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विशेष लेख : कम होते भरोसे की कहानी

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Published : Jan 8, 2020, 8:17 PM IST

लखनऊ शहर के मशहूर टुंडे कबाब, साखावत, रहीम जैसी क़रीब 300 अवधी खाने की दुकानें इन दिनों अजीब स्थिति का सामना रही हैं. उनके कई ख़ानसामे, बैरे और कर्मचारी कई दिनों से ग़ायब हैं. इनमें से ज़्यादातर ऐसे बांग्लादेशी मुसलमान हैं, जो पिछले कई सालो से इन दुकानों पर काम कर रहे हैं.  इनमें से क़रीब 40 को पुलिस ने दिसंबर, 19-20 को लखनऊ में हुई हिंसा के आरोप में गिरफ्तार किया है.

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कॉन्सेप्ट फोटो

जब यह सारे मामले शांत होंगे, तो यह तय है कि यह अपना असर भी दिखायेंगे. उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार, राज्य के कई हिस्सों में मुसलमानों के विरोध को साज़िश करार दे रही है. अंधेरे में हो रही पुलिस जांच अब कई अजीबो ग़रीब कहानियों को जन्म दे रही हैं.

पुलिस के खुफिया तंत्र की पूरी नाकामयाबी को छुपाने के लिये पुलिस विभाग राज्य में सांप्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ने की एक साज़िश को साबित करने पर अपनी सारी उम्मीदें लगाये बैठा है. कई जगहों पर 40-50 नक़ाबपोश गुंडों ने भीड़ में शामिल होकर पत्थरबाज़ी और आगज़नी की घटनाओं को अंजाम दिया. इसी के कारण आख़िरकार राज्य में कई जगह हिंसक घटनाऐं हुई. अब यूपी पुलिस इसी को आधार मानकर साज़िश की थ्योरी को साबित करने में लगी है.

उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक, ओपी सिंह ने गृह मंत्रालय को एक पत्र लिखकर अतिवादी संगठन, पीपल्स फ़्रंट ऑफ इंडिया (पीएसआई) पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की है. उन्होंने यह भी कहा है कि राज्य में हुई हिंसक घटनाओं के पीछे इसी संगठन का हाथ है. पुलिस ने पीएफआई के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष, वसीम अहमद समेत 23 कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया है. पीएफआई के दिल्ली मुख्यालय ने लखनऊ पुलिस के दावों को सिरे से ख़ारिज किया है.

जांचकर्ताओं का दावा है कि, पीएफआई पिछले तीन सालों से उत्तर प्रदेश में सक्रिय है. यह संगठन, बांग्लादेश से आये ग़ैरक़ानूनी लोगों के बीच अपनी जड़ें मज़बूत करने में लगा है. तनाव के समय में हिंसा और अराजकता फैलाने के लिये, पीएफआई ने, लखनऊ, कानपुर, वाराणसी, बिजनौर, मेरठ, अलीगढ़, रामपुर, मुज़फ़्फ़रनगर आदि शहरों में ग़ैरक़ानूनी बांग्लादेशियों के स्लीपर सैल बना रखे हैं. अगर पुलिस के यह दावे सच भी हैं तो यह एक और खुफिया विफलता की तरफ़ इशारा करता है, क्योंकि इससे पहले कभी भी इस संदर्भ में पीएफआई का नाम सामने नहीं आया है.

पुलिस की इस थ्योरी के पीछे सबसे बड़ा कारण है कि, प्रदर्शन के समय इन लोगों ने अपने चेहरों को क्यों ढका था. यह बात कई न्यूज़ चैनलों और सोशल मीडिया के वीडियो में सामने आई है. ज़्यादातर मुस्लिम प्रदर्शनकारियों ने अपने चेहरों को नहीं ढका था, तो इन लोगों में ऐसा क्या ख़ास था? शायद यही कारण है कि गिरफ्तार किये गये ज़्यादातर बांग्लादेशियों पर आईपीसीसी की 14 से ज़्यादा धाराओं में मामले दर्ज किये गये हैं. इनमे, देशद्रोह, हत्या का प्रयास और सार्वजनिक संपत्ति को नुक़सान पहुंचाने के मामले शामिल हैं. लेकिन यह भी सोचने की बात है कि क्या आतंकी विचारधारा वाला कोई शख़्स एक छोटे से शहर की, छोटी सी दुकान में बैरे या रसोईये का काम करेगा?

