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लिव इन रिलेशनशिप महिलाओं के लिए अपमानजनक : राजस्थान मानवाधिकार आयोग

राजस्थान मानवाधिकार आयोग की खंडपीठ ने अपने एक फैसले में लिव इन रिलेशनशिप को महिलाओं के लिए अपमानजनक जीवन माना है. आयोग के सदस्य इसके पहले भी कई फैसलों के कारण चर्चा में रहे हैं. पढ़ें पूरी खबर...

प्रतीकात्मक तस्वीर
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Published : Sep 5, 2019, 12:05 AM IST

Updated : Sep 29, 2019, 12:05 PM IST

जयपुरः राजस्थान मानवाधिकार आयोग में न्यायमूर्ति प्रकाशचंद टाटिया और महेश चंद शर्मा की खंडपीठ ने एक आदेश पारित किया है. इसमें कहा गया है कि किसी भी महिला का 'लिव इन रिलेशनशिप' जीवन किसी भी दृष्टि से सम्मानजनक नहीं है. आदेश में यह लिखा है कि ऐसे पशुवध जीवन संविधान के मूल अधिकार के खिलाफ है और उसके मानवाधिकार के खिलाफ भी है.

आयोग ने अपने फैसले में लिव इन रिलेशनशिप स्थापित करने की प्रवृत्ति को रोकना अत्यंत जरूरी माना तो साथ ही आदेश में यह भी कहा कि राज्य व केंद्र सरकार इस संबंध में कानून बना सकती है.

आदेश में यह कहा आयोग ने-
आयोग की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा कि भारतीय संविधान में अनुच्छेद 21 में व्यक्ति के जीवन के अधिकार से तात्पर्य व्यक्ति के सम्मान पूर्वक जीवन से है ना कि मात्र पशु वध जीवन से जैसा कि माननीय सुप्रीम कोर्ट के अनेकों अनेक निर्णय से अंतिम रूप से घोषित किया जा चुका है भारतीय संविधान में प्रधान जीवन के मूल अधिकार का त्याग नहीं किया जा सकता.

आदेश में कहा गया कि किसी महिला का ऐसा जीवन किसी भी दृष्टि से सम्मान पूर्वक जीवन नहीं कहा जा सकता. किसी महिला द्वारा अपने सम्मान पूर्वक जीवन का त्याग कर अपमानजनक जीवन के रूप में जीवन जीने का अधिकार नहीं है. इस प्रकार से जीवन की मांग कर महिला स्वयं भी अपने जीवन के मूल अधिकारों की सुरक्षा नहीं कर पाती है.

लिव इन रिलेशनशिप पर जानकारी देते संवाददाता

आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का उदाहरण देते हुए अपने फैसले में कहा कि ऐसे रिश्तो में लिव इन रिलेशनशिप को प्रोत्साहन देना तो दूर ऐसे रिश्तो से महिलाओं को दूर रहने के लिए सघन जागरूकता अभियान चलाकर ऐसे रिश्तो की कहानियों से महिलाओं को बचाना सभी मानव अधिकार रक्षकों आयोग व सरकारी विभागों के साथ सरकार का भी कर्तव्य होना चाहिए और इसे तत्काल आवश्यक कार्य करना राज्य और केंद्र सरकार का दायित्व भी है.

पढ़ेंः शाहजहांपुर मामला : स्वामी चिन्मयानंद पर लगे आरोपों की जांच के लिए SIT का गठन

बता दें आदेश की प्रतिलिपि मुख्य सचिव राजस्थान वह अतिरिक्त मुख्य सचिव और गृह विभाग को पालना के लिए प्रेषित की गई.

अपने फैसलों को लेकर चर्चित रहे हैं न्यायमूर्ति महेश चंद शर्मा-
न्यायमूर्ति महेश शर्मा पूर्व में राजस्थान हाई कोर्ट में दिए गए अपने कई फैसलों के कारण सुर्खियों में रहे हैं. खासतौर पर गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने का सुझाव देने और मोर पर दिए गए अपने अजीब बयान के कारण वह सुर्खियों में रहे हैं.

