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पांच जून को चंद्र ग्रहण नहीं, इसे कहते हैं उपछाया

पांच जून को पड़ रहे चंद्र ग्रहण की काफी चर्चा है. इस ग्रहण की क्या सच्चाई है, इसके बारे में ईटीवी भारत ने बीएचयू के ज्योतिष विभाग के अध्यक्ष डॉ. विनय कुमार पांडेय से बातचीत की.

BHU astrology dept HOD
विनय कुमार पांडेय
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Published : Jun 4, 2020, 10:18 PM IST

वाराणसी : बीते वर्ष के ग्रहण के बाद लगातार पूरी पृथ्वी महामारी से जूझ रही है. ग्रहों की बिगड़ी चाल और ग्रहण का असर कितना है, यह समय-समय पर ज्योतिष के जानकार भी बता रहे हैं, लेकिन एक बार फिर से पड़ने वाले छह अलग-अलग ग्रहणों को लेकर काफी चर्चा है. इनमें पांच जून को पड़ रहे चंद्र ग्रहण की चर्चा भी खासी हो रखी है, लेकिन इस ग्रहण की क्या सच्चाई है, इसकी असलियत जानने की कोशिश ईटीवी भारत ने की.

ईटीवी भारत ने उत्तर प्रदेश के वाराणसी के काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संस्कृत धर्म शिक्षा एवं ज्योतिष विभाग के अध्यक्ष डॉ. विनय कुमार पांडेय से बातचीत की. उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि पांच जून को जिसे ग्रहण के रूप में प्रचारित प्रसारित किया जा रहा है, वह दरअसल सिर्फ एक आकाशीय घटना है, जिसे ज्योतिष और धर्मशास्त्र में ग्रहण नहीं कहा जा सकता.

जानकारी देते बीएचयू के ज्योतिष विभाग के अध्यक्ष

धर्म और आस्था के नाम पर झूठ किया जा रहा प्रचारित
ज्योतिष विभाग के अध्यक्ष डॉ. विनय कुमार पांडेय का कहना है कि जब भी पृथ्वी की बनने वाली छाया के आसपास चंद्रमा हो तो इसे ज्योतिषीय भाषा में ग्रहण नहीं कहते. आधुनिक भाषा में भले ही इसे ग्रहण का नाम दिया जाए, लेकिन धर्म और आस्था के नाम पर इसे गलत तरीके से प्रचारित प्रसारित किया जा रहा है. ग्रहण तभी मान्य है, जब वह दिखाई दे. यानी, यदि सूर्य या चंद्र पर ग्रहण लगता है तो उनपर ग्रहण का असर साफ तौर पर दिखाई देता है या वह आकार में छोटे होते हैं या पूरी तरह से गायब हो जाते हैं, लेकिन छाया या उपछाया में ऐसा नहीं होता है.

आकाशीय घटना को ग्रहण का नाम देना गलत
डॉ. विनय कुमार पांडेय ने बताया कि पांच जून को जो आकाशीय घटना होने जा रही है, इसमें पृथ्वी की छाया के थोड़ा सा आसपास चंद्रमा होगा, जिसे उपछाया के नाम से जाना जाएगा. इस दौरान चंद्रमा पर हल्की धुंध दिखाई देगी. आसमान में चंद्रमा पूरी तरह से दिखाई देगा, गायब नहीं होगा. इसलिए इसे ग्रहण का नाम देना ही गलत है. हालांकि यह आकाशीय घटना पांच जून की रात 11 बजकर 16 मिनट पर शुरू होगी और दो बजकर 32 मिनट पर इसका असर खत्म हो जाएगा.

आकाशीय घटना का नहीं होगा धार्मिक महत्व
उन्होंने बताया कि लगभग तीन घंटे 15 मिनट 47 सेकंड की यह उपछाया चंद्रमा को प्रभावित करेगी, लेकिन इसे ग्रहण के नाम से नहीं जाना जाएगा. इसका न ही कोई धार्मिक असर होगा. यानी न सूतक काल मान्य होगा और न ही ग्रहण काल में की जाने वाली गतिविधियों का इस दौरान किया जाना आवश्यक होगा. कुल मिलाकर इसे सिर्फ आकाशीय घटना कहा जा सकता है न कि ग्रहण.

21 जून को होगा साल का पहला सूर्यग्रहण
डॉक्टर विनय पांडेय का कहना है कि इस वर्ष जिन आकाशीय घटनाओं को ग्रहण के रूप में बताया जा रहा है, उनमें एक 10 जनवरी 2020 को पड़ चुका है, जबकि दूसरा कल पांच जून को उपछाया के रूप में होगा. 21 जून को इस साल का पहला सूर्य ग्रहण पड़ेगा, जबकि पांच जुलाई को भी एक आकाशीय घटना चंद्रमा के ऊपर होगी, जिसे ग्रहण नहीं कहा जाएगा. इसके अतिरिक्त 30 नवंबर को एक अन्य आकाशीय घटना होगी और इसके बाद 15 जनवरी 2021 को सूर्य ग्रहण होगा. यानी ज्योतिष और सनातन धर्म के मुताबिक इस संवत्सर में कुल छह आकाशीय घटनाएं हैं, जिनमें से दो सूर्य ग्रहण होंगे. इसे पूरी तरह ग्रहण कहा जाएगा जबकि बाकी चंद्रमा पर छाया और उपछाया का ही प्रभाव होगा, इसलिए इसे ग्रहण नहीं कहा जा सकता..

