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इस बार छोटे स्तर पर होंगे दुर्गा पूजा के आयोजन

पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा का खास महत्व है. इस पूजा का आयोजन ही बहुत बड़े स्तर पर किया जाता है. कार्यक्रम से न जाने कितने लोगों का जुड़ाव है. ऐसे में पूजा में विघ्न डाल रहा लॉकडाउन पूजा के आयोजकों, इससे जुड़े कारीगरों और अनगिनत श्रद्धालुओं के लिए एक बुरे सपने जैसा है.

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क्या दुर्गा पूजा से जुड़े हर एक व्यक्ति के लिए बुरे सपने जैसा है लॉकडाउन ?
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Published : May 11, 2020, 5:01 PM IST

Updated : May 11, 2020, 5:31 PM IST

कोलकाता : उत्तरी कोलकाता के डिंगी बाइलेन की दीवारों पर लटके एक विशेष कैलेंडर में मई से अक्टूबर के महीने के आधे दिनों की तारीख लुप्त होती है. इसके साथ ही दिलचस्प बात यह है कि अक्टूबर महीने का 22वां दिन लाल रंग के गोले में घिरा होता है. ऐसी ही अचंभित करने वाली चीजें किसी को भी सोचने पर मजबूर कर देंगी कि आखिर ऐसा क्यों ?

गौरतलब है कि महाभाषी बंगाली पंचांग के अनुसार, वार्षिक दुर्गा पूजा की शुरुआत के लिए आधिकारिक तिथि तय की जाती है.

देखें, ईटीवी भारत की रिपोर्ट...

हर बार की तरह इस बार भी दुर्गा पूजा के लिए लोगों के मन में खासा उत्साह है, लेकिन लॉकडाउन के चलते अपने घरों में सिमटे लोग अपनी-अपनी तरफ से पूजा की तैयारियों में जुटे हुए हैं.

महानगर के कई दूर्गा पूजा आयोजक अपनी ओर से इस महापर्व को लेकर योजना बनाने में लगे हैं. सोच-विचार में डूबे इन बड़े-बड़े पूजा आयोजकों में कुछ तो योजना बना रहे हैं, तो कुछ लॉकडाउन के चलते इस साल की पूजा को छोड़ने के बारे में विचार कर रहे हैं.

लॉकडाउन : एक बुरे सपने जैसा
प्रतिवर्ष महानगर में 3,000 से भी ज्यादा, बड़ी, मध्यम और छोटी-छोटी पूजा आयोजित की जाती हैं लेकिन इसमें बदलाव आ सकता है. लॉकडाउन के चलते सब कुछ बंद होना खासतौर पर आयोजकों के लिए एक बुरे सपने जैसा है.

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पंडाल को सजाते लोग

कोरोना महामारी ने भारतीय कॉरपोरेट जगत पर बहुत बड़ी मार की है. किसी भी पूजा पंडाल या अन्य कार्यक्रम के आयोजकों के लिए यह वाकई में बहुत बुरा है. इनका मुख्यालय ज्यादातर महानगरों में ही होता है और यहीं से इनके लिए बजट तैयार किया जाता है. ऐसे में दुर्गा पूजा आयोजकों का मानना है कि कॉर्पोरेट स्पॉंसर से किसी तरह के बजट की अपेक्षा करना एक ओवर स्टेटमेंट जैसा है.

अनगिनत छोटे कारीगरों का है पूजा से जुड़ाव
मिट्टी की मूर्तियां बनाने वाले कारीगर, आभूषण बेचने वाले, पंडाल की सजावट करने वाले, पंडाल को लाइट से चकाचौंध करने वाली रोशनी देने वाले, पारंपरिक ड्रमर और न जाने कितने ही कारीगर इस उत्सव में सीधे तौर पर शामिल होते हैं, जो बंगाल की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने में सहायक हैं. यह लोग अपनी आजीविका के लिए कहीं न कहीं इस पूजा पर ही निर्भर करते हैं. ऐसे में लॉकडाउन का दौर इनके लिए अभिशाप साबित हो सकता है. ASSOCHAM की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पश्चिम बंगाल की वार्षिक दुर्गा पूजा उत्सव की कीमत 60,000 करोड़ रुपए से अधिक है.

