नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को प्रवर्तन निदेशालय को निर्देश दिया कि आम्रपाली मामले में फेमा उल्लंघन के लिये जेपी मोर्गन की भारत में स्थित संपत्तियां जब्त की जाएं. आरोप है कि जेपी मोर्गन फेमा (विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम) और एफडीआई के नियमों का उल्लंघन करते हुए आम्रपाली समूह से मकान खरीदारों के धन की हेरा फेरी में संलिप्त थी. आम्रपाली कंपनी दिवालिया हो गई है.
प्रवर्तन निदेशालय ने न्यायालय के समक्ष कहा कि पहली नजर में उसे पता चला है कि मूल रूप से अमेरिका की कंपनी जेपी मोर्गन ने फेमा मानकों का उल्लंघन किया है और इस संबंध में शिकायत दर्ज की गई है.
शेयर क्रय समझौते के अनुसार जेपी मोर्गन 20 अक्टूबर, 2010 को 85 करोड़ रूपए निवेश का एक करार किया था, जिसमें लाभ में वरीयता के आधार पर 75 फीसदी हिस्सेदारी जेपी मोर्गन की और 25 प्रतिशत आम्रपाली होम्स परियोजना प्रा लि और अल्ट्रा होम के प्रवर्तकों की रखी गई थी.
बाद में जेपी मोर्गन से इन शेयरों को आम्रपाली के वैधानिक आडिटर अनिल मित्तल के एक चपरासी और कार्यालय के एक अन्य व्यक्ति के स्वामित्व वाली कंपनी मेसर्स नीलकंठ और मेसर्स रूद्राक्ष ने 140 करोड़ रूपए में वापस खरीद लिया था.
न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा और न्यायमूर्ति उदय यू ललित की पीठ को प्रवर्तन निदेशालय के संयुक्त निदेशक राजेश्वर सिंह ने सूचित किया कि इस बहुराष्ट्रीय कंपनी ने यह धन वापस अमेरिका में जमा करा दिया.
पीठ ने कहा, 'उनकी (जेपी मोर्गन) की भारत में बहुत संपत्ति है. हम चाहते हैं कि आप इसी धनराशि के समतुल्य उनके कार्यालय और निगमित संपत्तियों को जब्त करें. इसके बाद ही वे हमारे पास आएंगे और हम इसे देखेंगे.'
इस मामले की जांच की निगरानी कर रहे सिंह ने कहा कि फर्म के खिलाफ कानूनी प्रावधानों के अनुरूप कार्यवाही शुरू कर दी गई है.
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पीठ ने प्रवर्तन निदेशालय को अब ठप हो चुके इस समूह के चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक अनिल कुमार शर्मा और दो अन्य निदेशकों शिव प्रिय और अजय कुमार को हिरासत में लेने की अनुमति प्रदान कर दी. शीर्ष अदालत के आदेश पर ये धन शोधन के अपराध के सिलसिले में पूछताछ के लिए सलाखों के पीछे हैं.
न्यायालय ने कहा कि प्रवर्तन निदेशालय उन्हें तत्काल हिरासत में ले सकता है और पूछताछ पूरी होने के बाद उन्हें वापस जेल पहुंचा दिया जाए.