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हिमाचल प्रदेश : आठ साल के दिव्यांग को नहीं मिल रही सरकारी मदद - आठ साल के दिव्यांग मासूम

मंडी जिले के करसोग क्षेत्र का एक आठ वर्षीय बच्चा सरकारी योजनाओं के लाभ से महरूम है. चलने फिरने से लाचार दिव्यांग मनीष उपमंडल करसोग के पांगणा क्षेत्र की ग्राम पंचायत मशोग का रहने वाला है. मनीष पैदा होने के बाद से ही चलने फिरने में पूरी तरह से असमर्थ है.

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Published : Sep 25, 2020, 9:20 PM IST

शिमला : हिमाचल प्रदेश सरकार दिव्यांगों के उत्थान के लिए कई योजनाएं चला जा रही है. लेकिन, इन योजनाओं के लाभ से करसोग क्षेत्र का एक आठ वर्षीय बच्चा महरूम है. चलने फिरने से लाचार दिव्यांग मनीष उपमंडल करसोग के पांगणा क्षेत्र की मशोग ग्राम पंचायत का रहने वाला है. मनीष पैदा होने के बाद से ही चलने फिरने में पूरी तरह से असमर्थ है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट.

वहीं, अपने दिव्यांग बच्चे को सरकार की योजनाओं का लाभ पहुंचाने के लिए मनीष के माता-पिता दुर्गम क्षेत्र मशोग से वेलफेयर कार्यालय करसोग के सैकड़ों चक्कर लगा चुके हैं, लेकिन आज तक उनके हाथ पूरी तरह से खाली हैं. परिवार ने अपनी जमापूंजी और रिश्तेदारों से पैसे उधार लेकर दिव्यांग के इलाज के लिए खर्च कर दिए हैं. अब इनके पास कुछ भी नहीं बचा है. परिवार को अपने बेटे के जीवन यापन के लिए अब सिर्फ सरकारी योजनाओं पर ही आस टिकी हुई है.

बता दें कि आठ साल का दिव्यांग मनीष दूसरी कक्षा में पढ़ता है. मनीष की तीन बहनें हैं और उनका परिवार अनूसूचित जाति और आईआरडीपी से संबंधित है.

मनीष के पिता नरेश कुमार ने कहा कि उनका लड़का पिछले पांच सालों से बीमार चल रहा है. बच्चे का इलाज नागरिक चिकित्सालय करसोग, सुंदरनगर, आईजीएमसी शिमला और पीजीआई चंडीगढ़ में पिछले 10 महीनों से चल रहा है. उन्होंने कहा कि उनके पास और रिश्तेदारों से उधार लिए गए पैसे भी अब खत्म हो गए हैं. अब उनके पास कुछ भी नहीं रहा है.

नरेश कुमार ने कहा कि उन्हें उनकी पंचायत मशोग या अन्य किसी भी सरकारी संस्थान से कोई भी सुविधा नहीं मिल पाई है. बेटे मनीष की छह महीने की उम्र से टांगें काम नहीं करती हैं. यह बिल्कुल चलने फिरने में असमर्थ है. उनका बेटा 75 प्रतिशत दिव्यांग है.

यह भी पढ़ें- चीन और पाकिस्तान से लड़ने के लिए हम पूरी तरह तैयार : वायुसेना

उन्होंने कहा कि उनके बेटे को विभाग ने कोई भी सुविधा का प्रावधान नहीं किया है और उन्हें विभाग की अनदेखी का सामना करना पड़ रहा है.

दिव्यांगजनों के कानूनी सलाहकार कुशल कुमार सकलानी ने कहा कि मनीष को लेकर स्वास्थ्य विभाग ने दिव्यांगता प्रमाण पत्र भी जारी किया है. उन्होंने कहा कि जन्म से ही चलने फिरने में असमर्थ होने के बावजूद मनीष सरकार से मिलने वाली सभी सुविधाओं से वंचित हैं.

कुशल सकलानी ने जिला चिकित्सा बोर्ड मंडी से मांग की है कि इस दिव्यांग बच्चे को स्थाई दिव्यांगता प्रमाण पत्र प्रदान कर सरकारी सुविधाएं प्राप्त करने के लिए योग्य किया जाए.