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मां दुर्गा की पूजा करती ममता बनर्जी (फाइल फोटो)

काशी बोस दुर्गा पूजा समिति के सौमेन दत्ता कहते हैं कि पिछले साल से दुर्गा पूजा के लिए हमारा बजट पहले ही आधा कर दिया गया है. लॉकडाउन के विस्तार के साथ चीजें और भी कठिन हो रही हैं. हमें हर एक चीज पर पुनर्विचार करना होगा.

जरूरतमंदों की मदद करना सर्वोपरि
चोरबागान सरबजनिन दुर्गोत्सव समिति के सचिव जयंत बंदोपाध्याय कहते हैं कि दुर्गा पूजा से जुड़े छोटे-छोटे काम जनवरी से ही शुरू हो गए थे. लेकिन तालाबंदी के चलते सब कुछ रोकना पड़ा. उनका कहना है कि लेकिन जरूरतमंदों की मदद के लिए हमने सारे तौर तरीकों को बदल दिया है. हम पुलिस स्टेशन में पका हुआ भोजन परोसते हैं.

वह आगे कहते हैं कि पूजा तो निचले स्तर पर भी की जा सकती है. पहले हम जरूरतमंदों की सहायता करेंगे.

दक्षिण कोलकाता में भी एक बड़ी संख्या की भीड़ को अपनी ओर आकर्षित करने वाले भी इसी चुनौती का सामना कर रहे हैं.

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दुर्गा पूजा की खूबसूरत तस्वीर

लॉकडाउन ने बदला सब
त्रिधारा संमिलनी के देबाशीष कुमार से लेकर नकटला उदयन संघ के बप्पादित्य सेनगुप्ता, जोधपुर पार्क दुर्गा पूजा समिति के रतन डे तक, हर आयोजक का कहना है कि कोरोना और लॉकडाउन ने आने वाले बहुत लंबे समय के लिए सब कुछ बदल कर रख दिया है.

प्रमुख आयोजकों का कहना है कि आज हमारा मुख्य उद्देश्य जरूरतमंदों के साथ खड़ा होना है. दैनिक वेतन भोगी, झुग्गीवासी और कई अन्य लोगों पर लॉकडाउन की बहुत बुरी मार पड़ी है. हम उन्हें अनदेखा नहीं कर सकते.

हां यह सच है कि बड़े पैमाने पर पूजा न होने की वजह से निश्चित रूप से हमें काफी बुरा लगेगा. लेकिन आज हम जरूरतमंदों पर ध्यान केंद्रित कर उनके लिए खड़े हैं.

कोलकाता : उत्तरी कोलकाता के डिंगी बाइलेन की दीवारों पर लटके एक विशेष कैलेंडर में मई से अक्टूबर के महीने के आधे दिनों की तारीख लुप्त होती है. इसके साथ ही दिलचस्प बात यह है कि अक्टूबर महीने का 22वां दिन लाल रंग के गोले में घिरा होता है. ऐसी ही अचंभित करने वाली चीजें किसी को भी सोचने पर मजबूर कर देंगी कि आखिर ऐसा क्यों ?

गौरतलब है कि महाभाषी बंगाली पंचांग के अनुसार, वार्षिक दुर्गा पूजा की शुरुआत के लिए आधिकारिक तिथि तय की जाती है.

देखें, ईटीवी भारत की रिपोर्ट...

हर बार की तरह इस बार भी दुर्गा पूजा के लिए लोगों के मन में खासा उत्साह है, लेकिन लॉकडाउन के चलते अपने घरों में सिमटे लोग अपनी-अपनी तरफ से पूजा की तैयारियों में जुटे हुए हैं.

महानगर के कई दूर्गा पूजा आयोजक अपनी ओर से इस महापर्व को लेकर योजना बनाने में लगे हैं. सोच-विचार में डूबे इन बड़े-बड़े पूजा आयोजकों में कुछ तो योजना बना रहे हैं, तो कुछ लॉकडाउन के चलते इस साल की पूजा को छोड़ने के बारे में विचार कर रहे हैं.

लॉकडाउन : एक बुरे सपने जैसा
प्रतिवर्ष महानगर में 3,000 से भी ज्यादा, बड़ी, मध्यम और छोटी-छोटी पूजा आयोजित की जाती हैं लेकिन इसमें बदलाव आ सकता है. लॉकडाउन के चलते सब कुछ बंद होना खासतौर पर आयोजकों के लिए एक बुरे सपने जैसा है.

