नई दिल्ली : पूर्वी लद्दाख में भारत के साथ चीन का सैन्य तनाव बढ़ा हुआ है. इसी बीच भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान को मिलाकर बने अनौपचारिक समूह क्वाड को अपनी सबसे पहली चुनौती ताइवान के रूप में मिल गई है. ताइवान को लेकर चीन दबाव बढ़ा रहा है. विभिन्न मीडिया रिपोर्टों के अनुसार ताइवान पर हमले के लिए चीन ने तैयारी शुरू कर दी है. चीन ने फुजियान और ग्वांगडोंग प्रांतों में अपनी सैन्य संपत्ति जुटाई है. दोनों प्रांत ताइवान के नजदीक हैं. यहां चीन ने लंबी दूरी की डी -17 हाइपरसोनिक मिसाइलों की तैनाती कर दी है. यहों पहले से ही तैनात डी -11 और डी -15 मिसाइलें ताइवान में लक्ष्य को मार सकती हैं.
इस साल के अंत में होगा मालाबार एक्सरसाइज
सोमवार को भारत ने घोषणा की कि ऑस्ट्रेलिया भारतीय नौसेना द्वारा आयोजित मालाबार एक्सरसाइज का हिस्सा होगा. मालाबार एक्सरसाइज इस साल के अंत में होगा. एक विज्ञप्ति में कहा गया कि भारत समुद्री सुरक्षा क्षेत्र में अन्य देशों के साथ सहयोग बढ़ाने और ऑस्ट्रेलिया के साथ रक्षा सहयोग बढ़ाने के मद्देनजर मालाबार 2020 में ऑस्ट्रेलियाई नौसेना की भागीदारी को लेकर बेहद खुश है. इस साल के अंत में बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में मालाबार एक्सरसाइज आयोजित होने की उम्मीद है. मालाबार एक्सरसाइज को 2018 में फिलीपींस सागर में गुआम के तट से और 2019 में जापान के तट से दूर आयोजित किया गया था. मालाबार एक्सरसाइज 1992 में द्विपक्षीय भारत-अमेरिकी नौसैनिक अभ्यास के रूप में शुरू हुआ था. यह 2015 में जापान के प्रवेश के साथ एक त्रिपक्षीय मामला बन गया. 2007 में ऑस्ट्रेलिया एक गैर-स्थायी सदस्य के रूप में इसमें शामिल हो गया था. तब से चीन ने इसे अपने विरोध के रूप में देखना शुरू किया. हाल के दिनों में चीन ने क्वाड को 'मिनी-नाटो' कहा है. भारत पहले से ही अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ नियमित रूप से द्विपक्षीय नौसैनिक अभ्यास कर रहा है.
क्वाड को विदेश नीति में खास जगह देना हो सकती है नासमझी
दिलचस्प बात यह है कि लद्दाख संकट के बावजूद भारत के राजनीतिक नेतृत्व ने 6 अक्टूबर को टोक्यो में क्वाड की बैठक के दौरान चीन के खिलाफ मजबूती से बात नहीं की. अब मालाबार एक्सरसाइज 2020 में चार देशों के समूह के साथ भारत मजबूरी में ताइवान पर बढ़ते अनियंत्रित स्थिति में शामिल हो सकता है. हालांकि, भारत का इस विवाद से कोई लेना-देना नहीं है और न ही कुछ हासिल होना है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप क्वाड को अपनी विरासत के रूप में देखते हैं, मगर उनके कार्यालय लौटने की संभावना बहुत कम दिख रही है. जो बाइडेन राष्ट्रपति पद पर अगर चुने गए, तो यूएस और चीन नीति पर नए सिरे से विचार कर सकते हैं. इस स्थिति में भारत के लिए क्वाड को अपनी विदेश नीति में खास जगह देना एक नासमझी बात हो सकती है. खासकर तब, जब इसके दक्षिण एशियाई पड़ोस में बहुत से मित्र नहीं रहेंगे.
अमेरिका का कम हो रहा आर्थिक कद
इस पृष्ठभूमि में उतना ही महत्वपूर्ण अमेरिका का आर्थिक कद कम होना भी है. विश्व आर्थिक आउटपुट 2020 में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने हाल ही में जारी रिपोर्ट में कहा है कि चीन ने अपनी $ 24.2 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था के साथ क्रय शक्ति समानता (पीपीपी) सूचकांक के मामले में दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के लिए अमेरिका को हराया है. कुछ महीने पहले, विश्व बैंक के अंतरराष्ट्रीय तुलना कार्यक्रम (आईसीपी) ने बताया था कि चीन की कुल वास्तविक (मुद्रास्फीति-समायोजित) आय अमेरिका से अधिक हो गई है. एक अन्य कारक जिस पर भारत को विचार करना होगा, वह यह है कि अमेरिका द्वारा बहुपक्षीय वैश्विक मंचों पर चीन को मजबूरी में धीरे-धीरे जगह देना जारी है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) इसका उदाहरण है. यह अमेरिका के कम प्रभाव को दिखाता है. ताइवान में चीन के खिलाफ एक गठबंधन से पहले भारत को इन बातों पर अच्छी तरह से विचार कर लेना चाहिए.