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विशेष लेख : महात्मा गांधी के सपनों का स्वच्छ भारत अभी हकीकत से दूर - bill and melinda gates foundation

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गत दो अक्टूबर को घोषणा करते हुए कहा था कि ग्रामीण भारत खुले में शौच से शत प्रतिशत मुक्त हो गया है. उन्होंने बताया था, 'स्वच्छ भारत मिशन के तहत हमने 60 करोड़ शौचालयों का निर्माण किया है, जिससे करीब 60 करोड़ लोगों को फायदा पहुंचा है.' दुनिया इस कदम से आश्चर्यतकित है. इस कीर्तिमान के लिए प्रधानमंत्री को बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन ने इसी साल सितंबर में 'ग्लोबल गोलकीपर' पुरस्कार से सम्मानित किया था.

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Published : Dec 17, 2019, 6:22 PM IST

Updated : Dec 17, 2019, 6:49 PM IST

हाल ही में 76वें राष्ट्रीय सैंपल सर्वे के तहत सामने आई रिपोर्ट हालांकि पीएम के इन दावों से अलग बात करती है. इस रिपोर्ट का शीर्षक है- सेफ ड्रिंकिंग वॉटर, सैनिटेशन, हाइजीन एंड सैनिटेशन स्टेटस. रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रामीण भारत के 29% घरों में शौचालय नहीं हैं. ओडिशा और उत्तर प्रदेश के आधे से ज्यादा ग्रामीण घर इस समस्या से जूझ रहे हैं. झारखंड, तमिलनाडु और राजस्थान के भी 30% से ज्यादा ग्रामीण घरों में यही हालात हैं.

सरकार घरों में शौचालयों का निर्माण करने के लिए आर्थिक मदद करती है, लेकिन रिपोर्ट में ये साफ कहा गया है कि केवल में17% ग्रामीण घरों को ही इस योजना के तहत फायदा हुआ है. चूंकि ये आंकड़े सरकारी दावों पर सवाल खड़े करते हैं, लिहाजा इस रिपोर्ट को करीब छह महीनो तक ठंडे बस्ते में रखा गया था. इसके साथ ही एनएसएसओ की उस रिपोर्ट को भी जारी करने में देरी हुई थी, जिसमें भारत में बेरोजगारी की दर के 6.1% पहुंचने की बात कही गई है. इस रिपोर्ट को भी छह महीने तक रोकने के बाद जारी किया गया था. पीएम ने पिछले साल अप्रैल में यह भी कहा था कि देश के सभी गांवों तक बिजली पहुंचाई जा चुकी है. वहीं रॉकफेलर संस्थान के साथ साझेदारी में नीति आयोग द्वारा जारी किए गए आंकड़ों में कहा गया था कि भारत में 4.5 लाख घर अब भी बिजली की सहूलियत से दूर हैं.

आधी अधूरी निगरानी
इसी साल सितंबर में मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले में भावेखाडी गांव के दो आदिवासी बच्चों की इसलिए पीट पीटकर हत्या कर दी गई थी कि उन्होंने खुले में शौच किया था जबकि असल में उस परिवार के पास शौचालय की कोई सुविधा ही नहीं थी. वहीं स्वच्छ भारत के संचार विभाग के आंकड़ों के मुताबिक भावेखाड़ी गांव खुले में शौच से मुक्त गांवों की लिस्ट में शामिल है. लेकिन जमीनी हकीकत इस कांड के बाद सामने आई.

देश में ऐसे कई गांव और इलाके हैं, जहां आज भी खुले में शौच किया जाता है. अगर कोई भी ग्रामसभा, किसी गांव को स्वच्छ भारत मिशन के तहत ओडीएफ घोषित करती है, तो सरकार को दो लेवल पर इसकी सत्यता को जांचना चाहिए. सरकार को अपने तंत्र से जांच कराने के साथ-साथ किसी स्वतंत्र पार्टी से भी इसकी जांच करानी चाहिए. ओडीएफ घोषित होने के तीन महीने बाद इन दलों को दोबारा गांवों में जाकर इसके असर की सत्यता की जांच करनी चाहिए.

