मुम्बई : बंबई उच्च न्यायालय की औरंगाबाद पीठ ने महाराष्ट्र सरकार से इस बारे में फैसला करने को कहा है कि क्या आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग श्रेणी (ईडब्लूयएस) के तहत 10 प्रतिशत आरक्षण का लाभ उन लोगों को मिल सकता है, जिन्हें मराठा समुदाय लिए आरक्षण के तहत फायदा मिला था. मराठा समुदाय के लिए आरक्षण पर उच्चतम न्यायालय ने रोक लगा दी है.
अदालत ने 18 दिसम्बर को यह आदेश सुनाया था और इसकी प्रति सोमवार को मुहैया कराई गई. न्यायमूर्ति एस. वी. गंगापुरवाला और न्यायमूर्ति एस. डी. कुलकर्णी की एक खंडपीठ ने तहसीलदारों (राजस्व अधिकारी) के पदों के लिए सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग (एसईबीसी) श्रेणी (मराठा समुदाय आरक्षण के लिए) के तहत आवेदन करने वाले तीन नौकरी पाने को इच्छुक लोगों की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सरकार को एक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया.
याचिकाकर्ता शीतल जिरपे, वर्षा अकट और विक्रम वारपे ने कहा था कि न्यायालय ने मराठा समुदाय को दिए आरक्षण पर रोक लगा दी है, इसलिए ईडब्ल्यूएस के तहत उनके आवेदन पर विचार किया जाना चाहिए. उनके वकीलों ने अदालत से कहा कि याचिकाकर्ताओं के पास ईडब्ल्यूएस श्रेणी का प्रमाणपत्र भी है और अगर उन्हें इस श्रेणी के तहत नियुक्त किया जाता है, तो भविष्ठ में वे किसी अन्य आरक्षण के तहत लाभ प्राप्त करने का कोई दावा नहीं करेंगे. इसके बाद पीठ ने सरकारी वकील से पूछा कि क्या इस संबंध में कोई फैसला किया गया है.
अदालत ने कहा यह उचित होता, यदि सरकार ने इस संबंध में निर्णय लिया होता कि क्या ईडब्ल्यूएस श्रेणी का लाभ उन उम्मीदवारों को दिया जाना चाहिए, जिन्होंने एसईबीसी श्रेणी के तहत आवेदन दिया था, जिस पर शीर्ष अदालत ने रोक लगा दी है. अदालत ने कहा ऐसा प्रतीत होता है कि इस संबंध में कोई निर्णय नहीं लिया गया है. उसने सरकार को इस संबंध में एक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश देते हुए मामले की आगे की सुनवाई के लिए 14 जनवरी की तारीख तय की. अदालत ने साथ ही यह भी कहा कि तब तक सरकार ईडब्ल्यूएस श्रेणी के याचिकाकर्ताओं की तुलना में कम अंक पाने वाले लोगों की नियुक्त ना करे.
महाराष्ट्र विधान मंडल ने 30 नवम्बर, 2018 को राज्य में मराठा समुदाय के लिये शिक्षा और सरकारी नौकरियों में 16 प्रतिशत आरक्षण देने संबंधी विधेयक पारित किया था. बंबई उच्च न्यायालय ने 27 जून, 2019 को इस कानून को वैध ठहराया था, लेकिन साथ ही कहा था कि 16 प्रतिशत आरक्षण न्यायोचित नहीं है और रोजगार में 12 और शिक्षण संस्थानों में प्रवेश के लिए 13 फीसदी से ज्यादा आरक्षण नहीं होना चाहिए.
संविधान के 102वें संशोधन के अनुसार अगर राष्ट्रपति द्वारा तैयार सूची में किसी समुदाय विशेष का नाम है, तो उसे आरक्षण प्रदान किया जा सकता है. न्यायालय ने हालांकि नौ सितम्बर को शिक्षा और रोजगार में मराठा समुदाय के लिये आरक्षण का प्रावधान करने संबंधी महाराष्ट्र सरकार के 2018 के कानून के अमल पर रोक लगा दी थी। ऐसा करते समय न्यायालय ने स्पष्ट किया था कि जिन लोगों को इसका लाभ मिल गया है उनकी स्थिति में कोई बदलाव नहीं होगा. वहीं जनवरी 2019 में केन्द्र सरकार ने सामान्य श्रेणी में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के लिए शिक्षा और नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षण को मंजूरी दी थी.
क्या मराठा प्रत्याशी ईडब्ल्यूएस आरक्षण के तहत आवेदन कर सकते हैं?
