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लिट्टे पर और 5 वर्षों के लिए प्रतिबंध की पुष्टि - लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम

केंद्र सरकार द्वारा लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) पर जारी प्रतिबंध और पांच वर्षों के लिए बढ़ा दिया गया है. सरकार द्वारा गठित एक न्यायाधिकरण ने सात नवम्बर को लिट्टे पर लगे प्रतिबंध की पुष्टि की. विस्तार से जानें क्या है पूरा मामला...

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Published : Nov 11, 2019, 9:04 PM IST

नई दिल्ली : केंद्र सरकार द्वारा गठित एक न्यायाधिकरण ने लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (एलटीटीई) पर जारी प्रतिबंध को और पांच वर्षों के लिए बढ़ाने की पुष्टि कर दी है. दिल्ली उच्च न्यायालय के सूत्रों के मुताबिक न्यायमूर्ति संगीता ढींगरा सिंघल की अध्यक्षता वाले न्यायाधिकरण ने सात नवम्बर को लिट्टे पर प्रतिबंध की पुष्टि की.

न्यायाधिकरण द्वारा इस पुष्टि का आदेश सीलबंद लिफाफे में अधिसूचना जारी करने के लिए केंद्र के पास भेज दिया गया. न्यायाधिकरण ने एमडीएमके नेता और राज्यसभा सांसद वाइको समेत सभी पक्षकारों का पक्ष सुनने के बाद यह फैसला लिया. वाइको लिट्टे के प्रति सहानुभूति रखने वाले हैं.

गैर कानूनी गतिविधि निरोधक अधिनियम (यूएपीए) के तहत गठित न्यायाधिकरण ने 27 मई को अपने गठन के बाद दिल्ली और चेन्नई में सुनवाई की. पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की 1991 में हत्या के बाद भारत सरकार ने लिट्टे पर प्रतिबंध लगा दिया था. इसके बाद से हर पांच साल बाद इस संगठन पर प्रतिबंध को बढ़ा दिया जाता है.

इस आतंकी संगठन को 2009 में श्रीलंका में सैन्य शिकस्त का सामना करना पड़ा था. इससे पहले संगठन पर 2014 में पांच साल के लिए प्रतिबंध लगाया गया था. लिट्टे पर प्रतिबंध की अवधि बढ़ाते हुए गृह मंत्रालय ने अपनी 14 मई की अधिसूचना में कहा था कि संगठन लगातार हिंसक और विध्वंसक गतिविधियों में लिप्त है और भारत की अखंडता व सम्प्रभुता को लेकर पूर्वाग्रह रखता है.

पढ़ें: लिट्टे पर प्रतिबंध : सरकार ने फैसले के लिए न्यायाधिकरण का गठन किया

लिट्टे लगातार भारत विरोधी रुख अपनाता रहा है और भारतीयों की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बना हुआ है. इस न्यायाधिकरण का गठन प्रतिबंधित संगठन को अपना पक्ष रखने का मौका देने के लिए 27 मई को किया गया था. लिट्टे की स्थापना 1976 में हुई थी. श्रीलंका स्थित इस आतंकवादी संगठन से सहानुभूति रखने वाले, समर्थक और एजेंट भारत में भी हैं.

नई दिल्ली : केंद्र सरकार द्वारा गठित एक न्यायाधिकरण ने लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (एलटीटीई) पर जारी प्रतिबंध को और पांच वर्षों के लिए बढ़ाने की पुष्टि कर दी है. दिल्ली उच्च न्यायालय के सूत्रों के मुताबिक न्यायमूर्ति संगीता ढींगरा सिंघल की अध्यक्षता वाले न्यायाधिकरण ने सात नवम्बर को लिट्टे पर प्रतिबंध की पुष्टि की.

न्यायाधिकरण द्वारा इस पुष्टि का आदेश सीलबंद लिफाफे में अधिसूचना जारी करने के लिए केंद्र के पास भेज दिया गया. न्यायाधिकरण ने एमडीएमके नेता और राज्यसभा सांसद वाइको समेत सभी पक्षकारों का पक्ष सुनने के बाद यह फैसला लिया. वाइको लिट्टे के प्रति सहानुभूति रखने वाले हैं.

