नई दिल्ली : कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के एक समूह ने कहा कि केंद्र सरकार के 41 आयुध कारखानों के निजीकरण और रक्षा क्षेत्र में एफडीआई नीति में बदलाव आत्मनिर्भर भारत मिशन के विपरीत है. केंद्र सरकार का फैसला राष्ट्रीय सुरक्षा हितों से भी समझौता करता है. कांग्रेस नेताओं गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा, कपिल सिब्बल, विवेक तन्खा, मनीष तिवारी और शशि थरूर ने संयुक्त बयान में सुझाव दिया है कि सरकार को इस मामले में अपने निर्णय को वापस लेना चाहिए. दिलचस्प बात यह है कि ये वही नेता हैं, जिन्होंने कांग्रेस में संगठनात्मक सुधार की मांग की थी.
आत्मनिर्भर भारत मिशन के विपरीत
कांग्रेस नेताओं ने रक्षा क्षेत्र के बारे में भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के फैसले पर कहा कि यह बहुत परेशान करने वाला है. इन फैसलों ने राष्ट्रीय सुरक्षा हितों से समझौता किया है. इन फैसलों से भारत की रक्षा तैयारियों और आत्मनिर्भर राष्ट्र बनने में दीर्घकालिक नकारात्मक प्रभाव होंगे। ये निर्णय सरकार के मेक इन इंडिया अभियान और आत्मनिर्भर भारत मिशन के भी विपरीत हैं.
70,000 कर्मचारी एक महीने की हड़ताल पर
नेताओं ने यह भी उल्लेख किया कि भारत के सभी 41 आयुध कारखानों के लगभग 70,000 कर्मचारी निजीकरण के विरोध में एक महीने की हड़ताल पर हैं. सरकार का कदम कर्मचारियों के साथ किए समझौतों और उन्हें दिए गए आश्वासनों का उल्लंघन है. भारत में रणनीतिक स्थानों पर आयुध कारखानों की विशाल अवसंरचना, उत्पादन क्षमता और अचल संपत्ति है. ये मूल्यवान राष्ट्रीय संपत्ति हैं, जिन्हें बर्बाद नहीं किया जा सकता है. आज जरूरत है नये प्रौद्योगिकी लाने की और सही तरीके से मानव प्रबंधन की. निजी क्षेत्र को कारखानों और परिसंपत्तियों को सौंपना किसी भी औचित्य से परे है और राष्ट्रीय हित के खिलाफ है.
कांग्रेस नेता एके एंटनी ने भी जताई थी चिंता
कांग्रेस नेताओं ने सरकार से पूछा कि आयुध कारखाना बोर्ड किस तरह से एक लोकतांत्रिक प्रणाली में पारदर्शिता और जवाबदेही में विफल रहा है? यह संसद के लिए जवाबदेह है और सीएजी के लिए भी है. इसे गंभीर चिंता की संज्ञा देते हुए नेताओं ने रक्षा क्षेत्र में सरकार के फैसलों को वापस लेने की मांग की. इससे पहले जुलाई में पूर्व रक्षा मंत्री और दिग्गज कांग्रेस नेता एके एंटनी ने भी रक्षा में एफडीआई नीति में बदलाव पर सरकार के फैसले पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी. इसे राष्ट्रीय सुरक्षा और भारत की स्वतंत्र विदेश नीति के लिए एक बड़ा खतरा बताया था.