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पटना कलेक्ट्रेट डच और ब्रिटिश वास्तुकला का बेजोड़ नमूना, संरक्षण जरूरी - rare specimen of Dutch architecture

बिहार के पटना का कलेक्ट्रेट परिसर डट और ब्रिटिश वास्तुकला का बेजोड़ नमूना है. विशेषज्ञों का कहना है कि इसे आने वाली पीढ़ियों के लिए संरक्षित करने बहुत जरूरी है. जिलाधिकारी कार्यालय और पटना जिला बोर्ड की इमारतें ब्रिटिश काल में बनाई गई थीं. यह परिसर बारह एकड़ में फैला हुआ जिसका कुछ हिस्सा ढाई सौ साल से अधिक पुराना है.

Patna Collectorate
पटना कलक्ट्रेट
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Published : Oct 6, 2020, 2:32 PM IST

नई दिल्ली/पटना : पटना कलेक्ट्रेट परिसर की ऊंची छत, रोशनदान और खंबों वाली इमारतें डच और ब्रिटिश वास्तुकला के 'दुर्लभ नमूने' हैं जिन्हें भावी पीढ़ी के लिए संरक्षित करने की आवश्यकता है. विशेषज्ञों ने सोमवार को यह कहा.

पटना में स्थित इन भव्य इमारतों का भविष्य अधर में लटका है और विश्व वास्तुकला दिवस के अवसर पर शहरी संरक्षणकर्ताओं और वास्तुकारों ने कहा कि यह ऐतिहासिक शहर 'पहले ही बहुत सी इमारतें और धरोहर खो चुका है' और सब समाज 'इतिहास के इस प्रतीक को खोना नहीं चाहता.'

कलेक्ट्रेट की डच कालीन इमारतों में 'रिकॉर्ड रूम' और पुराना जिला इंजीनियर कार्यालय शामिल है.

जिलाधिकारी कार्यालय और पटना जिला बोर्ड की इमारतें ब्रिटिश काल में बनाई गई थीं. यह परिसर बारह एकड़ में फैला हुआ जिसका कुछ हिस्सा ढाई सौ साल से अधिक पुराना है.

ऑस्कर पुरस्कार प्राप्त फिल्म 'गांधी' के कुछ प्रमुख दृश्य यहां फिल्माए गए थे.

मुंबई स्थित संरक्षणकर्ता कमलिका बोस ने कहा, 'पटना का इतिहास ढाई हजार साल से अधिक पुराना है जिस पर विभिन्न कालखंडों की वास्तुकला की छाप देखने को मिलती है. पहले ही शहर की बहुत सी सुंदर और पुरानी इमारतें खराब हो चुकी हैं. और अब डच और ब्रिटिश वास्तुकला के दुर्लभ नमूने कलेक्ट्रेट पर खतरा मंडरा रहा है. इसे वर्तमान और भावी पीढ़ी के लिए संरक्षित किया जाना चाहिए और सरकार को इसे गिराने के बारे में सोचना भी नहीं चाहिए.'

बोस ने कहा कि आज सरकारें विश्व स्तरीय इमारतें बनाने की बात करती हैं, लेकिन पहले से ही हमारे पास कलेक्ट्रेट के रूप में पुरातनकाल की विश्व स्तरीय इमारत है और हमें इसका संरक्षण करने की आवश्यकता है. यह एक टाइम मशीन की तरह है जिसमें युवा और अन्य लोग जा सकते हैं. पटना में अन्य ऐतिहासिक इमारतों को ध्वस्त किए जाने के बाद अब यही अमूल्य धरोहर बची है.'

गत दस वर्ष में पटना की कई ऐतिहासिक इमारतों को ध्वस्त किया गया है, जिनमें 110 वर्ष पुराना गोल मार्केट, 1885 का अंजुमन इस्लामिया हॉल, सिटी एसपी का बंगला, जिला एवं सत्र न्यायाधीश का बंगला और सिविल सर्जन का बंगला शामिल है.

बिहार सरकार ने 2016 में पटना कलेक्ट्रेट को ध्वस्त करने का प्रस्ताव दिया था ताकि नया परिसर बनाया जा सके. इस प्रस्ताव का बड़े स्तर पर विरोध हुआ था और इसे बचाने के लिए भारत तथा विदेश से आवाज मुखर हुई थी. धरोहरों के संरक्षण से जुड़ी संस्था 'इंटैक', 2019 में मामले को पटना उच्च न्यायालय ले गई थी.

पढ़ें - रैलियों के लिए पटना के 47 खुले मैदान, 19 सभागार हुए चिह्नित

बिहार सरकार द्वारा स्थापित धरोहर आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि वास्तुकला, संस्कृति और सौंदर्य के लिहाज से कलेक्ट्रेट का कोई विशेष महत्व नहीं है और इसका इस्तेमाल अफीम और शोरा रखने के लिए किया जा रहा है. धरोहर विशेषज्ञों और इतिहासकारों ने इस मत को नकारा है. इसके बाद मामला उच्चतम न्यायालय में गया.