ज्यादातर राज्यों में इन निरीक्षणों को सही तरह से नहीं किया जाता. बीते 26 सितंबर तक ओडिशा के 23,902 ओडीएफ गांवों का निरीक्षण हो चुका था. 30 सितंबर तक ये संख्या बढ़कर 37 हजार पहुंच गई. इसका मतलब है कि चार दिनों में 13 हजार गांवों का निरीक्षण किया गया. तय मानकों के अनुसार इतने गांवों का निरीक्षण करने में एक महीने से ज्यादा का समय लगेगा.

दूसरे चरण में देशभर में घोषित 6 लाख ओडीएफ गांवों में से केवल 25% का ही निरीक्षण हो सका. उत्तर प्रदेश के 97,000 ओडीएफ गांवों में से केवल 10% में ही दूसरा सर्वे हो सका. ओडिशा के 47,000 गांवों में से किसी में भी दूसरा निरीक्षण नहीं किया गया. सभी दस राज्यों में दूसरे चरण का निरीक्षण नहीं किया गया. हालांकि ये सभी गांव फाइलों में ओडीएफ घोषित हो चुके हैं, लेकिन हकीकत में यहां अब भी खुले में शौच किया जा रहा है. लक्ष्य हासिल करने के दबाव में तय मानकों का पालन नहीं किया जा रहा है.

लक्ष्य प्रशंसनीय है
पांच साल पहले केंद्र सरकार ने महात्मा गांधी के सपनों को पूरा करने के लिए देश में स्वच्छ भारत कार्यक्रम की घोषणा की थी. सरकार का लक्ष्य था महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर इस साल दो अक्टूबर तक भारत को खुले में शौच से मुक्त करना. इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए नेताओं और मंत्रियों ने अधिकारियों और सरकारी तंत्र पर दबाव बनाना शुरू किया, और इस साल दो अक्टूबर ये घोषणा की गई कि देश ने अपना लक्ष्य प्राप्त कर लिया है.

पिछले पांच साल में केद्र और राज्य सरकारों ने स्वच्छ भारत पर करीब 80,000 करोड़ रुपये खर्च किए हैं. सरकारी रिपोर्ट कहती है कि 10.16 करोड़ घरों में शौचालयों का निर्माण किया गया है. इन सबके बीच ये आरोप भी लगे कि सरकारी तंत्र ने गरीबों पर ये लक्ष्य हासिल करने के लिए दबाव बनाया. टीम के विशेष संवाददाता, लियो हार्पर ने इन हालातों का जायजा लेने के लिए 2017 में दो हफ्तों के लिए देश का दौरा किया. उनका कहना था. 'लक्ष्यों की पूर्ति के लिए अधिकारियों ने आम लोगों के साथ खराब व्यवहार किया है.' उन्होंने शौचालय न होने पर राशन कार्ड और बिजली के मीटर से नाम हटाने जैसी बातों का जिक्र किया.

जिन लोगों के पास शौचालय बनाने के लिए जगह नहीं है, उनके लिए इस योजना में कोई प्रावधान नहीं है. हरियाणा के अमरोली में पिछड़ी जाति के लोगों का कहना था, 'हमारे पास शौचालय बनाने के लिए जमीन नहीं है. पंचायत ने हमें सामुदायिक शौचालय का इस्तेमाल करने को कहा है, लेकिन अगड़ी जाति के लोगों को ये पसंद नहीं है. इसके चलते समय-समय पर झगड़े होते हैं. इसका अब तक कोई समाधान नहीं निकला है, लेकिन सरकारी आंकड़ों में हरियाणा ओडीएफ घोषित किया जा चुका है.

जो लोग जगह की कमी या आर्थिक कारणों से शौचालय नहीं बनवा सकते, उनके लिए सार्वजनिक शौचालय घरों से दूर होते हैं. कई गांवों में इन शौचालयों तक पहुंचने के लिए लोगों को एक किमी तक पैदल चलना पड़ता है. कई गांवों में पानी की कमी के कारण इन शौचालयों का इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है. ओडिशा जैसे राज्यों में यह समस्या गंभीर है. कनकपुर गांव के तरांगनी मिश्रा का कहना था, 'गर्मियों में पानी की कमी के कारण, आधे से ज्यादा गांव इन शौचालयों का इस्तेमाल नही कर पाते और खुले में शौच करने को मजबूर होते हैं.' बालांगीर के कलेक्टर का कहना है कि इन शौचालयों में पानी न होना सबसे बड़ी समस्या है.

