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विदेशी जमातियों को बनाया गया 'बलि का बकरा' : हाईकोर्ट - कोविड 19 के संक्रमण

बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद पीठ ने कहा है कि तबलीगी जमात कार्यक्रम में शामिल होने वाले विदेशी नागरिकों को बलि का बकरा बनाया गया है. न्यायमूर्ति टीवी नलावडे और न्यायमूर्ति एमजी सेवलिकर की खंडपीठ ने 29 विदेशियों के खिलाफ दर्ज मामलों को खारिज करते हुए शुक्रवार को यह टिप्पणी की. विस्तार से पढ़ें पूरी खबर...

तबलीगी जमात
तबलीगी जमात
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Published : Aug 22, 2020, 5:34 PM IST

Updated : Aug 22, 2020, 7:08 PM IST

मुंबई : बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद पीठ ने कहा है कि इस साल मार्च में दिल्ली में तबलीगी जमात के एक कार्यक्रम में भाग लेने वाले विदेशी नागरिकों को 'बलि का बकरा' बनाया गया और उनपर आरोप लगाया गया कि देश में कोविड-19 को फैलाने के लिए वे जिम्मेदार थे.

न्यायमूर्ति टीवी नलावडे और न्यायमूर्ति एमजी सेवलिकर की खंडपीठ ने 29 विदेशियों के खिलाफ दर्ज मामलों को खारिज करते हुए 21 अगस्त को यह टिप्पणी की.

पीठ ने रेखांकित किया कि महाराष्ट्र पुलिस ने मामले में उचित ढंग से काम किया है, जबकि राज्य सरकार ने 'राजनीतिक बाध्यता' के तहत काम किया है.

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली स्थित निजामुद्दीन मरकज में तबलीगी जमात के एक कार्यक्रम में पर्यटन वीजा शर्तों का कथित तौर पर उल्लंघन करने के सिलसिले में 29 विदेशी नागरिकों के खिलाफ आईपीसी की विभिन्न धाराओं, महामारी रोग अधिनियम, आपदा प्रबंधन अधिनियम और विदेशी अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया था.

पीठ ने अपने आदेश में रेखांकित किया कि निजामुद्दीन मरकज में आए विदेशी लोगों के खिलाफ बड़ा दुष्प्रचार किया गया था.

अदालत ने अपने आदेश में कहा, 'महामारी या आपदा आने पर राजनीतिक सरकार बलि का बकरा ढूंढने की कोशिश करती है और हालात बताते हैं कि संभावना है कि इन विदेशी नागरिकों को बलि का बकरा बनाने के लिए चुना गया था.

अदालत ने कहा कि तबलीगी जमात के खिलाफ दुष्प्रचार अवांछित था. तबलीगी जमात 50 साल से गतिविधि चला रही है.

कोर्ट ने कहा कि भारत में कोविड-19 के संक्रमण के हालात और ताजा आंकड़े बताते हैं कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ ऐसी कार्रवाई नहीं होनी चाहिए थी.

पीठ ने कहा कि इन विदेशियों के भारत में मस्जिद जाने पर रोक नहीं थी और यह दिखाने के लिए रिकॉर्ड पर कुछ भी नहीं है कि यह गतिविधि सरकार द्वारा स्थाई रूप से प्रतिबंधित है.

अदालत ने कहा, 'तबलीगी जमात की गतिविधि दिल्ली में लॉकडाउन की घोषणा के बाद ही बंद हो गई थी और तब तक (घोषणा तक) यह चल रही थी.'

यह भी पढ़ें- विदेशी तबलीगियों के खिलाफ प्राथमिकी लंबित, इसलिए नहीं भेजा गया उनके देश

अदालत ने कहा, 'कोविड-19 महामारी से पैदा हुई स्थिति के दौरान, हमें अधिक सहिष्णुता दिखाने की जरूरत है और अपने मेहमानों के प्रति अधिक संवेदनशील होने की जरूरत है, विशेष रूप से वर्तमान याचिकाकर्ताओं की तरह.'

अदालत ने कहा, 'उनकी मदद करने की बजाय, हमने उन पर यह आरोप लगाकर जेलों में डाल दिया कि वे यात्रा दस्तावेजों के उल्लंघन के लिए जिम्मेदार हैं और वे कोरोना वायरस फैलाने के लिए जिम्मेदार हैं.'

