नई दिल्ली: राफेल मामले की पुनर्विचार याचिका पर केंद्र ने उच्चतम न्यायालय में अपना पक्ष रखा है. केंद्र ने कहा है कि अदालत में पेश किए गए अधूरे फाइल नोटिंग्स अवैध तरीके से हासिल किए गए हैं. केंद्र ने कहा है कि इन पर भरोसा करके समूचे मामले को दोबारा नहीं खोला जा सकता. केंद्र की दलील है कि पुनर्विचार याचिका का दायरा 'बेहद सीमित' है.
पुनर्विचार याचिका का दायरा 'बेहद सीमित
केंद्र ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के फैसले पर पुनर्विचार करने की मांग की आड़ में और उनके मीडिया में आई कुछ खबरों और अनधिकृत और अवैध तरीके से हासिल कुछ अधूरे फाइल नोटिंग्स पर भरोसा करके समूचे मामले को दोबारा नहीं खोला जा सकता क्योंकि पुनर्विचार याचिका का दायरा 'बेहद सीमित' है.
यशवंत सिन्हा, प्रशांत भूषण और अरुण शौरी की पुनर्विचार की मांग खारिज
केंद्र का जवाब पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी तथा अधिवक्ता प्रशांत भूषण की याचिका पर आया है, जिसमें वे शीर्ष अदालत के 14 दिसंबर के फैसले पर पुनर्विचार की मांग कर रहे हैं. शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में करोड़ों रुपये के राफेल लड़ाकू विमान सौदे मामले में कथित अनियमितताओं की जांच की मांग करने वाली उनकी याचिकाएं खारिज कर दी थीं.
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पुनर्विचार याचिकाओं पर अगले सप्ताह होगी सुनवाई
दो अन्य पुनर्विचार याचिकाएं आप नेता संजय सिंह और अधिवक्ता विनीत ढांडा ने दायर की है. सभी पुनर्विचार याचिकाओं पर प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई अगले सप्ताह सुनवाई करने वाले हैं. केंद्र ने अपने हलफनामे में कहा, 'पुनर्विचार याचिका असंबद्ध जांच का आदेश दिलाने का प्रयास है, जिसे इस अदालत ने साफ तौर पर मना कर दिया था. शब्दों से खेलकर CBI से जांच और अदालत से जांच कराए जाने के बीच अस्तित्वविहीन भेद करने का प्रयास किया जा रहा है'.
केंद्र का कहा मीडिया में आई खबरें फैसले की समीक्षा का आधार नहीं हो सकतीं
केंद्र ने कहा कि शीर्ष अदालत राफेल सौदे के सभी तीन पहलुओं पर निर्णय की प्रक्रिया, कीमत और भारतीय ऑफसेट पार्टनर का चयन इस निष्कर्ष पर पहुंची थी कि उसके हस्तक्षेप की कोई जरूरत नहीं है. केंद्र ने कहा कि मीडिया में आई खबरें फैसले की समीक्षा का आधार नहीं हो सकतीं क्योंकि यह सुस्थापित कानून है कि अदालतें मीडिया में आई खबरों के आधार पर फैसला नहीं कर सकतीं.
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केंद्र ने कहा कि आंतरिक फाइल नोटिंग और उसमें शामिल विचार मामले में अंतिम फैसला करने के लिये सक्षम प्राधिकार के विचार करने की खातिर महज विचारों की अभिव्यक्ति हैं. केंद्र ने कहा, 'किसी वादकारी के अंतिम फैसले पर सवाल उठाने के लिये यह कोई आधार नहीं हो सकता. इसलिये, इस आधार पर भी पुनर्विचार याचिका पर विचार के लिये कोई आधार नहीं बनाया गया है.'