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अध्ययन : कोरोना मरीजों के इलाज में सहायक सिद्ध हो सकती है ईसीएमओ मशीन

एक्स्ट्राकॉर्पोरेल मेंब्रेन ऑक्सीजिनेशन (ईसीएमओ) एक एडवांस तकनीकी की यांत्रिक जीवन समर्थन (लाइफ सपोर्ट) मशीन है. यह शरीर से रक्त निकालती है, उसे ओक्सिजनेट करती है. उस रक्त से कार्बन डाइऑक्साइड को निकालती है और फिर शरीर में रक्त को वापस पहुंचाती है. इस प्रक्रिया से रोगी के क्षतिग्रस्त अंग या दिल की गति ठीक हो जाती है.

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प्रतीकात्मक तस्वीर.
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Published : May 21, 2020, 2:15 PM IST

हैदराबाद : विश्व आज कोरोना नामक बीमारी से जूझ रहा है. दुनिया के अधिकतर देश कोरोना वैक्सीन बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं. इस बीच वेस्ट वर्जीनिया विश्वविद्यालय (WVU) के एक अध्ययन में पाया गया है कि एक्स्ट्राकॉर्पोरेल मेंब्रेन ऑक्सीजिनेशन (ECMO) मशीन कोरोना वायरस से गंभीर रूप से पीड़ित रोगियों के इलाज में सहायक सिद्ध हो सकती है.

ईसीएमओ पर मरीज को तभी रखते हैं जब दिल, फेफड़े ठीक से काम नहीं करते हैं और वेंटिलेटर का भी फायदा नहीं होता. इससे मरीज के शरीर में ऑक्सीजन पहुंचाया जाता है.

कोरोना महामारी से पीड़ित लोगों का इलाज जारी है. जब एक मरीज गंभीर रूप से कोरोना वायरस संक्रमण से पीड़ित होता है तो उसके फेफड़ों पर सबसे ज्यादा असर होता है. यहां तक कि बीमारी में व्यक्ति का फेफड़ा काम करना बंद कर देता है.

यदि मरीज के फेफड़े काम नहीं करते तो रक्त मस्तिष्क, लीवर और अन्य अंगों को पर्याप्त ऑक्सीजन प्रसारित नहीं कर सकता है. हालांकि ईसीएमओ उन कोविड-19 रोगियों के लिए कम सहायक सिद्ध हो सकती हैं, जो पहले से या तो गंभीर रूप से किसी अन्य बीमारी (सहरुग्ण परिस्थितियां) से ग्रसित हैं या फिर मरीज की उम्र अधिक है.

ECMO मशीन किसी के रक्त को उसके शरीर के बाहर पंप करके, उसे ऑक्सीजन देकर और उसे शरीर में लौटाने का काम करती है.

अनुसंधान दल ने एक अध्ययन में पाया कि गंभीर रूप से कोरोना पीड़ित, जिनके फेफड़ों पर बीमारी का बुरा असर पड़ा था, ईसीएमओ स्पोर्ट पर थे. अनुसंधान दल ने कुल 32 मरीजों पर इसका अध्ययन किया.

दल का कहना था कि 32 लोगों में, जो ईसीएमओ स्पोर्ट पर थे, से 22 लोग बच गए. उनमें से पांच लोग ईसीएमओ सपोर्ट से हटने के बाद भी जीवित थे. वहीं 17 अब भी ईसीएमओ सपोर्ट पर थे.

पढ़ें : शोध : मशीन लर्निंग से करेंगे कोरोना मरीजों में हृदय संबंधी रोगों की पहचान

डब्ल्यूवीयू के ईसीएमओ की निदेशक और अनुसंधान दल की एक सदस्य जेरेमिया हयांगा ने इस पर अपनी बात रखी. हयांगा ने कहा कि जिन मरीजों की बीमारी फेफड़े तक ही सीमित है, उनमें बेहतर जीवन रक्षा पाई गई है और यह वास्तव में ईसीएमओ के सभी संकेतों के लिए सही है.

टीम में WVU हार्ट एंड वस्कुलर इंस्टीट्यूट के कार्यकारी अध्यक्ष विनय बधवार और HVI के सलाहकार और कार्डियोवैस्कुलर और थोरेसिक सर्जरी के स्कूल ऑफ मेडिसिन विभाग के साथ एक गैर-फैकल्टी सहयोगी भी शामिल थे.

यह भी एक चिंता का विषय है कि अब तक कोरोना के उपचार में कई दवाओं की भूमिका स्पष्ट नहीं हुई है. इस बीमारी को ठीक करने के लिए मलेरिया में काम आने वाली हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन दवा का भी प्रयोग किया जा रहा है.

