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घाव भरने में वक्त लगेगा पर लौटेंगे मजदूर : अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज - Jean Dreze opinion on Indian economy

जाने-माने अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ने कहा है कि इस वक्त पूरे देश की दृष्टि मजदूरों पर ही है, क्योंकि वह सड़क पर हैं, लेकिन जो गरीब घरों में हैं, उन पर ध्यान कम जा रहा है. नतीजा झारखंड के लातेहार में जब एक पांच साल की लड़की की भूख से मौत हो जाती है, तब वह खबरों में आती है. जानिए उनसे साक्षात्कार के प्रमुख बिंदु...

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अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज
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Published : May 29, 2020, 6:21 PM IST

हैदराबाद : देश के जाने-माने अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज, जो मूलरूप से बेल्जियम के हैं, पिछले 15-20 वर्ष से भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में काम कर रहे हैं. मनरेगा में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है. ईटीवी भारत के रीजनल एडिटर ब्रजमोहन सिंह से खास बातचीत में उन्होंने भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था, गरीब और मजदूर जैसे विषयों पर अहम जानकारी साझा की है.

भारत की वर्तमान स्थिति किस ओर करवट ले रही है, इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि झारखंड और बिहार जैसे गरीब राज्यों में काफी गंभीर स्थिति आने वाली है. इसका कारण है रोजगार का अभाव. लॉकडाउन हटने के बाद भी दो-तीन महीने तक रोजगार के साधन नजर नहीं आ रहे हैं. बहुत जगहों से मजदूर लौट रहे हैं, जिससे श्रमिकों की संख्या बढ़ेगी और मोलभाव करने की क्षमता कम हो जाएगी. इस वक्त पूरे देश की दृष्टि मजदूरों पर ही है, क्योंकि वह सड़क पर हैं, लेकिन जो गरीब घरों में हैं, उन पर ध्यान कम जा रहा है. नतीजा झारखंड के लातेहार में जब एक पांच साल की लड़की की भूख से मौत हो जाती है, तब वह खबरों में आती है. ज्यां द्रेज ने कहा कि बिहार की स्थिति भी ऐसी है, वहां भी लगभग 50 प्रतिशत लोग ऐसे हैं, जिनके पास अपनी जमीन नहीं है. ऐसे लोगों को आगे के दिनों में मनरेगा के तहत ही कोई तात्कालिक रोजगार दिया जा सकेगा.

अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज से बातचीत
ये भी पढ़ें- रांची: जंगलों को बचाने में जुटे वॉरियर्स, पेड़ों की कटाई रोकने के लिए कर रहे ड्यूटी

मजदूर जो वापस गए हैं, वह फिर से कमाने के लिए शहर जा सकते हैं. इसके बारे में आप क्या सोचते हैं? उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि अभी जो मजदूर वापस लौटे हैं, वह कुछ समय तक पलायन से बचने की कोशिश करेंगे, क्योंकि उनका बुरा अनुभव रहा है, लेकिन अंत में उन्हें जाना ही पड़ेगा. तब तक वह अपने आस-पास के शहरों में ही कुछ न कुछ करेंगे.

तात्कालिक तौर पर रोजगार गारंटी योजना का ही सहारा

झारखंड के ग्रामीण क्षेत्रों की क्या हकीकत है? क्या वहां रोजगार बढ़ाने के लिए कोई काम हो रहा है? इस सवाल पर ज्यां द्रेज ने कहा कि तात्कालिक तौर पर रोजगार गारंटी योजना ही ऐसे साधन है, जिससे लोगों को राहत दी जा सकती है. इसके लिए रोड मैप तैयार है. राजस्थान, तमिलनाडु और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य इस योजना का अच्छे तरीके से इस्तेमाल कर रहे हैं. अभी अधिकतर लोगों की जिंदगी जन वितरण प्रणाली के सहारे चल रही है, लेकिन आगे तेल, साबुन, बच्चों की फीस आदि की जररूत पड़ेगी. इसके लिए उन्हें पैसा कमाना ही होगा.