गैर कानूनी गतिविधि निरोधक अधिनियम (यूएपीए) के तहत गठित न्यायाधिकरण ने 27 मई को अपने गठन के बाद दिल्ली और चेन्नई में सुनवाई की. पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की 1991 में हत्या के बाद भारत सरकार ने लिट्टे पर प्रतिबंध लगा दिया था. इसके बाद से हर पांच साल बाद इस संगठन पर प्रतिबंध को बढ़ा दिया जाता है.

इस आतंकी संगठन को 2009 में श्रीलंका में सैन्य शिकस्त का सामना करना पड़ा था. इससे पहले संगठन पर 2014 में पांच साल के लिए प्रतिबंध लगाया गया था. लिट्टे पर प्रतिबंध की अवधि बढ़ाते हुए गृह मंत्रालय ने अपनी 14 मई की अधिसूचना में कहा था कि संगठन लगातार हिंसक और विध्वंसक गतिविधियों में लिप्त है और भारत की अखंडता व सम्प्रभुता को लेकर पूर्वाग्रह रखता है.

पढ़ें: लिट्टे पर प्रतिबंध : सरकार ने फैसले के लिए न्यायाधिकरण का गठन किया

लिट्टे लगातार भारत विरोधी रुख अपनाता रहा है और भारतीयों की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बना हुआ है. इस न्यायाधिकरण का गठन प्रतिबंधित संगठन को अपना पक्ष रखने का मौका देने के लिए 27 मई को किया गया था. लिट्टे की स्थापना 1976 में हुई थी. श्रीलंका स्थित इस आतंकवादी संगठन से सहानुभूति रखने वाले, समर्थक और एजेंट भारत में भी हैं.

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DL-HC-LTTE BAN
Tribunal headed by Delhi HC judge confirms five-year ban on LTTE
By Hary M Pillai
         New Delhi, Nov 11 (PTI) The five-year ban imposed by the Centre on the Liberation Tigers of Tamil Eelam (LTTE) has been confirmed by a tribunal set up by the government to examine whether the prohibitions on the terror organisation should continue.
         According to sources in the Delhi High Court, the tribunal headed by Justice Sangita Dhingra Sehgal confirmed the ban on the LTTE on November 7 and the confirmation order has been sent to the government, in a sealed cover, for notification.
         The tribunal arrived at its decision after hearing all stakeholders, including Marumalarchi Dravida Munnetra Kazhagam (MDMK) leader and Rajya Sabha MP Vaiko.
         Vaiko is a LTTE sympathiser.
         The tribunal, set up under the Unlawful Activities (Prevention) Act (UAPA), had held hearings in Delhi and Chennai after it was constituted on May 27.
         India had banned the LTTE after the assassination of former prime minister Rajiv Gandhi in 1991. Since then, the ban imposed on the group has been extended after every five years.
         The terror organisation had suffered a military defeat in May 2009 in Sri Lanka.
         The MHA had on May 14 extended for five more years the ban on LTTE. The last time it was banned for five years was in 2014.
         While extending the ban on the LTTE, the Home Ministry in its May 14 notification had said that the group's continued violent and disruptive activities are prejudicial to the integrity and sovereignty of India, and it continues to adopt a strong anti-India posture and also continues to pose a grave threat to the security of Indian nationals.
         The tribunal was constituted on May 27 under the UAPA to give an opportunity to the banned entity to present its case.
         The LTTE, a terror outfit based in Sri Lanka but having its supporters, sympathisers and agents in India, came up in 1976.
         Even after its military defeat in May 2009 in Sri Lanka, the LTTE has not abandoned the concept of 'Eelam' and has been clandestinely working towards this cause by undertaking fund raising and propaganda activities, and the remnant LTTE leaders or cadres have also initiated efforts to regroup the scattered activists and resurrect the outfit locally and internationally, the Home Ministry had said. PTI HMP RKS
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