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विशेष : कोरोना महामारी के चलते भारत का मूलभूत पोषण कार्यक्रम पड़ा कमजोर - पोषण पर कोविड 19 महामारी का प्रभाव

भारत ने अनलॉक 2.0 में प्रवेश कर तो लिया है, लेकिन पोषण पर कोविड-19 महामारी का प्रभाव आने वाले कई सालों तक महसूस होने वाला है. केंद्र और राज्य सरकार की विभिन्न योजनाओं के माध्यम से पोषण सेवाओं के प्रावधान को लॉकडाउन के दौरान (24 मार्च से 31 मई तक) बुरी तरह से प्रभावित किया है, जो अब तक पटरी पर नहीं आ पाया है. दूसरों की तुलना में कुछ समूह पर्याप्त पोषण की कमी से कहीं अधिक प्रभावित होने की सम्भावना रखते हैं, जैसे कि गर्भवती महिलाएं, और 2 वर्ष से कम उम्र के बच्चे. इस उम्र में पोषण की कमी होने से आजीवन क्षति हो सकती है, जैसे कि संज्ञानात्मक हानि, खराब स्वास्थ्य और एनीमिया यानी खून की कमी.

भारत के मूलभूत पोषण कार्यक्रम
भारत के मूलभूत पोषण कार्यक्रम
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Published : Jul 5, 2020, 8:00 AM IST

भारत सरकार की समन्वित बाल विकास सेवा (आईसीडीएस) एक प्रमुख कार्यक्रम है, जिसका मुख्य उद्देश्य बुनियादी शिक्षा, स्वास्थ्य, और बाल विकास के लिए पोषण सेवाएं प्रदान करना है. यह योजना आंगनवाड़ी केंद्रों के एक नेटवर्क के माध्यम से काम करती है, जो हर गांव में उपलब्ध है और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं (एडब्लूडब्लू) और सहायकों (एडब्लूएच) द्वारा चलाए जाते हैं. जून 2019 तक की गणना के अनुसार भारत में 13.78 लाख आंगनवाड़ी केंद्र, 13.21 लाख आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, और 11.82 लाख सहायक कार्यरत थे.

अपने कामकाज के 45 वर्षों में, यह योजना भारत के पोषण संबंधी प्रयासों की रीढ़ बन गई है. सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च की जवाबदेही की पहल में, हमने लगभग एक दशक तक योजना को क्रमबद्ध तरीके से परखा है और पाया है कि चिंता के ऐसे कई क्षेत्र थे, जो महामारी से पहले भी मौजूद थे. कोविड-19 संकट ने संभावित रूप से सिर्फ इनको गहरा करने का काम किया है.

पहली चुनौती अपर्याप्त विस्तार के संबंध में है. समन्वित बाल विकास सेवा एक सार्वभौमिक योजना है, जिसका अर्थ है कि सभी गर्भवती महिलाएं, स्तनपान कराने वाली माताएं, और बच्चे (6 महीने - 6 वर्ष) अपनी जरूरतों के लिए पात्र हैं. जून 2019 तक, आईसीडीएस से 8.36 करोड़ लोगों को गरम पका हुआ खाना (एचसीएम), या घर ले जाने के लिए राशन (पहले से पकाया हुआ भोजन, या दाल जैसे सूखा राशन) के रूप में पूरक पोषण आहार प्राप्त हुआ. हालांकि यह लोगों की बड़ी संख्या सा प्रतीत होता है, लेकिन अगर हम बच्चों की संख्या (6 महीने - 6 साल) से तुलना करते हैं, जिन्हें वास्तव में पूरक पोषण प्राप्त करने की आवश्यकता है तो हम प्राप्तकर्ता और जरूरतमंदों के बीच बहुत बड़ी खाई पाते हैं. 2019 में, 21 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में, आधे से भी कम पात्र बच्चों को वास्तव में समन्वित बाल विकास सेवा के माध्यम से पूरक पोषण उपलब्ध कराया गया.

इससे जुड़ी एक और चिंता यह है कि यदि प्राप्त हो तो पूरक पोषण का सेवन सही हकदार द्वारा किया जाए. उदाहरण के लिए, विशेष रूप से गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए दिए जाने वाला टीएचआर अक्सर पूरा परिवार के साथ मिलकर साझा किया जाता है, इससे साफ है कि उन्हें योजना के तहत मिलने वाले पोषण के पूरक नहीं मिल पाते, जिसकी उनके लिए परिकल्पना की गई थी.

