पुडुचेरी : कोरोना के खतरे के बीच पूरे देश में लगे कर्फ्यू के मद्देनजर सड़कों पर ऐसे लोग नजर आ रहे, जिनका कोई नहीं. यह लोग दो वक्त की रोटी के लिए तरस रहे हैं. इनमें से कुछ को तो खाना नसीब हो जाता है लेकिन कुछ के हाथ सिर्फ निराशा लगती है. ऐसे ही बेबस लोगों के लिए सहारा बना है, पुडुचेरी का सामाजिक कल्याण विभाग, जो शहरी इलाकों में असहाय लोगों को समायोजित कर खाद्य सामग्री और दवाइयां वितरित कर रहा है.
शारीरिक रूप से अक्षम लोगों की शेव कर उनकी साफ सफाई का खास ख्याल रखा जाता है और उन्हें नए कपड़े दिए जाते हैं.
इसी कड़ी में ईटीवी भारत के संवाददाता ने असहाय लोगों को दी जाने वाली मदद और सरकार के समक्ष उनकी मांगों को जानने के लिए अधिकारियों से खास बातचीत की.
परिवार से झगड़ा हुआ, तो छोड़ा घर..
सड़कों पर भीख मांगकर गुजर बसर करने वाला एक युवक मणिकंदन बड़े ही उत्साह के साथ कहता है, मैंने अपने परिवार से झगड़े के बाद घर छोड़ दिया. इस समय मैं एक वक्त की रोटी के लिए सड़कों पर भीख मांगने को मजबूर हूं.
कर्फ्यू में एक समय का खाना तक नसीब नहीं हो पा रहा. इस हालत में नहीं धकेला जाता अगर मेरे पास काम होता. मेरे पास कुछ बचत होती.
मणिकंदन ने आगे कहा कि वर्तमान में, मैं सरकारी अधिकारियों की मदद से कोरोना शिविर में आया हूं. यहां, वे मुझे अच्छे कपड़े देते हैं और मुझे खिलाते हैं. अन्य युवाओं की तरह, मुझे एक अच्छी नौकरी लेने में दिलचस्पी है. मैं कड़ी मेहनत करना पसंद करूंगा, अगर सरकार भोजनालयों में भी रोजगार प्रदान करती है.
बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन पर रह रहे थे लोग
इस बीच, ईटीवी भारत की बातचीत में शामिल होने वाले सामाजिक कार्यकर्ता जोसेफ कहते हैं कि कोरोना शिविर जिला प्रशासन के अधीन आता है इसका नेतृत्व तहसीलदार करते हैं. हम उन सभी लोगों को लेकर आए हैं जो पुराने बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन पर रह रहे थे.
जैसे ही कर्फ्यू खत्म होता है, हम सभी प्रवासी श्रमिकों को उनके निर्धारित आवास पर वापस भेज देंगे. शेष बुजुर्गों और युवाओं की देखभाल के लिए सरकार को हमारी मदद करने के लिए आगे आना होगा.
नौकरी चाहिए, फिर चाहे कोई भी हो..
शिविर में रह रहा युवक मणिकंदन कहता है कि हममें से 10 हैं जिन्हें आप किसी भी भोजनालय या सब्जी की दुकान में भी नौकरी देते हैं, तो हम यह करेंगे.
आगे का सोचना चुनौतीपूर्ण..
सामाजिक कार्यकर्ता जोसेफ ने ईटीवी भारत से बातचीत में कहा कि एक सवाल है कि तीन मई के बाद यह लोग फिर से सड़कों पर लौट सकते हैं. कुछ लोग दूसरी जगहों के हैं. कर्फ्यू हटाते ही उन्हें वापस अपने-अपने स्थानों पर भेज दिया जाएगा. बाकी या तो वृद्धाश्रमों में होंगे या रोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए प्रयासरत होंगे.
तिरुनेलवेली से बदलाव की एक किरण :
कैंप में व्यवहारिक बदलाव, रोजगार के लिए लाचार लोग.
यह बात सच है कि कोरोना के खतरे के मद्देनजर लगाए कर्फ्यू ने कई उद्योगों को हिला कर रख दिया है, लेकिन इस बात को नकारना भी गलत है कि कुछ सकारात्मक बदलाव भी हुए हैं.
कर्फ्यू के कारण कोरोना शिविरों में एक चमत्कारी परिवर्तन हुआ है. मंदिर में लोगों को भगवान को पूजते तो सभी ने देखा है लेकिन कई लोगों को भगवान की ही तरह पूजा जा रहा है.
यह सब देख हमारी टीम ने हमारे मन में सवाल उठे कि, उनकी कमियां क्या हैं? वह भीख क्यों मांग रहे? वे काम पर क्यों नहीं जा सकते?
इन सबके बीच एक बदलाव आया है. अनाथ और बेसहारा लोगों को तिरुनेलवेली जिले में भूख की भयानक चपेट से बचाया गया है और जिला कलेक्टर शिल्पा प्रभाकर सतीश द्वारा टाउन क्षेत्र के एक सरकारी स्कूल में आश्रय दिया गया है. कलेक्टर ने उनकी देखभाल करने के लिए कुछ स्वयंसेवकों को नियुक्त किया है और उन्हें लॉकडाउन का प्रभावी उपयोग करने की सलाह दी है.
कोरोना शिविर में गतिविधियां :
• पहले चरण में, जो लोग स्थानों की यात्रा नहीं कर सके, वे फंसे और वापस अपने घरों को भेजे गए.
• दूसरे चरण में, एक सरकारी अस्पताल मनोचिकित्सक मानसिक रूप से बीमार लोगों को चिकित्सा परामर्श प्रदान कर रहे हैं.
• बाकी, असहाय लोगों के स्वास्थ्य का ध्यान रखा जा रहा है और पहनने के लिए नए कपड़े दिए गए हैं. उन्हें भी अपने ही घर की तरह सोने की तमाम सुविधाएं दी गई हैं. बेसहारा बुजुर्गों और मानसिक रूप से बीमार लोगों के लिए भी व्यवस्था की जा रही है.
शिविर ने बदली जिंदगी
इस बारे में बात करते हुए, शिविर में रह रहे सेल्वम ने कहा कि यहां आने से पहले, मैं भीख मांगता था और एक गंदा शर्ट पहने हुए था. लेकिन, कोरोना शिविर ने नए कपड़े देकर और मुझे अच्छी तरह से खिलाकर इसे बदल दिया. मैं अब अपने पुराने जीवन में वापस नहीं जाना चाहता. सरकार की मदद से, मैं एक गरिमापूर्ण जीवन में वापस आ जाऊंगा, भले ही मुझे एक छोटी दुकान में नौकरी मिल जाए.
शिविर में कार्यरत स्वयंसेवक सरवनन कहते हैं कि हमने लगभग सभी को बचाया, जो सड़कों पर थे. कुछ 135 लोगों को बरामद किया गया था और पिछले 25 दिनों से एक दिन में तीन बार भोजन दिया गया.
यह सब देख हम जिस निष्कर्ष पर पहुंचे, वह ये कि वाकई में बुजुर्गों को आश्रय देना और युवाओं को तकनीकी प्रशिक्षण प्रदान करना देश के विकास के लिए सबसे अच्छी पहल है. यह कोरोना द्वारा उन्हें समन्वित और एकीकृत करने के लिए प्रदान किया गया एक महान अवसर है.