नई दिल्ली : केंद्र सरकार ने हाल ही में ने देश भर में,पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) के नियमों को संशोधित करने के लिए मसौदा तैयार करने की अधिसूचना जारी की, जिसका खिलाफ पूर्वोत्तर राज्यों में गंभीर विरोध प्रदर्शन हो रहा है.
नया मसौदा पर्यावरण मंजूरी प्रक्रिया में सार्वजनिक भागीदारी को कम करने का प्रस्तावित करती है. विभिन्न संगठनों ने इस कदम पर अपना कड़ा विरोध जताया है.
इसका अलावा बताया जा रहा है कि मौजूदा ईआईए मानदंडों में संशोधन से विशेष रूप से सीमावर्ती क्षेत्रों में रक्षा बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को बढ़ावा मिलेगा, पर्यावरणविदों का मानना है कि यह हरित मानदंडों को कम करेगा.
इसके अलावा तमिलनाडु में युवा समूहों द्वारा EIA का विरोध प्रदर्शन किया और सामाजिक, राजनीतिक और पर्यावरण संगठनों सहित कई समूहों द्वारा हस्ताक्षर किए गए एक पत्र को केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को एक ज्ञापन भेजा है.
युवा समूहों ने कहा है कि नवीनतम अधिसूचना को आगे बढ़ाने का कदम युवा लोगों और आने वाली पीढ़ियों के अधिकारों के लिए 'गैर जिम्मेदार, लापरवाह और असंवेदनशील' है. जो पर्यावरण को विरासत में प्राप्त करेंगे.प्रस्तावित ईआईए अधिसूचना ऐसे कानूनों को कमजोर करती है, जो पर्यावरण की रक्षा करते हैं.
ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन के महासचिव लुरिनज्योति गोगोई ने इस मामले में कहा कि केंद्र सरकार पहले से ही EIA नियमों में संशोधन करके पूर्वोत्तर क्षेत्र की जैव विविधता को नष्ट करने की साजिश रच रही है. इसका असर असम और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों को गंभीर रूप से प्रभावित करेगा. इसलिए हमने उसी का विरोध करने का फैसला किया है.
वहीं, मामले में सामाजिक कार्यकर्ता और मानवाधिकार रक्षक अंजुम आरा बेगम का कहना है कि भारत में ईआईए का इतिहास बहुत पुराना नहीं है. पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 को 1984 में भोपाल गैस त्रासदी के बाद ही लागू किया गया था.
पर्यावरण प्रभाव आकलन को केवल 1994 में बड़ी परियोजनाओं के लिए अनिवार्य किया गया था. हालांकि, सरकारी तंत्र पूर्वोत्तर भारतीय सातों के लिए ईआईए नियमों को लागू करने के लिए बहुत उत्सुक नहीं था.
उन्होंने कहा कि ऐसे आरोप लगाए गए हैं कि बड़े जल विद्युत बांधों को दी गई ईआईए पक्षपाती और एकतरफा है. दिबांग घाटी पनबिजली बांध के बारे में ईआईए ने उल्लेख किया है कि अरुणाचल प्रदेश में दिबांग घाटी के बीच गुवाहाटी में दीपोर बील के बीच कोई जल निकाय नहीं है, जो अतीत में बह गया था.
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सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा कि पूर्व मंत्री जयराम रमेश ने पहले ही केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री को पत्र लिखा था. हालांकि, ईआईए पर बहस महत्व रखती है क्योंकि मसौदा अधिसूचना पर जनता की राय के लिए कम समय 11 अगस्त को समाप्त हो जाएगा.