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बिहार चुनाव : रिटारमेंट की उम्र में फिर किस्मत आजमाने की तैयारी में नेता

बिहार विधानसभा चुनाव में 70 साल या उससे ज्यादा के नेता एक बार फिर मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं. बिहार के चुनाव में बड़ी संख्या में 70 बसंत पार कर चुके नेताओं की टिकट के लिए भागम भाग चल रही है. युवा चेहरे एक अदद मौके की तलाश में दौड़ लगा रहे हैं.

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Published : Sep 16, 2020, 10:11 PM IST

Updated : Sep 16, 2020, 10:23 PM IST

पटना : प्रदेश में बिहार विधानसभा चुनाव की सरगर्मी तेज है. कोरोना काल में सावधानियों के साथ टिकट चाहने वालों की लाइन भी हर राजनीतिक दल के दफ्तर में देखने को मिल रही है. इन सबके बीच एक अहम सवाल फिर से सामने आ खड़ा हुआ है. वो सवाल है कि आखिर राजनीति में रिटायरमेंट की उम्र क्यों नहीं होती?

किस्मत आजमाने में जुटे नेता
बिहार चुनाव के महासमर में एक ओर युवा नेता तो दूसरी तरफ 65-70 साल के बुजुर्ग नेता अपनी किस्मत आजमाने की तैयारी में जुटे हैं. इन बुजुर्गों के चुनाव लड़ने की दीवानगी ये सोचने को मजबूर करती है कि आखिर राजनीति में कोई उम्र सीमा क्यों तय नहीं है.

फिर किस्मत आजमाने की तैयारी में बुजुर्ग नेता

सभी कार्यक्षेत्रों में रिटायरमेंट की उम्र तय
38 से 40 की उम्र में सौरभ गांगुली, महेंद्र सिंह धोनी जैसे खिलाड़ी रिटायर हो चुके हैं. उनकी जगह युवा टीम में हैं. देश के तमाम सरकारी और निजी दफ्तरों में भी रिटायरमेंट की उम्र तय है. यहां 58 से 60 साल की उम्र में अधिकारी और कर्मचारी रिटायर हो जाते हैं. उनकी जगह नए चेहरे आते हैं, जो नए तरीके से नई तकनीक के साथ काम शुरू करते हैं.

राजनीति में रिटायरमेंट क्यों नहीं?
सवाल ये है कि ऐसा ही कुछ राजनीति में क्यों नहीं होता. राजनीति देश की दिशा और दशा तय करती है. यहां अनुभव का जितना महत्व है, उतना ही नए आइडिया और नई तकनीक का भी. तो यहां भी एक उम्र के बाद नेता रिटायर क्यों नहीं हो जाते. राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि नई सोच के साथ राज्य और देश का विकास युवा बेहतर तरीके से कर सकते हैं.

बिहार चुनाव में बुजुर्ग उम्मीदवारों की दावेदारी
बिहार विधानसभा चुनाव में कई ऐसे कैंडिडेट्स हैं, जिनकी उम्र 70 साल या उससे ज्यादा हो चुकी है. वे एक बार फिर मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं. इनमें बिहार के ऊर्जा मंत्री विजेंद्र प्रसाद यादव का नाम शामिल है.

बढ़ती उम्र के बावजूद चुनाव लड़ने की तैयारी
पथ निर्माण मंत्री नंदकिशोर यादव, पूर्व मंत्री श्याम रजक, लघु सिंचाई मंत्री नरेंद्र नारायण यादव, कृषि मंत्री डॉ. प्रेम कुमार, रामनगर से बीजेपी विधायक भागीरथी देवी के अलावा पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी, आरजेडी विधायक और पूर्व मंत्री अब्दुल बारी सिद्दीकी और विधायक ललित कुमार यादव भी बढ़ती उम्र के बावजूद चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं.

हार के बावजूद चुनाव लड़ने की तैयारी
इन नामों के अलावा कई ऐसे नाम हैं, जो पिछले चुनाव में जीत नहीं पाए थे. लेकिन, एक बार फिर 2020 के समर में उतरने की तैयारी कर रहे हैं. ऐसे लोगों में रमई राम, उदय नारायण चौधरी और वृषिण पटेल भी हैं. हाल ही में जेडीयू में शामिल हुए भोला राय और आरजेडी की तरफ से टिकट की दावेदारी में शामिल विजय कुमार विजय के साथ कई ऐसे चेहरे हैं जो फिर से मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं.

तय उम्र के बाद रिटायरमेंट जरूरी
राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि राजनीति में एक तय उम्र के बाद लोगों को रिटायर हो जाना चाहिए. बुजुर्ग नेताओं को चाहिए कि वे युवाओं को मौका दें. एक समय के बाद न तो शरीर साथ देता है और न ही दिमाग.

राजनीति में खत्म हो जाते मायने और मतलब
वहीं राजनेता भी मानते हैं की उम्र सीमा तो जरूर होनी चाहिए. लेकिन, राजनीति ऐसा क्षेत्र है कि अपने फायदे के लिए किसी खास चेहरे की, जाति और हार-जीत के गणित की बात आने पर सारे मायने और मतलब खत्म हो जाते हैं.

