक में पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस्तीफे की पेशकश की. हालांकि, पार्टी ने उनके नेतृत्व पर विश्वास व्यक्त किया है. वहीं, राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना ​​है कि पार्टी को अपनी रणनीति को गंभीर रूप देने की जरूरत है.

राजनीतिक मामलों के विशेषज्ञ और वरिष्ठ पत्रकार गौतम लाहिरी ने कहा कि कांग्रेस के पास एक मजबूत नेता नहीं है जिसे करिश्माई नरेंद्र मोदी का मुकाबला कर सके.

पढ़ें-राहुल का इस्तीफा नामंजूर, पार्टी बोली- आपकी जरूरत है

वहीं, लेफ्ट फ्रंट जो त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल में बुरी तरह हारा है पर वरिष्ठ पत्रकार ने कहा कि लेफ्ट को बदलते राजनीतिक समीकरणों और आवश्यकताओं को अपनाने की जरूरत है.

वरिष्ठ पत्रकार गौतम लाहिरी और सुबिमल भट्टाचार्जी से बातचीत.

लाहिरी ने कहा कि वास्तव में वाम मोर्चे ने 2011 से पहले ही अपनी जमीन तलाशना शुरू कर दिया था. वे उस रणनीति को अपनाने में नाकाम रहे हैं, जो राज्य को चलाने के लिए आवश्यक है. वे अभी पुराने नारे चोलबे ना चोलबे ना पर चल रहे हैं.

पढ़ें-हार के बाद सामने आईं ममता, बोलीं- मैं चुप नहीं बैठूंगी

राजनीतिक मामलों के विशेषज्ञ सुबिमल भट्टाचार्जी ने कहा कि राहुल गांधी ने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की, लेकिन उन्हें राज्य नेताों से अपेक्षित सहयोग नहीं मिला. 2019 के लोकसभा चुनाव परिणामों के बाद कांग्रेस और वाम मोर्चा दोनों ऐसी स्थिति में खड़े हैं जहां से वापस आना बहुत मुश्किल है.

नई दिल्ली: कांग्रेस कार्यकारिणी समिति (सीडब्ल्यूसी) की बैठक में पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस्तीफे की पेशकश की. हालांकि, पार्टी ने उनके नेतृत्व पर विश्वास व्यक्त किया है. वहीं, राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना ​​है कि पार्टी को अपनी रणनीति को गंभीर रूप देने की जरूरत है.

राजनीतिक मामलों के विशेषज्ञ और वरिष्ठ पत्रकार गौतम लाहिरी ने कहा कि कांग्रेस के पास एक मजबूत नेता नहीं है जिसे करिश्माई नरेंद्र मोदी का मुकाबला कर सके.

पढ़ें-राहुल का इस्तीफा नामंजूर, पार्टी बोली- आपकी जरूरत है

वहीं, लेफ्ट फ्रंट जो त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल में बुरी तरह हारा है पर वरिष्ठ पत्रकार ने कहा कि लेफ्ट को बदलते राजनीतिक समीकरणों और आवश्यकताओं को अपनाने की जरूरत है.

वरिष्ठ पत्रकार गौतम लाहिरी और सुबिमल भट्टाचार्जी से बातचीत.

लाहिरी ने कहा कि वास्तव में वाम मोर्चे ने 2011 से पहले ही अपनी जमीन तलाशना शुरू कर दिया था. वे उस रणनीति को अपनाने में नाकाम रहे हैं, जो राज्य को चलाने के लिए आवश्यक है. वे अभी पुराने नारे चोलबे ना चोलबे ना पर चल रहे हैं.

पढ़ें-हार के बाद सामने आईं ममता, बोलीं- मैं चुप नहीं बैठूंगी

राजनीतिक मामलों के विशेषज्ञ सुबिमल भट्टाचार्जी ने कहा कि राहुल गांधी ने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की, लेकिन उन्हें राज्य नेताों से अपेक्षित सहयोग नहीं मिला. 2019 के लोकसभा चुनाव परिणामों के बाद कांग्रेस और वाम मोर्चा दोनों ऐसी स्थिति में खड़े हैं जहां से वापस आना बहुत मुश्किल है.

Intro:New Delhi: Evenas Congress Working Committee (CWC) meeting on Saturday has expressed confidence over the leadership of party president Rahul Gandhi, political experts, however, feel that the party need to give serious look over its allround strategy.


Body:Political and Strategic Affairs expert as well as senior journalist also feel that the Left Front which is also washed away from Tripura and West Bengal in the just concluded Lok Sabha election, "needs to adopt with the changing political equations and requirements."

"In fact, the Left Front started looking its ground much before 2011. They have failed to adopt the strategy that needs to run the state...They are stick to their age old slogan cholbe naa cholbe naa," said Gautam Lahiri a senior independent journalist.

He pointed out, "The Left lost when they denied Jyoti Basu to be the Prime Minister...They again lost for the second time when they rejected the proposal to make Somnath Chatterjee as the deputy Prime Minister in UPA I. And the last was the withdrawal of its support from UPA opposing the nuclear deal," said Lahiri.

On the otherhand, Lahri said, Congress does not have a strong leader who can be projected against charismatic Narendra Modi.

"Congress is remain busy in infighting...There were infighting in Rajasthan Congress as well as Madhya Pradesh Congress," said Lahiri.

Echoing the same view, political and strategic affairs expert Subimal Bhattacharjee said, "Rahul Gandhi tried his best, but he did not get the required support from the state leadership," said Bhattacharjee.


Conclusion:The 2019 Lok Sabha election results has simply exposed that both Congress and Left Front are standing at such a position where revival is very "tough."

The vote share of Congress has witnseed no progress in 2019 election in comparison to 2014 election. The Congress vote share in this election was 19.6 whether as it was 19.5 percent in 2014. On the otherhand, Left Front lost its two sets in Tripura and recorded zero in West Bengal.

Statistics shows that Left votes have shifted to BJP in West Bengal. The CPM has a sharp decline in its vote share from 22.96 percent (2014) to only 6.3 percent in 2019. The CPI vote share has declined from 2.36 percent (2014) to 0.39 percent in this election.

end.
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