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पेड़ काटने की बजाए क्या सड़कें टेढ़ी नहीं बनाई जा सकतीं : सुप्रीम कोर्ट - पेड़ों को काटने पर सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पेड़ों का आकलन इससे मिलने वाले ऑक्सीजन से किया जाना चाहिए, न कि इससे मिलने वाली लकड़ियों से. चीफ जस्टिस एसए बोबडे की पीठ ने पर्यावरण से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार से पूछा कि जिन पेड़ों को काटने की इजाजत आप मांग रहे हैं, उसकी बजाए सड़कें टेढ़ी बनाना संभव है या नहीं, इस पर आपने विचार किया या नहीं.

पेड़ों को काटने पर सुप्रीम कोर्ट
पेड़ों को काटने पर सुप्रीम कोर्ट
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Published : Dec 2, 2020, 10:11 PM IST

नई दिल्ली : उत्तर प्रदेश के मथुरा में कृष्ण-गोवर्धन रोड के चौड़ीकरण के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से जवाब मांगा है. अदालत ने सरकार से पूछा है कि मार्ग के चौड़ीकरण के दौरान जिन पेड़ों को काटा जाना है, इस संबंध में आकलन की क्या योजना है, इस संबंध में सरकार एक रिपोर्ट पेश करे.

चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने इस मामले में राज्य सरकार से जवाब मांगा है. अदालत उत्तर प्रदेश के पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट (पीडब्लूडी) की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई कर रही है. याचिका में कहा गया है कि सड़क चौड़ीकरण के दौरान 2940 पेड़ काटे जाने हैं.

प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि हम 2940 पेड़ों को काटने की अनुमति नहीं दे सकते. उन्होंने कहा कि अदालत पेड़ों की प्रजातियों, सामान्य रूप से पेड़ों की उम्र और वहां खड़े पेड़ों की उम्र के बारे में जानना चाहती है.

कोर्ट में सुनवाई के दौरान अधिवक्ता ने कृष्ण-गोवर्धन रोड के आसपास खड़े विभिन्न प्रजातियों के वृक्षों का वर्णन किया जिनमें नीम के पेड़ भी शामिल हैं. इस पर बोबडे ने कहा कि इन पेड़ों को मुगल काल में ही लगाया जाता रहा है.

सरकार की ओर से पेड़ काटे जाने के बाद और पेड़ों को लगाने का प्रस्ताव दिया गया. इस पर सीजेआई बोबडे ने कहा, 'आप 90 साल पुराना पेड़ काटने के बाद एक सप्ताह पुराना पेड़ लगाएंगे!'

कोर्ट ने कहा, 'हमारे लिए यह संभव नहीं है कि विशेष रूप से केवल अंकगणितीय शब्दों में मुआवजे को स्वीकार किया जाए क्योंकि पीडब्ल्यूडी के लिए उत्तर प्रदेश राज्य की ओर से कोई बयान नहीं आया है.'

पेड़ों की प्रकृति के संदर्भ में अदालत ने कहा कि इन्हें झाड़ियों या बड़े पेड़ों के रूप में वर्गीकृत किया गया है. अदालत ने कहा कि यदि 100 साल पुराने पेड़ के स्थान पर एक पौधा लगाया जाए तो प्रतिपूरक वनीकरण (compensatory reforestation) नहीं किया जा सकता है.

पेड़ों के मूल्यांकन पर, सीजेआई बोबडे ने स्पष्ट किया कि उन्हें लकड़ी के संदर्भ में महत्व नहीं दिया जा सकता है. अदालत ने कहा कि इसके लिए एक विधि को अपनाना होगा जो अपने शेष जीवन काल में किसी विशेष पेड़ की ऑक्सीजन उत्पादन क्षमता को ध्यान में रखता है.

सुनवाई के दौान ऑक्सीजन उत्पादन मूल्यांकन के लिए एक वकील ने नेट प्रेजेंट वैल्यू की एक प्रणाली का सुझाव दिया, इस पर अदालत ने यूपी को विचार करने के लिए कहा. सीजेआई बोबडे ने सुझाव दिया कि एक सड़क को काटने के बजाय पेड़ के लिए एक मोड़ लेना चाहिए.

