ETV Bharat / bharat

केंद्र का जवाब- पीसीए नियमों के तहत मवेशियों को लिया जा सकता है कब्जे में

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी है कि मुकदमा लंबित रहने के दौरान पीसीए नियमों के तहत मवेशियों को कब्जे में लिया जा सकता है.

सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट
author img

By

Published : Jan 11, 2021, 9:30 PM IST

नई दिल्ली : केंद्र ने पशु क्रूरता रोकथाम कानून, 1960 के तहत बने 2017 के नियमों को न्यायोचित ठहराते हुए सोमवार को उच्चतम न्यायालय में दलील दी कि मवेशियों को जब्त करने और कब्जे में लेने में अंतर है. केंद्र ने कहा कि जब्त किए मवेशियों की रिहाई के लिए संबंधित अदालत में आवेदन दायर किया जा सकता है.

शीर्ष अदालत ने कहा कि पशु क्रूरता रोकथाम कानून के तहत व्यक्ति को दोषी पाए जाने के बाद ही उसके मवेशी को जब्त किया जा सकता है और मुकदमा लंबित होने के दौरान ऐसा नहीं किया जा सकता.

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ ने कहा कि वह उस स्थिति की बात कर रही है, जब कार्यवाही के दौरान मवेशियों को उसके मालिक से ले लिया जाता है.

पीठ ने कहा कि ब्रिक्री और जब्ती में अंतर होता है. बिक्री होने पर आमदनी होती है. हमारा सरोकार मवेशियों को उनके मालिकों से जब्त करके बंद रखने और इस दौरान उनके जख्मी होने से संबंधित बिन्दु पर है.

वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि उन्होंने इस मामले में विस्तृत जवाब दाखिल किया है और जहां तक जब्त किए गए मवेशियों का सवाल है तो उनकी रिहाई के लिए संबंधित अदालत में आवेदन दायर किया जा सकता है.

मेहता ने कहा कि याचिकाकर्ता गैर सरकारी संगठन को सीजर और कंफिस्केशन में भ्रम हो गया है और क्रूरता का शिकार हो रहे पशु को उसी व्यक्ति को रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती है.

पीठ ने मेहता से कहा कि आप इन नियमों के बारे में क्या करने जा रहे हैं, जो कानून की धाराओं के भिन्न हैं.

पीठ ने कहा कि मवेशी लोगों की आजीविका का साधन हैं. धारा में स्पष्ट है कि दोषी पाए जाने के बाद ही पशुओं को ले जाया जा सकता है. नियम दोषसिद्धि से पहले ही पशुओं को ले जाने की इजाजत देते हैं.

पीठ ने कहा कि इस मामले में वह केंद्र के जवाब पर अगले सप्ताह विचार करेगी.

इस मामले में हस्तक्षेपकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता वी वी गिरि और सिद्धार्थ लूथरा ने दलील दी कि कानून में प्रावधान है कि कानून के तहत व्यक्ति की दोषसिद्धि से पहले ही पशुओं को जब्त किया जा सकता है.

न्यायालय ने हस्तक्षेपकर्ताओं को हस्तक्षेप की अनुमति देते हुए इस मामले को दो सप्ताह बाद सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया.

केंद्र ने न्यायालय में दाखिल हलफनामे में कहा कि सीजर का तात्पर्य अस्थाई रूप से संपत्ति को अपने कब्जे में लेना है, जबकि कंफिस्केशन का तात्पर्य मामले विशेष में फैसले के बाद संपत्ति के स्वामित्व का हस्तांतरण है.

न्यायालय ने चार जनवरी को केंद्र से कहा था कि मुकदमों के दौरान कारोबारियों और ट्रांसपोर्टर्स के मवेशियों को जब्त करने संबंधी 2017 के नियमों को वापस ले या इसमें संशोधन करे क्योंकि ये पशुओं की क्रूरता से रोकथाम कानून के खिलाफ हैं.

न्यायालय ने कहा था कि केंद्र ने अगर इन नियमों को वापस नहीं लिया या इनमें संशोधन नहीं किया गया तो इन पर रोक लगा दी जाएगी, क्योंकि कानून के तहत दोषी पाए जाने पर ही मवेशियों को जब्त किया जा सकता है.

यह भी पढ़ें- सीएम योगी को धमकी देकर बुरे फंसे आप विधायक, भेजे गए जेल, नहीं मिली बेल

पशुओं से क्रूरता की रोकथाम कानून, 1960 के तहत पशुओं से क्रूरता की रोकथाम (देखभाल और मुकदमे की संपत्ति का रखरखाव) नियम, 2017 बनाए गए थे, जिन्हें 23 मई, 2017 को अधिसूचित किया गया था.

न्यायालय ने बफैलो ट्रेडर्स वेलफेयर एसोसिएशन की याचिका पर सुनवाई के दौरान दो जुलाई, 2019 को केंद्र से जवाब मांगा था. इन कारोबारियों ने अपनी याचिका में 2017 के नियमों को चुनौती दी थी.

इन कारोबारियों का आरोप है कि उन्हें जबरन उनके मवेशियों से वंचित किया जा रहा है और इन नियमों के तहत जब्त किए जा रहे मवेशियों को 'गौशाला' भेजा जा रहा है. याचिका में कहा गया था कि ये मवेशी अनेक परिवारों की जीविका का साधन हैं.

एसोसिशएशन ने याचिका में आरोप लगाया था कि 2017 में बनाये गए नियम 1960 के कानून के दायरे से बाहर निकल गए हैं.