महामारी के वायरस के प्रसार को रोकने के लिए लगायी गई तालाबंदी के कारण आंगनवाड़ी केंद्रों को अस्थायी रूप से बंद कर दिया गया है. जैसे-जैसे प्रवासी कामगार अपने घरों की ओर रुख कर रहे हैं, निकट भविष्य में और अधिक परिवारों को बड़ी संख्या में पोषण और प्रारंभिक शिक्षा सेवाओं की आवश्यकता होगी. आंगनवाड़ी केंद्रों को भी नई परिस्थितियों के अनुकूल खुद को ढालना होगा, और शारीरिक दूरी और अन्य कानूनों का पालन शुरू करना होगा, जिसे पूरी तरह लागू करने में समय लगेगा. इसके अलावा, चूंकि आजीविका बुरी तरह से प्रभावित हुई है और नकदी प्रवाह बेहद कम है - यहां तक कि दैनिक खाद्य आवश्यकताओं को पूरा करना भी एक चुनौती है. गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए पोषण स्तर बनाए रखना और भी कठिन हो गया है.

इसके अलावा, आंगनवाड़ी केंद्र आंगनवाड़ी कार्यकर्ता (एडब्लूडब्लू) और अन्य कर्मचारियों पर निर्भर हैं. वे विभिन्न गतिविधियों जैसे कि परामर्श, मातृत्व देखभाल, प्रारंभिक शिक्षा आदि के लिए जिम्मेदार हैं. दुर्भाग्य से, चूंकि उन्हें सरकार के वर्तमान समन्वित बाल विकास सेवा दिशानिर्देशों के तहत स्वयंसेवकों और संविदात्मक श्रमिकों के रूप में वर्गीकृत किया गया है, इसलिए उन्हें एक निश्चित वेतन नहीं दिया जाता है. वे जो मानदेय प्राप्त करते हैं, वह अधिकतर राज्यों में कुशल सरकारी कर्मचारियों को दिए जाने वाले न्यूनतम वेतन से भी काफी कम होता है. अक्टूबर 2018 में, 8 साल के अंतराल के बाद इसमें काम करने वालों का वेतन ₹ 3,000 से ₹ 4,500 और सहायकों के लिए ₹ 1,500 से बढ़ाकर ₹ 2,250 कर दिया गया था. इस वृद्धि के बावजूद, उनका मानदेय बेहद कम है. ऐसे कई मौके सामने आए हैं, जब इस मामूली राशि का भुगतान तक समय पर नहीं किया गया है - जिसके परिणामस्वरूप बिहार और झारखंड जैसे कई राज्यों में कर्मचारी हड़ताल पर जाने पर मजबूर हो गए हैं.

कोविड-19 के समय में, ये कोरोना योद्धा घर-घर जाकर जागरूकता फैलाने और सर्वेक्षण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. वास्तव में, केंद्र सरकार की कोविड-19 नियंत्रण योजना के अनुसार, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता को लोगों के बीच जाकर जागरूकता पैदा करने और लक्षणों की बुनियादी जांच करवाने के लिए प्रेरित करने में पर्याप्त भूमिका निभाने की जिम्मेदारी दी गई है. फिर भी, जब हमने उनमें से कुछ लोगों से उनके अनुभवों (यहां उपलब्ध) के बारे में जानने के लिए बात की, तो उन्हें अपने नियमित कार्यों के साथ-साथ कोविड-19 संबंधित कार्यों को भी करना पड़ता है और इन कार्यों को करने के लिए संसाधनों की कमी होती है. ऐसी परिस्थितियों में, समन्वित बाल विकास सेवा के तहत पोषण और प्रारंभिक शिक्षा पर आवश्यक ध्यान और देखभाल प्रदान करना उनके लिए मुश्किल साबित हो रहा है. इसके अलावा, राज्य के राजस्व कम होने के कारण, एक खतरा और भी है कि अग्रिम पंक्ति में काम करने वाले इन कर्मचारियों को पर्याप्त मुआवजा न देकर सरकार अस्पताल के बिस्तर, सुरक्षात्मक उपकरण, राशन, और जैसे अन्य अहम जरूरतों के लिए व्यय का निर्देश दे देगी.

तो, इन चिंताओं को कैसे संबोधित किया जा सकता है?

