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धनतेरस 2020: भौतिकवाद में बदलतीं पुरातन परंपराएं - नए दौर का चलन

धनतेरस के अवसर पर सदियों से चली आ रही सोने, चांदी और बर्तनों को खरीदने की परंपरा में वर्तमान समय में बदलाव आने लगा है. कहा जाए तो कोरोना काल की वजह से भी यह बदलाव देखा जा रहा है. लोग परंपरा अनुसार सोना चांदी खरीदने की बजाय अब अपने घर की जरूरत के अनुसार सामान खरीदना ज्यादा पसंद करते हैं. वहीं इसे लेकर एक नया चलन भी सामने आ रहा है, जिसमें लोग गोल्ड ईटीएफ, गोल्ड फंड जैसे ऑनलइन गोल्ड की खरीदारी की तरफ रुख कर रहे हैं.

Dhanteras
धनतेरस
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Published : Nov 13, 2020, 5:54 PM IST

Updated : Nov 13, 2020, 10:28 PM IST

धनतेरस को अर्थव्यवस्था का त्योहार माना जाता है. कहा जाता है कि धनतेरस के दिन हम जिस भी चीज को खरीदते हैं, माता लक्ष्मी की कृपा से उस चीज में कई गुना वृद्धि हो जाती है. इसलिए पुरातन काल से ही धनतेरस के दिन भारतीयों में सोना, चांदी या बर्तन खरीदने की परंपरा रही है. हालांकि बदलते समय और बढ़ती महंगाई के चलते खरीदारी को लेकर चली आ रही परंपरा में बदलाव नजर आने लगा है. अब लोग सोना, चांदी खरीदने के बजाय अपनी जरूरत अनुसार गाड़ी, मोबाइल, टेलीविजन, कंप्यूटर और फ्रिज जैसे सामान खरीदने लगे हैं.

पुरातन परंपरा

पंचांग के अनुसार हर साल कार्तिक कृष्ण की त्र्योदशी के दिन धन्वन्तरि त्र्योदशी मनायी जाती है, जिसे आम बोलचाल में धनतेरस कहा जाता है. यह मूलत: धन्वन्तरि जयंती का पर्व है और आयुर्वेद के जनक धन्वन्तरि के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है. कहा जाता है कि जब धनवंतरि का जन्म हुआ था, उसके हाथ में अमृत कलश था. इसलिए धनतेरस के दिन नये बर्तन या सोना-चांदी खरीदने की परम्परा है. ऐसी मान्यता है कि धनतेरस के दिन सोना, चांदी या बर्तन खरीदने से जितना खरीदा गया है, उससे 13 गुना ज्यादा धन और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है.

पुरातन काल से धनतेरस के दिन लोग विशेष तौर पर चांदी के सिक्के तथा सोने के सिक्के व सोने के आभूषण खरीदते आए हैं. पहले के समय में जो लोग बड़े व भारी आभूषण या चांदी के सिक्के नहीं खरीद पाते थे, वह चांदी या सोने के मनके के मोती खरीद कर इस परंपरा को मनाते थे. आज भी कई लोग इस परंपरा का पालन करते हैं.

जरूरत अनुसार बदलती परंपराएं

बदलते समय में बढ़ती महंगाई और भौतिकवादता के बढ़ने से धनतेरस की प्राचीन खरीदारी वाली परंपरा में काफी अंतर आया है. लोग धनतेरस पर सोना, चांदी खरीदने से ज्यादा गाड़ी, नया फर्नीचर, फ्रिज, टीवी, वॉशिंग मशीन और मोबाइल जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों को ज्यादा प्राथमिकता देने लगे हैं. यह कहना गलत नहीं होगा कि रीति-रिवाजों से जुड़ा धनतेरस आज व्यक्ति की आर्थिक क्षमता का सूचक बन गया है.

एक तरफ उच्च और मध्यम वर्ग के लोग धनतेरस के दिन विलासिता से भरपूर वस्तुएं खरीदते हैं, तो दूसरी ओर निम्न वर्ग के लोग जरूरत के सामान खरीदकर धनतेरस का पर्व मनाते हैं.

नए दौर का चलन

नए दौर के अनुसार धनतेरस पर खरीदारी की बदलती बयार का एक और चलन विशेषकर युवा पीढ़ी में काफी प्रचलित हो रहा है. क्योंकि ऐसा माना जाता है कि धनतेरस के दिन सोना खरीदने से घर में माता लक्ष्मी का आगमन होता है, युवा पीढ़ी सोना तो खरीद रही है, लेकिन सोने के जेवरात या बिस्किट के रूप में नहीं बल्कि गोल्ड ईटीएफ, गोल्ड फंड, तथा गोल्ड बॉन्ड के रूप में. यह बहुत कुछ म्यूचुअल फंड जैसा ही होता है. इस प्रक्रिया में सोना फिजिकल रूप में नहीं, बल्कि कागजों में आपके पास होता है, लेकिन उसकी वैल्यू उतनी ही होती है, जितनी कि सोने के आभूषण या बिस्किट की होती है.

