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देव क्यारा बुग्याल : पर्यटकों को लुभाती है यहां की प्राकृतिक छटा

उत्तराखंड के देव क्यारा बुग्याल के लिए मोरी विकासखंड के जखोल गांव से लगभग 27 किलोमीटर का ट्रैक ओबरा नदी के किनारे-किनारे होते हुए पूरा किया जाता है. देव क्यारा बुग्याल लगभग 6000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. यह बुग्याल तीन ओर से बर्फ और ग्लेशियरों से घिरा है.

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देव क्यारा बुग्याल
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Published : Jul 20, 2020, 7:25 PM IST

Updated : Jul 20, 2020, 8:01 PM IST

देहरादून : उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में प्रकृति ने अपनी अद्भुत छटा बिखेर रखी है. यहां के हरे मखमली घास के मैदानों की दुनिया किसी स्वप्नलोक से कम नहीं लगती. आमतौर पर 8 से 10 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित ये बुग्याल किसी अलग ही दुनिया का एहसास कराते हैं. उत्तरकाशी के मोरी विकासखंड में मौजूद देव क्यारा बुग्याल भी इन्हीं में से एक है, जिसे प्रकृति ने अपने हाथों से संवारा है. इसकी खूबसूरती का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है कि उत्तराखंड सरकार ने इसे 'ट्रैक ऑफ द ईयर- 2019' के खिताब से नवाजा है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट.

देव क्यारा बुग्याल के लिए मोरी विकासखंड के जखोल गांव से लगभग 27 किलोमीटर का ट्रैक ओबरा नदी के किनारे-किनारे होते हुए पूरा किया जाता है. इसके रास्ते में प्रकृति के साथ मातृ देवी के दर्शन करते हुए यात्री आगे बढ़ते रहते हैं. इन्हीं सुंदर जंगलों में भेड़, बकरी पालक अपने मवेशियों के साथ रहते हैं. इस ट्रैक के रूट में कई प्रकार के औषधीय पादप, बांज, बुरांस, भोजपत्र, थूनेर, देवदार आदि के मिश्रित जंगल पाए जाते हैं.

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देव क्यारा बुग्याल में मातृ देवी के दर्शन करते यात्री.

इन बुग्यालों में अनेकों प्रकार के औषधीय पौधों की भरमार है. यहां संजीवनी बूटी से लेकर कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियों को मात देने वाले जड़ी बूटियां मौजूद हैं. यहां के लोगों को ही इन जड़ी बूटियों की पहचान होती है.

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देव क्यारा बुग्याल में औषधीय पादप.

प्राकृतिक छटाओं का आंनद लेते-लेते कब यात्री बुग्याल क्षेत्र में पहुंच जाते हैं, पता ही नहीं चलता. इस तरह के बुग्याल ट्रैक पर जाते हुए जलवा लकड़ियों को भी साथ ले कर जाना पड़ता है. देव क्यारा बुग्याल लगभग 6000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है.

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देव क्यारा बुग्याल पर ट्रैकर.

यह बुग्याल तीन ओर से बर्फ और ग्लेशियरों से घिरा है. इसके नीचे हरे घास का मैदान है जो लगभग चार से पांच किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है. इस हरी घास के मैदान को ही बुग्याल कहा जाता है. इस पूरे क्षेत्र में मखमली घास उगी हुई है, जिसे स्थानीय भेड़ पालक अपने मवेशियों को खिलाते हैं.

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देव क्यारा बुग्याल के ट्रैक पर भेड़पालक.

सामरिक दृष्टि से भी यह क्षेत्र बहुत महत्वपूर्ण है. यहां से कुछ ही दूरी पर चीन की सीमा शुरू हो जाती है. जानकारों की मानें तो इस क्षेत्र के बड़े-बड़े ग्लेशियर और ऊंची चोटियों की वजह से बॉर्डर एरिया तक पहुंचना बहुत ही मुश्किल होता है. यही कारण है कि यहां सैनिक चौकियां भी नहीं दिखाई देती हैं. कहा जाता है कि पर्वतराज हिमालय खुद इस क्षेत्र की निगरानी करते हैं.

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यहां से शुरू होती है देव क्यारा बुग्याल यात्रा.

यह भी पढ़ें- 'प्लग एंड प्ले' स्थिति में उड़ान भरने के लिए तैनात होंगे राफेल विमान

क्या होते हैं बुग्याल
उत्तराखंड के हिमशिखरों की तलहटी में जहां टिम्बर लाइन (यानी पेड़ों की पंक्तियां) समाप्त हो जाती हैं, वहां से हरे मखमली घास के मैदान शुरू होते हैं. आमतौर पर ये 8 से 10 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित होते हैं. गढ़वाल हिमालय में इन मैदानों को बुग्याल कहा जाता है.

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देव क्यारा बुग्याल के हरे घसियाले मैदान.

बुग्याल हिम रेखा और वृक्ष रेखा के बीच का क्षेत्र होता है. स्थानीय लोगों और मवेशियों के लिए ये चरागाह का काम करते हैं. बंजारों, घुमन्तुओं और ट्रैकिंग के शौकीनों के लिए ये बुग्याल आराम की जगह व कैम्पसाइट का काम करते हैं. गर्मियों की मखमली घास पर सर्दियों में जब बर्फ की सफेद चादर बिछ जाती है तो ये बुग्याल स्कीइंग और अन्य बर्फानी खेलों का अड्डा बन जाते हैं. गढ़वाल के लगभग हर ट्रैकिंग रूट पर इस प्रकार के बुग्याल मिल जाते हैं.

