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विशेष : बिहार में सिंहासन का खेल और चुनाव आयोग की नई नियम पुस्तिका - बिहार चुनाव

बिहार में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं जिसको लेकर चुनाव आयोग पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी है. कोरोना महामारी के बीच बिहार में स्वतंत्र और पारदर्शी तरीके से चुनाव करवाना चुनाव आयोग के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होगा. वहीं चुनाव प्रक्रिया के हिस्से के रूप में नई नियम पुस्तिका का अनावरण बहुत जल्द होने जा रहा है, जिसका पालन बिहार के सिंहासन के खेल में किया जाना है.

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चुनाव आयोग
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Published : Aug 26, 2020, 1:37 PM IST

बिहार को न सिर्फ मौकापरस्त राजनीतिक गठबंधनों के लिए बल्कि अपने ऐसे अनैतिक गिरोहों के लिए भी जाना जाता है जो चुनाव के दौरान अपने समर्थित उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित कराने के लिए किसी भी हद तक जाने को बेचैन रहते हैं. अब एक बार फिर निर्वाचन सदन (चुनाव आयोग) के लिए परीक्षा की घड़ी है कि वह कोविड-19 महामारी के बीच यह दिखाए कि वह इस साल स्वतंत्र एवं पारदर्शी तरीके से चुनाव प्रक्रिया को अंजाम देने में सक्षम है.

243 सदस्यीय बिहार विधानसभा का कार्यकाल 2020 के नवंबर में समाप्त होने जा रहा है. राज्य में कुल 7.2 करोड़ मतदाता हैं. चुनाव आयोग को राजनीतिक दलों की ओर से बड़ी संख्या में अनुरोध प्राप्त हो रहे हैं कि जब तक कोरोना का प्रभाव कम नहीं हो जाता तब तक वह बिहार में चुनाव स्थगित रखने की संभावना तलाशे. अद्यतन रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में करीब 17 हजार लोग कोविड के शिकार हुए हैं जिनमें करीब 500 लोगों की इस जानलेवा बीमारी की वजह से मौत हो गई है.

सभी विपक्षी दलों का यही मानना है कि चुनाव आयोग के लिए यह चुनाव कराने का उचित समय नहीं है और आयोग को तब तक चुनाव नहीं कराना चाहिए जब तक राज्य पूरी तरह से कोरोना पीड़ित मुक्त घोषित नहीं हो जाता. हालांकि चुनाव आयोग इस तरह की सभी शंकाओं को दूर कर रहा है और वह उचित प्रक्रियाओं को लागू करते हुए और सभी सावधानियां बरतते हुए इस लोकतांत्रिक प्रक्रिया को पूरा करने की तरफ झुका दिख रहा है.

चुनाव आयोग पिछले साल आठ सितबंर से अधिसूचना जारी होने की शुरुआत के बाद से पांच चरणों में चुनाव प्रक्रिया पूरी कर चुका है. आयोग ने कोरोना महामारी जैसी आंधी के बीच फिलहाल एक अनूठे चुनाव संहिता का खुलासा किया है. चुनाव आयोग ने शारीरिक दूरी के नियमों की संहिता बनाई है जिसे नामांकन दाखिल करने के लिए, रोड शो के जरिए चुनाव प्रचार करने के दौरान, रैलियों में और जनसभा स्थलों पर हर हाल में सख्ती के साथ अपनाना होगा.

इसमें कहा गया है कि सभी मतदाताओं को ग्लब्स पहनना होगा, मतदान का आखिरी घंटा केवल उन कोरोना पीड़ितों के लिए रहेगा जो क्वारेंनटाइन में हैं. इन नियमों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ सख्त उपाय करना की बात नई नियमावली पुस्तिका में शामिल होगी. बिहार का निर्वाचन आयोग जो उपाय कर रहा है उसकी सफलता के लिए सभी दलों का सक्रिय योगदान आवश्यक है. इसके अलावा हर मतदान केन्द्र में मतदाताओं की संख्या को कम करके मात्र एक हजार रखने और मतदान केंद्रो की संख्या एक लाख तक बढ़ाने जैसे कुछ इस तरह के उपाय किए जा रहे हैं जिनसे सामाजिक दूरी का बरतने का उपाय करना सुनिश्चित किया जा सकता है.

दुनिया के 34 देशों में ऐसे समय में चुनाव कराए गए हैं जब कोरोना महामारी, जंगल की आग की तरह पूरे जोर से फैल रही थी. दस हजार से अधिक कोरोना के मामले सामने आने और 200 लोगों की मौत के बावजूद दक्षिण कोरिया ने सफलतापूर्वक आम चुनाव संपन्न कराया. श्रीलंका ने हाल में अपना संसदीय चुनाव बहुत सौहार्दपूर्ण तरीके से कराया है.