भारत में, जहां 5 वर्ष से कम आयु के 68% बच्चों की मृत्यु कुपोषण के कारण हो जाती है, लॉकडाउन और महामारी के कारण सेवा के वितरण में व्यवधान आ गया है. इसकी वजह से इस दौर में और इसके आसपास पैदा हुए या पैदा होने वाले बच्चों को लंबे समय तक खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. यह देखकर खुशी होती है कि कई राज्यों ने पोषण सेवाओं को सुनिश्चित करने से संबंधित उपायों की घोषणा की है, जिसमें आंगनवाड़ियों में पंजीकृत लोगों को गर्म पका खाना और घर ले जाने हेतु राशन के बदले में सूखा राशन प्रदान करना शामिल है. हालाकि, कुछ चीजों से सावधान रहना चाहिए.

सबसे पहले, इसका दायरा पहले से पंजीकृत लाभार्थियों से आगे और विस्तारित करना होगा. इस प्रकार यह जरूरी है कि सरकार आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं द्वारा किए गए नियमित सर्वेक्षण के माध्यम से उन लोगों की संख्या का पुनर्मूल्यांकन करे, जिनकी इन सेवाओं तक पहुंच की आवश्यकता है. कोविड-19 के कारण वर्तमान में घर-घर जाकर जागरूकता अभियान का फायदा उठाते हुए लोगों की संख्या का आकलन किया जा सकता है ताकि क्षेत्र में कोई भी व्यक्ति प्राथमिक सेवाओं तक अपनी पहुंच बनाने से वंचित ना रह जाए.

दूसरा, यह सुनिश्चित करना कि पूरक पोषण गर्भवती महिलाओं और बच्चों तक पहुंचे और उसके साथ ये भी सुनिश्चित करना कि संक्रमण के जोखिम से बचा जाए, घर की दहलीज पर राशन पहुंचाने की आवश्यकता है, जैसा कि ओडिशा जैसे राज्यों द्वारा किया जा रहा है. झारखंड जैसे कुछ राज्यों ने लगातार संपर्क करने की सम्भावना को कम करने के लिए एक बार में कई महीनों के राशन का वितरण कर दिया है. हालांकि, इसे घरों में भंडारण स्थान की उपलब्धता के साथ जोड़ा जाना चाहिए.

एक अन्य विकल्प यह है कि नकद हस्तांतरण प्रदान करना चाहिए ताकि कुछ क्षेत्रों को, जहां भोजन का प्रावधान रख पाना चुनौतीपूर्ण है, सहूलियत मिल सके. यही काम बिहार सरकार ने आंगनवाड़ी लाभार्थियों को पूरक पोषण के बदले हर महीने नकद प्रदान करके किया है. हालांकि, यदि नकद हस्तांतरण का उपयोग किया जाता है, तो यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण होगा कि सभी लाभार्थियों के अपने खुद के खाते हों, ताकि पैसा समय पर ढंग से उन तक पहुंचे, और वे पैसे का उपयोग करने में सक्षम हों.

तीसरा, चूंकि घर ले जाने के लिए दिया गया राशन आपस में साझा करना भोजन की कमी से प्रेरित है, और लॉकडाउन के दौरान भोजन की सीमित उपलब्धता को देखते हुए, पर्याप्त आहार पर महिलाओं को ठीक से परामर्श देना बहुत महत्वपूर्ण है. ऐसा घर ले जाने के लिए राशन देते समय किया जाना चाहिए या फिर तब जब स्वास्थ्य कार्यकर्ता जागरूकता फैलाने के लिए घरों में जाते हैं. इन परामर्श के जरियों को रेडियो और मास मीडिया अभियानों द्वारा भी समर्थन दिया जा सकता है.

अंत में, प्रमुख सेवाओं के प्रावधान को सुनिश्चित करने के क्रम में पोषण के लिए आवंटित बेहद जरूरी और त्वरित राशि की जरूरत है. इसका मतलब यह है कि सभी पोषण संबंधी धन को, जिसमें आगनवाड़ी कार्यकताओं को दिए जाने वाला मानदेय शामिल हैं, पूर्ण और समय पर जारी किया जाना चाहिए.