मई, 2017 में बनाए गए इन नियमों के अनुसार इस कानून के तहत मुकदमों का सामना कर रहे व्यक्ति के मवेशियों को मजिस्ट्रेट जब्त कर सकते हैं और इन मवेशियों को बाद में अस्पताल, गौशाला या पिंजरापोल भेज दिया जाता है.

नई दिल्ली : केंद्र ने पशु क्रूरता रोकथाम कानून, 1960 के तहत बने 2017 के नियमों को न्यायोचित ठहराते हुए सोमवार को उच्चतम न्यायालय में दलील दी कि मवेशियों को जब्त करने और कब्जे में लेने में अंतर है. केंद्र ने कहा कि जब्त किए मवेशियों की रिहाई के लिए संबंधित अदालत में आवेदन दायर किया जा सकता है.

शीर्ष अदालत ने कहा कि पशु क्रूरता रोकथाम कानून के तहत व्यक्ति को दोषी पाए जाने के बाद ही उसके मवेशी को जब्त किया जा सकता है और मुकदमा लंबित होने के दौरान ऐसा नहीं किया जा सकता.

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ ने कहा कि वह उस स्थिति की बात कर रही है, जब कार्यवाही के दौरान मवेशियों को उसके मालिक से ले लिया जाता है.

पीठ ने कहा कि ब्रिक्री और जब्ती में अंतर होता है. बिक्री होने पर आमदनी होती है. हमारा सरोकार मवेशियों को उनके मालिकों से जब्त करके बंद रखने और इस दौरान उनके जख्मी होने से संबंधित बिन्दु पर है.

वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि उन्होंने इस मामले में विस्तृत जवाब दाखिल किया है और जहां तक जब्त किए गए मवेशियों का सवाल है तो उनकी रिहाई के लिए संबंधित अदालत में आवेदन दायर किया जा सकता है.

मेहता ने कहा कि याचिकाकर्ता गैर सरकारी संगठन को सीजर और कंफिस्केशन में भ्रम हो गया है और क्रूरता का शिकार हो रहे पशु को उसी व्यक्ति को रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती है.

पीठ ने मेहता से कहा कि आप इन नियमों के बारे में क्या करने जा रहे हैं, जो कानून की धाराओं के भिन्न हैं.

पीठ ने कहा कि मवेशी लोगों की आजीविका का साधन हैं. धारा में स्पष्ट है कि दोषी पाए जाने के बाद ही पशुओं को ले जाया जा सकता है. नियम दोषसिद्धि से पहले ही पशुओं को ले जाने की इजाजत देते हैं.

पीठ ने कहा कि इस मामले में वह केंद्र के जवाब पर अगले सप्ताह विचार करेगी.

इस मामले में हस्तक्षेपकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता वी वी गिरि और सिद्धार्थ लूथरा ने दलील दी कि कानून में प्रावधान है कि कानून के तहत व्यक्ति की दोषसिद्धि से पहले ही पशुओं को जब्त किया जा सकता है.

न्यायालय ने हस्तक्षेपकर्ताओं को हस्तक्षेप की अनुमति देते हुए इस मामले को दो सप्ताह बाद सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया.

केंद्र ने न्यायालय में दाखिल हलफनामे में कहा कि सीजर का तात्पर्य अस्थाई रूप से संपत्ति को अपने कब्जे में लेना है, जबकि कंफिस्केशन का तात्पर्य मामले विशेष में फैसले के बाद संपत्ति के स्वामित्व का हस्तांतरण है.

न्यायालय ने चार जनवरी को केंद्र से कहा था कि मुकदमों के दौरान कारोबारियों और ट्रांसपोर्टर्स के मवेशियों को जब्त करने संबंधी 2017 के नियमों को वापस ले या इसमें संशोधन करे क्योंकि ये पशुओं की क्रूरता से रोकथाम कानून के खिलाफ हैं.

न्यायालय ने कहा था कि केंद्र ने अगर इन नियमों को वापस नहीं लिया या इनमें संशोधन नहीं किया गया तो इन पर रोक लगा दी जाएगी, क्योंकि कानून के तहत दोषी पाए जाने पर ही मवेशियों को जब्त किया जा सकता है.

यह भी पढ़ें- सीएम योगी को धमकी देकर बुरे फंसे आप विधायक, भेजे गए जेल, नहीं मिली बेल

पशुओं से क्रूरता की रोकथाम कानून, 1960 के तहत पशुओं से क्रूरता की रोकथाम (देखभाल और मुकदमे की संपत्ति का रखरखाव) नियम, 2017 बनाए गए थे, जिन्हें 23 मई, 2017 को अधिसूचित किया गया था.

न्यायालय ने बफैलो ट्रेडर्स वेलफेयर एसोसिएशन की याचिका पर सुनवाई के दौरान दो जुलाई, 2019 को केंद्र से जवाब मांगा था. इन कारोबारियों ने अपनी याचिका में 2017 के नियमों को चुनौती दी थी.

इन कारोबारियों का आरोप है कि उन्हें जबरन उनके मवेशियों से वंचित किया जा रहा है और इन नियमों के तहत जब्त किए जा रहे मवेशियों को 'गौशाला' भेजा जा रहा है. याचिका में कहा गया था कि ये मवेशी अनेक परिवारों की जीविका का साधन हैं.

एसोसिशएशन ने याचिका में आरोप लगाया था कि 2017 में बनाये गए नियम 1960 के कानून के दायरे से बाहर निकल गए हैं.

मई, 2017 में बनाए गए इन नियमों के अनुसार इस कानून के तहत मुकदमों का सामना कर रहे व्यक्ति के मवेशियों को मजिस्ट्रेट जब्त कर सकते हैं और इन मवेशियों को बाद में अस्पताल, गौशाला या पिंजरापोल भेज दिया जाता है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.