जिस कौशल के साथ भारत सरकार ने कोविड-19 या कोरोना वायरस नामक महामारी का सामना किया है, वह बहुत ही सराहनीय है. कुछ राज्यों के मुखिया अपने आपसी मतभेद दरकिनार कर इस वायरस के खिलाफ इंसानियत की जंग में शामिल होने की अपील करते दिखाई दिए. दुनियाभर के नागरिकों को बताया गया है कि कोरोना वायरस पर जीत पाने के लिए आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस (कृत्रिम बुद्धिमत्ता) से लेकर बायोटेक्नोलॉजी तक सभी विकल्प खुले हैं, जबकि तकरीबन पूरी दुनिया लॉकडाउन में है. चीन से लेकर अमेरिका तक की सरकारें कृत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस) और डेटा विश्लेषण के माध्यम से निजी कंपनियों को कोरोना पीड़ितों के फोन में झांकने की अनुमति दे रही हैं. कोरोना वायरस से ग्रस्त लोगों के फोन में स्क्रीन पर चेहरे की पहचान की तकनीक को भी शामिल किया जा रहा है. बताया गया है कि टेनसेंट और अलीबाबा जैसी कंपनियां इस तकनीक का उपयोग करने के लिए चीन सरकार के साथ काम कर रही हैं. चीनी सरकार कोरोना पीड़ितों की यात्रा के इतिहास को एकत्र करने के लिए ऐप का उपयोग कर रही है. संक्रमित स्थानों में बिताया गया समय, व्यक्ति की बातचीत का विवरण आदि. इसीलिए वह कृत्रिम बुद्धिमत्ता और ऐप की मदद से व्यक्ति के बारे में प्रत्येक विवरण को जानते हैं.
भारत में भी कोरोना ऐप को अब स्क्रीनिंग उपकरण के रूप में लोकप्रिय बनाया जा रहा है. चीन में एक बार सारी जानकारी एकत्र करने के बाद लोगों को स्वास्थ्य कोड - पीले, लाल और हरे रंग दिखाए जाएंगे. रंग के कोड यह सूचित करते हैं कि किसी को क्वारंटाइन (संगरोध) किया जाना है या नहीं अथवा कोई सार्वजनिक परिवहन का उपयोग कर सकता है या नहीं.
यह जानकारी ज्यादातर नागरिकों की मर्जी या पसंद से एकत्र नहीं की जाती. आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस सरकार को रिपोर्ट करता है यदि व्यक्ति ने असंगत उत्तर दिए हैं या बस झूठ बोला है, तो सरकार बल का प्रयोग कर सकती है. सरकार ने सभी गोपनीयता सम्मेलनों का अतिक्रमण कर निजी कंपनियों को परिणाम प्राप्त करने के लिए फोन, कंप्यूटर, सार्वजनिक कैमरों पर निगरानी करने की अनुमति दी है. चीन सरकार प्रत्येक नागरिक की हरकत और व्यवहार की निगरानी की अनुमति देती है. यदि व्यवहार राज्य के अनुकूल किया जाता है, तो आपको पुरस्कृत किया जाता है, अन्यथा आप ट्रेन तक में भी नहीं चढ़ सकते.
यदि पश्चिम की ओर नजर डालें तो इंग्लैंड में स्काई न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार, 'सरकार मोबाइल नेटवर्क O2 के साथ काम कर रही है, ताकि अनाम स्मार्टफोन लोकेशन डेटा का विश्लेषण किया जा सके और निगरानी की जा सके कि लोग सामाजिक दूरी बनाने का पालन कर रहे हैं या नहीं.' इजरायल, इससे भी एक कदम आगे है. वहां उपयोगकर्ताओं को अनुकूलित संदेश भेजने के लिए मोबाइल पर निगरानी करने का उपयोग किया जा रहा है कि क्या वह संक्रमित हैं या नहीं. फेसबुक, गूगल आदि जैसी सोशल मीडिया कंपनियां सरकारों को हमारे डेटा को स्वतंत्र रूप से प्रदान करके अपना काम कर रही हैं. कोरोना वायरस संकट ने हर समय आपकी निगरानी करने का बहाना दे दिया है. हालांकि यह ‘सार्वजनिक स्वास्थ्य और अपने स्वयं के अच्छे’ के लिए है.
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने कोविड-19 के कारण एक व्यापक निगरानी प्रणाली बनाने के लिए ब्लूडॉट नामक कंपनी से सहायता ली है, जिससे लोगों पर नज़र राखी जा सके. अब बस कुछ ही समय की बात है कि सिलिकॉन वैली के दिग्गज ह्वाइट हाउस के साथ गठबंधन कर आपकी हृदय गति का ब्यौरा देंगे. दुनियाभर में आपातकालीन कानून बनाए जा रहें, ताकि शीघ्रातिशीघ्र डेटा संग्रह प्रणाली तैयार की जा सके और सरकार को शक्तियां दी प्राप्त हो सकें.
'सत्ता भ्रष्टाचारी बनाती है और पूर्ण सत्ता पूर्णतः भ्रष्टाचारी बना देती है'
हमें कोविड-19 को नियंत्रित करने के सरकारी प्रयासों पर संदेह नहीं है, लेकिन हम जो आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस आधारित प्रणाली वह बना रहे हैं, कोविड-19 का प्रकोप खत्म जाने के बाद इस निगरानी आधारित प्रणाली का क्या होगा? क्या सामूहिक निगरानी खत्म कर दी जाएगी या आगे और विकसित होगी? क्या दुनियाभर के नागरिक आश्वस्त हैं कि इसका दुरुपयोग नहीं होगा?
दुनियाभर के लोगों को कोविड-19 के उपचार के दौरान सावधान रहना चाहिए. आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस आधारित जन निगरानी हमारे जीवन में प्रवेश कर लेगी. समाज में जैसे-जैसे नस्लीय घृणा की खबरें बढ़ रही हैं, हम विश्वस्तर पर अराजकता में उतर रहे हैं. हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस नफरत और भय फैलाने में सहायक न बन जाए. विश्वयुद्धों में लाखों लोगों की मौत के साथ, दुनिया ने यह सबक सीखा है. शायद तकनीक का इस्तेमाल नरसंहार के लिए भी किया जा सकता है. इसलिए इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि भविष्य में आपातकालीन शक्तियों का दुरुपयोग हो सकता है.
(लेखक : इंद्र शेखर सिंह, निदेशक - नेशनल सीड एसोसिएशन ऑफ इंडिया)