देहरादून : उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में प्रकृति ने अपनी अद्भुत छटा बिखेर रखी है. यहां के हरे मखमली घास के मैदानों की दुनिया किसी स्वप्नलोक से कम नहीं लगती. आमतौर पर 8 से 10 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित ये बुग्याल किसी अलग ही दुनिया का एहसास कराते हैं. उत्तरकाशी के मोरी विकासखंड में मौजूद देव क्यारा बुग्याल भी इन्हीं में से एक है, जिसे प्रकृति ने अपने हाथों से संवारा है. इसकी खूबसूरती का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है कि उत्तराखंड सरकार ने इसे 'ट्रैक ऑफ द ईयर- 2019' के खिताब से नवाजा है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट.

देव क्यारा बुग्याल के लिए मोरी विकासखंड के जखोल गांव से लगभग 27 किलोमीटर का ट्रैक ओबरा नदी के किनारे-किनारे होते हुए पूरा किया जाता है. इसके रास्ते में प्रकृति के साथ मातृ देवी के दर्शन करते हुए यात्री आगे बढ़ते रहते हैं. इन्हीं सुंदर जंगलों में भेड़, बकरी पालक अपने मवेशियों के साथ रहते हैं. इस ट्रैक के रूट में कई प्रकार के औषधीय पादप, बांज, बुरांस, भोजपत्र, थूनेर, देवदार आदि के मिश्रित जंगल पाए जाते हैं.

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देव क्यारा बुग्याल में मातृ देवी के दर्शन करते यात्री.

इन बुग्यालों में अनेकों प्रकार के औषधीय पौधों की भरमार है. यहां संजीवनी बूटी से लेकर कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियों को मात देने वाले जड़ी बूटियां मौजूद हैं. यहां के लोगों को ही इन जड़ी बूटियों की पहचान होती है.

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देव क्यारा बुग्याल में औषधीय पादप.

प्राकृतिक छटाओं का आंनद लेते-लेते कब यात्री बुग्याल क्षेत्र में पहुंच जाते हैं, पता ही नहीं चलता. इस तरह के बुग्याल ट्रैक पर जाते हुए जलवा लकड़ियों को भी साथ ले कर जाना पड़ता है. देव क्यारा बुग्याल लगभग 6000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है.

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देव क्यारा बुग्याल पर ट्रैकर.

यह बुग्याल तीन ओर से बर्फ और ग्लेशियरों से घिरा है. इसके नीचे हरे घास का मैदान है जो लगभग चार से पांच किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है. इस हरी घास के मैदान को ही बुग्याल कहा जाता है. इस पूरे क्षेत्र में मखमली घास उगी हुई है, जिसे स्थानीय भेड़ पालक अपने मवेशियों को खिलाते हैं.

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देव क्यारा बुग्याल के ट्रैक पर भेड़पालक.

सामरिक दृष्टि से भी यह क्षेत्र बहुत महत्वपूर्ण है. यहां से कुछ ही दूरी पर चीन की सीमा शुरू हो जाती है. जानकारों की मानें तो इस क्षेत्र के बड़े-बड़े ग्लेशियर और ऊंची चोटियों की वजह से बॉर्डर एरिया तक पहुंचना बहुत ही मुश्किल होता है. यही कारण है कि यहां सैनिक चौकियां भी नहीं दिखाई देती हैं. कहा जाता है कि पर्वतराज हिमालय खुद इस क्षेत्र की निगरानी करते हैं.

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यहां से शुरू होती है देव क्यारा बुग्याल यात्रा.

यह भी पढ़ें- 'प्लग एंड प्ले' स्थिति में उड़ान भरने के लिए तैनात होंगे राफेल विमान

क्या होते हैं बुग्याल
उत्तराखंड के हिमशिखरों की तलहटी में जहां टिम्बर लाइन (यानी पेड़ों की पंक्तियां) समाप्त हो जाती हैं, वहां से हरे मखमली घास के मैदान शुरू होते हैं. आमतौर पर ये 8 से 10 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित होते हैं. गढ़वाल हिमालय में इन मैदानों को बुग्याल कहा जाता है.

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देव क्यारा बुग्याल के हरे घसियाले मैदान.

बुग्याल हिम रेखा और वृक्ष रेखा के बीच का क्षेत्र होता है. स्थानीय लोगों और मवेशियों के लिए ये चरागाह का काम करते हैं. बंजारों, घुमन्तुओं और ट्रैकिंग के शौकीनों के लिए ये बुग्याल आराम की जगह व कैम्पसाइट का काम करते हैं. गर्मियों की मखमली घास पर सर्दियों में जब बर्फ की सफेद चादर बिछ जाती है तो ये बुग्याल स्कीइंग और अन्य बर्फानी खेलों का अड्डा बन जाते हैं. गढ़वाल के लगभग हर ट्रैकिंग रूट पर इस प्रकार के बुग्याल मिल जाते हैं.

Last Updated : Jul 20, 2020, 8:01 PM IST
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