संवैधानिक नियम के अनुसार, तब तक चुनाव स्थगित नहीं किए जाने चाहिए जब तक विदेशी आक्रमण या आंतरिक विद्रोह की चरम स्थिति नहीं हो. यही कोविड महामारी जैसी संकट की वर्तमान स्थिति में चुनाव कराने की अनिवार्यता को स्पष्ट कर रहा है. राजनीतिक दल इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन की जगह बैलेट पेपर के माध्यम से पूरे राज्य में एक ही चरण में मतदान कराने, जनसभाएं आयोजित करने की इजाजत देने, चुनाव प्रचार के लिए खर्च सीमा बढ़ाने के साथ चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार के बजट से मतदाताओं को प्रदान किए जाने वाले सामान की लागत में छूट देने का सुझाव दे रहे हैं.

हालांकि, भाजपा डिजिटल मंचों पर आभासी (वर्चुअल) रैलियों की संख्या बढ़ा रही है. इसका कारण है कि इंटरनेट वोटिंग की सुविधा बिहार में केवल 36 फीसद के करीब है और मोबाइल सेवाओं की सुविधा भी कुल आबादी के करीब 24 फीसद के पास ही है. यह स्थिति पार्टी के प्रचार के लिए नुकसानदेह साबित हो रही है. चुनाव आयोग ने इस तरह की स्थिति में ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में वास्तविक संसाधनों के जरिए चुनाव प्रचार की स्पष्ट सीमा तय कर दी है, जिससे भाजपा को उन क्षेत्रों में असली रैलियां आयोजित करने का निर्णय लेने में ज्यादा मदद नहीं मिल रही है.

आपत्तियां आई हैं कि डिजिटल प्लेटफॉर्म पर आभासी रैलियों की अनुमति देने से केवल बीजेपी को ही फायदा होगा क्योंकि वह पूरी क्षमता के साथ अपने संसाधनों का उपयोग कर सकती है. बेहतर होता कि नियमित रैलियों की कमी की भरपाई के लिए व्यापक रूप से टीवी और अन्य उपलब्ध माध्यम से बड़े पैमाने पर अभियान चलाया जाता.

चूंकि यह राज्य की नीति है कि निर्वाचन आयोग की ओर से नई नियम पुस्तिका में तय मानदंड का उल्लंघन करने पर पुलिस कार्रवाई करेगी, विपक्ष इस बात को लेकर चिंतित है कि पुलिस की ओर से उन्हें गलत ढंग से फंसाने का खतरा बना रहेगा, क्योंकि पुलिस राज्य सरकार की मर्जी और इच्छित आदेश पर काम करती है. अंतत: जो सबसे महत्वपूर्ण है वह ये है कि चुनाव प्रक्रिया के हिस्से के रूप में नई नियम पुस्तिका का अनावरण बहुत जल्द होने जा रहा है जिसका पालन बिहार के सिंहासन के खेल में किया जाना है.

बिहार को न सिर्फ मौकापरस्त राजनीतिक गठबंधनों के लिए बल्कि अपने ऐसे अनैतिक गिरोहों के लिए भी जाना जाता है जो चुनाव के दौरान अपने समर्थित उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित कराने के लिए किसी भी हद तक जाने को बेचैन रहते हैं. अब एक बार फिर निर्वाचन सदन (चुनाव आयोग) के लिए परीक्षा की घड़ी है कि वह कोविड-19 महामारी के बीच यह दिखाए कि वह इस साल स्वतंत्र एवं पारदर्शी तरीके से चुनाव प्रक्रिया को अंजाम देने में सक्षम है.

243 सदस्यीय बिहार विधानसभा का कार्यकाल 2020 के नवंबर में समाप्त होने जा रहा है. राज्य में कुल 7.2 करोड़ मतदाता हैं. चुनाव आयोग को राजनीतिक दलों की ओर से बड़ी संख्या में अनुरोध प्राप्त हो रहे हैं कि जब तक कोरोना का प्रभाव कम नहीं हो जाता तब तक वह बिहार में चुनाव स्थगित रखने की संभावना तलाशे. अद्यतन रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में करीब 17 हजार लोग कोविड के शिकार हुए हैं जिनमें करीब 500 लोगों की इस जानलेवा बीमारी की वजह से मौत हो गई है.

सभी विपक्षी दलों का यही मानना है कि चुनाव आयोग के लिए यह चुनाव कराने का उचित समय नहीं है और आयोग को तब तक चुनाव नहीं कराना चाहिए जब तक राज्य पूरी तरह से कोरोना पीड़ित मुक्त घोषित नहीं हो जाता. हालांकि चुनाव आयोग इस तरह की सभी शंकाओं को दूर कर रहा है और वह उचित प्रक्रियाओं को लागू करते हुए और सभी सावधानियां बरतते हुए इस लोकतांत्रिक प्रक्रिया को पूरा करने की तरफ झुका दिख रहा है.

