हैदराबाद : पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि लोकतांत्रिक चुनाव कुंभ मेले की तरह हैं. आज जब पूरा विश्व कोरोना संकट से जूझ रहा है, ऐसे में चुनाव कराना निर्वाचन आयोग के लिए कितना कठिन काम हो सकता है इसकी कल्पना की जा सकती है. लगभग 10,600 मामलों और 220 मौतों के बीच दक्षिण कोरिया ने अप्रैल में अपने आम चुनाव कराए हैं. अब भारतीय चुनाव आयोग अक्टूबर-नवंबर में बिहार में विधानसभा चुनाव कराने के लिए अपनी तैयारियां कर रहा है.
कोरोना के खतरे को देखेते हुए चुनाव आयोग ने नए दिशानिर्देश जारी किए हैं, जिसमें मतदाताओं के बीच सोशल डिस्टेंसिंग रखने, मतदान केंद्रों को दोगुना करने, वरिष्ठ नागरिकों के लिए पोस्टल बैलेट की सुविधा प्रदान करने की बात कही गई है. वर्तमान परिदृश्य में राजनीतिक दल नई तकनीकों के जरिए मतदाताओं को लुभाने का प्रयास कर रहे हैं, जो एक सकारात्मक कदम है.
कारोना ने नए रास्ते खोले हैं
वे पार्टियां जो लाखों लोगों को बुलाती थीं, बड़े पैमाने पर रैलियां करती थीं, जोर-शोर से कार्यक्रम और जनसभाएं कराती थीं, अब डिजिटल तकनीक के सहारे वर्चुअल स्टेज का सहारा ले रही हैं. बिहार के सीएम नीतीश कुमार भी इसी तरह की रैली शुरू करने जा रहे हैं, ताकि बिहार के सभी 243 क्षेत्रों में अगले महीने के पहले सप्ताह में लगभग दस लाख लोगों तक पहुंच सकें.
पिछले महीने ही भाजपा ने 75 वर्चुअल रैलियां कर कोरोना के खिलाफ मुहिम छेड़ दी थी. कोरोना ने घिसे-पिटे पुराने ढर्रों वाली प्रक्रियाओं को छोड़ कर सभ्य अभियान का सहारा लेने की आवश्यकता पैदा की है.
यह बड़ा बदलाव है...
भारत में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के उपयोग ने भारत में चुनाव के परिदृश्य को ही बदल दिया है. बूथ कैप्चरिंग जैसी गलत प्रथाओं की जांच आसान हुई. चुनाव आयोग की सुगम और समृद्ध पोर्टल के जरिये शिकायतें प्राप्त करना और उनकी जांच होना आसान हो गया.
चुनाव आयोग सी विजिल एप और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये नागरिकों की शिकायतों को स्वीकार कर रहा है और बेहतर चुनाव कराने की दिशा में आगे बढ़ रहा है. ब्रिटेन में सभी प्रमुख राजनीतिक दलों ने 2015 और 2017 में चुनावी अभियान के लिए ट्विटर को पसंद किया. अमेरिका ने हमेशा से टीवी को प्रभावशाली माध्यम के रूप में अपनाया है.
जनसंचार की महत्वपूर्ण भूमिका
भारत में चुनावी अभियान में करोड़ों रुपये खर्च करना और लाखों लोगों को जोड़कर जनसभाएं करने की कोई सीमा नहीं थी. वोटरों को लुभाने के लिए बिरयानी के पैकेट बांटना, शराब की बोतलें बांटना और पैसे देकर भीड़ जमा करना ये सब भारतीय चुनाव अभियान की गलत प्रथाएं रही हैं. ऐसा करने के बाद भी कोई पार्टी ये गारंटी नहीं दे सकती कि वोट उन्हीं के पक्ष में पड़ेंगे. कोरोना इन स्थितियों में बड़ा बदलाव लेकर आया है. मतदान की सामान्य प्रक्रिया के लिए इतने पैसों का पानी की तरह बहाया जाना जिनसे कितने महत्वपूर्ण काम जनहित में किए जा सकते थे मन में अनेकानेक सवाल पैदा करता है.
ताकत का ये फर्जी ट्रायल क्यों? आज देश में स्मार्ट फोन उपयोगकर्ताओं की संख्या 50 करोड़ से अधिक है. यहां टीवी और सोशल मीडिया काफी लोकप्रिय हैं. ऐसे में पार्टियों को महंगे चुनावी अभियान चलाने की बजाय डिजिटल जन माध्यमों को अपनाना चाहिए और अपनी रणनीतियों में सुधार लाना चाहिए. उन्हें यह समझ विकसित करनी चाहिए कि जन माध्यमों के उपकरण राजनीतिक लाभ प्राप्त करने के आसान रास्ते हैं.