पिछले कुछ वर्षों में केंद्र सरकार के पोशण अभियान और इसके अंतर्गत चलाये जाने वाले विभिन्न अभियानों के माध्यम से कुपोषण को खत्म करने पर ख़ास ध्यान दिया गया है. महामारी के प्रकोप और उसके बाद के लॉकडाउन ने इनमें से कई गतिविधियों को रोक दिया है. कुपोषण के खिलाफ भारत की निरंतर लड़ाई को एक बार फिर से गतिशील मार्ग पर लाना बहुत महत्वपूर्ण है.

(अवनी कपूर - निदेशक, एकाउंटेबिलिटी इनिशिएटिव)

(ऋत्विक शुक्ला - शोध सहयोगी, एकाउंटेबिलिटी इनिशिएटिव)

(अवंतिका श्रीवास्तव - वरिष्ठ संचार अधिकारी, एकाउंटेबिलिटी इनिशिएटिव)

भारत सरकार की समन्वित बाल विकास सेवा (आईसीडीएस) एक प्रमुख कार्यक्रम है, जिसका मुख्य उद्देश्य बुनियादी शिक्षा, स्वास्थ्य, और बाल विकास के लिए पोषण सेवाएं प्रदान करना है. यह योजना आंगनवाड़ी केंद्रों के एक नेटवर्क के माध्यम से काम करती है, जो हर गांव में उपलब्ध है और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं (एडब्लूडब्लू) और सहायकों (एडब्लूएच) द्वारा चलाए जाते हैं. जून 2019 तक की गणना के अनुसार भारत में 13.78 लाख आंगनवाड़ी केंद्र, 13.21 लाख आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, और 11.82 लाख सहायक कार्यरत थे.

अपने कामकाज के 45 वर्षों में, यह योजना भारत के पोषण संबंधी प्रयासों की रीढ़ बन गई है. सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च की जवाबदेही की पहल में, हमने लगभग एक दशक तक योजना को क्रमबद्ध तरीके से परखा है और पाया है कि चिंता के ऐसे कई क्षेत्र थे, जो महामारी से पहले भी मौजूद थे. कोविड-19 संकट ने संभावित रूप से सिर्फ इनको गहरा करने का काम किया है.

पहली चुनौती अपर्याप्त विस्तार के संबंध में है. समन्वित बाल विकास सेवा एक सार्वभौमिक योजना है, जिसका अर्थ है कि सभी गर्भवती महिलाएं, स्तनपान कराने वाली माताएं, और बच्चे (6 महीने - 6 वर्ष) अपनी जरूरतों के लिए पात्र हैं. जून 2019 तक, आईसीडीएस से 8.36 करोड़ लोगों को गरम पका हुआ खाना (एचसीएम), या घर ले जाने के लिए राशन (पहले से पकाया हुआ भोजन, या दाल जैसे सूखा राशन) के रूप में पूरक पोषण आहार प्राप्त हुआ. हालांकि यह लोगों की बड़ी संख्या सा प्रतीत होता है, लेकिन अगर हम बच्चों की संख्या (6 महीने - 6 साल) से तुलना करते हैं, जिन्हें वास्तव में पूरक पोषण प्राप्त करने की आवश्यकता है तो हम प्राप्तकर्ता और जरूरतमंदों के बीच बहुत बड़ी खाई पाते हैं. 2019 में, 21 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में, आधे से भी कम पात्र बच्चों को वास्तव में समन्वित बाल विकास सेवा के माध्यम से पूरक पोषण उपलब्ध कराया गया.

इससे जुड़ी एक और चिंता यह है कि यदि प्राप्त हो तो पूरक पोषण का सेवन सही हकदार द्वारा किया जाए. उदाहरण के लिए, विशेष रूप से गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए दिए जाने वाला टीएचआर अक्सर पूरा परिवार के साथ मिलकर साझा किया जाता है, इससे साफ है कि उन्हें योजना के तहत मिलने वाले पोषण के पूरक नहीं मिल पाते, जिसकी उनके लिए परिकल्पना की गई थी.

महामारी के वायरस के प्रसार को रोकने के लिए लगायी गई तालाबंदी के कारण आंगनवाड़ी केंद्रों को अस्थायी रूप से बंद कर दिया गया है. जैसे-जैसे प्रवासी कामगार अपने घरों की ओर रुख कर रहे हैं, निकट भविष्य में और अधिक परिवारों को बड़ी संख्या में पोषण और प्रारंभिक शिक्षा सेवाओं की आवश्यकता होगी. आंगनवाड़ी केंद्रों को भी नई परिस्थितियों के अनुकूल खुद को ढालना होगा, और शारीरिक दूरी और अन्य कानूनों का पालन शुरू करना होगा, जिसे पूरी तरह लागू करने में समय लगेगा. इसके अलावा, चूंकि आजीविका बुरी तरह से प्रभावित हुई है और नकदी प्रवाह बेहद कम है - यहां तक कि दैनिक खाद्य आवश्यकताओं को पूरा करना भी एक चुनौती है. गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए पोषण स्तर बनाए रखना और भी कठिन हो गया है.