न्यायाधीश महेश चंद शर्मा ने कहा था कि मोर को इसलिए राष्ट्रीय पक्षी बनाया गया है क्योंकि मोर ब्रह्मचारी पक्षी है और वो मादा मोर के साथ कभी सेक्स नहीं करता, मोरनी तो मोर के आंसू पीकर ही गर्भवती होती है. यहां तक कि भगवान श्रीकृष्ण भी अपने सिर पर मोर का पंख लगाते थे.

जयपुरः राजस्थान मानवाधिकार आयोग में न्यायमूर्ति प्रकाशचंद टाटिया और महेश चंद शर्मा की खंडपीठ ने एक आदेश पारित किया है. इसमें कहा गया है कि किसी भी महिला का 'लिव इन रिलेशनशिप' जीवन किसी भी दृष्टि से सम्मानजनक नहीं है. आदेश में यह लिखा है कि ऐसे पशुवध जीवन संविधान के मूल अधिकार के खिलाफ है और उसके मानवाधिकार के खिलाफ भी है.

आयोग ने अपने फैसले में लिव इन रिलेशनशिप स्थापित करने की प्रवृत्ति को रोकना अत्यंत जरूरी माना तो साथ ही आदेश में यह भी कहा कि राज्य व केंद्र सरकार इस संबंध में कानून बना सकती है.

आदेश में यह कहा आयोग ने-
आयोग की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा कि भारतीय संविधान में अनुच्छेद 21 में व्यक्ति के जीवन के अधिकार से तात्पर्य व्यक्ति के सम्मान पूर्वक जीवन से है ना कि मात्र पशु वध जीवन से जैसा कि माननीय सुप्रीम कोर्ट के अनेकों अनेक निर्णय से अंतिम रूप से घोषित किया जा चुका है भारतीय संविधान में प्रधान जीवन के मूल अधिकार का त्याग नहीं किया जा सकता.

आदेश में कहा गया कि किसी महिला का ऐसा जीवन किसी भी दृष्टि से सम्मान पूर्वक जीवन नहीं कहा जा सकता. किसी महिला द्वारा अपने सम्मान पूर्वक जीवन का त्याग कर अपमानजनक जीवन के रूप में जीवन जीने का अधिकार नहीं है. इस प्रकार से जीवन की मांग कर महिला स्वयं भी अपने जीवन के मूल अधिकारों की सुरक्षा नहीं कर पाती है.

लिव इन रिलेशनशिप पर जानकारी देते संवाददाता

आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का उदाहरण देते हुए अपने फैसले में कहा कि ऐसे रिश्तो में लिव इन रिलेशनशिप को प्रोत्साहन देना तो दूर ऐसे रिश्तो से महिलाओं को दूर रहने के लिए सघन जागरूकता अभियान चलाकर ऐसे रिश्तो की कहानियों से महिलाओं को बचाना सभी मानव अधिकार रक्षकों आयोग व सरकारी विभागों के साथ सरकार का भी कर्तव्य होना चाहिए और इसे तत्काल आवश्यक कार्य करना राज्य और केंद्र सरकार का दायित्व भी है.

पढ़ेंः शाहजहांपुर मामला : स्वामी चिन्मयानंद पर लगे आरोपों की जांच के लिए SIT का गठन

बता दें आदेश की प्रतिलिपि मुख्य सचिव राजस्थान वह अतिरिक्त मुख्य सचिव और गृह विभाग को पालना के लिए प्रेषित की गई.

अपने फैसलों को लेकर चर्चित रहे हैं न्यायमूर्ति महेश चंद शर्मा-
न्यायमूर्ति महेश शर्मा पूर्व में राजस्थान हाई कोर्ट में दिए गए अपने कई फैसलों के कारण सुर्खियों में रहे हैं. खासतौर पर गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने का सुझाव देने और मोर पर दिए गए अपने अजीब बयान के कारण वह सुर्खियों में रहे हैं.

न्यायाधीश महेश चंद शर्मा ने कहा था कि मोर को इसलिए राष्ट्रीय पक्षी बनाया गया है क्योंकि मोर ब्रह्मचारी पक्षी है और वो मादा मोर के साथ कभी सेक्स नहीं करता, मोरनी तो मोर के आंसू पीकर ही गर्भवती होती है. यहां तक कि भगवान श्रीकृष्ण भी अपने सिर पर मोर का पंख लगाते थे.

