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सेना की नई रणनीति से गुमराह युवाओं को रोकने में मिल रही मदद

सेना ने आतंकवाद से प्रभावित कश्मीर में संपर्क का पता लगाने की एक नई रणनीति अपनाई है. सेना की इस रणनीति से गुमराह युवाओं को रोकने में मदद मिल रही है. विस्तार से पढ़ें पूरी खबर...

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Published : Sep 13, 2020, 9:58 PM IST

गुमराह युवाओं को रोकने में मिल रही मदद
गुमराह युवाओं को रोकने में मिल रही मदद

श्रीनगर : सेना ने आतंकवाद से प्रभावित कश्मीर में संपर्क का पता लगाने की एक नई रणनीति अपनाई है. इसके तहत स्थानीय आतंकवादियों या मुठभेड़ में मारे जाने वालों के दोस्तों और रिश्तेदारों का पता लगाया जाता है तथा उन्हें बंदूक नहीं उठाने के लिए समझाया जाता है. एक शीर्ष सैन्य अधिकारी ने यहां इस बारे में बताया.

इसके अलावा, जिन युवाओं के कट्टरपंथ के रास्ते पर जाने की आशंका नजर आती है उनके परिवारों से भी संपर्क करने का प्रयास किया जाता है. इसके तहत उन्हें अपने बच्चों को समझाने-बुझाने के लिए कहा जाता है.

कश्मीर में रणनीतिक 15 वीं कोर का नेतृत्व कर रहे लेफ्टिनेंट जनरल बी एस राजू का मानना है कि सही समय पर सही मार्गदर्शन कर गुमराह युवाओं को गलत कदम उठाने से रोकने में मदद मिल सकती है.

'विक्टर फोर्स’ के प्रमुख के तौर पर उनके कार्यकाल के दौरान ऐसे प्रयासों से बहुत सफलता भी मिली है. इस फोर्स में सेना की कई इकाइयां शामिल हैं और यह दक्षिण कश्मीर के चार जिलों पर खास नजर रखती है . इनमें पुलवामा, अनंतनाग, शोपियां और कुलगाम जिले शामिल हैं.

लेफ्टिनेंट जनरल राजू ने बताया, 'सेना का हमेशा से बीच की कड़ी तोड़ने में यकीन रहा है और बहुत शुरुआत से ही मैं अपनी टीम के साथ यह काम कर रहा हूं. '

उन्होंने कहा कि दक्षिण कश्मीर में मुठभेड़ और आतंकियों की भर्ती को लेकर सेना ने एक विश्लेषण किया था और अधिकारियों तथा अन्य कर्मियों ने मुठभेड़ में मारे गए किसी भी स्थानीय आतंकी के 'संपर्क का पता' लगाने की प्रक्रिया शुरू की .

लेफ्टिनेंट जनरल राजू ने कहा कि परिणाम उत्साहजनक रहा और कई ऐसे युवाओं को (समय रहते) रोक दिया गया, जो आतंकवाद के रास्ते जा सकते थे . हालांकि, उन्होंने इस बारे में विस्तार से नहीं बताया और ऐसे युवाओं की संख्या की जानकारी नहीं दी.

कितने स्थानीय लोग इस साल आतंकवाद के रास्ते गए इस बारे में भी उन्होंने नहीं बताया.

उन्होंने कहा, 'संख्या महज आंकड़े हैं और मुख्य उद्देश्य बंदूक उठाने के विचार का मुकाबला करना है. '

हालांकि, पुलिस उपनिरीक्षक (दक्षिण कश्मीर) अतुल गोयल के हवाले से बताया गया था कि इस साल विभिन्न आतंकवादी समूहों से करीब 80 युवा जुड़े.

यह भी पढ़ें- मानसून सत्र : इन मुद्दों पर मोदी सरकार को घेरने की तैयारी में विपक्ष

लेफ्टिनेंट जनरल राजू ने कहा कि कई मामलों में (गुमराह युवकों की) माताएं और परिवार के लोग सोशल मीडिया पर संदेश देकर हिंसा का रास्ता छोड़ने को कहते हैं. गुमराह युवाओं का सही मार्गदर्शन करने में परिवार और समाज की बड़ी भूमिका होती है .

उन्होंने कहा कि हिंसा का रास्ता छोड़ कर मुख्यधारा में लौटे युवकों की सामाजिक स्वीकार्यता और समर्थन से भी बड़ा बदलाव आएगा.

उन्होंने कहा, 'आप देखते हैं कि सिर पर खून सवार होने पर लोग गलत कदम उठा लेते हैं और हम इस सोच का समाधान करना चाहते हैं. यह उत्साहजनक है कि कई परिवारों के अभिभावक और बुजुर्ग आगे आए और अपने बच्चों को समझाया.'

'विक्टर फोर्स’ के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल राजू को अनंतनाग के 20 वर्षीय युवक माजिद खान का 2016 में आत्मसमर्पण कराने का श्रेय दिया जाता है. माजिद ने लश्करे तैयबा को छोड़कर मुख्यधारा में लौटने का फैसला किया.