हर राज्य में अलग हैं रोजगार की स्थितियां

मनरेगा तो तात्कालिक कदम है, क्या आपको लगता है सरकार को इससे आगे बढ़कर काम करने की जरूरत है, क्योंकि आधारभूत ढांचा पूरी तरह ढह गया है. इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि हर राज्य की स्थिति अगल-अगल है. झारखंड में बहुत सारे स्थानीय समाधान हैं, जिसका इस्तेमाल यहां के लोगों के लिए किया जा सकता है. यहां हॉर्टिकल्चर, कृषि, जड़ी-बूटी जैसे कई साधन हैं, जिसमें बहुत संभावनाएं हैं. बिहार में ऐसी सुविधा कम हैं. वहां मानव संसाधनों के माध्यम से काम किया जा सकता है. इस पर कम ध्यान दिया जाता है. पलायन पर ध्यान देने की जरूरत है. इसके लिए केरल का उदाहरण देख सकते हैं.

मनरेगा के लिए ज्यादा धन की होगी जरूरत

मनरेगा के ड्राफ्ट में आपकी भूमिका रही है. मनरेगा के लिए सरकार ने पहले से अधिक फंड दिया है. आपको लगता है कि लोगों को अपने क्षेत्र में रोजगार देने के लिए और अधिक फंड देने की जरूरत है? इस पर ज्यां द्रेज ने कहा कि मनरेगा को यदि ईमानदारी से लागू किया जाएगा, तो और अधिक फंड की जरूरत पड़ेगी, क्योंकि इन दिनों इसकी मांग बहुत अधिक है.

ये भी पढ़ें- भूखे पेट वर्ल्ड कप की तैयारी कर रही है फुटबॉलर सुधा तिर्की, कैसे बनेंगे चैंपियन!

बढ़ानी होगी लोगों की खरीददारी करने की क्षमता

बिहार-झारखंड में 70 प्रतिशत से अधिक लोग खेती पर निर्भर हैं, लेकिन उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है. ऐसे में पॉलिसी में बदलाव कर उनकी स्थिति में सुधार लाने के लिए क्या करना होगा? इस पर उन्हेंने कहा कि जो किसान वर्ग है, वह अभी इतना ज्याद प्रभावित नहीं हो रहा है, जो किसानी कर रहे हैं, उनको बहुत फर्क नहीं पड़ेगा. उन्हें उत्पादन की मुश्किल नहीं, बेचने की समस्या हो रहा है. इस पर काम करना है. लोगों की खरीददारी करने की क्षमता को बढ़ाना पड़ेगा.

किसानों को बाजार के सहारे छोड़ना ठीक नहीं

किसानों को परेशानी होती है, कभी सुनने में आता है कि किसान एक रुपये किलो टमाटर बेच रहा है, लेकिन लोग अपने घरों में 20 रुपये किलो टमाटर लाते हैं. ऐसे में इस बीच का जो गैप है, उसे पाटने के लिए कुछ खास नहीं किया जा रहा है? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि किसानों को बाजार के भरोसे छोड़ेंगे तो ठीक नहीं होगा. जापान, यूरोप में देखें, तो वहां फार्मिंग कोऑपरेटिव, कोऑपरेटिव मार्केटिंग, कोऑपरेटिव क्रेटिड इंश्योरेंस की भूमिका रही है. कृषि क्षेत्र का विकास करना है, तो इस क्षेत्र में काम करना होगा.