इंटैक की याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने पटना कलेक्ट्रेट को ध्वस्त करने पर 18 सितंबर को रोक लगा दी. इससे दो दिन पहले ही मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने नई इमारत की आधारशिला रखी थी. गंगा किनारे खड़ी इस इमारत का इस्तेमाल 1857 से जिला प्रशासन के कार्यालय के रूप में किया जा रहा है.

नई दिल्ली/पटना : पटना कलेक्ट्रेट परिसर की ऊंची छत, रोशनदान और खंबों वाली इमारतें डच और ब्रिटिश वास्तुकला के 'दुर्लभ नमूने' हैं जिन्हें भावी पीढ़ी के लिए संरक्षित करने की आवश्यकता है. विशेषज्ञों ने सोमवार को यह कहा.

पटना में स्थित इन भव्य इमारतों का भविष्य अधर में लटका है और विश्व वास्तुकला दिवस के अवसर पर शहरी संरक्षणकर्ताओं और वास्तुकारों ने कहा कि यह ऐतिहासिक शहर 'पहले ही बहुत सी इमारतें और धरोहर खो चुका है' और सब समाज 'इतिहास के इस प्रतीक को खोना नहीं चाहता.'

कलेक्ट्रेट की डच कालीन इमारतों में 'रिकॉर्ड रूम' और पुराना जिला इंजीनियर कार्यालय शामिल है.

जिलाधिकारी कार्यालय और पटना जिला बोर्ड की इमारतें ब्रिटिश काल में बनाई गई थीं. यह परिसर बारह एकड़ में फैला हुआ जिसका कुछ हिस्सा ढाई सौ साल से अधिक पुराना है.

ऑस्कर पुरस्कार प्राप्त फिल्म 'गांधी' के कुछ प्रमुख दृश्य यहां फिल्माए गए थे.

मुंबई स्थित संरक्षणकर्ता कमलिका बोस ने कहा, 'पटना का इतिहास ढाई हजार साल से अधिक पुराना है जिस पर विभिन्न कालखंडों की वास्तुकला की छाप देखने को मिलती है. पहले ही शहर की बहुत सी सुंदर और पुरानी इमारतें खराब हो चुकी हैं. और अब डच और ब्रिटिश वास्तुकला के दुर्लभ नमूने कलेक्ट्रेट पर खतरा मंडरा रहा है. इसे वर्तमान और भावी पीढ़ी के लिए संरक्षित किया जाना चाहिए और सरकार को इसे गिराने के बारे में सोचना भी नहीं चाहिए.'

बोस ने कहा कि आज सरकारें विश्व स्तरीय इमारतें बनाने की बात करती हैं, लेकिन पहले से ही हमारे पास कलेक्ट्रेट के रूप में पुरातनकाल की विश्व स्तरीय इमारत है और हमें इसका संरक्षण करने की आवश्यकता है. यह एक टाइम मशीन की तरह है जिसमें युवा और अन्य लोग जा सकते हैं. पटना में अन्य ऐतिहासिक इमारतों को ध्वस्त किए जाने के बाद अब यही अमूल्य धरोहर बची है.'

गत दस वर्ष में पटना की कई ऐतिहासिक इमारतों को ध्वस्त किया गया है, जिनमें 110 वर्ष पुराना गोल मार्केट, 1885 का अंजुमन इस्लामिया हॉल, सिटी एसपी का बंगला, जिला एवं सत्र न्यायाधीश का बंगला और सिविल सर्जन का बंगला शामिल है.

बिहार सरकार ने 2016 में पटना कलेक्ट्रेट को ध्वस्त करने का प्रस्ताव दिया था ताकि नया परिसर बनाया जा सके. इस प्रस्ताव का बड़े स्तर पर विरोध हुआ था और इसे बचाने के लिए भारत तथा विदेश से आवाज मुखर हुई थी. धरोहरों के संरक्षण से जुड़ी संस्था 'इंटैक', 2019 में मामले को पटना उच्च न्यायालय ले गई थी.

पढ़ें - रैलियों के लिए पटना के 47 खुले मैदान, 19 सभागार हुए चिह्नित

बिहार सरकार द्वारा स्थापित धरोहर आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि वास्तुकला, संस्कृति और सौंदर्य के लिहाज से कलेक्ट्रेट का कोई विशेष महत्व नहीं है और इसका इस्तेमाल अफीम और शोरा रखने के लिए किया जा रहा है. धरोहर विशेषज्ञों और इतिहासकारों ने इस मत को नकारा है. इसके बाद मामला उच्चतम न्यायालय में गया.

इंटैक की याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने पटना कलेक्ट्रेट को ध्वस्त करने पर 18 सितंबर को रोक लगा दी. इससे दो दिन पहले ही मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने नई इमारत की आधारशिला रखी थी. गंगा किनारे खड़ी इस इमारत का इस्तेमाल 1857 से जिला प्रशासन के कार्यालय के रूप में किया जा रहा है.

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