आगरा: 70 के दशक में पंचम सिंह चौहान ने बीहड़ में 14 साल तक अपनी सत्ता चलाई. एक समय था जब तीन राज्यों के 25 जिलों में उनका एक छत्र राज्य था. सरकार ने उन पर एक करोड़ से ज्यादा का इनाम रखा था. डाकू से योगी बने पंचम सिंह चौहान से ईटीवी भारत ने खास बातचीत की और अपने बारे में बताया.
यूं बने थे पंचम सिंह चौहान डकैत
पंचम सिंह चौहान का जन्म सन 1922 में एमपी के भिण्ड जिले के सिंहपुरा में हुआ था. चौथी कक्षा तक पढ़े पंचम सिंह कहते हैं कि सिर्फ 14 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई. कोई जान-बूझकर डकैत नहीं बनता हैं, परिस्थितियां उसे मजबूर कर देती हैं.
सन 1958 में ग्राम पंचायत के चुनाव में गांव में दो पार्टी बन गईं. दूसरी पार्टी ने चुनावी रंजिश में उन्हें इतना पीटा कि पिता जी उन्हें बैलगाड़ी से हॉस्पिटल ले गए. 20 दिन तक इलाज चला. अस्पताल से जब घर आए तो फिर उनके और पिता से साथ मारपीट की. बदला लेने के लिए वह बीहड़ में डकैतों से जाकर मिल गए.
एक दिन 12 डकैत साथियों के साथ पंचम सिंह ने गांव पहुंचकर छह लोगों की हत्या कर दी और बीहड़ के डाकू बन गए. वह पहले डाकू मान सिंह बाबा, डकैत मोहरसिंह, डकैत माधोसिंह, डकैत सरयू मुखिया के साथ रहे फिर उन्होंने अपना गिरोह बना लिया.
556 डाकुओं ने किया था सरेंडर
पंचम सिंह बताते हैं कि बात सन 1972 की है. लोकनायक जय प्रकाश नारायण और गांधीवादी समाजसेवी डॉ. सुब्बाराम हमसे मिले. उन्होंने कहा कि सरेंडर कर दें. सरकार मदद करेगी. इस पर हम 500 डाकुओं ने बीहड़ में पंचायत की. प्रस्ताव रखा गया कि भारत सरकार आठ शर्ते मानेगी तो हम सरेंडर कर देंगे. इसमें शामिल था कि सरकार किसी भी डाकू को फांसी नहीं देगी. उन्हें परिवार के साथ रखा जाए. खुली जेल में रखा जाए. सरकार हमें जमीन दे.
इसके बाद एमपी में गांधीसेवा आश्रम जोरा में सीएम प्रकाश चंद सेठी, लोकनायक जय प्रकाश नारायण और अन्य लोगों के सामने एक साथ 556 डाकुओं ने सरेंडर किया था. इसमें डकैत मानसिंह का गिरोह, डकैत मोहरसिंह, डकैत माधोसिंह, डकैत सरयू मुखिया का गिरोह और सबसे बडे 200 डाकुओं के गिरोह के सरदार डाकू पंचम सिंह चौहान शामिल थे.
1972 में घोषित हुआ था एक करोड़ का इनाम
खूंखार डाकू पंचम सिंह के खिलाफ 100 से ज्यादा हत्या के मुकदमे, 200 से ज्यादा अपहरण, डकैती, लूट और अन्य मामले दर्ज थे. यूपी, एमपी और राजस्थान की ओर से सन 1970 में डाकू पंचमसिंह चौहान पर एक करोड़ का इनाम घोषित किया था.
यूं बने खूंखार पंचम सिंह चौहान
100 से ज्यादा हत्याओं का आरोप होने पर डाकू पंचम सिंह, भोर सिंह और माधौ सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई. तब डॉ सुब्बाराव ने राष्ट्रपति से मिलकर आजीवन कारावास में उनकी सजा परिवर्तित कराई. इसके बाद मुंगावली की खुली जेल में वह रहे. इस जेल में ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की मुख्य संचालिका दादी प्रकाश के उपदेश और शिक्षा से प्रेरित होकर पंचमसिंह संत बन गए. सन 1980 में जब जेल से बाहर आए तो दो साल बाद ब्रह्मकुमारी आश्रम में आठ साल रहे. अब स्कूल, कॉलेज और जेलों में जाकर प्रवचन देते हैं.
कड़े होते हैं डाकुओं के नियम
पंचम सिंह ने बताया कि डाकुओं के कड़े निमय होते हैं. बिना प्रशासन के राज भी नहीं चलता है. डाकुओं में एकता होती है. एकता की शक्ति महान होती है. आज जो भ्रष्टाचार फैला हुआ है वह डाकुओं के समय पर नहीं था. डाकू अमीरों से लेकर गरीबों को देते हैं. डाकू चरित्रवान होते हैं.
मेरे गिरोह में शामिल एक साथी उस समय किसान की बेटी के साथ अन्याय कर आया था. बाद में किसान आया और रोने लगा. मैंने अपने साथी की बंदकू ली और उसे पेड़ से बांधकर जिंदा जला दिया. इसके बाद घोषणा की, कि जो ऐसा करेगा, वो ऐसा ही भरेगा, उसे यह दंड मिलेगा.
नोटों पर सोते थे, मगर नहीं मिलता था सुकून
पंचम सिंह कहते हैं कि 25 जिलों में हमारा राज हुआ करता था. सरकार भी हमीं बनाते थे. नोटों पर सोते थे, मगर डर था शांति नहीं थी. पुलिस ने मकान जला दिया. परिवार को परेशान करते थे, पिटाई करते थे. इससे शांति नहीं मिलती थी. जब तक मनुष्य के अंदर अशक्तियां रहती हैं, इच्छाएं रहती हैं, आशाएं रहती हैं. तब तक परमात्मा से मिलन नहीं होता है. सबसे बड़ी शत्रु काम विकार है. काम वासना की अग्नि है. उन्होंने बताया कि उनके दो बेटे हैं और एक बेटी है. एक लड़का गायत्री परिवार से जुड़ा है. डाकू पंचम सिंह का पूरा परिवार आध्यात्मिक जीवन जी रहा है.