इसके अलावा, आंगनवाड़ी केंद्र आंगनवाड़ी कार्यकर्ता (एडब्लूडब्लू) और अन्य कर्मचारियों पर निर्भर हैं. वे विभिन्न गतिविधियों जैसे कि परामर्श, मातृत्व देखभाल, प्रारंभिक शिक्षा आदि के लिए जिम्मेदार हैं. दुर्भाग्य से, चूंकि उन्हें सरकार के वर्तमान समन्वित बाल विकास सेवा दिशानिर्देशों के तहत स्वयंसेवकों और संविदात्मक श्रमिकों के रूप में वर्गीकृत किया गया है, इसलिए उन्हें एक निश्चित वेतन नहीं दिया जाता है. वे जो मानदेय प्राप्त करते हैं, वह अधिकतर राज्यों में कुशल सरकारी कर्मचारियों को दिए जाने वाले न्यूनतम वेतन से भी काफी कम होता है. अक्टूबर 2018 में, 8 साल के अंतराल के बाद इसमें काम करने वालों का वेतन ₹ 3,000 से ₹ 4,500 और सहायकों के लिए ₹ 1,500 से बढ़ाकर ₹ 2,250 कर दिया गया था. इस वृद्धि के बावजूद, उनका मानदेय बेहद कम है. ऐसे कई मौके सामने आए हैं, जब इस मामूली राशि का भुगतान तक समय पर नहीं किया गया है - जिसके परिणामस्वरूप बिहार और झारखंड जैसे कई राज्यों में कर्मचारी हड़ताल पर जाने पर मजबूर हो गए हैं.

कोविड-19 के समय में, ये कोरोना योद्धा घर-घर जाकर जागरूकता फैलाने और सर्वेक्षण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. वास्तव में, केंद्र सरकार की कोविड-19 नियंत्रण योजना के अनुसार, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता को लोगों के बीच जाकर जागरूकता पैदा करने और लक्षणों की बुनियादी जांच करवाने के लिए प्रेरित करने में पर्याप्त भूमिका निभाने की जिम्मेदारी दी गई है. फिर भी, जब हमने उनमें से कुछ लोगों से उनके अनुभवों (यहां उपलब्ध) के बारे में जानने के लिए बात की, तो उन्हें अपने नियमित कार्यों के साथ-साथ कोविड-19 संबंधित कार्यों को भी करना पड़ता है और इन कार्यों को करने के लिए संसाधनों की कमी होती है. ऐसी परिस्थितियों में, समन्वित बाल विकास सेवा के तहत पोषण और प्रारंभिक शिक्षा पर आवश्यक ध्यान और देखभाल प्रदान करना उनके लिए मुश्किल साबित हो रहा है. इसके अलावा, राज्य के राजस्व कम होने के कारण, एक खतरा और भी है कि अग्रिम पंक्ति में काम करने वाले इन कर्मचारियों को पर्याप्त मुआवजा न देकर सरकार अस्पताल के बिस्तर, सुरक्षात्मक उपकरण, राशन, और जैसे अन्य अहम जरूरतों के लिए व्यय का निर्देश दे देगी.

तो, इन चिंताओं को कैसे संबोधित किया जा सकता है?

भारत में, जहां 5 वर्ष से कम आयु के 68% बच्चों की मृत्यु कुपोषण के कारण हो जाती है, लॉकडाउन और महामारी के कारण सेवा के वितरण में व्यवधान आ गया है. इसकी वजह से इस दौर में और इसके आसपास पैदा हुए या पैदा होने वाले बच्चों को लंबे समय तक खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. यह देखकर खुशी होती है कि कई राज्यों ने पोषण सेवाओं को सुनिश्चित करने से संबंधित उपायों की घोषणा की है, जिसमें आंगनवाड़ियों में पंजीकृत लोगों को गर्म पका खाना और घर ले जाने हेतु राशन के बदले में सूखा राशन प्रदान करना शामिल है. हालाकि, कुछ चीजों से सावधान रहना चाहिए.

