नई दिल्ली : नेशनल मेडिकल काउंसिल (एनएमसी) कानून पर स्वास्थ्य क्षेत्र के विशेषज्ञों का कहना है कि यह भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र में समग्र विकास लाएगा.
दरअसल एनएमसी कानून का लंबे विरोध के बाद केंद्र सरकार ने कानूनी जामा पहना दिया है.
स्वास्थ्य विशेषज्ञ और एसोसिएशन ऑफ हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स के महानिदेशक डॉ. गिरिधर ज्ञानी ने ईटीवी भारत से विशेष बातचीत में कहा कि एनएमसी कानून निश्चित रूप से भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र में एक बड़ा परिवर्तन लाएगा.
डॉ. ज्ञानी के अनुसार, 'सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में भी विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी थी. यह भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र में एक लंबे समय से प्रतीक्षित सुधार था. यह दिक्कत थी कि मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) भारत में चिकित्सीय शिक्षा, पेशे और संस्थानों के सभी पहलुओं को विकसित करने और नियामक के तौर पर आवश्यक सुधार लाने में सक्षम नहीं था.'
स्वास्थ्य विशेषज्ञ इस विधेयक को भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र में सबसे बड़े सुधार के रूप में मानते हैं. इस विधेयक ने एमसीआई के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों को देखते हुए भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम 1956 में संशोधन किया है. इसका उद्देश्य देश में मेडिकल कॉलेजों को विनियमित करने की प्रक्रिया में कमियों को दूर करना भी है.
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बकौल डॉ. ज्ञानी, 'अब मेडिकल कॉलेजों में 75 प्रतिशत सीटें सरकार के मेडिकल कॉलेजों की फीस संरचनाओं के आधार पर लागू होंगी. अब निजी खिलाड़ी प्रशासनिक कोटा वाली 25 प्रतिशत सीटों पर ही प्रभाव डाल सकते हैं.'
इस धारा को, जिसमें सामुदायिक स्वास्थ्य प्रदाताओं को आधुनिक चिकित्सा पद्धति का अभ्यास करने की अनुमति दी गई है. लेकर चल रहे विरोध का उल्लेख करते हुए डॉ. ज्ञानी ने कहा कि किसी भी तरह सामुदायिक स्वास्थ्य प्रदाता डॉक्टरों और विशेषज्ञों के स्तर पर नहीं पहुंच सकते.
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ज्ञानी ने कहा, 'वे केवल डॉक्टरों की सेवा में सहायता करेंगे और यह आश्वासन हमें स्वास्थ्य मंत्री से भी मिला है.'
इस विधेयक में सामुदायिक स्वास्थ्य प्रदाताओं (सीएचपी) को परिभाषित करने की भी योजना है. इनमें व्यक्तियों को मध्यम स्तर पर चिकित्सीय अभ्यास करने का लाइसेंस दिया जाएगा.
गौरतलब है कि संसद द्वारा विधेयक पारित किए जाने के बाद एनएमसी को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की सहमति मिलने से एक कानून बन गया.