बंबई उच्च न्यायालय की औरंगाबाद पीठ ने महाराष्ट्र सरकार से सवाल किया है. न्यायालय ने सवाल किया है कि क्या आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग श्रेणी (ईडब्लूयएस) के तहत 10 प्रतिशत आरक्षण का लाभ उन लोगों को मिल सकता है, जिन्हें मराठा समुदाय लिए आरक्षण के तहत फायदा मिला था.
मुम्बई : बंबई उच्च न्यायालय की औरंगाबाद पीठ ने महाराष्ट्र सरकार से इस बारे में फैसला करने को कहा है कि क्या आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग श्रेणी (ईडब्लूयएस) के तहत 10 प्रतिशत आरक्षण का लाभ उन लोगों को मिल सकता है, जिन्हें मराठा समुदाय लिए आरक्षण के तहत फायदा मिला था. मराठा समुदाय के लिए आरक्षण पर उच्चतम न्यायालय ने रोक लगा दी है.
अदालत ने 18 दिसम्बर को यह आदेश सुनाया था और इसकी प्रति सोमवार को मुहैया कराई गई. न्यायमूर्ति एस. वी. गंगापुरवाला और न्यायमूर्ति एस. डी. कुलकर्णी की एक खंडपीठ ने तहसीलदारों (राजस्व अधिकारी) के पदों के लिए सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग (एसईबीसी) श्रेणी (मराठा समुदाय आरक्षण के लिए) के तहत आवेदन करने वाले तीन नौकरी पाने को इच्छुक लोगों की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सरकार को एक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया.
याचिकाकर्ता शीतल जिरपे, वर्षा अकट और विक्रम वारपे ने कहा था कि न्यायालय ने मराठा समुदाय को दिए आरक्षण पर रोक लगा दी है, इसलिए ईडब्ल्यूएस के तहत उनके आवेदन पर विचार किया जाना चाहिए. उनके वकीलों ने अदालत से कहा कि याचिकाकर्ताओं के पास ईडब्ल्यूएस श्रेणी का प्रमाणपत्र भी है और अगर उन्हें इस श्रेणी के तहत नियुक्त किया जाता है, तो भविष्ठ में वे किसी अन्य आरक्षण के तहत लाभ प्राप्त करने का कोई दावा नहीं करेंगे. इसके बाद पीठ ने सरकारी वकील से पूछा कि क्या इस संबंध में कोई फैसला किया गया है.
अदालत ने कहा यह उचित होता, यदि सरकार ने इस संबंध में निर्णय लिया होता कि क्या ईडब्ल्यूएस श्रेणी का लाभ उन उम्मीदवारों को दिया जाना चाहिए, जिन्होंने एसईबीसी श्रेणी के तहत आवेदन दिया था, जिस पर शीर्ष अदालत ने रोक लगा दी है. अदालत ने कहा ऐसा प्रतीत होता है कि इस संबंध में कोई निर्णय नहीं लिया गया है. उसने सरकार को इस संबंध में एक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश देते हुए मामले की आगे की सुनवाई के लिए 14 जनवरी की तारीख तय की. अदालत ने साथ ही यह भी कहा कि तब तक सरकार ईडब्ल्यूएस श्रेणी के याचिकाकर्ताओं की तुलना में कम अंक पाने वाले लोगों की नियुक्त ना करे.
महाराष्ट्र विधान मंडल ने 30 नवम्बर, 2018 को राज्य में मराठा समुदाय के लिये शिक्षा और सरकारी नौकरियों में 16 प्रतिशत आरक्षण देने संबंधी विधेयक पारित किया था. बंबई उच्च न्यायालय ने 27 जून, 2019 को इस कानून को वैध ठहराया था, लेकिन साथ ही कहा था कि 16 प्रतिशत आरक्षण न्यायोचित नहीं है और रोजगार में 12 और शिक्षण संस्थानों में प्रवेश के लिए 13 फीसदी से ज्यादा आरक्षण नहीं होना चाहिए.
संविधान के 102वें संशोधन के अनुसार अगर राष्ट्रपति द्वारा तैयार सूची में किसी समुदाय विशेष का नाम है, तो उसे आरक्षण प्रदान किया जा सकता है. न्यायालय ने हालांकि नौ सितम्बर को शिक्षा और रोजगार में मराठा समुदाय के लिये आरक्षण का प्रावधान करने संबंधी महाराष्ट्र सरकार के 2018 के कानून के अमल पर रोक लगा दी थी। ऐसा करते समय न्यायालय ने स्पष्ट किया था कि जिन लोगों को इसका लाभ मिल गया है उनकी स्थिति में कोई बदलाव नहीं होगा. वहीं जनवरी 2019 में केन्द्र सरकार ने सामान्य श्रेणी में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के लिए शिक्षा और नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षण को मंजूरी दी थी.