लेफ्टिनेंट जनरल राजू ने कहा कि माजिद की मां ने उससे लौट जाने की अपील की थी. उसे आश्वस्त किया गया था कि उसका जीवन बदल जाएगा. 'आज वह जम्मू कश्मीर के बाहर पढ़ाई कर रहा है.'

श्रीनगर : सेना ने आतंकवाद से प्रभावित कश्मीर में संपर्क का पता लगाने की एक नई रणनीति अपनाई है. इसके तहत स्थानीय आतंकवादियों या मुठभेड़ में मारे जाने वालों के दोस्तों और रिश्तेदारों का पता लगाया जाता है तथा उन्हें बंदूक नहीं उठाने के लिए समझाया जाता है. एक शीर्ष सैन्य अधिकारी ने यहां इस बारे में बताया.

इसके अलावा, जिन युवाओं के कट्टरपंथ के रास्ते पर जाने की आशंका नजर आती है उनके परिवारों से भी संपर्क करने का प्रयास किया जाता है. इसके तहत उन्हें अपने बच्चों को समझाने-बुझाने के लिए कहा जाता है.

कश्मीर में रणनीतिक 15 वीं कोर का नेतृत्व कर रहे लेफ्टिनेंट जनरल बी एस राजू का मानना है कि सही समय पर सही मार्गदर्शन कर गुमराह युवाओं को गलत कदम उठाने से रोकने में मदद मिल सकती है.

'विक्टर फोर्स’ के प्रमुख के तौर पर उनके कार्यकाल के दौरान ऐसे प्रयासों से बहुत सफलता भी मिली है. इस फोर्स में सेना की कई इकाइयां शामिल हैं और यह दक्षिण कश्मीर के चार जिलों पर खास नजर रखती है . इनमें पुलवामा, अनंतनाग, शोपियां और कुलगाम जिले शामिल हैं.

लेफ्टिनेंट जनरल राजू ने बताया, 'सेना का हमेशा से बीच की कड़ी तोड़ने में यकीन रहा है और बहुत शुरुआत से ही मैं अपनी टीम के साथ यह काम कर रहा हूं. '

उन्होंने कहा कि दक्षिण कश्मीर में मुठभेड़ और आतंकियों की भर्ती को लेकर सेना ने एक विश्लेषण किया था और अधिकारियों तथा अन्य कर्मियों ने मुठभेड़ में मारे गए किसी भी स्थानीय आतंकी के 'संपर्क का पता' लगाने की प्रक्रिया शुरू की .

लेफ्टिनेंट जनरल राजू ने कहा कि परिणाम उत्साहजनक रहा और कई ऐसे युवाओं को (समय रहते) रोक दिया गया, जो आतंकवाद के रास्ते जा सकते थे . हालांकि, उन्होंने इस बारे में विस्तार से नहीं बताया और ऐसे युवाओं की संख्या की जानकारी नहीं दी.

कितने स्थानीय लोग इस साल आतंकवाद के रास्ते गए इस बारे में भी उन्होंने नहीं बताया.

उन्होंने कहा, 'संख्या महज आंकड़े हैं और मुख्य उद्देश्य बंदूक उठाने के विचार का मुकाबला करना है. '

हालांकि, पुलिस उपनिरीक्षक (दक्षिण कश्मीर) अतुल गोयल के हवाले से बताया गया था कि इस साल विभिन्न आतंकवादी समूहों से करीब 80 युवा जुड़े.

यह भी पढ़ें- मानसून सत्र : इन मुद्दों पर मोदी सरकार को घेरने की तैयारी में विपक्ष

लेफ्टिनेंट जनरल राजू ने कहा कि कई मामलों में (गुमराह युवकों की) माताएं और परिवार के लोग सोशल मीडिया पर संदेश देकर हिंसा का रास्ता छोड़ने को कहते हैं. गुमराह युवाओं का सही मार्गदर्शन करने में परिवार और समाज की बड़ी भूमिका होती है .

उन्होंने कहा कि हिंसा का रास्ता छोड़ कर मुख्यधारा में लौटे युवकों की सामाजिक स्वीकार्यता और समर्थन से भी बड़ा बदलाव आएगा.

उन्होंने कहा, 'आप देखते हैं कि सिर पर खून सवार होने पर लोग गलत कदम उठा लेते हैं और हम इस सोच का समाधान करना चाहते हैं. यह उत्साहजनक है कि कई परिवारों के अभिभावक और बुजुर्ग आगे आए और अपने बच्चों को समझाया.'

'विक्टर फोर्स’ के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल राजू को अनंतनाग के 20 वर्षीय युवक माजिद खान का 2016 में आत्मसमर्पण कराने का श्रेय दिया जाता है. माजिद ने लश्करे तैयबा को छोड़कर मुख्यधारा में लौटने का फैसला किया.

लेफ्टिनेंट जनरल राजू ने कहा कि माजिद की मां ने उससे लौट जाने की अपील की थी. उसे आश्वस्त किया गया था कि उसका जीवन बदल जाएगा. 'आज वह जम्मू कश्मीर के बाहर पढ़ाई कर रहा है.'

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