ETV Bharat / bharat

उत्तराखंड : बीआरओ ने नौ दिन में तैयार किया 180 फीट लंबा वैली ब्रिज - bailey bridge in pithoragarh

पिथौरागढ़ में 27 जुलाई को जौलजीबी-मुनस्यारी मोटरमार्ग पर दुबड़ीगाड़ में बना वैली ब्रिज आपदा की भेंट चढ़ गया था, जिसे बीआरओ ने नौ दिन के भीतर फिर से तैयार कर लिया है. यह ब्रिज 180 फीट लंबा और 18 टन वजनी है. पढ़ें पूरी खबर...

bridge in pithogarah in 9 days only
नौ दिन में तैयार वैली ब्रिज
author img

By

Published : Aug 17, 2020, 6:36 PM IST

पिथौरागढ़ : उत्तराखंडा में 27 जुलाई की रात आई भीषण आपदा में बरम के पास दुबड़ीगाड़ पर बना मोटरपुल बह गया था. इस स्थान पर बीआरओ ने 180 फीट लंबा वैली ब्रिज नौ दिन के भीतर तैयार कर लिया है. पुल से वाहनों की आवाजाही शुरू हो गई है. पुल तैयार होने से बंगापानी और मदकोट क्षेत्र की 20 हजार से ज्यादा की आबादी ने राहत की सांस ली है.

आपदा के चलते जौलजीबी-मुनस्यारी सड़क पर दुबड़ीगाड़ पर बहे पुल के स्थान पर बीआरओ ने नया पुल तैयार कर लिया है. पुल को बनाने का काम सात अगस्त से शुरू हुआ था. बीआरओ ने युद्ध स्तर पर काम करते हुए नौ दिन के भीतर 180 फीट लंबा और 18 टन वजनी वैली ब्रिज तैयार किया है. बीआरओ के कमांडर एस बनर्जी ने बताया कि पुल तैयार होने के साथ ही जौलजीबी से लुमती गाड़ तक पूरी तरह सड़क खुली है. जबकि, मदकोट से मोरी तक मार्ग खोला जा चुका है. बीआरओ कमांडर ने बताया कि लुमती गाड़ में जेसीबी मशीन से कार्य चल रहा है, दो दिन में सड़क खोल दी जाएगी.

बीआरओ ने नौ दिनों में तैयार किया नया वैली ब्रिज

ये भी पढ़ें : तेज बहाव में फंसे शख्स को सेना के हेलीकॉप्टर ने किया रेस्क्यू, देखें वीडियो

बता दें कि, बीते 27 जुलाई की रात बंगापानी क्षेत्र में बादल फटने से भारी तबाही मची थी. जिसमें जौलजीबी-मुनस्यारी मोटरमार्ग कई स्थानों पर जमींदोज होने के साथ ही दुबड़ीगाड़ पर बना पुल ध्वस्त हो गया था. जिसके बाद लुमती समेत अन्य गांवों में फंसे ग्रामीणों को कुमाऊं स्कॉट के जवानों ने रेस्क्यू किया था. पुल बहने से बंगापानी और मदकोट क्षेत्र का बाकी दुनिया से संपर्क कट गया था. जिस कारण क्षेत्र में जरूरी चीजों की किल्लत बनी हुई थी. पुल तैयार होने से 20 हजार से ज्यादा की आबादी को राहत मिली है.

क्या होता है वैली ब्रिज?
वैली ब्रिज एक प्रकार का पोर्टेबल, प्री-फैब्रिकेटेड, ट्रस ब्रिज है. 1940-1941 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इसे सेना के इस्तेमाल के लिए अंग्रेजों ने विकसित किया था. इस पुल की सबसे खास बात यह होती है कि इसे बनाने के लिए कोई विशेष उपकरण या भारी सामान की जरूरत नहीं है. ब्रिटिश सेना में सिविल इंजिनियर डोनाल्ड बेली ने 1941 में पहली बार इस तरह के पुल का माडल बनाकर सेना के अफसरों के सामने पेश किया था. डोनाल्ड बेली के नाम पर ही इस पुल का नाम वैली ब्रिज पड़ा.