पिछले साल 19 जुलाई को ग्रामीण विकास पर संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट संसद को सौंपी थी. इस रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा गया था कि सभी भारतीयों को स्वच्छता की पूरी सुविधाऐं मुहैया कराना जरूरी है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सपनों का स्वच्छ भारत अभी हकीकत से दूर है. इस रिपोर्ट में कहा गया कि कागजी आंकड़े और स्वच्छ भारत की जमीनी हकीकत में कोई मेल नहीं दिख रहा है. लेकिन केंद्र सरकार ने इस समिति की सिफारिशों पर ये कहते हुए ध्यान नहीं दिया कि अन्य रिपोर्टों में बेहतर बातें कही गई हैं. इन हालातों में यह जरूरी है कि ओडीएफ घोषित गांवों में दो स्तरीय निरीक्षण को सही तरह से लागू किया जाए. इन शौचालयों में पानी की आपूर्ति की जाए. पर्यावरण के लिहाज से सुरक्षित शौचालयों का निर्माण होना चाहिए और वेस्ट मैनेजमेंट में खामियों को दूर किया जाना चाहिए. इन सब के बाद ही असल में देश स्वच्छ भारत का लक्ष्य प्राप्त कर सकेगा.

पर्यावरण को नुकसान
सफाई कर्मचारी आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक और मैग्सेसे पुरस्कार विजेता बेजवाड़ा विल्सन का कहना है कि देश में 90 लाख सूखे शौचालय हैं. इस कारण मल को सार्वजनिक इलाकों में डालने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है. केंद्र सरकार का कहना है कि वो पर्यावरण के लिहाज से सुरक्षित, टू पॉट होल वाले शौचालय बना रही है. वहीं इस योजना के तहत बने ज्यादातर शौचालय गड्डे वाले हैं. ग्रामीण विकास मंत्रालय की पूर्व सचिव नैंसी सक्सेना का कहना है कि शौचालयों में 50 क्यूबिक फीट के दो गड्डे होने चाहिए. लेकिन इस तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहा है. एक गड्डे वाले शौचालय जल्दी भर जाएंगे और इनका मल निकट के पानी के स्रोतों में फेंका जा रहा है, जो पर्यावरण के लिए खतरनाक है.

हाल ही में 76वें राष्ट्रीय सैंपल सर्वे के तहत सामने आई रिपोर्ट हालांकि पीएम के इन दावों से अलग बात करती है. इस रिपोर्ट का शीर्षक है- सेफ ड्रिंकिंग वॉटर, सैनिटेशन, हाइजीन एंड सैनिटेशन स्टेटस. रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रामीण भारत के 29% घरों में शौचालय नहीं हैं. ओडिशा और उत्तर प्रदेश के आधे से ज्यादा ग्रामीण घर इस समस्या से जूझ रहे हैं. झारखंड, तमिलनाडु और राजस्थान के भी 30% से ज्यादा ग्रामीण घरों में यही हालात हैं.

सरकार घरों में शौचालयों का निर्माण करने के लिए आर्थिक मदद करती है, लेकिन रिपोर्ट में ये साफ कहा गया है कि केवल में17% ग्रामीण घरों को ही इस योजना के तहत फायदा हुआ है. चूंकि ये आंकड़े सरकारी दावों पर सवाल खड़े करते हैं, लिहाजा इस रिपोर्ट को करीब छह महीनो तक ठंडे बस्ते में रखा गया था. इसके साथ ही एनएसएसओ की उस रिपोर्ट को भी जारी करने में देरी हुई थी, जिसमें भारत में बेरोजगारी की दर के 6.1% पहुंचने की बात कही गई है. इस रिपोर्ट को भी छह महीने तक रोकने के बाद जारी किया गया था. पीएम ने पिछले साल अप्रैल में यह भी कहा था कि देश के सभी गांवों तक बिजली पहुंचाई जा चुकी है. वहीं रॉकफेलर संस्थान के साथ साझेदारी में नीति आयोग द्वारा जारी किए गए आंकड़ों में कहा गया था कि भारत में 4.5 लाख घर अब भी बिजली की सहूलियत से दूर हैं.

