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कबीर के वह दोहे जो सिखाते हैं जिंदगी का फलसफा - जिंदगी का फलसफा

कबीर दास ने मानव समाज की भलाई के लिए कई ऐसे काम किए, जिन्हें आज भी लोग नहीं भुला पाए हैं. इतना ही उनकी वाणी ने हमेशा समाज को आईना दिखाने का काम किया है. बता दें कि इनकी प्रमुख रचनाएं बीजक हैं, जिसके तीन भाग साखी, सबद और रमैनी है.

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5 जून को याद कर मनाई जाएगी कबीर दास जयंती
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Published : Jun 1, 2020, 10:04 PM IST

हैदराबाद : कबीर महान व्यक्तित्व के धनी थे. वह न हिंदू थे, न मुसलमान. वह सांसारिक होने के बावजूद जाति और धर्म से परे थे. कबीर ने दुनिया को आईना दिखाया है. उन कबीरदास जी की जयंती पांच जून को मनाई जाएगी. कबीर ने समाज में व्याप्त कुरीतियों का जमकर विरोध किया. वह ऐसे व्यक्ति थे, जिन पर हिंदू और मुस्लिम दोनों दावा करते हैं. दुनियाभर के लोग मोक्ष प्राप्ति के लिए काशी जाते हैं, तो कबीर अपने जीवन के अंतिम दिनों में काशी छोड़कर मगहर चले गए. 15वीं शताब्दी के भारतीय रहस्यवादी, कवि और संत कबीर को लोग आज भी आदर के साथ याद करते हैं. कबीर के तमाम दोहे आज भी प्रासंगिक हैं...

कबीर के चर्चित दोहे और उनकी व्याख्या...

दुख में सुमिरन सब करें, सुख में करे न कोय

जो सुख में सुमिरन करे, दुख काहे को होय

भावार्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि दुःख के समय सभी ईश्वर को याद करते हैं, किंतु सुख में कोई नहीं करता। यदि सुख में भी ईश्वर को याद किया जाए, तो दुःख आए ही क्यों)

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलया कोय

जो मन खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय

भावार्थ : जब मैं इस संसार में बुराई खोजने चला तो मुझे कोई बुरा नहीं मिला, लेकिन जब मैंने अपने मन में झांक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई नहीं है.

बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर

पंछी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर

भावार्थ : कबीर कहना चाहते हैं खजूर के पेंड़ की भांति बड़ा होने का क्या लाभ, जो न तो किसी को छाया दे सकता है और नहीं उसके फर आसानी से सुरभ होते हैं.

काल करे सो आज कर, आज करे सो अब

पल में परलय होएगी, बहुरी करोगे कब

भावार्थ : कल का काम आज ही खत्म कर लेना चाहिए और आज का काम अभी. कबीर दास जी कहते हैं कि वक्त का क्या भरोसा है, पल भर में प्रलय हो सकती है.

ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोए

अपना तन शीतल करे, औरन को सुख होए

भावार्थ : हमेशा अपने मन पर नियंत्रण रखकर ऐसी भाषा बोलनी चाहिए जो आप खुद सुकून से दे और दूसरों को भी सुख या खुशी.

धीरे-धीरे रे मन, धीरे सब-कुछ होए

माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होए

भावार्थ : दुनिया में सारी चीजें अपनी रफ्तार से घटती हैं. हड़बड़ाहट से कुछ नहीं होता. माली पूरे साल पौधे को सींचता है और पौधों में समय आने पर ही फल लगते हैं.

साईं इतना दीजिए, जा में कुटुंब समाए

मैं भी भूखा ना रहूं, साधु ना भूखा जाए

भावार्थ : कबीर दस जी कहते हैं कि हे ईश्वर तुम मुझे इतना दो, जिसमें बस मेरा गुजरा चल जाए. मैं खुद भी अपना पेट पाल सकूं और आने वाले मेहमानों को भी भोजन करा सकूं.