Intro:लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाएं रखेल की तरह है- राज्य मानव अधिकार आयोग

आयोग ने एक मामले में दिया फैसला, लिव इन रिलेशनशिप को प्रतिबंधित करने की जताई आवश्यकता

जस्टिस महेश शर्मा ओम प्रकाश टाटिया की खंडपीठ ने दिया फैसला


जयपुर (इंट्रो)

लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाएं 'रखैल' की तरह है। जी हां राजस्थान राज्य मानव अधिकार आयोग ने एक परिवाद पर फैसला सुनाते हुए अपने आदेश में यह बात मानी है। न्यायमूर्ति प्रकाशचंद टाटिया और महेश चंद शर्मा की खंडपीठ के इस आदेश में कहा गया है कि ऐसे पशुवध जीवन संविधान के मूल अधिकार के खिलाफ है और उसके मानवाधिकार के खिलाफ भी है। खंडपीठ ने अपने फैसले में लिव इन रिलेशनशिप स्थापित करने की प्रवृत्ति को रोकना अत्यंत जरूरी माना तो साथ ही आदेश में यह भी कहा कि राज्य व केंद्र सरकार से इस संबंध में कानून बना सकती है।

सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न फैसलों का दिया उदाहरण,आदेश में यह कहा आयोग ने-

खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा कि भारतीय संविधान में अनुच्छेद 21 में व्यक्ति के जीवन के अधिकार से तात्पर्य व्यक्ति के सम्मान पूर्वक जीवन से है ना कि मात्र पशु वध जीवन से जैसा कि माननीय सुप्रीम कोर्ट के अनेकों अनेक निर्णय से अंतिम रूप से घोषित किया जा चुका है भारतीय संविधान में प्रधान जीवन के मूल अधिकार का त्याग नहीं किया जा सकता। आदेश में कहा गया कि किसी महिला का रखेल जीवन किसी भी दृष्टि से महिला का सम्मान पूर्वक जीवन नहीं कहा जा सकता। रखैल शब्द अपने आप में ही अत्यंत गंभीर चरित्र हनन करने वाला और घृणित संबोधन है अतः किसी महिला द्वारा अपने सम्मान पूर्वक जीवन का त्याग कर अपमानजनक जीवन रखेल के रूप में जीवन जीने का अधिकार नहीं है इस प्रकार से जीवन की मांग कर महिला स्वयं भी अपने जीवन के मूल अधिकारों की सुरक्षा नहीं कर पाती है । आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का उदाहरण देते हुए अपने फैसले में कहा कि ऐसे रिश्तो में लिव इन रिलेशनशिप को प्रोत्साहन देना तो दूर ऐसे रिश्तो से महिलाओं को दूर रहने के लिए सघन जागरूकता अभियान चलाकर ऐसे रिश्तो की हानियों से महिलाओं को बचाना सभी मानव अधिकार रक्षकों आयोग व सरकारी विभागों के साथ सरकार का भी कर्तव्य होना चाहिए और इसे तत्काल आवश्यक कार्य करना राज्य और केंद्र सरकार का दायित्व भी है।

आदेश की प्रतिलिपि मुख्य सचिव राजस्थान वह अतिरिक्त मुख्य सचिव और गृह विभाग को पालना के लिए प्रेषित की गई।

अपने फैसलों को लेकर चर्चित रहे हैं न्यायमूर्ति महेश चंद शर्मा-

न्यायमूर्ति महेश शर्मा पूर्व में राजस्थान हाई कोर्ट में दिए गए अपने कई फैसलों के कारण सुर्खियों में रहे हैं। खासतौर पर गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने का सुझाव देने और मोर पर दिए गए अपने अजीब बयान के कारण वह सुर्खियों में रहे हैं। न्यायाधीश महेश चंद शर्मा ने कहा था कि मोर को इसलिए राष्ट्रीय पक्षी बनाया गया है क्योंकि मोर ब्रह्मचारी पक्षी है और वो मादा मोर के साथ कभी सेक्स नहीं करता ,मोरनी तो मोर के आंसू पीकर ही गर्भवती होती है । यहां तक कि भगवान श्रीकृष्ण भी अपने सिर पर मोर का पंख लगाते थे।



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Last Updated : Sep 29, 2019, 12:05 PM IST
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