नई दिल्ली: A-SAT मिसाइल परियोजना को दो वर्ष पहले ही मंजूरी मिल चुकी थी. ये बात डीआरडीओ के अध्यक्ष जी. सतीश रेड्डी ने कही. उन्होंने कहा कि भारत का उपग्रह भेदी मिसाइल परीक्षण महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकी विकसित करने में भारत की बढ़ती क्षमताओं को दर्शाता है. रेड्डी ने कहा कि यह एक कवच के तौर पर काम करेगा.
भारत अंतरिक्ष शक्तियों के चुनिंदा समूह में शामिल
भारत द्वारा अंतरिक्ष में उपग्रह को मार गिराए जाने के सफल परिक्षण के बाद रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने मीडिया से बातचीत की. इस दौरान उन्होंने कहा, 'भारत के लिए यह बड़ी उपलब्धि है. इससे देश अंतरिक्ष शक्तियों के चुनिंदा समूह में शामिल हो गया है.'
भारत को मिली बड़ी सफलता
इस संबंध में जानकारी देते हुए रेड्डी ने बताया कि परीक्षण के लिए उपयोग की गई प्रौद्योगिकी पूरी तरह स्वदेश में विकसित की हुई है. गौरतलब है कि उपग्रह को मिसाइल से मार गिराया जाना हमारे लिए बड़ी सफलता तो है ही साथ ही साथ इससे ये भी साबित होता है कि हम ऐसी तकनीक विकसित करने में सक्षम हैं, जो सटीक दक्षता हासिल कर सकता है.
‘हिट टू किल’ मोड में बनाया गया था निशाना
इस परियोजना के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि एक बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस (बीएमडी) इंटरसेप्टर मिसाइल ने सफलतापूर्वक लो अर्थ ऑर्बिट (एलईओ) में भारतीय उपग्रह को ‘हिट टू किल’ मोड में निशाना बना लिया.
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इंटरसेप्टर तीन चरणों का मिसाइल था
डीआरडीओ के अध्यक्ष जी. सतीश रेड्डी ने कहा कि इंटरसेप्टर मिसाइल तीन चरणों का मिसाइल था. इसमें दो ठोस रॉकेट बूस्टर थे. उन्होंने बताया कि रेंज सेंसर से निगरानी में पुष्टि हुई कि मिशन ने अपना उद्देश्य पूरा कर लिया.
भारत की क्षमता का मिला अंदाजा
गौरतलब है कि ये परीक्षण ‘मिशन शक्ति’ अभियान के तहत ओडिशा में डॉ. ए पी जे अब्दुल कलाम द्वीप से किया गया था. इस परीक्षण से बाहरी अंतरिक्ष में अपने संसाधनों की रक्षा करने की भारत की क्षमता का पता चलता है.
परीक्षण किसी देश के खिलाफ नहीं था
गौरतलब है कि इस पिरक्षण से संबंधित एक बयान जारी करते हुए विदेश मंत्रालय ने कहा कि परीक्षण किसी देश के खिलाफ नहीं था. बयान में यह भी कहा गया कि बाहरी अंतरिक्ष में भारत किसी हथियार दौड़ में शामिल नहीं होना चाहता है.