ये भी पढ़ें- रांची: लॉकडाउन में इंसान तो इंसान, भगवान भी परेशान, न हो रहे भक्तों के दर्शन ना चढ़ावे की भेंट

पंचायतों को मजबूत करने की जरूरत

पंचायत स्तर पर सारी व्यवस्था करने के लिए सरकार के सामने फिलहाल क्या परेशानी उत्पन्न हो सकती है? क्या विकास के मॉडल को नए सिरे से समझने की जरूरत है? इस सवाल के जवाब में ज्यां द्रेज ने कहा कि डिसेंट्रलाइजेशन हो और लोकल गवर्नमेंट मजबूत हो तो इससे बहुत फायदा मिलेगा, जो दिख भी रहा है. इसके लिए केरल का उदारहण देख सकते हैं. झारखंडी की तुलना में छत्तीसगढ़ में अच्छा काम हो रहा है. झारखंड में पंचायतों को मजबूत करना होगा. पहले केंद्र से जो पैसे मिलते थे वह पूरे पैसे लोगों तक नहीं पहुंच पाते थे, लेकिन अब डीबीटी के माध्यम से लोगों के खाते में पैसे जा रहे हैं. उज्ज्वला योजना के माध्यम से लोगों को गैस मिल रही है. इंफ्रस्ट्रक्चर तो अच्छा हुआ है. सरकार में यह इच्छाशक्ति होनी चाहिए कि आप वाकई दीर्घकाल में इसे आगे बढ़ाना चाहते हैं. इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि डीबीटी तो ठीक है, उसमें कई समस्याएं हैं. ट्रांजक्शन फेलियर होता है, इसे ठीक करने की जरूरत है. आधार से लिंक में कई समस्याएं हैं, जिसे सुधारने के लिए काम करना है. इससे भ्रष्टाचार खत्म हो गया है, ऐसा नहीं है.

देश में कहीं भी राशन देने की सुविधा में अभी लगेगा वक्त

कुछ ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए, जिससे लोगों को बिना राशन कार्ड के भी वह देश के किसी कोने में रहें, तो उन्हें राशन मिल जाए. इस पर उन्होंने कहा कि इसके लिए एटीएम जैसी सुविधा बनाई जा सकती है, जिससे लोग कहीं भी रहें, तो अपना राशन वहां ले सकें, लेकिन कम समय में इसे पूरा कराना आसान नहीं होगा. इस योजना को पूरा करने के लिए कई साल लग सकते हैं. इस योजना का पार्ट झारखंड भी है, लेकिन यह उतना सफल नहीं हो रहा है.

ये भी पढ़ें- कोरोना ने बदली लोगों की जीवनशैली, सरकारी दफ्तरों के कार्यशैली में भी आया बदलाव

हैदराबाद : देश के जाने-माने अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज, जो मूलरूप से बेल्जियम के हैं, पिछले 15-20 वर्ष से भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में काम कर रहे हैं. मनरेगा में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है. ईटीवी भारत के रीजनल एडिटर ब्रजमोहन सिंह से खास बातचीत में उन्होंने भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था, गरीब और मजदूर जैसे विषयों पर अहम जानकारी साझा की है.

भारत की वर्तमान स्थिति किस ओर करवट ले रही है, इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि झारखंड और बिहार जैसे गरीब राज्यों में काफी गंभीर स्थिति आने वाली है. इसका कारण है रोजगार का अभाव. लॉकडाउन हटने के बाद भी दो-तीन महीने तक रोजगार के साधन नजर नहीं आ रहे हैं. बहुत जगहों से मजदूर लौट रहे हैं, जिससे श्रमिकों की संख्या बढ़ेगी और मोलभाव करने की क्षमता कम हो जाएगी. इस वक्त पूरे देश की दृष्टि मजदूरों पर ही है, क्योंकि वह सड़क पर हैं, लेकिन जो गरीब घरों में हैं, उन पर ध्यान कम जा रहा है. नतीजा झारखंड के लातेहार में जब एक पांच साल की लड़की की भूख से मौत हो जाती है, तब वह खबरों में आती है. ज्यां द्रेज ने कहा कि बिहार की स्थिति भी ऐसी है, वहां भी लगभग 50 प्रतिशत लोग ऐसे हैं, जिनके पास अपनी जमीन नहीं है. ऐसे लोगों को आगे के दिनों में मनरेगा के तहत ही कोई तात्कालिक रोजगार दिया जा सकेगा.

अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज से बातचीत
ये भी पढ़ें- रांची: जंगलों को बचाने में जुटे वॉरियर्स, पेड़ों की कटाई रोकने के लिए कर रहे ड्यूटी

मजदूर जो वापस गए हैं, वह फिर से कमाने के लिए शहर जा सकते हैं. इसके बारे में आप क्या सोचते हैं? उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि अभी जो मजदूर वापस लौटे हैं, वह कुछ समय तक पलायन से बचने की कोशिश करेंगे, क्योंकि उनका बुरा अनुभव रहा है, लेकिन अंत में उन्हें जाना ही पड़ेगा. तब तक वह अपने आस-पास के शहरों में ही कुछ न कुछ करेंगे.

तात्कालिक तौर पर रोजगार गारंटी योजना का ही सहारा

झारखंड के ग्रामीण क्षेत्रों की क्या हकीकत है? क्या वहां रोजगार बढ़ाने के लिए कोई काम हो रहा है? इस सवाल पर ज्यां द्रेज ने कहा कि तात्कालिक तौर पर रोजगार गारंटी योजना ही ऐसे साधन है, जिससे लोगों को राहत दी जा सकती है. इसके लिए रोड मैप तैयार है. राजस्थान, तमिलनाडु और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य इस योजना का अच्छे तरीके से इस्तेमाल कर रहे हैं. अभी अधिकतर लोगों की जिंदगी जन वितरण प्रणाली के सहारे चल रही है, लेकिन आगे तेल, साबुन, बच्चों की फीस आदि की जररूत पड़ेगी. इसके लिए उन्हें पैसा कमाना ही होगा.

हर राज्य में अलग हैं रोजगार की स्थितियां

मनरेगा तो तात्कालिक कदम है, क्या आपको लगता है सरकार को इससे आगे बढ़कर काम करने की जरूरत है, क्योंकि आधारभूत ढांचा पूरी तरह ढह गया है. इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि हर राज्य की स्थिति अगल-अगल है. झारखंड में बहुत सारे स्थानीय समाधान हैं, जिसका इस्तेमाल यहां के लोगों के लिए किया जा सकता है. यहां हॉर्टिकल्चर, कृषि, जड़ी-बूटी जैसे कई साधन हैं, जिसमें बहुत संभावनाएं हैं. बिहार में ऐसी सुविधा कम हैं. वहां मानव संसाधनों के माध्यम से काम किया जा सकता है. इस पर कम ध्यान दिया जाता है. पलायन पर ध्यान देने की जरूरत है. इसके लिए केरल का उदाहरण देख सकते हैं.

मनरेगा के लिए ज्यादा धन की होगी जरूरत

मनरेगा के ड्राफ्ट में आपकी भूमिका रही है. मनरेगा के लिए सरकार ने पहले से अधिक फंड दिया है. आपको लगता है कि लोगों को अपने क्षेत्र में रोजगार देने के लिए और अधिक फंड देने की जरूरत है? इस पर ज्यां द्रेज ने कहा कि मनरेगा को यदि ईमानदारी से लागू किया जाएगा, तो और अधिक फंड की जरूरत पड़ेगी, क्योंकि इन दिनों इसकी मांग बहुत अधिक है.

ये भी पढ़ें- भूखे पेट वर्ल्ड कप की तैयारी कर रही है फुटबॉलर सुधा तिर्की, कैसे बनेंगे चैंपियन!