इसी के साथ ही पुलिस एक और अकल्पनीय कार्यवाही को अंजाम दे रही है. जिन लोगों ने इस विरोध का आयोजन किया और दंगाईयों से, इस दौरान हुए नुक़सान की भरपाई. मुख्यमंत्री योगी के आदेशानुसार, 1300 लोगों को इस संबंध में नोटिस जारी कर, 300 करोड़ के नुक़सान की भरपाई करने को कहा गया है. इन आदेशों के पीछे, 2010 में मायावती सरकार के एक ऐसे आदेश को रखा गया है जिसे जारी तो किया गया था लेकिन लागू नहीं किया गया.

इस सबके बीच, मुस्लिम समुदाय के ख़िलाफ़ पुलिस ज़्यादतियों की शिकायतों पर राज्य की योगी सरकार ज़्यादा तवज्जो नहीं दे रही है. योगी के विरोधियों का कहना है कि, आने वाले 2022 के विधानसभा चुनावों में योगी हिंदू कार्ड खेलेंगे, जिसकी तैयारी उन्होंने शुरू क़र दी है. उनका कहना है कि मौजूदा भगवा धारी मुख्यमंत्री, मुस्लिम समुदाय में बढ़ी भरोसे की कमी को कम करने की तरफ़ ज़्यादा रुझान नहीं रख रहे हैं. और भरोसे की यह कमी फ़िलहाल केंद्र और राज्य, दोनों ही स्तरों पर दिख रही है.

(लेखक - दिलीप अवस्थी)

जब यह सारे मामले शांत होंगे, तो यह तय है कि यह अपना असर भी दिखायेंगे. उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार, राज्य के कई हिस्सों में मुसलमानों के विरोध को साज़िश करार दे रही है. अंधेरे में हो रही पुलिस जांच अब कई अजीबो ग़रीब कहानियों को जन्म दे रही हैं.

पुलिस के खुफिया तंत्र की पूरी नाकामयाबी को छुपाने के लिये पुलिस विभाग राज्य में सांप्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ने की एक साज़िश को साबित करने पर अपनी सारी उम्मीदें लगाये बैठा है. कई जगहों पर 40-50 नक़ाबपोश गुंडों ने भीड़ में शामिल होकर पत्थरबाज़ी और आगज़नी की घटनाओं को अंजाम दिया. इसी के कारण आख़िरकार राज्य में कई जगह हिंसक घटनाऐं हुई. अब यूपी पुलिस इसी को आधार मानकर साज़िश की थ्योरी को साबित करने में लगी है.

उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक, ओपी सिंह ने गृह मंत्रालय को एक पत्र लिखकर अतिवादी संगठन, पीपल्स फ़्रंट ऑफ इंडिया (पीएसआई) पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की है. उन्होंने यह भी कहा है कि राज्य में हुई हिंसक घटनाओं के पीछे इसी संगठन का हाथ है. पुलिस ने पीएफआई के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष, वसीम अहमद समेत 23 कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया है. पीएफआई के दिल्ली मुख्यालय ने लखनऊ पुलिस के दावों को सिरे से ख़ारिज किया है.

जांचकर्ताओं का दावा है कि, पीएफआई पिछले तीन सालों से उत्तर प्रदेश में सक्रिय है. यह संगठन, बांग्लादेश से आये ग़ैरक़ानूनी लोगों के बीच अपनी जड़ें मज़बूत करने में लगा है. तनाव के समय में हिंसा और अराजकता फैलाने के लिये, पीएफआई ने, लखनऊ, कानपुर, वाराणसी, बिजनौर, मेरठ, अलीगढ़, रामपुर, मुज़फ़्फ़रनगर आदि शहरों में ग़ैरक़ानूनी बांग्लादेशियों के स्लीपर सैल बना रखे हैं. अगर पुलिस के यह दावे सच भी हैं तो यह एक और खुफिया विफलता की तरफ़ इशारा करता है, क्योंकि इससे पहले कभी भी इस संदर्भ में पीएफआई का नाम सामने नहीं आया है.

