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कोरोना संक्रमित मधुमेह रोगियों के इलाज में है दोहरी चुनौती - आईसीयू पर मधुमेह रोगी

कोरोना वायरस से दुनियाभर में लाखों लोगों की मौत हो चुकी है. हाल में हो रहे शोध में पता चला है कि मधुमेह संक्रमितों में कोरोना वायरस महामारी से खतरा दो गुना बढ़ जाता है. हालांकि की कुछ तरिकों से इस जोखिम को कम जरूर किया जा सकता है. पढ़ें विस्तार से...

diabetic patients at greater risk
सांकेतिक चित्र
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Published : Jun 8, 2020, 10:17 PM IST

हैदराबाद : कोरोना वायरस महामारी हर दिन बढ़ते मामलों और मृतकों की संख्या के दुनियाभर में कहर बरपा रही है. कोरोना से 50 वर्ष से ऊपर के लोगों और फेफड़े की बीमारी, अस्थमा, हृदय रोग, गंभीर मोटापा, मधुमेह, क्किडनी रोग, यकृत रोग आदि से पहले से ही पड़ित होने वालों पर संक्रमण का खतरा ज्यादा रहता है.

कोरना संक्रमण मधुमेह के रोगियों के लिए दोगुना खतरा वाला है. मधुमेह रोग की गंभीरता के कारण कोरोना से जोखिम बढ़ जाता है.

जब मधुमेह के रोगी कोरोना वायरस से संक्रमित हो जाते हैं तो रक्त में ग्लूकोज के स्तर में उतार-चढ़ाव होता है. मधुमेह से जुड़ी जटिलताओं के कारण इलाज करना कठिन हो सकता है.

कोरोना संक्रमित मधुमेह रोगियों की प्रतिरक्षा प्रणाली आम तौर पर कमजोर होती है, जिससे वायरस से लड़ना मुश्किल हो जाता है. साथ ही ज्यादा ग्लूकोज लेवल वायरस को पनपने में मदद करता है.

एंडोक्राइन सोसाइटी के जर्नल ऑफ क्लिनिकल एंडोक्रिनोलॉजी मेटाबॉलिज्म में प्रकाशित नए लेख के अनुसार, मधुमेह से पीड़ित रोगियों की देखभाल करने वाले स्वास्थ्य कर्मियों को कई नई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.

कोविड-19 और मधुमेह के रोगियों में जटिलताओं और मृत्यु के जोखिम को कम करने के लिए जटिल चिकित्सा प्रबंधन के अलावा ग्लूकोज-लोइंग थेरेपी यानी खून में ग्लूकोज की मात्रा कम करने वाली थेरेपी की आवश्यकता होती है.

हालांकि, उपयुक्त ग्लाइसेमिक प्रबंधन में बेडसाइड ग्लूकोज मॉनिटरिंग और इंसुलिन संतुलन शामिल है. इसमें स्वास्थ्य कर्मियों को रोगियों के पास रहकर काम करना पड़ता है. इससे स्वास्थ्य कर्मियों के लिए जोखिम बढ़ जाता है.

प्रमुख लेखक मैरी टी कोरिटकोव्स्की, एमडी, पिट्सबर्ग विश्वविद्यालय स्कूल ऑफ मेडिसिन के अनुसार इस लेख से स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को कोरोना संक्रमित मधूमेह मरीजों या जिनके खून में ग्लूकोज का स्तर बढ़ा हुआ है उनके उपचार में मदद मिलेगी.

हालांकि, ग्लाइसेमिक प्रबंधन से मरीज के सेहत में सुधार आता है लेकिन इससे चिकित्सा कर्मी के मरीज के सीधे संपर्क में आने की अवधि और कोरोना संमक्रमित होने का खतरा बढ़ जाता है.

स्वास्थ्यकर्मी कोरोना संक्रमण का खतरा कम करने के लिए नसों में इंसुलिन इनफ्यूजन को सीमित कर सकते हैं. ग्लूकोज का स्तर नापने के लिए उपकरणों का इस्तेमाल किया जा सकता है. यदि संभव हो तो गैर-इंसुलिन उपचारों का उपयोग करना चाहिए.

जानकार और सक्षम रोगियों द्वारा उनके मधुमेह के स्तर के आत्मप्रबंधन से डॉक्टर और मरीज के बीच में सीधे संपर्क को कम किया जा सकता है.

