नई दिल्ली : कोरोना काल में कोई कोरोना से मर रहा है तो कोई इससे पैदा हुई स्थिति से. सामाजिक दूरियां और कम्युनिकेशन गैप से मानसिक अवसाद चरम तक पहुंच जाता है और मन में निराशाजनक विचार आने लगते हैं. जीवन एक शून्य लगने लगता है और खुद ही इस शून्य को खत्म करने पर लोग उतारू हो जाते हैं. बॉलीवुड का एक चमकता सितारा सुशांत सिंह राजपूत के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ.
अपनी आखरी फिल्म छिछोरे से भी उन्होंने कोई सबक नहीं लिया. फिल्म में अपने बेटे को आत्महत्या नहीं करने के लिए, उसे डिप्रेशन से बाहर निकालने के लिए अपने कॉलेज के दोस्तों के साथ मिलकर अपने जमाने की छिछोरापंथी की अजीबो-गरीब कहानियां सुनाते दिखते हैं, लेकिन खुद अपनी ही फिल्म से कुछ नहीं सिख पाए.
उन्होंने आत्महत्या कर पूरे बॉलीवुड समेत देशभर के लोगों को चौंका दिया. खुद प्रधानमंत्री ने भी ट्वीट कर इस घटना पर आश्चर्य प्रकट किया.
हर तरह की भौतिक सुख-सुविधाओं से सम्पन्न होने के बावजूद आखिर ऐसी कौन सी कमी सुशांत को खल रही थी, जिसकी वजह से उन्होंने अपनी जीवन लीला ही समाप्त कर ली? जाने-माने फिजिशियन और हार्ट केयर फॉउंडेशन के अध्यक्ष डॉ. केके अग्रवाल कहते हैं कि सोशल मीडिया इन दिनों लोगों के जीवन का आईना बन गया है. आप क्या सोच रहे हैं और क्या करने वाले हैं यह सब वहां से पता चल जाता है.
उन्होंने कहा कि अगर सुशांत के सुसाइड से पहले उनके पोस्ट को देखा जाए तो साफ दिख रहा है कि वह गंभीर अवसाद में थे. उनकी सुसाइडल टेंडेंसी साफ दिख रही थी. शायद इसिलए हो सकता है कि उनके सुसाइड के पहले उनके कुछ मित्र उन्हें समझाने गए हों. लेकिन उनका डिप्रेशन चरम पर पहुंच गया था, जहां से सारे सांसारिक बंधन से इंसान मुक्त होना चाहता है.
आत्महत्या के विचार को कभी नजरअंदाज न करें
डॉ. अग्रवाल बताते हैं कि जब किसी माध्यम से आपके किसी मित्र, परिवार के सदस्य या आपके किसी जानने वाले के व्यवहार में विचित्र तरह के बदलाव दिखें तो सावधान हो जाना चाहिए. उनके सोशल मीडिया की एक्टिविटीज पर नजर रखे. जैसे ही कोई गहरी दार्शनिक बातें करे तो उनकी तुरंत कॉन्सिलिंग कराएं. यह आत्महत्या की ओर बढ़ता पहला कदम होता है, इसे यहीं पर रोक दें.
शारीरिक दूरी रखें, सामाजिक दूरी नहीं
डॉ. अग्रवाल कहते हैं कि लॉकडाउन में आइसोलेशन है. लोगों से मिल नहीं रहे हैं, काम नहीं कर रहे हैं. जो लोग पहले से ही डिप्रेशन में हैं वह अपने आप बढ़ जाएगा. जिन लोगों में ऑब्सेसिव कंपल्सिव टेंडेंसी है वह भी बढ़ जाएगी. इसलिए फिजिकल डिस्टेंस रखें, सोशल डिस्टेन्स नहीं. अगर सोशल और इमोशनल डिस्टेन्स रखेंगें तो डिप्रेशन बढ़ जाएगा, और फिर सुसाइडल टेंडेंसी भी बढ़ जाएगी. डिप्रेशन न आए इसके लिए सामाजिक होना जरूरी है. बात कीजिए ताकि डिप्रेशन न हो.
डिप्रेशन के लिए मदद मांगने हिम्मत का काम
दिल्ली के एकमात्र मानसिक अस्पताल इहबास के निदेशक और जाने-माने साईकेट्रिस्ट डॉ निमेष जी देसाई कहते हैं कि आज की भागमभाग वाली जिंदगी में अवसादग्रस्त होना कोई नई बात नहीं है. लोग इसे हल्के में लेकर नजरअंदाज कर देते हैं. गलती यहीं पर होती है, उन्हें एक स्टिग्मा का डर होता है कि अगर वह किसी और को बताएंगे तो वह उन्हें पागल या मानसिक रूप से कमजोर समझेंगे.
मदद मांगना हिम्मत का काम
दरअसल डिप्रेशन के लिए मदद मांगना हिम्मत का काम होता है. यह एक मानसिक लाचारी है, बेबसी है. इससे बाहर आने के लिए अपनी मानसिक अवस्था से बाहर आना होगा. सुशांत बहुत अच्छे एक्टर थे. उनकी मानसिक लाचारी इतनी बढ़ गइ थी कि उनके सामने सारी सांसारिक चीजें छोटी पड़ गइ. सफलता, शोहरत और दौलत से भरपूर थे. कम उम्र में ही बड़ी कामयाबी हासिल की थी, इसे संभाल नहीं पाए.