आधी अधूरी निगरानी
इसी साल सितंबर में मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले में भावेखाडी गांव के दो आदिवासी बच्चों की इसलिए पीट पीटकर हत्या कर दी गई थी कि उन्होंने खुले में शौच किया था जबकि असल में उस परिवार के पास शौचालय की कोई सुविधा ही नहीं थी. वहीं स्वच्छ भारत के संचार विभाग के आंकड़ों के मुताबिक भावेखाड़ी गांव खुले में शौच से मुक्त गांवों की लिस्ट में शामिल है. लेकिन जमीनी हकीकत इस कांड के बाद सामने आई.

देश में ऐसे कई गांव और इलाके हैं, जहां आज भी खुले में शौच किया जाता है. अगर कोई भी ग्रामसभा, किसी गांव को स्वच्छ भारत मिशन के तहत ओडीएफ घोषित करती है, तो सरकार को दो लेवल पर इसकी सत्यता को जांचना चाहिए. सरकार को अपने तंत्र से जांच कराने के साथ-साथ किसी स्वतंत्र पार्टी से भी इसकी जांच करानी चाहिए. ओडीएफ घोषित होने के तीन महीने बाद इन दलों को दोबारा गांवों में जाकर इसके असर की सत्यता की जांच करनी चाहिए.

ज्यादातर राज्यों में इन निरीक्षणों को सही तरह से नहीं किया जाता. बीते 26 सितंबर तक ओडिशा के 23,902 ओडीएफ गांवों का निरीक्षण हो चुका था. 30 सितंबर तक ये संख्या बढ़कर 37 हजार पहुंच गई. इसका मतलब है कि चार दिनों में 13 हजार गांवों का निरीक्षण किया गया. तय मानकों के अनुसार इतने गांवों का निरीक्षण करने में एक महीने से ज्यादा का समय लगेगा.

दूसरे चरण में देशभर में घोषित 6 लाख ओडीएफ गांवों में से केवल 25% का ही निरीक्षण हो सका. उत्तर प्रदेश के 97,000 ओडीएफ गांवों में से केवल 10% में ही दूसरा सर्वे हो सका. ओडिशा के 47,000 गांवों में से किसी में भी दूसरा निरीक्षण नहीं किया गया. सभी दस राज्यों में दूसरे चरण का निरीक्षण नहीं किया गया. हालांकि ये सभी गांव फाइलों में ओडीएफ घोषित हो चुके हैं, लेकिन हकीकत में यहां अब भी खुले में शौच किया जा रहा है. लक्ष्य हासिल करने के दबाव में तय मानकों का पालन नहीं किया जा रहा है.

लक्ष्य प्रशंसनीय है
पांच साल पहले केंद्र सरकार ने महात्मा गांधी के सपनों को पूरा करने के लिए देश में स्वच्छ भारत कार्यक्रम की घोषणा की थी. सरकार का लक्ष्य था महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर इस साल दो अक्टूबर तक भारत को खुले में शौच से मुक्त करना. इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए नेताओं और मंत्रियों ने अधिकारियों और सरकारी तंत्र पर दबाव बनाना शुरू किया, और इस साल दो अक्टूबर ये घोषणा की गई कि देश ने अपना लक्ष्य प्राप्त कर लिया है.

पिछले पांच साल में केद्र और राज्य सरकारों ने स्वच्छ भारत पर करीब 80,000 करोड़ रुपये खर्च किए हैं. सरकारी रिपोर्ट कहती है कि 10.16 करोड़ घरों में शौचालयों का निर्माण किया गया है. इन सबके बीच ये आरोप भी लगे कि सरकारी तंत्र ने गरीबों पर ये लक्ष्य हासिल करने के लिए दबाव बनाया. टीम के विशेष संवाददाता, लियो हार्पर ने इन हालातों का जायजा लेने के लिए 2017 में दो हफ्तों के लिए देश का दौरा किया. उनका कहना था. 'लक्ष्यों की पूर्ति के लिए अधिकारियों ने आम लोगों के साथ खराब व्यवहार किया है.' उन्होंने शौचालय न होने पर राशन कार्ड और बिजली के मीटर से नाम हटाने जैसी बातों का जिक्र किया.