स्वास्थ्य कर्मियों को पता होना चाहिए कि कोविड-19 रोगियों के उपचार में इस्तेमाल की जाने वाली कुछ दवाएं, जिनमें ग्लूकोकार्टीकोइड्स और हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन शामिल हैं वह रक्त में ग्लूकोज के स्तर को प्रभावित कर सकती हैं.

पढ़ें-रक्त के नमूनों से कोरोना संक्रमण की गंभीरता का चलेगा पता

हैदराबाद : कोरोना वायरस महामारी हर दिन बढ़ते मामलों और मृतकों की संख्या के दुनियाभर में कहर बरपा रही है. कोरोना से 50 वर्ष से ऊपर के लोगों और फेफड़े की बीमारी, अस्थमा, हृदय रोग, गंभीर मोटापा, मधुमेह, क्किडनी रोग, यकृत रोग आदि से पहले से ही पड़ित होने वालों पर संक्रमण का खतरा ज्यादा रहता है.

कोरना संक्रमण मधुमेह के रोगियों के लिए दोगुना खतरा वाला है. मधुमेह रोग की गंभीरता के कारण कोरोना से जोखिम बढ़ जाता है.

जब मधुमेह के रोगी कोरोना वायरस से संक्रमित हो जाते हैं तो रक्त में ग्लूकोज के स्तर में उतार-चढ़ाव होता है. मधुमेह से जुड़ी जटिलताओं के कारण इलाज करना कठिन हो सकता है.

कोरोना संक्रमित मधुमेह रोगियों की प्रतिरक्षा प्रणाली आम तौर पर कमजोर होती है, जिससे वायरस से लड़ना मुश्किल हो जाता है. साथ ही ज्यादा ग्लूकोज लेवल वायरस को पनपने में मदद करता है.

एंडोक्राइन सोसाइटी के जर्नल ऑफ क्लिनिकल एंडोक्रिनोलॉजी मेटाबॉलिज्म में प्रकाशित नए लेख के अनुसार, मधुमेह से पीड़ित रोगियों की देखभाल करने वाले स्वास्थ्य कर्मियों को कई नई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.

कोविड-19 और मधुमेह के रोगियों में जटिलताओं और मृत्यु के जोखिम को कम करने के लिए जटिल चिकित्सा प्रबंधन के अलावा ग्लूकोज-लोइंग थेरेपी यानी खून में ग्लूकोज की मात्रा कम करने वाली थेरेपी की आवश्यकता होती है.

हालांकि, उपयुक्त ग्लाइसेमिक प्रबंधन में बेडसाइड ग्लूकोज मॉनिटरिंग और इंसुलिन संतुलन शामिल है. इसमें स्वास्थ्य कर्मियों को रोगियों के पास रहकर काम करना पड़ता है. इससे स्वास्थ्य कर्मियों के लिए जोखिम बढ़ जाता है.

प्रमुख लेखक मैरी टी कोरिटकोव्स्की, एमडी, पिट्सबर्ग विश्वविद्यालय स्कूल ऑफ मेडिसिन के अनुसार इस लेख से स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को कोरोना संक्रमित मधूमेह मरीजों या जिनके खून में ग्लूकोज का स्तर बढ़ा हुआ है उनके उपचार में मदद मिलेगी.

हालांकि, ग्लाइसेमिक प्रबंधन से मरीज के सेहत में सुधार आता है लेकिन इससे चिकित्सा कर्मी के मरीज के सीधे संपर्क में आने की अवधि और कोरोना संमक्रमित होने का खतरा बढ़ जाता है.

स्वास्थ्यकर्मी कोरोना संक्रमण का खतरा कम करने के लिए नसों में इंसुलिन इनफ्यूजन को सीमित कर सकते हैं. ग्लूकोज का स्तर नापने के लिए उपकरणों का इस्तेमाल किया जा सकता है. यदि संभव हो तो गैर-इंसुलिन उपचारों का उपयोग करना चाहिए.

जानकार और सक्षम रोगियों द्वारा उनके मधुमेह के स्तर के आत्मप्रबंधन से डॉक्टर और मरीज के बीच में सीधे संपर्क को कम किया जा सकता है.

स्वास्थ्य कर्मियों को पता होना चाहिए कि कोविड-19 रोगियों के उपचार में इस्तेमाल की जाने वाली कुछ दवाएं, जिनमें ग्लूकोकार्टीकोइड्स और हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन शामिल हैं वह रक्त में ग्लूकोज के स्तर को प्रभावित कर सकती हैं.

पढ़ें-रक्त के नमूनों से कोरोना संक्रमण की गंभीरता का चलेगा पता

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