पढ़ें-बाबरी विध्वंस मामला: अदालत पहुंचे छह आरोपियों में केवल एक का दर्ज हुआ बयान

वाराणसी : बीते वर्ष के ग्रहण के बाद लगातार पूरी पृथ्वी महामारी से जूझ रही है. ग्रहों की बिगड़ी चाल और ग्रहण का असर कितना है, यह समय-समय पर ज्योतिष के जानकार भी बता रहे हैं, लेकिन एक बार फिर से पड़ने वाले छह अलग-अलग ग्रहणों को लेकर काफी चर्चा है. इनमें पांच जून को पड़ रहे चंद्र ग्रहण की चर्चा भी खासी हो रखी है, लेकिन इस ग्रहण की क्या सच्चाई है, इसकी असलियत जानने की कोशिश ईटीवी भारत ने की.

ईटीवी भारत ने उत्तर प्रदेश के वाराणसी के काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संस्कृत धर्म शिक्षा एवं ज्योतिष विभाग के अध्यक्ष डॉ. विनय कुमार पांडेय से बातचीत की. उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि पांच जून को जिसे ग्रहण के रूप में प्रचारित प्रसारित किया जा रहा है, वह दरअसल सिर्फ एक आकाशीय घटना है, जिसे ज्योतिष और धर्मशास्त्र में ग्रहण नहीं कहा जा सकता.

जानकारी देते बीएचयू के ज्योतिष विभाग के अध्यक्ष

धर्म और आस्था के नाम पर झूठ किया जा रहा प्रचारित
ज्योतिष विभाग के अध्यक्ष डॉ. विनय कुमार पांडेय का कहना है कि जब भी पृथ्वी की बनने वाली छाया के आसपास चंद्रमा हो तो इसे ज्योतिषीय भाषा में ग्रहण नहीं कहते. आधुनिक भाषा में भले ही इसे ग्रहण का नाम दिया जाए, लेकिन धर्म और आस्था के नाम पर इसे गलत तरीके से प्रचारित प्रसारित किया जा रहा है. ग्रहण तभी मान्य है, जब वह दिखाई दे. यानी, यदि सूर्य या चंद्र पर ग्रहण लगता है तो उनपर ग्रहण का असर साफ तौर पर दिखाई देता है या वह आकार में छोटे होते हैं या पूरी तरह से गायब हो जाते हैं, लेकिन छाया या उपछाया में ऐसा नहीं होता है.

आकाशीय घटना को ग्रहण का नाम देना गलत
डॉ. विनय कुमार पांडेय ने बताया कि पांच जून को जो आकाशीय घटना होने जा रही है, इसमें पृथ्वी की छाया के थोड़ा सा आसपास चंद्रमा होगा, जिसे उपछाया के नाम से जाना जाएगा. इस दौरान चंद्रमा पर हल्की धुंध दिखाई देगी. आसमान में चंद्रमा पूरी तरह से दिखाई देगा, गायब नहीं होगा. इसलिए इसे ग्रहण का नाम देना ही गलत है. हालांकि यह आकाशीय घटना पांच जून की रात 11 बजकर 16 मिनट पर शुरू होगी और दो बजकर 32 मिनट पर इसका असर खत्म हो जाएगा.

आकाशीय घटना का नहीं होगा धार्मिक महत्व
उन्होंने बताया कि लगभग तीन घंटे 15 मिनट 47 सेकंड की यह उपछाया चंद्रमा को प्रभावित करेगी, लेकिन इसे ग्रहण के नाम से नहीं जाना जाएगा. इसका न ही कोई धार्मिक असर होगा. यानी न सूतक काल मान्य होगा और न ही ग्रहण काल में की जाने वाली गतिविधियों का इस दौरान किया जाना आवश्यक होगा. कुल मिलाकर इसे सिर्फ आकाशीय घटना कहा जा सकता है न कि ग्रहण.

21 जून को होगा साल का पहला सूर्यग्रहण
डॉक्टर विनय पांडेय का कहना है कि इस वर्ष जिन आकाशीय घटनाओं को ग्रहण के रूप में बताया जा रहा है, उनमें एक 10 जनवरी 2020 को पड़ चुका है, जबकि दूसरा कल पांच जून को उपछाया के रूप में होगा. 21 जून को इस साल का पहला सूर्य ग्रहण पड़ेगा, जबकि पांच जुलाई को भी एक आकाशीय घटना चंद्रमा के ऊपर होगी, जिसे ग्रहण नहीं कहा जाएगा. इसके अतिरिक्त 30 नवंबर को एक अन्य आकाशीय घटना होगी और इसके बाद 15 जनवरी 2021 को सूर्य ग्रहण होगा. यानी ज्योतिष और सनातन धर्म के मुताबिक इस संवत्सर में कुल छह आकाशीय घटनाएं हैं, जिनमें से दो सूर्य ग्रहण होंगे. इसे पूरी तरह ग्रहण कहा जाएगा जबकि बाकी चंद्रमा पर छाया और उपछाया का ही प्रभाव होगा, इसलिए इसे ग्रहण नहीं कहा जा सकता..

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