बढ़ानी होगी लोगों की खरीददारी करने की क्षमता

बिहार-झारखंड में 70 प्रतिशत से अधिक लोग खेती पर निर्भर हैं, लेकिन उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है. ऐसे में पॉलिसी में बदलाव कर उनकी स्थिति में सुधार लाने के लिए क्या करना होगा? इस पर उन्हेंने कहा कि जो किसान वर्ग है, वह अभी इतना ज्याद प्रभावित नहीं हो रहा है, जो किसानी कर रहे हैं, उनको बहुत फर्क नहीं पड़ेगा. उन्हें उत्पादन की मुश्किल नहीं, बेचने की समस्या हो रहा है. इस पर काम करना है. लोगों की खरीददारी करने की क्षमता को बढ़ाना पड़ेगा.

किसानों को बाजार के सहारे छोड़ना ठीक नहीं

किसानों को परेशानी होती है, कभी सुनने में आता है कि किसान एक रुपये किलो टमाटर बेच रहा है, लेकिन लोग अपने घरों में 20 रुपये किलो टमाटर लाते हैं. ऐसे में इस बीच का जो गैप है, उसे पाटने के लिए कुछ खास नहीं किया जा रहा है? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि किसानों को बाजार के भरोसे छोड़ेंगे तो ठीक नहीं होगा. जापान, यूरोप में देखें, तो वहां फार्मिंग कोऑपरेटिव, कोऑपरेटिव मार्केटिंग, कोऑपरेटिव क्रेटिड इंश्योरेंस की भूमिका रही है. कृषि क्षेत्र का विकास करना है, तो इस क्षेत्र में काम करना होगा.

ये भी पढ़ें- रांची: लॉकडाउन में इंसान तो इंसान, भगवान भी परेशान, न हो रहे भक्तों के दर्शन ना चढ़ावे की भेंट

पंचायतों को मजबूत करने की जरूरत

पंचायत स्तर पर सारी व्यवस्था करने के लिए सरकार के सामने फिलहाल क्या परेशानी उत्पन्न हो सकती है? क्या विकास के मॉडल को नए सिरे से समझने की जरूरत है? इस सवाल के जवाब में ज्यां द्रेज ने कहा कि डिसेंट्रलाइजेशन हो और लोकल गवर्नमेंट मजबूत हो तो इससे बहुत फायदा मिलेगा, जो दिख भी रहा है. इसके लिए केरल का उदारहण देख सकते हैं. झारखंडी की तुलना में छत्तीसगढ़ में अच्छा काम हो रहा है. झारखंड में पंचायतों को मजबूत करना होगा. पहले केंद्र से जो पैसे मिलते थे वह पूरे पैसे लोगों तक नहीं पहुंच पाते थे, लेकिन अब डीबीटी के माध्यम से लोगों के खाते में पैसे जा रहे हैं. उज्ज्वला योजना के माध्यम से लोगों को गैस मिल रही है. इंफ्रस्ट्रक्चर तो अच्छा हुआ है. सरकार में यह इच्छाशक्ति होनी चाहिए कि आप वाकई दीर्घकाल में इसे आगे बढ़ाना चाहते हैं. इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि डीबीटी तो ठीक है, उसमें कई समस्याएं हैं. ट्रांजक्शन फेलियर होता है, इसे ठीक करने की जरूरत है. आधार से लिंक में कई समस्याएं हैं, जिसे सुधारने के लिए काम करना है. इससे भ्रष्टाचार खत्म हो गया है, ऐसा नहीं है.

देश में कहीं भी राशन देने की सुविधा में अभी लगेगा वक्त

कुछ ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए, जिससे लोगों को बिना राशन कार्ड के भी वह देश के किसी कोने में रहें, तो उन्हें राशन मिल जाए. इस पर उन्होंने कहा कि इसके लिए एटीएम जैसी सुविधा बनाई जा सकती है, जिससे लोग कहीं भी रहें, तो अपना राशन वहां ले सकें, लेकिन कम समय में इसे पूरा कराना आसान नहीं होगा. इस योजना को पूरा करने के लिए कई साल लग सकते हैं. इस योजना का पार्ट झारखंड भी है, लेकिन यह उतना सफल नहीं हो रहा है.

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