श्रीनगर : कोरोना महामारी के कारण जम्मू-कश्मीर में धार्मिक गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाया गया है. दूसरी ओर, कश्मीरी नोहा लेखक और गायक जीशान जयपुरी अपने मर्सिया और नोहा के सभी नए संस्करणों के साथ तैयार हैं.
शिया समुदाय द्वारा पैगम्बर मोहम्मद साहब के नाती हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद में विलाप करने को नोहा कहा जाता है. मर्सिया और नोहा में अरबी और फारसी संस्कृति का ऐतिहासिक व सामाजिक परिवेश है. मर्सिया के उप-भागों को नोहा और सोज़ कहा जाता है जिसका अर्थ है विलाप.
नोहा आम तौर पर शोक कविता है. जिसे शिया समुदाय के अनुयायियों द्वारा मुहर्रम के अवसर पर पढ़ा जाता है. बता दें कि मुहर्रम, हिजरी कैलेंडर का पहला महीना है और इस महीने की 10 तारीख को हजरत हुसैन और उनके परिवार को कर्बला की जंग में शहीद कर दिया गया था.
श्रीनगर के हसनाबाद क्षेत्र के 25 वर्षीय युवा नोह लेखक कहते हैं कि इसे फारसी और उर्दू सहित कई भाषाओं में लिखा गया है. नोहा लिखने के लिए कोई नियम नहीं है क्योंकि हमें एक लय का पालन करना है.
वह आगे कहते हैं, 'कविता के अन्य रूपों की तुलना में नोह पर ज्यादा काम नहीं किया गया है. मुझे लगता है कि इसका एक कारण यह हो सकता है कि नोहा का नियम नहीं है, लेकिन ताल है. हजारों सालों से नोहा लिखा और पढ़ा जा रहा है. मुझे लगता है कि कर्बला की लड़ाई में हर मुद्दे का हल निहित है. हर साल नोहा लिखा जा रहा है. इस तरह की कविता की सुंदरता है. हर नोहा एक नई कहानी बयां करता है.'
जीशान जयपुरी का मानना है कि इसमें कोई शक नहीं कि नोहा का फोकस हमेशा कर्बला रहा है. लेकिन दिन बीतने के साथ-साथ यह विकसित हो रहा है. जैसे-जैसे समाज आगे बढ़ रहा है, यह विकसित हो रहा है. इस साल भी हमने कई नोहा लिखे हैं और मजलिसों के दौरान प्रस्तुत किया है. महामारी ने प्रस्तुतियों को जरूर कम किया है, लेकिन जनता के बीच हमारे उत्साह को नहीं.
कश्मीर के बारे में बात करते हुए जयपुरी कहते हैं, 'यहां नोहा लेखकों की कोई कमी नहीं है. मेरे दोस्त कश्मीरी और उर्दू में भी लिखते हैं. नोहा की सुंदरता देखिए कि यह कर्बला की लड़ाई पर आधारित है और उस लड़ाई में हर मुद्दे का समाधान था. परिवार व राजनीतिक से लेकर सामाजिक मुद्दों तक, मैं कह सकता हूं कि नोहा सभी मुद्दों के लिए कर्बला से निकाली गई दवा है.'
उन्होंने कहा, 'नोहा लिखना एक जघन्य कार्य नहीं है. आपको यह ध्यान में रखते हुए लिखना होगा कि आप पैगम्बर मोहम्मद साहब के नवासे (नाती) के बारे में लिख रहे हैं. अपनी समझ से नहीं बल्कि दिमाग में आध्यात्मिकता और शिष्टता के साथ सोचें.'