सबसे पहले, इसका दायरा पहले से पंजीकृत लाभार्थियों से आगे और विस्तारित करना होगा. इस प्रकार यह जरूरी है कि सरकार आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं द्वारा किए गए नियमित सर्वेक्षण के माध्यम से उन लोगों की संख्या का पुनर्मूल्यांकन करे, जिनकी इन सेवाओं तक पहुंच की आवश्यकता है. कोविड-19 के कारण वर्तमान में घर-घर जाकर जागरूकता अभियान का फायदा उठाते हुए लोगों की संख्या का आकलन किया जा सकता है ताकि क्षेत्र में कोई भी व्यक्ति प्राथमिक सेवाओं तक अपनी पहुंच बनाने से वंचित ना रह जाए.

दूसरा, यह सुनिश्चित करना कि पूरक पोषण गर्भवती महिलाओं और बच्चों तक पहुंचे और उसके साथ ये भी सुनिश्चित करना कि संक्रमण के जोखिम से बचा जाए, घर की दहलीज पर राशन पहुंचाने की आवश्यकता है, जैसा कि ओडिशा जैसे राज्यों द्वारा किया जा रहा है. झारखंड जैसे कुछ राज्यों ने लगातार संपर्क करने की सम्भावना को कम करने के लिए एक बार में कई महीनों के राशन का वितरण कर दिया है. हालांकि, इसे घरों में भंडारण स्थान की उपलब्धता के साथ जोड़ा जाना चाहिए.

एक अन्य विकल्प यह है कि नकद हस्तांतरण प्रदान करना चाहिए ताकि कुछ क्षेत्रों को, जहां भोजन का प्रावधान रख पाना चुनौतीपूर्ण है, सहूलियत मिल सके. यही काम बिहार सरकार ने आंगनवाड़ी लाभार्थियों को पूरक पोषण के बदले हर महीने नकद प्रदान करके किया है. हालांकि, यदि नकद हस्तांतरण का उपयोग किया जाता है, तो यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण होगा कि सभी लाभार्थियों के अपने खुद के खाते हों, ताकि पैसा समय पर ढंग से उन तक पहुंचे, और वे पैसे का उपयोग करने में सक्षम हों.

तीसरा, चूंकि घर ले जाने के लिए दिया गया राशन आपस में साझा करना भोजन की कमी से प्रेरित है, और लॉकडाउन के दौरान भोजन की सीमित उपलब्धता को देखते हुए, पर्याप्त आहार पर महिलाओं को ठीक से परामर्श देना बहुत महत्वपूर्ण है. ऐसा घर ले जाने के लिए राशन देते समय किया जाना चाहिए या फिर तब जब स्वास्थ्य कार्यकर्ता जागरूकता फैलाने के लिए घरों में जाते हैं. इन परामर्श के जरियों को रेडियो और मास मीडिया अभियानों द्वारा भी समर्थन दिया जा सकता है.

अंत में, प्रमुख सेवाओं के प्रावधान को सुनिश्चित करने के क्रम में पोषण के लिए आवंटित बेहद जरूरी और त्वरित राशि की जरूरत है. इसका मतलब यह है कि सभी पोषण संबंधी धन को, जिसमें आगनवाड़ी कार्यकताओं को दिए जाने वाला मानदेय शामिल हैं, पूर्ण और समय पर जारी किया जाना चाहिए.

पिछले कुछ वर्षों में केंद्र सरकार के पोशण अभियान और इसके अंतर्गत चलाये जाने वाले विभिन्न अभियानों के माध्यम से कुपोषण को खत्म करने पर ख़ास ध्यान दिया गया है. महामारी के प्रकोप और उसके बाद के लॉकडाउन ने इनमें से कई गतिविधियों को रोक दिया है. कुपोषण के खिलाफ भारत की निरंतर लड़ाई को एक बार फिर से गतिशील मार्ग पर लाना बहुत महत्वपूर्ण है.

(अवनी कपूर - निदेशक, एकाउंटेबिलिटी इनिशिएटिव)

(ऋत्विक शुक्ला - शोध सहयोगी, एकाउंटेबिलिटी इनिशिएटिव)

(अवंतिका श्रीवास्तव - वरिष्ठ संचार अधिकारी, एकाउंटेबिलिटी इनिशिएटिव)

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