बोबडे ने कहा कि पेड़ों को काटने की बजाय घुमावदार सड़कें बनाने से वाहनों की रफ्तार धीमी हो जाएगी और यह तेज गति के कारण होने वाली सड़क दुर्घटनाओं के मामले में अच्छा उपाय हो सकता है.

नई दिल्ली : उत्तर प्रदेश के मथुरा में कृष्ण-गोवर्धन रोड के चौड़ीकरण के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से जवाब मांगा है. अदालत ने सरकार से पूछा है कि मार्ग के चौड़ीकरण के दौरान जिन पेड़ों को काटा जाना है, इस संबंध में आकलन की क्या योजना है, इस संबंध में सरकार एक रिपोर्ट पेश करे.

चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने इस मामले में राज्य सरकार से जवाब मांगा है. अदालत उत्तर प्रदेश के पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट (पीडब्लूडी) की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई कर रही है. याचिका में कहा गया है कि सड़क चौड़ीकरण के दौरान 2940 पेड़ काटे जाने हैं.

प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि हम 2940 पेड़ों को काटने की अनुमति नहीं दे सकते. उन्होंने कहा कि अदालत पेड़ों की प्रजातियों, सामान्य रूप से पेड़ों की उम्र और वहां खड़े पेड़ों की उम्र के बारे में जानना चाहती है.

कोर्ट में सुनवाई के दौरान अधिवक्ता ने कृष्ण-गोवर्धन रोड के आसपास खड़े विभिन्न प्रजातियों के वृक्षों का वर्णन किया जिनमें नीम के पेड़ भी शामिल हैं. इस पर बोबडे ने कहा कि इन पेड़ों को मुगल काल में ही लगाया जाता रहा है.

सरकार की ओर से पेड़ काटे जाने के बाद और पेड़ों को लगाने का प्रस्ताव दिया गया. इस पर सीजेआई बोबडे ने कहा, 'आप 90 साल पुराना पेड़ काटने के बाद एक सप्ताह पुराना पेड़ लगाएंगे!'

कोर्ट ने कहा, 'हमारे लिए यह संभव नहीं है कि विशेष रूप से केवल अंकगणितीय शब्दों में मुआवजे को स्वीकार किया जाए क्योंकि पीडब्ल्यूडी के लिए उत्तर प्रदेश राज्य की ओर से कोई बयान नहीं आया है.'

पेड़ों की प्रकृति के संदर्भ में अदालत ने कहा कि इन्हें झाड़ियों या बड़े पेड़ों के रूप में वर्गीकृत किया गया है. अदालत ने कहा कि यदि 100 साल पुराने पेड़ के स्थान पर एक पौधा लगाया जाए तो प्रतिपूरक वनीकरण (compensatory reforestation) नहीं किया जा सकता है.

पेड़ों के मूल्यांकन पर, सीजेआई बोबडे ने स्पष्ट किया कि उन्हें लकड़ी के संदर्भ में महत्व नहीं दिया जा सकता है. अदालत ने कहा कि इसके लिए एक विधि को अपनाना होगा जो अपने शेष जीवन काल में किसी विशेष पेड़ की ऑक्सीजन उत्पादन क्षमता को ध्यान में रखता है.

सुनवाई के दौान ऑक्सीजन उत्पादन मूल्यांकन के लिए एक वकील ने नेट प्रेजेंट वैल्यू की एक प्रणाली का सुझाव दिया, इस पर अदालत ने यूपी को विचार करने के लिए कहा. सीजेआई बोबडे ने सुझाव दिया कि एक सड़क को काटने के बजाय पेड़ के लिए एक मोड़ लेना चाहिए.

बोबडे ने कहा कि पेड़ों को काटने की बजाय घुमावदार सड़कें बनाने से वाहनों की रफ्तार धीमी हो जाएगी और यह तेज गति के कारण होने वाली सड़क दुर्घटनाओं के मामले में अच्छा उपाय हो सकता है.

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