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पंडाल को सजाते लोग

कोरोना महामारी ने भारतीय कॉरपोरेट जगत पर बहुत बड़ी मार की है. किसी भी पूजा पंडाल या अन्य कार्यक्रम के आयोजकों के लिए यह वाकई में बहुत बुरा है. इनका मुख्यालय ज्यादातर महानगरों में ही होता है और यहीं से इनके लिए बजट तैयार किया जाता है. ऐसे में दुर्गा पूजा आयोजकों का मानना है कि कॉर्पोरेट स्पॉंसर से किसी तरह के बजट की अपेक्षा करना एक ओवर स्टेटमेंट जैसा है.

अनगिनत छोटे कारीगरों का है पूजा से जुड़ाव
मिट्टी की मूर्तियां बनाने वाले कारीगर, आभूषण बेचने वाले, पंडाल की सजावट करने वाले, पंडाल को लाइट से चकाचौंध करने वाली रोशनी देने वाले, पारंपरिक ड्रमर और न जाने कितने ही कारीगर इस उत्सव में सीधे तौर पर शामिल होते हैं, जो बंगाल की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने में सहायक हैं. यह लोग अपनी आजीविका के लिए कहीं न कहीं इस पूजा पर ही निर्भर करते हैं. ऐसे में लॉकडाउन का दौर इनके लिए अभिशाप साबित हो सकता है. ASSOCHAM की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पश्चिम बंगाल की वार्षिक दुर्गा पूजा उत्सव की कीमत 60,000 करोड़ रुपए से अधिक है.

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मां दुर्गा की पूजा करती ममता बनर्जी (फाइल फोटो)

काशी बोस दुर्गा पूजा समिति के सौमेन दत्ता कहते हैं कि पिछले साल से दुर्गा पूजा के लिए हमारा बजट पहले ही आधा कर दिया गया है. लॉकडाउन के विस्तार के साथ चीजें और भी कठिन हो रही हैं. हमें हर एक चीज पर पुनर्विचार करना होगा.

जरूरतमंदों की मदद करना सर्वोपरि
चोरबागान सरबजनिन दुर्गोत्सव समिति के सचिव जयंत बंदोपाध्याय कहते हैं कि दुर्गा पूजा से जुड़े छोटे-छोटे काम जनवरी से ही शुरू हो गए थे. लेकिन तालाबंदी के चलते सब कुछ रोकना पड़ा. उनका कहना है कि लेकिन जरूरतमंदों की मदद के लिए हमने सारे तौर तरीकों को बदल दिया है. हम पुलिस स्टेशन में पका हुआ भोजन परोसते हैं.

वह आगे कहते हैं कि पूजा तो निचले स्तर पर भी की जा सकती है. पहले हम जरूरतमंदों की सहायता करेंगे.

दक्षिण कोलकाता में भी एक बड़ी संख्या की भीड़ को अपनी ओर आकर्षित करने वाले भी इसी चुनौती का सामना कर रहे हैं.

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दुर्गा पूजा की खूबसूरत तस्वीर

लॉकडाउन ने बदला सब
त्रिधारा संमिलनी के देबाशीष कुमार से लेकर नकटला उदयन संघ के बप्पादित्य सेनगुप्ता, जोधपुर पार्क दुर्गा पूजा समिति के रतन डे तक, हर आयोजक का कहना है कि कोरोना और लॉकडाउन ने आने वाले बहुत लंबे समय के लिए सब कुछ बदल कर रख दिया है.

प्रमुख आयोजकों का कहना है कि आज हमारा मुख्य उद्देश्य जरूरतमंदों के साथ खड़ा होना है. दैनिक वेतन भोगी, झुग्गीवासी और कई अन्य लोगों पर लॉकडाउन की बहुत बुरी मार पड़ी है. हम उन्हें अनदेखा नहीं कर सकते.

हां यह सच है कि बड़े पैमाने पर पूजा न होने की वजह से निश्चित रूप से हमें काफी बुरा लगेगा. लेकिन आज हम जरूरतमंदों पर ध्यान केंद्रित कर उनके लिए खड़े हैं.

Last Updated : May 11, 2020, 5:31 PM IST
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