जनसंख्या के बढ़ते ग्राफ को रोकने में विफलता, देश के विकास में रोड़ा बन रही है. इस संबंध में नीति आयोग अब एक नई रणनीति तैयार करने में लगा है. संयुक्त राष्ट्र के हिसाब से 2050 तक विश्व आबादी के 50% हिस्सेदारी वाले देशों में भारत, नाइजीरिया और पाकिस्तान शामिल होंगे. इस नजर से, नीति आयोग, 2035 तक एक सटीक योजना से जनसंख्या को काबू में करने की तैयारी कर रहा है. राष्ट्रीय प्रजनन दर, जो 50 साल पहले 5% थी, 1991 में 3.1% हो गई और 2013 तक और गिरकर 2.3% पहुंच गई. हांलाकि देश की मौजूदा 137 करोड़ की आबादी नीतिकारों के लिए बड़ी चुनौती है.
नीति आयोग ने पाया है कि, कुल आबादी का 30% प्रजनन की उम्र में है और करीब 3 करोड़ शादीशुदा महिलाओं के पास परिवार नियोजन की सुविधाएं नहीं हैं. जनसंख्या पर काबू पाने के लिए यह जरूरी है कि लोगों के बीच अनचाहे गर्भधारण को लेकर अधिक से अधिक जागरूकता फैलाई जाए. इसके साथ ही परिवार नियोजन के बेहतर तरीकों और सुविधाओं को भी मुहैया कराने का समय आ चुका है. इस दिशा में कारगर रणनीतियों पर काम करने की जरूरत है.
भारत, दुनिया का पहला देश है जहां जनसंख्या काबू करने को चिह्नित किया गया है. अपने पंच वर्षीय कार्यक्रम में भी भारत ने 'सीमित परिवार' शब्दों को जोड़ा था. लेकिन यह विडंबना ही है कि आजादी के समय से अब तक देश ने उस समय की जनसंख्या में 100 करोड़ की आबादी को जोड़ा है. जब साल 2000 में राष्ट्रीय जनसंख्या नीति को बनाया गया था, तो उस समय राष्ट्रीय प्रजनन दर के 3.2% होने की बात कही गई थी, जो अब गिरकर 2.2% हो गई है. यह साफ है कि उत्तर प्रदेश, बिहार और अन्य राज्यों में जनसंख्या विस्फोट ज्यादा बड़ी समस्या है.
इस समस्य़ा से निपटने के लिए अदालतों में कुछ जनहित याचिकाएं भी दायर की गई हैं. इनमें अदालतों से सरकारों को देश में दो बच्चों की नीति को कड़ाई से लागू करने के लिए आदेश देने की बात कही गई है. यह मामला उस समय सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा, जब हाई कोर्ट ने सरकार को ऐसा कोई आदेश देने से मना कर दिया. 1976 के, 42वें संविधान संशोधन के जरिए जनसंख्या पर काबू पाने और परिवार नियोजन करने का काम किया जा रहा है. जस्टिस वेंकट चेलैय्या आयोग ने इसके तहत, केंद्र और राज्य सरकारों को जनसंख्या और परिवार नियोजन के लिए अधिकार देने की बात कही थी. इससे जुड़ी एक पीआइएल और कुछ अन्य मामले अब सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं.
हांलाकि, इस सदी में प्रजनन दर 22% तक कम हो गई है, लेकिन बिहार, मेघालय, नागालैंड, उत्तर प्रदेश, मणिपुर और झारखंड जैसे राज्यों में जनसंख्या बड़ी तेजी से बढ़ रही है. इसे रोकने के लिए केवल सुप्रीम कोर्ट और सरकारों के कदम नाकाफी होंगे और जरूरत है कि जमीनी स्तर पर जनसंख्या की समस्या को ठीक किया जाए. ढाई साल पहले, पीएम मोदी ने देश के 146 सबसे घनी आबादी वाले जिलों में, 'मिशन परिवार विकास' की शुरुआत की थी. इन सभी जिलों में देश की कुल आबादी के 44% लोग रहते हैं. यह जिले, बिहार, मध्यप्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, और असम में हैं.
इन्हीं राज्यों के 115 जिलों में, कम उम्र की महिलाओं के मां बनने, जन्म के समय मौतों के 25-30% केस और 50% शिशुओं की मौत के मामले देखे गए हैं. केंद्र सरकार ने पहले ही जागरूकता अभियान चलाने और गर्भ निरोधक उपकरण मुहैया कराने का ऐलान कर दिया है. इस बारे में कोई साफ जानकारी नहीं है कि जनसंख्या रोकने की मुहिम किस हद तक कामयाब हुई है.
जानकारों की राय में, जनसंख्या रोकने के लिए किसी कानून को लाना या दो बच्चों के नियम को तोड़ने वालो को वोटिंग, राशन कार्ड, सरकारी नौकरियों, मुफ्त न्यायिक मदद आदि से वंचित करना सही कदम नहीं होगा. 2018 में किए गए आर्थिक सर्वेक्षण में यह बात सामने आई थी, भारतीय समाज में लड़के की चाह में, देशभर में करीब 2.10 करोड़ बच्चियों को मारा जा चुका है. इस प्रथा को अगर रोका नहीं गया तो आने वाले समय में यह और बड़ा और खतरनाक रूप ले लेगी.
इस मुकाम पर, भारत की जनसंख्या पर काबू पाने के लिए, आशा कर्मियों, आंगनवाड़ी केंद्रों और प्राइमरी स्वास्थ केंद्रो को मजबूत करने और सामाजिक जागरूकता फैलाने की जरूरत है.