एक अदद मौके की तलाश में युवा चेहरा
शायद यही वजह है कि एक बार फिर बिहार के चुनाव में बड़ी संख्या में 70 बसंत पार कर चुके नेताओं की टिकट के लिए भागम भाग चल रही है. युवा चेहरे एक अदद मौके की तलाश में दौड़ लगा रहे हैं.

पटना : प्रदेश में बिहार विधानसभा चुनाव की सरगर्मी तेज है. कोरोना काल में सावधानियों के साथ टिकट चाहने वालों की लाइन भी हर राजनीतिक दल के दफ्तर में देखने को मिल रही है. इन सबके बीच एक अहम सवाल फिर से सामने आ खड़ा हुआ है. वो सवाल है कि आखिर राजनीति में रिटायरमेंट की उम्र क्यों नहीं होती?

किस्मत आजमाने में जुटे नेता
बिहार चुनाव के महासमर में एक ओर युवा नेता तो दूसरी तरफ 65-70 साल के बुजुर्ग नेता अपनी किस्मत आजमाने की तैयारी में जुटे हैं. इन बुजुर्गों के चुनाव लड़ने की दीवानगी ये सोचने को मजबूर करती है कि आखिर राजनीति में कोई उम्र सीमा क्यों तय नहीं है.

फिर किस्मत आजमाने की तैयारी में बुजुर्ग नेता

सभी कार्यक्षेत्रों में रिटायरमेंट की उम्र तय
38 से 40 की उम्र में सौरभ गांगुली, महेंद्र सिंह धोनी जैसे खिलाड़ी रिटायर हो चुके हैं. उनकी जगह युवा टीम में हैं. देश के तमाम सरकारी और निजी दफ्तरों में भी रिटायरमेंट की उम्र तय है. यहां 58 से 60 साल की उम्र में अधिकारी और कर्मचारी रिटायर हो जाते हैं. उनकी जगह नए चेहरे आते हैं, जो नए तरीके से नई तकनीक के साथ काम शुरू करते हैं.

राजनीति में रिटायरमेंट क्यों नहीं?
सवाल ये है कि ऐसा ही कुछ राजनीति में क्यों नहीं होता. राजनीति देश की दिशा और दशा तय करती है. यहां अनुभव का जितना महत्व है, उतना ही नए आइडिया और नई तकनीक का भी. तो यहां भी एक उम्र के बाद नेता रिटायर क्यों नहीं हो जाते. राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि नई सोच के साथ राज्य और देश का विकास युवा बेहतर तरीके से कर सकते हैं.

बिहार चुनाव में बुजुर्ग उम्मीदवारों की दावेदारी
बिहार विधानसभा चुनाव में कई ऐसे कैंडिडेट्स हैं, जिनकी उम्र 70 साल या उससे ज्यादा हो चुकी है. वे एक बार फिर मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं. इनमें बिहार के ऊर्जा मंत्री विजेंद्र प्रसाद यादव का नाम शामिल है.

बढ़ती उम्र के बावजूद चुनाव लड़ने की तैयारी
पथ निर्माण मंत्री नंदकिशोर यादव, पूर्व मंत्री श्याम रजक, लघु सिंचाई मंत्री नरेंद्र नारायण यादव, कृषि मंत्री डॉ. प्रेम कुमार, रामनगर से बीजेपी विधायक भागीरथी देवी के अलावा पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी, आरजेडी विधायक और पूर्व मंत्री अब्दुल बारी सिद्दीकी और विधायक ललित कुमार यादव भी बढ़ती उम्र के बावजूद चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं.

हार के बावजूद चुनाव लड़ने की तैयारी
इन नामों के अलावा कई ऐसे नाम हैं, जो पिछले चुनाव में जीत नहीं पाए थे. लेकिन, एक बार फिर 2020 के समर में उतरने की तैयारी कर रहे हैं. ऐसे लोगों में रमई राम, उदय नारायण चौधरी और वृषिण पटेल भी हैं. हाल ही में जेडीयू में शामिल हुए भोला राय और आरजेडी की तरफ से टिकट की दावेदारी में शामिल विजय कुमार विजय के साथ कई ऐसे चेहरे हैं जो फिर से मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं.

तय उम्र के बाद रिटायरमेंट जरूरी
राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि राजनीति में एक तय उम्र के बाद लोगों को रिटायर हो जाना चाहिए. बुजुर्ग नेताओं को चाहिए कि वे युवाओं को मौका दें. एक समय के बाद न तो शरीर साथ देता है और न ही दिमाग.

राजनीति में खत्म हो जाते मायने और मतलब
वहीं राजनेता भी मानते हैं की उम्र सीमा तो जरूर होनी चाहिए. लेकिन, राजनीति ऐसा क्षेत्र है कि अपने फायदे के लिए किसी खास चेहरे की, जाति और हार-जीत के गणित की बात आने पर सारे मायने और मतलब खत्म हो जाते हैं.

एक अदद मौके की तलाश में युवा चेहरा
शायद यही वजह है कि एक बार फिर बिहार के चुनाव में बड़ी संख्या में 70 बसंत पार कर चुके नेताओं की टिकट के लिए भागम भाग चल रही है. युवा चेहरे एक अदद मौके की तलाश में दौड़ लगा रहे हैं.

Last Updated : Sep 16, 2020, 10:23 PM IST
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