अदालत ने कहा, 'सरकार विभिन्न देशों के विभिन्न धर्मों के नागरिकों के साथ अलग-अलग बर्ताव नहीं कर सकती है.'

पीठ घाना, तंजानिया, बेनिन और इंडोनेशिया जैसे देशों के आरोपी नगारिकों द्वारा दायर तीन अलग-अलग याचिकाओं की सुनवाई कर रही थी.

मुंबई : बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद पीठ ने कहा है कि इस साल मार्च में दिल्ली में तबलीगी जमात के एक कार्यक्रम में भाग लेने वाले विदेशी नागरिकों को 'बलि का बकरा' बनाया गया और उनपर आरोप लगाया गया कि देश में कोविड-19 को फैलाने के लिए वे जिम्मेदार थे.

न्यायमूर्ति टीवी नलावडे और न्यायमूर्ति एमजी सेवलिकर की खंडपीठ ने 29 विदेशियों के खिलाफ दर्ज मामलों को खारिज करते हुए 21 अगस्त को यह टिप्पणी की.

पीठ ने रेखांकित किया कि महाराष्ट्र पुलिस ने मामले में उचित ढंग से काम किया है, जबकि राज्य सरकार ने 'राजनीतिक बाध्यता' के तहत काम किया है.

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली स्थित निजामुद्दीन मरकज में तबलीगी जमात के एक कार्यक्रम में पर्यटन वीजा शर्तों का कथित तौर पर उल्लंघन करने के सिलसिले में 29 विदेशी नागरिकों के खिलाफ आईपीसी की विभिन्न धाराओं, महामारी रोग अधिनियम, आपदा प्रबंधन अधिनियम और विदेशी अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया था.

पीठ ने अपने आदेश में रेखांकित किया कि निजामुद्दीन मरकज में आए विदेशी लोगों के खिलाफ बड़ा दुष्प्रचार किया गया था.

अदालत ने अपने आदेश में कहा, 'महामारी या आपदा आने पर राजनीतिक सरकार बलि का बकरा ढूंढने की कोशिश करती है और हालात बताते हैं कि संभावना है कि इन विदेशी नागरिकों को बलि का बकरा बनाने के लिए चुना गया था.

अदालत ने कहा कि तबलीगी जमात के खिलाफ दुष्प्रचार अवांछित था. तबलीगी जमात 50 साल से गतिविधि चला रही है.

कोर्ट ने कहा कि भारत में कोविड-19 के संक्रमण के हालात और ताजा आंकड़े बताते हैं कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ ऐसी कार्रवाई नहीं होनी चाहिए थी.

पीठ ने कहा कि इन विदेशियों के भारत में मस्जिद जाने पर रोक नहीं थी और यह दिखाने के लिए रिकॉर्ड पर कुछ भी नहीं है कि यह गतिविधि सरकार द्वारा स्थाई रूप से प्रतिबंधित है.

अदालत ने कहा, 'तबलीगी जमात की गतिविधि दिल्ली में लॉकडाउन की घोषणा के बाद ही बंद हो गई थी और तब तक (घोषणा तक) यह चल रही थी.'

यह भी पढ़ें- विदेशी तबलीगियों के खिलाफ प्राथमिकी लंबित, इसलिए नहीं भेजा गया उनके देश

अदालत ने कहा, 'कोविड-19 महामारी से पैदा हुई स्थिति के दौरान, हमें अधिक सहिष्णुता दिखाने की जरूरत है और अपने मेहमानों के प्रति अधिक संवेदनशील होने की जरूरत है, विशेष रूप से वर्तमान याचिकाकर्ताओं की तरह.'

अदालत ने कहा, 'उनकी मदद करने की बजाय, हमने उन पर यह आरोप लगाकर जेलों में डाल दिया कि वे यात्रा दस्तावेजों के उल्लंघन के लिए जिम्मेदार हैं और वे कोरोना वायरस फैलाने के लिए जिम्मेदार हैं.'

अदालत ने कहा, 'सरकार विभिन्न देशों के विभिन्न धर्मों के नागरिकों के साथ अलग-अलग बर्ताव नहीं कर सकती है.'

पीठ घाना, तंजानिया, बेनिन और इंडोनेशिया जैसे देशों के आरोपी नगारिकों द्वारा दायर तीन अलग-अलग याचिकाओं की सुनवाई कर रही थी.

Last Updated : Aug 22, 2020, 7:08 PM IST
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