दूसरे विश्व युद्घ के समय ब्रिटिश सेना इसका उपयोग नदी-नाले पार करने के लिए करती थी. पूरे पुल को एक ट्रक में लादकर सेना अपने साथ ले जाया करती थी. यह पुल इतना मजबूत होता था कि उसके ऊपर से युद्घ के टैंकर पार हो जाते थे. वैली ब्रिज का इस्तेमाल सिविल इंजीनियरिंग निर्माण परियोजनाओं में बड़े पैमाने पर किया जाता है.

पिथौरागढ़ : उत्तराखंडा में 27 जुलाई की रात आई भीषण आपदा में बरम के पास दुबड़ीगाड़ पर बना मोटरपुल बह गया था. इस स्थान पर बीआरओ ने 180 फीट लंबा वैली ब्रिज नौ दिन के भीतर तैयार कर लिया है. पुल से वाहनों की आवाजाही शुरू हो गई है. पुल तैयार होने से बंगापानी और मदकोट क्षेत्र की 20 हजार से ज्यादा की आबादी ने राहत की सांस ली है.

आपदा के चलते जौलजीबी-मुनस्यारी सड़क पर दुबड़ीगाड़ पर बहे पुल के स्थान पर बीआरओ ने नया पुल तैयार कर लिया है. पुल को बनाने का काम सात अगस्त से शुरू हुआ था. बीआरओ ने युद्ध स्तर पर काम करते हुए नौ दिन के भीतर 180 फीट लंबा और 18 टन वजनी वैली ब्रिज तैयार किया है. बीआरओ के कमांडर एस बनर्जी ने बताया कि पुल तैयार होने के साथ ही जौलजीबी से लुमती गाड़ तक पूरी तरह सड़क खुली है. जबकि, मदकोट से मोरी तक मार्ग खोला जा चुका है. बीआरओ कमांडर ने बताया कि लुमती गाड़ में जेसीबी मशीन से कार्य चल रहा है, दो दिन में सड़क खोल दी जाएगी.

बीआरओ ने नौ दिनों में तैयार किया नया वैली ब्रिज

ये भी पढ़ें : तेज बहाव में फंसे शख्स को सेना के हेलीकॉप्टर ने किया रेस्क्यू, देखें वीडियो

बता दें कि, बीते 27 जुलाई की रात बंगापानी क्षेत्र में बादल फटने से भारी तबाही मची थी. जिसमें जौलजीबी-मुनस्यारी मोटरमार्ग कई स्थानों पर जमींदोज होने के साथ ही दुबड़ीगाड़ पर बना पुल ध्वस्त हो गया था. जिसके बाद लुमती समेत अन्य गांवों में फंसे ग्रामीणों को कुमाऊं स्कॉट के जवानों ने रेस्क्यू किया था. पुल बहने से बंगापानी और मदकोट क्षेत्र का बाकी दुनिया से संपर्क कट गया था. जिस कारण क्षेत्र में जरूरी चीजों की किल्लत बनी हुई थी. पुल तैयार होने से 20 हजार से ज्यादा की आबादी को राहत मिली है.

क्या होता है वैली ब्रिज?
वैली ब्रिज एक प्रकार का पोर्टेबल, प्री-फैब्रिकेटेड, ट्रस ब्रिज है. 1940-1941 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इसे सेना के इस्तेमाल के लिए अंग्रेजों ने विकसित किया था. इस पुल की सबसे खास बात यह होती है कि इसे बनाने के लिए कोई विशेष उपकरण या भारी सामान की जरूरत नहीं है. ब्रिटिश सेना में सिविल इंजिनियर डोनाल्ड बेली ने 1941 में पहली बार इस तरह के पुल का माडल बनाकर सेना के अफसरों के सामने पेश किया था. डोनाल्ड बेली के नाम पर ही इस पुल का नाम वैली ब्रिज पड़ा.

दूसरे विश्व युद्घ के समय ब्रिटिश सेना इसका उपयोग नदी-नाले पार करने के लिए करती थी. पूरे पुल को एक ट्रक में लादकर सेना अपने साथ ले जाया करती थी. यह पुल इतना मजबूत होता था कि उसके ऊपर से युद्घ के टैंकर पार हो जाते थे. वैली ब्रिज का इस्तेमाल सिविल इंजीनियरिंग निर्माण परियोजनाओं में बड़े पैमाने पर किया जाता है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.