जिन लोगों के पास शौचालय बनाने के लिए जगह नहीं है, उनके लिए इस योजना में कोई प्रावधान नहीं है. हरियाणा के अमरोली में पिछड़ी जाति के लोगों का कहना था, 'हमारे पास शौचालय बनाने के लिए जमीन नहीं है. पंचायत ने हमें सामुदायिक शौचालय का इस्तेमाल करने को कहा है, लेकिन अगड़ी जाति के लोगों को ये पसंद नहीं है. इसके चलते समय-समय पर झगड़े होते हैं. इसका अब तक कोई समाधान नहीं निकला है, लेकिन सरकारी आंकड़ों में हरियाणा ओडीएफ घोषित किया जा चुका है.

जो लोग जगह की कमी या आर्थिक कारणों से शौचालय नहीं बनवा सकते, उनके लिए सार्वजनिक शौचालय घरों से दूर होते हैं. कई गांवों में इन शौचालयों तक पहुंचने के लिए लोगों को एक किमी तक पैदल चलना पड़ता है. कई गांवों में पानी की कमी के कारण इन शौचालयों का इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है. ओडिशा जैसे राज्यों में यह समस्या गंभीर है. कनकपुर गांव के तरांगनी मिश्रा का कहना था, 'गर्मियों में पानी की कमी के कारण, आधे से ज्यादा गांव इन शौचालयों का इस्तेमाल नही कर पाते और खुले में शौच करने को मजबूर होते हैं.' बालांगीर के कलेक्टर का कहना है कि इन शौचालयों में पानी न होना सबसे बड़ी समस्या है.

पिछले साल 19 जुलाई को ग्रामीण विकास पर संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट संसद को सौंपी थी. इस रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा गया था कि सभी भारतीयों को स्वच्छता की पूरी सुविधाऐं मुहैया कराना जरूरी है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सपनों का स्वच्छ भारत अभी हकीकत से दूर है. इस रिपोर्ट में कहा गया कि कागजी आंकड़े और स्वच्छ भारत की जमीनी हकीकत में कोई मेल नहीं दिख रहा है. लेकिन केंद्र सरकार ने इस समिति की सिफारिशों पर ये कहते हुए ध्यान नहीं दिया कि अन्य रिपोर्टों में बेहतर बातें कही गई हैं. इन हालातों में यह जरूरी है कि ओडीएफ घोषित गांवों में दो स्तरीय निरीक्षण को सही तरह से लागू किया जाए. इन शौचालयों में पानी की आपूर्ति की जाए. पर्यावरण के लिहाज से सुरक्षित शौचालयों का निर्माण होना चाहिए और वेस्ट मैनेजमेंट में खामियों को दूर किया जाना चाहिए. इन सब के बाद ही असल में देश स्वच्छ भारत का लक्ष्य प्राप्त कर सकेगा.

पर्यावरण को नुकसान
सफाई कर्मचारी आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक और मैग्सेसे पुरस्कार विजेता बेजवाड़ा विल्सन का कहना है कि देश में 90 लाख सूखे शौचालय हैं. इस कारण मल को सार्वजनिक इलाकों में डालने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है. केंद्र सरकार का कहना है कि वो पर्यावरण के लिहाज से सुरक्षित, टू पॉट होल वाले शौचालय बना रही है. वहीं इस योजना के तहत बने ज्यादातर शौचालय गड्डे वाले हैं. ग्रामीण विकास मंत्रालय की पूर्व सचिव नैंसी सक्सेना का कहना है कि शौचालयों में 50 क्यूबिक फीट के दो गड्डे होने चाहिए. लेकिन इस तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहा है. एक गड्डे वाले शौचालय जल्दी भर जाएंगे और इनका मल निकट के पानी के स्रोतों में फेंका जा रहा है, जो पर्यावरण के लिए खतरनाक है.

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Last Updated : Dec 17, 2019, 6:49 PM IST
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