कोविद -19 परीक्षण के लिए सख्त मानदंड हैं. वैसे लोग जिनका पिछले 14 दिनों में यात्रा का इतिहास रहा है, अधिकांश तौर पर अभी उनमें ही इनकी पुष्टि हुई है. ऐसे लोगों में कोरोना के कोई लक्षण दिखते हैं, तो उनकी जांच की जा रही है. ये लोग जिनके संपर्क में आए हैं, उनकी भी जांच प्राथमिकता पर की जा रही है. जिनका कोई ट्रैवेल इतिहास नहीं रहा है, लेकिन उन्हें श्वसन संबंधित गंभीर बीमारी है, तो उनका परीक्षण नहीं किया जा रहा है. हालांकि, सरकार इसे स्वीकारती नहीं है. संदिग्ध मरीजों को लेकर सरकार की परिभाषा कुछ अलग है. जिनका यात्रा इतिहास नहीं है और जो ऐसे मरीजों के संपर्क में नहीं आए हैं, ऐसे संदिग्धों की जांच नहीं की जा रही है.
क्या यह बीमारी सामुदायिक स्तर पर प्रसारित होता है. इसके कोई सबूत नहीं हैं. लेकिन यह कहना है कि ऐसा नहीं होता है, इसके भी कोई साक्ष्य नहीं हैं. जब किसी कोविद 19 संक्रमित व्यक्ति के सोर्स का पता नहीं चलता है, यानि उन्हें ये बीमारी कहां से आई, तो सामुदायिक खतरे से इनकार नहीं किया जा सकता है. जाहिर है ऐसे में संदिग्धों की जांच आईसीएमआर और एनएबीएल प्रमाणित प्रयोगशालाओं में ही करवाया जा सकता है.
अगर सामुदायिक स्तर पर प्रसारण होता है, तो लोगों को इसके बारे में जानना बहुत जरूरी है. सटीक डायगनोसिस पहली शर्त है, ताकि सही इलाज मिल सके. किसी भी व्यक्ति को अगर कोरोना के हल्के लक्षण भी दिखते हैं, तो उन्हें तुरंत अपने आप को आइसोलेट कर लेना चाहिए. ऐसा करने से ही हम इस वायरस के दुष्प्रभाव को रोक सकते हैं.
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दूसरी महत्वपूर्ण बात ये है कि जिनमें कोरोना के पॉजिटिव लक्षण पाए गए हैं, उन्हें यह पता करना चाहिए कि वे कितने लोगों के संपर्क में आए. उनकी भी जांच जरूरी है. तीसरी महत्वपूर्ण बात है कि संदिग्ध मामलों में कोई ढिलाई ना बरतें.
वर्तमान में, भारत में लगभग 14,000 लोगों का परीक्षण किया गया है. यह दक्षिण कोरिया जैसे छोटे देश के विपरीत है, जिसकी आबादी तमिलनाडु के बराबर है और जो हर दिन करीब 12,000 - 15,000 लोगों का परीक्षण कर रहा है. सिंगापुर, हांगकांग, ताइवान, चीन और वास्तव में दक्षिण कोरिया जैसे देश काफी हद तक इस पर नियंत्रण लगाने में सफल हुए हैं. सामुदायिक स्तर पर इसे फैसले से कैसे रोका जाए, इन देशों ने एक हद तक इस पर रोक लगाने में सफलता पाई है.
अपने देश में अभी भी कुछ ही राज्यों ने सोशल डिस्टेंसिंग को लेकर एहतियाती कदम उठाए हैं.
यद्यपि यह वायरस स्पर्शोन्मुख है और हल्के संक्रमण से जुड़ा है, लेकिन 5% रोगियों को आईसीयू देखभाल की आवश्यकता होती है. भारत में प्रति 1,000 लोगों पर एक अस्पताल का बिस्तर भी नहीं है. हमारे पास लगभग 70,000 आईसीयू बेडों की संख्या है, यह काफी कम है. इससे लगभग 50 लाख रोगियों का इलाज किया जा सकता है. भगवान न करे, सामुदायिक प्रसारण पूरी तरह से महामारी के रूप में बदल जाए, भारत के सामने बड़ा संकट खड़ा हो सकता है.
(लेखक- पी रघु राम, निदेशक, केआईएमएस उषालक्ष्मी सेंटर फॉर ब्रेस्ट डिजीज)