चुनाव आयोग पिछले साल आठ सितबंर से अधिसूचना जारी होने की शुरुआत के बाद से पांच चरणों में चुनाव प्रक्रिया पूरी कर चुका है. आयोग ने कोरोना महामारी जैसी आंधी के बीच फिलहाल एक अनूठे चुनाव संहिता का खुलासा किया है. चुनाव आयोग ने शारीरिक दूरी के नियमों की संहिता बनाई है जिसे नामांकन दाखिल करने के लिए, रोड शो के जरिए चुनाव प्रचार करने के दौरान, रैलियों में और जनसभा स्थलों पर हर हाल में सख्ती के साथ अपनाना होगा.

इसमें कहा गया है कि सभी मतदाताओं को ग्लब्स पहनना होगा, मतदान का आखिरी घंटा केवल उन कोरोना पीड़ितों के लिए रहेगा जो क्वारेंनटाइन में हैं. इन नियमों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ सख्त उपाय करना की बात नई नियमावली पुस्तिका में शामिल होगी. बिहार का निर्वाचन आयोग जो उपाय कर रहा है उसकी सफलता के लिए सभी दलों का सक्रिय योगदान आवश्यक है. इसके अलावा हर मतदान केन्द्र में मतदाताओं की संख्या को कम करके मात्र एक हजार रखने और मतदान केंद्रो की संख्या एक लाख तक बढ़ाने जैसे कुछ इस तरह के उपाय किए जा रहे हैं जिनसे सामाजिक दूरी का बरतने का उपाय करना सुनिश्चित किया जा सकता है.

दुनिया के 34 देशों में ऐसे समय में चुनाव कराए गए हैं जब कोरोना महामारी, जंगल की आग की तरह पूरे जोर से फैल रही थी. दस हजार से अधिक कोरोना के मामले सामने आने और 200 लोगों की मौत के बावजूद दक्षिण कोरिया ने सफलतापूर्वक आम चुनाव संपन्न कराया. श्रीलंका ने हाल में अपना संसदीय चुनाव बहुत सौहार्दपूर्ण तरीके से कराया है.

संवैधानिक नियम के अनुसार, तब तक चुनाव स्थगित नहीं किए जाने चाहिए जब तक विदेशी आक्रमण या आंतरिक विद्रोह की चरम स्थिति नहीं हो. यही कोविड महामारी जैसी संकट की वर्तमान स्थिति में चुनाव कराने की अनिवार्यता को स्पष्ट कर रहा है. राजनीतिक दल इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन की जगह बैलेट पेपर के माध्यम से पूरे राज्य में एक ही चरण में मतदान कराने, जनसभाएं आयोजित करने की इजाजत देने, चुनाव प्रचार के लिए खर्च सीमा बढ़ाने के साथ चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार के बजट से मतदाताओं को प्रदान किए जाने वाले सामान की लागत में छूट देने का सुझाव दे रहे हैं.

हालांकि, भाजपा डिजिटल मंचों पर आभासी (वर्चुअल) रैलियों की संख्या बढ़ा रही है. इसका कारण है कि इंटरनेट वोटिंग की सुविधा बिहार में केवल 36 फीसद के करीब है और मोबाइल सेवाओं की सुविधा भी कुल आबादी के करीब 24 फीसद के पास ही है. यह स्थिति पार्टी के प्रचार के लिए नुकसानदेह साबित हो रही है. चुनाव आयोग ने इस तरह की स्थिति में ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में वास्तविक संसाधनों के जरिए चुनाव प्रचार की स्पष्ट सीमा तय कर दी है, जिससे भाजपा को उन क्षेत्रों में असली रैलियां आयोजित करने का निर्णय लेने में ज्यादा मदद नहीं मिल रही है.

आपत्तियां आई हैं कि डिजिटल प्लेटफॉर्म पर आभासी रैलियों की अनुमति देने से केवल बीजेपी को ही फायदा होगा क्योंकि वह पूरी क्षमता के साथ अपने संसाधनों का उपयोग कर सकती है. बेहतर होता कि नियमित रैलियों की कमी की भरपाई के लिए व्यापक रूप से टीवी और अन्य उपलब्ध माध्यम से बड़े पैमाने पर अभियान चलाया जाता.

चूंकि यह राज्य की नीति है कि निर्वाचन आयोग की ओर से नई नियम पुस्तिका में तय मानदंड का उल्लंघन करने पर पुलिस कार्रवाई करेगी, विपक्ष इस बात को लेकर चिंतित है कि पुलिस की ओर से उन्हें गलत ढंग से फंसाने का खतरा बना रहेगा, क्योंकि पुलिस राज्य सरकार की मर्जी और इच्छित आदेश पर काम करती है. अंतत: जो सबसे महत्वपूर्ण है वह ये है कि चुनाव प्रक्रिया के हिस्से के रूप में नई नियम पुस्तिका का अनावरण बहुत जल्द होने जा रहा है जिसका पालन बिहार के सिंहासन के खेल में किया जाना है.

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