मामले को लेकर तहसील वेलफेयर ऑफिसर करसोग भोपाल भारत ने कहा कि सरकारी नियमों के अनुसार अस्थाई दिव्यांगता में बस पास के अलावा कोई और सुविधा दिव्यांगजन को नहीं मिल सकती है. उन्होंने कहा कि मेडिकल बोर्ड से मनीष को स्थाई दिव्यांग प्रमाण पत्र देने पर योजनाओं की सुविधाएं मुहैया करवा दी जाएगी.

शिमला : हिमाचल प्रदेश सरकार दिव्यांगों के उत्थान के लिए कई योजनाएं चला जा रही है. लेकिन, इन योजनाओं के लाभ से करसोग क्षेत्र का एक आठ वर्षीय बच्चा महरूम है. चलने फिरने से लाचार दिव्यांग मनीष उपमंडल करसोग के पांगणा क्षेत्र की मशोग ग्राम पंचायत का रहने वाला है. मनीष पैदा होने के बाद से ही चलने फिरने में पूरी तरह से असमर्थ है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट.

वहीं, अपने दिव्यांग बच्चे को सरकार की योजनाओं का लाभ पहुंचाने के लिए मनीष के माता-पिता दुर्गम क्षेत्र मशोग से वेलफेयर कार्यालय करसोग के सैकड़ों चक्कर लगा चुके हैं, लेकिन आज तक उनके हाथ पूरी तरह से खाली हैं. परिवार ने अपनी जमापूंजी और रिश्तेदारों से पैसे उधार लेकर दिव्यांग के इलाज के लिए खर्च कर दिए हैं. अब इनके पास कुछ भी नहीं बचा है. परिवार को अपने बेटे के जीवन यापन के लिए अब सिर्फ सरकारी योजनाओं पर ही आस टिकी हुई है.

बता दें कि आठ साल का दिव्यांग मनीष दूसरी कक्षा में पढ़ता है. मनीष की तीन बहनें हैं और उनका परिवार अनूसूचित जाति और आईआरडीपी से संबंधित है.

मनीष के पिता नरेश कुमार ने कहा कि उनका लड़का पिछले पांच सालों से बीमार चल रहा है. बच्चे का इलाज नागरिक चिकित्सालय करसोग, सुंदरनगर, आईजीएमसी शिमला और पीजीआई चंडीगढ़ में पिछले 10 महीनों से चल रहा है. उन्होंने कहा कि उनके पास और रिश्तेदारों से उधार लिए गए पैसे भी अब खत्म हो गए हैं. अब उनके पास कुछ भी नहीं रहा है.

नरेश कुमार ने कहा कि उन्हें उनकी पंचायत मशोग या अन्य किसी भी सरकारी संस्थान से कोई भी सुविधा नहीं मिल पाई है. बेटे मनीष की छह महीने की उम्र से टांगें काम नहीं करती हैं. यह बिल्कुल चलने फिरने में असमर्थ है. उनका बेटा 75 प्रतिशत दिव्यांग है.

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उन्होंने कहा कि उनके बेटे को विभाग ने कोई भी सुविधा का प्रावधान नहीं किया है और उन्हें विभाग की अनदेखी का सामना करना पड़ रहा है.

दिव्यांगजनों के कानूनी सलाहकार कुशल कुमार सकलानी ने कहा कि मनीष को लेकर स्वास्थ्य विभाग ने दिव्यांगता प्रमाण पत्र भी जारी किया है. उन्होंने कहा कि जन्म से ही चलने फिरने में असमर्थ होने के बावजूद मनीष सरकार से मिलने वाली सभी सुविधाओं से वंचित हैं.

कुशल सकलानी ने जिला चिकित्सा बोर्ड मंडी से मांग की है कि इस दिव्यांग बच्चे को स्थाई दिव्यांगता प्रमाण पत्र प्रदान कर सरकारी सुविधाएं प्राप्त करने के लिए योग्य किया जाए.

मामले को लेकर तहसील वेलफेयर ऑफिसर करसोग भोपाल भारत ने कहा कि सरकारी नियमों के अनुसार अस्थाई दिव्यांगता में बस पास के अलावा कोई और सुविधा दिव्यांगजन को नहीं मिल सकती है. उन्होंने कहा कि मेडिकल बोर्ड से मनीष को स्थाई दिव्यांग प्रमाण पत्र देने पर योजनाओं की सुविधाएं मुहैया करवा दी जाएगी.

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