साथ ही अन्य दवाओं पर भी इसकी जांच चल रही है. वहीं बहु-विषयक टीम का मानना है कि वह कोरोना से संबंधित सभी चीजों का बारीकी से अध्ययन करती हैं ताकि एक मरीज को ईसीएमओ सपोर्ट का लाभ मिल सके.

हैदराबाद : विश्व आज कोरोना नामक बीमारी से जूझ रहा है. दुनिया के अधिकतर देश कोरोना वैक्सीन बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं. इस बीच वेस्ट वर्जीनिया विश्वविद्यालय (WVU) के एक अध्ययन में पाया गया है कि एक्स्ट्राकॉर्पोरेल मेंब्रेन ऑक्सीजिनेशन (ECMO) मशीन कोरोना वायरस से गंभीर रूप से पीड़ित रोगियों के इलाज में सहायक सिद्ध हो सकती है.

ईसीएमओ पर मरीज को तभी रखते हैं जब दिल, फेफड़े ठीक से काम नहीं करते हैं और वेंटिलेटर का भी फायदा नहीं होता. इससे मरीज के शरीर में ऑक्सीजन पहुंचाया जाता है.

कोरोना महामारी से पीड़ित लोगों का इलाज जारी है. जब एक मरीज गंभीर रूप से कोरोना वायरस संक्रमण से पीड़ित होता है तो उसके फेफड़ों पर सबसे ज्यादा असर होता है. यहां तक कि बीमारी में व्यक्ति का फेफड़ा काम करना बंद कर देता है.

यदि मरीज के फेफड़े काम नहीं करते तो रक्त मस्तिष्क, लीवर और अन्य अंगों को पर्याप्त ऑक्सीजन प्रसारित नहीं कर सकता है. हालांकि ईसीएमओ उन कोविड-19 रोगियों के लिए कम सहायक सिद्ध हो सकती हैं, जो पहले से या तो गंभीर रूप से किसी अन्य बीमारी (सहरुग्ण परिस्थितियां) से ग्रसित हैं या फिर मरीज की उम्र अधिक है.

ECMO मशीन किसी के रक्त को उसके शरीर के बाहर पंप करके, उसे ऑक्सीजन देकर और उसे शरीर में लौटाने का काम करती है.

अनुसंधान दल ने एक अध्ययन में पाया कि गंभीर रूप से कोरोना पीड़ित, जिनके फेफड़ों पर बीमारी का बुरा असर पड़ा था, ईसीएमओ स्पोर्ट पर थे. अनुसंधान दल ने कुल 32 मरीजों पर इसका अध्ययन किया.

दल का कहना था कि 32 लोगों में, जो ईसीएमओ स्पोर्ट पर थे, से 22 लोग बच गए. उनमें से पांच लोग ईसीएमओ सपोर्ट से हटने के बाद भी जीवित थे. वहीं 17 अब भी ईसीएमओ सपोर्ट पर थे.

पढ़ें : शोध : मशीन लर्निंग से करेंगे कोरोना मरीजों में हृदय संबंधी रोगों की पहचान

डब्ल्यूवीयू के ईसीएमओ की निदेशक और अनुसंधान दल की एक सदस्य जेरेमिया हयांगा ने इस पर अपनी बात रखी. हयांगा ने कहा कि जिन मरीजों की बीमारी फेफड़े तक ही सीमित है, उनमें बेहतर जीवन रक्षा पाई गई है और यह वास्तव में ईसीएमओ के सभी संकेतों के लिए सही है.

टीम में WVU हार्ट एंड वस्कुलर इंस्टीट्यूट के कार्यकारी अध्यक्ष विनय बधवार और HVI के सलाहकार और कार्डियोवैस्कुलर और थोरेसिक सर्जरी के स्कूल ऑफ मेडिसिन विभाग के साथ एक गैर-फैकल्टी सहयोगी भी शामिल थे.

यह भी एक चिंता का विषय है कि अब तक कोरोना के उपचार में कई दवाओं की भूमिका स्पष्ट नहीं हुई है. इस बीमारी को ठीक करने के लिए मलेरिया में काम आने वाली हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन दवा का भी प्रयोग किया जा रहा है.

साथ ही अन्य दवाओं पर भी इसकी जांच चल रही है. वहीं बहु-विषयक टीम का मानना है कि वह कोरोना से संबंधित सभी चीजों का बारीकी से अध्ययन करती हैं ताकि एक मरीज को ईसीएमओ सपोर्ट का लाभ मिल सके.

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