धनतेरस को अर्थव्यवस्था का त्योहार माना जाता है. कहा जाता है कि धनतेरस के दिन हम जिस भी चीज को खरीदते हैं, माता लक्ष्मी की कृपा से उस चीज में कई गुना वृद्धि हो जाती है. इसलिए पुरातन काल से ही धनतेरस के दिन भारतीयों में सोना, चांदी या बर्तन खरीदने की परंपरा रही है. हालांकि बदलते समय और बढ़ती महंगाई के चलते खरीदारी को लेकर चली आ रही परंपरा में बदलाव नजर आने लगा है. अब लोग सोना, चांदी खरीदने के बजाय अपनी जरूरत अनुसार गाड़ी, मोबाइल, टेलीविजन, कंप्यूटर और फ्रिज जैसे सामान खरीदने लगे हैं.

पुरातन परंपरा

पंचांग के अनुसार हर साल कार्तिक कृष्ण की त्र्योदशी के दिन धन्वन्तरि त्र्योदशी मनायी जाती है, जिसे आम बोलचाल में धनतेरस कहा जाता है. यह मूलत: धन्वन्तरि जयंती का पर्व है और आयुर्वेद के जनक धन्वन्तरि के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है. कहा जाता है कि जब धनवंतरि का जन्म हुआ था, उसके हाथ में अमृत कलश था. इसलिए धनतेरस के दिन नये बर्तन या सोना-चांदी खरीदने की परम्परा है. ऐसी मान्यता है कि धनतेरस के दिन सोना, चांदी या बर्तन खरीदने से जितना खरीदा गया है, उससे 13 गुना ज्यादा धन और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है.

पुरातन काल से धनतेरस के दिन लोग विशेष तौर पर चांदी के सिक्के तथा सोने के सिक्के व सोने के आभूषण खरीदते आए हैं. पहले के समय में जो लोग बड़े व भारी आभूषण या चांदी के सिक्के नहीं खरीद पाते थे, वह चांदी या सोने के मनके के मोती खरीद कर इस परंपरा को मनाते थे. आज भी कई लोग इस परंपरा का पालन करते हैं.

जरूरत अनुसार बदलती परंपराएं

बदलते समय में बढ़ती महंगाई और भौतिकवादता के बढ़ने से धनतेरस की प्राचीन खरीदारी वाली परंपरा में काफी अंतर आया है. लोग धनतेरस पर सोना, चांदी खरीदने से ज्यादा गाड़ी, नया फर्नीचर, फ्रिज, टीवी, वॉशिंग मशीन और मोबाइल जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों को ज्यादा प्राथमिकता देने लगे हैं. यह कहना गलत नहीं होगा कि रीति-रिवाजों से जुड़ा धनतेरस आज व्यक्ति की आर्थिक क्षमता का सूचक बन गया है.

एक तरफ उच्च और मध्यम वर्ग के लोग धनतेरस के दिन विलासिता से भरपूर वस्तुएं खरीदते हैं, तो दूसरी ओर निम्न वर्ग के लोग जरूरत के सामान खरीदकर धनतेरस का पर्व मनाते हैं.

नए दौर का चलन

नए दौर के अनुसार धनतेरस पर खरीदारी की बदलती बयार का एक और चलन विशेषकर युवा पीढ़ी में काफी प्रचलित हो रहा है. क्योंकि ऐसा माना जाता है कि धनतेरस के दिन सोना खरीदने से घर में माता लक्ष्मी का आगमन होता है, युवा पीढ़ी सोना तो खरीद रही है, लेकिन सोने के जेवरात या बिस्किट के रूप में नहीं बल्कि गोल्ड ईटीएफ, गोल्ड फंड, तथा गोल्ड बॉन्ड के रूप में. यह बहुत कुछ म्यूचुअल फंड जैसा ही होता है. इस प्रक्रिया में सोना फिजिकल रूप में नहीं, बल्कि कागजों में आपके पास होता है, लेकिन उसकी वैल्यू उतनी ही होती है, जितनी कि सोने के आभूषण या बिस्किट की होती है.

Last Updated : Nov 13, 2020, 10:28 PM IST
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