जैसे तिल में तेल है, ज्यों चकमक में आग

तेरा साईं तुझ में है, तू जाग सके तो जाग

भावार्थ : जिस तरह तिल में तेल होने और चकमक में आग होने के बावजूद दिखलाई नहीं पड़ता. ठीक उसी तरह ईश्वर को खुद के भीतर खोजने की जरूरत है. बाहर खोजने पर सिर्फ निराशा हाथ लगती है.

हैदराबाद : कबीर महान व्यक्तित्व के धनी थे. वह न हिंदू थे, न मुसलमान. वह सांसारिक होने के बावजूद जाति और धर्म से परे थे. कबीर ने दुनिया को आईना दिखाया है. उन कबीरदास जी की जयंती पांच जून को मनाई जाएगी. कबीर ने समाज में व्याप्त कुरीतियों का जमकर विरोध किया. वह ऐसे व्यक्ति थे, जिन पर हिंदू और मुस्लिम दोनों दावा करते हैं. दुनियाभर के लोग मोक्ष प्राप्ति के लिए काशी जाते हैं, तो कबीर अपने जीवन के अंतिम दिनों में काशी छोड़कर मगहर चले गए. 15वीं शताब्दी के भारतीय रहस्यवादी, कवि और संत कबीर को लोग आज भी आदर के साथ याद करते हैं. कबीर के तमाम दोहे आज भी प्रासंगिक हैं...

कबीर के चर्चित दोहे और उनकी व्याख्या...

दुख में सुमिरन सब करें, सुख में करे न कोय

जो सुख में सुमिरन करे, दुख काहे को होय

भावार्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि दुःख के समय सभी ईश्वर को याद करते हैं, किंतु सुख में कोई नहीं करता। यदि सुख में भी ईश्वर को याद किया जाए, तो दुःख आए ही क्यों)

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलया कोय

जो मन खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय

भावार्थ : जब मैं इस संसार में बुराई खोजने चला तो मुझे कोई बुरा नहीं मिला, लेकिन जब मैंने अपने मन में झांक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई नहीं है.

बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर

पंछी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर

भावार्थ : कबीर कहना चाहते हैं खजूर के पेंड़ की भांति बड़ा होने का क्या लाभ, जो न तो किसी को छाया दे सकता है और नहीं उसके फर आसानी से सुरभ होते हैं.

काल करे सो आज कर, आज करे सो अब

पल में परलय होएगी, बहुरी करोगे कब

भावार्थ : कल का काम आज ही खत्म कर लेना चाहिए और आज का काम अभी. कबीर दास जी कहते हैं कि वक्त का क्या भरोसा है, पल भर में प्रलय हो सकती है.

ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोए

अपना तन शीतल करे, औरन को सुख होए

भावार्थ : हमेशा अपने मन पर नियंत्रण रखकर ऐसी भाषा बोलनी चाहिए जो आप खुद सुकून से दे और दूसरों को भी सुख या खुशी.

धीरे-धीरे रे मन, धीरे सब-कुछ होए

माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होए

भावार्थ : दुनिया में सारी चीजें अपनी रफ्तार से घटती हैं. हड़बड़ाहट से कुछ नहीं होता. माली पूरे साल पौधे को सींचता है और पौधों में समय आने पर ही फल लगते हैं.

साईं इतना दीजिए, जा में कुटुंब समाए

मैं भी भूखा ना रहूं, साधु ना भूखा जाए

भावार्थ : कबीर दस जी कहते हैं कि हे ईश्वर तुम मुझे इतना दो, जिसमें बस मेरा गुजरा चल जाए. मैं खुद भी अपना पेट पाल सकूं और आने वाले मेहमानों को भी भोजन करा सकूं.

जैसे तिल में तेल है, ज्यों चकमक में आग

तेरा साईं तुझ में है, तू जाग सके तो जाग

भावार्थ : जिस तरह तिल में तेल होने और चकमक में आग होने के बावजूद दिखलाई नहीं पड़ता. ठीक उसी तरह ईश्वर को खुद के भीतर खोजने की जरूरत है. बाहर खोजने पर सिर्फ निराशा हाथ लगती है.

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