पुलिस की इस थ्योरी के पीछे सबसे बड़ा कारण है कि, प्रदर्शन के समय इन लोगों ने अपने चेहरों को क्यों ढका था. यह बात कई न्यूज़ चैनलों और सोशल मीडिया के वीडियो में सामने आई है. ज़्यादातर मुस्लिम प्रदर्शनकारियों ने अपने चेहरों को नहीं ढका था, तो इन लोगों में ऐसा क्या ख़ास था? शायद यही कारण है कि गिरफ्तार किये गये ज़्यादातर बांग्लादेशियों पर आईपीसीसी की 14 से ज़्यादा धाराओं में मामले दर्ज किये गये हैं. इनमे, देशद्रोह, हत्या का प्रयास और सार्वजनिक संपत्ति को नुक़सान पहुंचाने के मामले शामिल हैं. लेकिन यह भी सोचने की बात है कि क्या आतंकी विचारधारा वाला कोई शख़्स एक छोटे से शहर की, छोटी सी दुकान में बैरे या रसोईये का काम करेगा?

इसी के साथ ही पुलिस एक और अकल्पनीय कार्यवाही को अंजाम दे रही है. जिन लोगों ने इस विरोध का आयोजन किया और दंगाईयों से, इस दौरान हुए नुक़सान की भरपाई. मुख्यमंत्री योगी के आदेशानुसार, 1300 लोगों को इस संबंध में नोटिस जारी कर, 300 करोड़ के नुक़सान की भरपाई करने को कहा गया है. इन आदेशों के पीछे, 2010 में मायावती सरकार के एक ऐसे आदेश को रखा गया है जिसे जारी तो किया गया था लेकिन लागू नहीं किया गया.

इस सबके बीच, मुस्लिम समुदाय के ख़िलाफ़ पुलिस ज़्यादतियों की शिकायतों पर राज्य की योगी सरकार ज़्यादा तवज्जो नहीं दे रही है. योगी के विरोधियों का कहना है कि, आने वाले 2022 के विधानसभा चुनावों में योगी हिंदू कार्ड खेलेंगे, जिसकी तैयारी उन्होंने शुरू क़र दी है. उनका कहना है कि मौजूदा भगवा धारी मुख्यमंत्री, मुस्लिम समुदाय में बढ़ी भरोसे की कमी को कम करने की तरफ़ ज़्यादा रुझान नहीं रख रहे हैं. और भरोसे की यह कमी फ़िलहाल केंद्र और राज्य, दोनों ही स्तरों पर दिख रही है.

(लेखक - दिलीप अवस्थी)

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विशेष लेख : कम होते भरोसे की कहानी

लखनऊ शहर के मशहूर टुंडे कबाब, साखावत, रहीम जैसी क़रीब 300 अवधी खाने की दुकानें इन दिनों अजीब स्थिति का सामना रही हैं. उनके कई ख़ानसामे, बैरे और कर्मचारी कई दिनों से ग़ायब हैं. इनमें से ज़्यादातर ऐसे बांग्लादेशी मुसलमान हैं, जो पिछले कई सालो से इन दुकानों पर काम कर रहे हैं.  इनमें से क़रीब 40 को पुलिस ने दिसंबर, 19-20 को लखनऊ में हुई हिंसा के आरोप में गिरफ्तार किया है. 



जब यह सारे मामले शांत होंगे, तो यह तय है कि यह अपना असर भी दिखायेंगे. उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार, राज्य के कई हिस्सों में मुसलमानों के विरोध को साज़िश करार दे रही है. अंधेरे में हो रही पुलिस जांच अब कई अजीबो ग़रीब कहानियों को जन्म दे रही हैं.    



पुलिस के खुफिया तंत्र की पूरी नाकामयाबी को छुपाने के लिये पुलिस विभाग राज्य में सांप्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ने की एक साज़िश को साबित करने पर अपनी सारी उम्मीदें लगाये बैठा है. कई जगहों पर 40-50 नक़ाबपोश गुंडों ने भीड़ में शामिल होकर पत्थरबाज़ी और आगज़नी की घटनाओं को अंजाम दिया. इसी के कारण आख़िरकार राज्य में कई जगह हिंसक घटनाऐं हुई. अब यूपी पुलिस इसी को आधार मानकर साज़िश की थ्योरी को साबित करने में लगी है. 



उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक, ओपी सिंह ने गृह मंत्रालय को एक पत्र लिखकर अतिवादी संगठन, पीपल्स फ़्रंट ऑफ इंडिया (पीएसआई) पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की है. उन्होंने यह भी कहा है कि राज्य में हुई हिंसक घटनाओं के पीछे इसी संगठन का हाथ है. पुलिस ने पीएफआई के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष, वसीम अहमद समेत 23 कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया है. पीएफआई के दिल्ली मुख्यालय ने लखनऊ पुलिस के दावों को सिरे से ख़ारिज किया है. 

जांचकर्ताओं का दावा है कि, पीएफआई पिछले तीन सालों से उत्तर प्रदेश में सक्रिय है. यह संगठन, बांग्लादेश से आये ग़ैरक़ानूनी लोगों के बीच अपनी जड़ें मज़बूत करने में लगा है. तनाव के समय में हिंसा और अराजकता फैलाने के लिये, पीएफआई ने, लखनऊ, कानपुर, वाराणसी, बिजनौर, मेरठ, अलीगढ़, रामपुर, मुज़फ़्फ़रनगर आदि शहरों में ग़ैरक़ानूनी बांग्लादेशियों के स्लीपर सैल बना रखे हैं. अगर पुलिस के यह दावे सच भी हैं तो यह एक और खुफिया विफलता की तरफ़ इशारा करता है, क्योंकि इससे पहले कभी भी इस संदर्भ में पीएफआई का नाम सामने नहीं आया है.   



पुलिस की इस थ्योरी के पीछे सबसे बड़ा कारण है कि, प्रदर्शन के समय इन लोगों ने अपने चेहरों को क्यों ढका था. यह बात कई न्यूज़ चैनलों और सोशल मीडिया के वीडियो में सामने आई है. ज़्यादातर मुस्लिम प्रदर्शनकारियों ने अपने चेहरों को नहीं ढका था, तो इन लोगों में ऐसा क्या ख़ास था? शायद यही कारण है कि गिरफ्तार किये गये ज़्यादातर बांग्लादेशियों पर आईपीसीसी की 14 से ज़्यादा धाराओं में मामले दर्ज किये गये हैं. इनमे, देशद्रोह, हत्या का प्रयास और सार्वजनिक संपत्ति को नुक़सान पहुंचाने के मामले शामिल हैं.  लेकिन यह भी सोचने की बात है कि क्या आतंकी विचारधारा वाला कोई शख़्स एक छोटे से शहर की, छोटी सी दुकान में बैरे या रसोईये का काम करेगा?



इसी के साथ ही पुलिस एक और अकल्पनीय कार्यवाही को अंजाम दे रही है. जिन लोगों ने इस विरोध का आयोजन किया और दंगाईयों से, इस दौरान हुए नुक़सान की भरपाई. मुख्यमंत्री योगी के आदेशानुसार, 1300 लोगों को इस संबंध में नोटिस जारी कर, 300 करोड़ के नुक़सान की भरपाई करने को कहा गया है. इन आदेशों के पीछे, 2010 में मायावती सरकार के एक ऐसे आदेश को रखा गया है जिसे जारी तो किया गया था लेकिन लागू नहीं किया गया. 



इस सबके बीच, मुस्लिम समुदाय के ख़िलाफ़ पुलिस ज़्यादतियों की शिकायतों पर राज्य की योगी सरकार ज़्यादा तवज्जो नहीं दे रही है. योगी के विरोधियों का कहना है कि, आने वाले 2022 के विधानसभा चुनावों में योगी हिंदू कार्ड खेलेंगे, जिसकी तैयारी उन्होंने शुरू क़र दी है. उनका कहना है कि मौजूदा भगवा धारी मुख्यमंत्री, मुस्लिम समुदाय में बढ़ी भरोसे की कमी को कम करने की तरफ़ ज़्यादा रुझान नहीं रख रहे हैं. और भरोसे की यह कमी फ़िलहाल केंद्र और राज्य, दोनों ही स्तरों पर दिख रही है. 

(लेखक - दिलीप अवस्थी) 


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