गुवाहाटी : असम का राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) एक और विवाद में फंस गया है. एनआरसी अधिकारियों ने हाल ही में गुवाहाटी उच्च न्यायालय के समक्ष एक हलफनामा प्रस्तुत कर स्पष्ट रूप से उल्लेख किया था कि कुछ अवैध विदेशियों के नाम एनआरसी में शामिल किए गए हैं. इस हलफनामा ने एनआरसी पर खर्च हुए 1200 करोड़ रुपये और 55000 से अधिक राज्य सरकार के कर्मचारियों की मेहनत पर सवाल खड़े कर दिए हैं.
4,795 लोगों पर संदेह
वर्तमान एनआरसी समन्वयक हितेश देव सरमा ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के कारण इस मुद्दे पर कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया, लेकिन यह पता चला कि गुवाहाटी उच्च न्यायालय में प्रस्तुत हलफनामे में कहा गया है कि कम से कम 4,795 व्यक्तियों का नाम एनआरसी में जुड़ा हो सकता है. एनआरसी के अधिकारियों ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि एनआरसी के अधिकारियों ने अंतिम एनआरसी से 10,119 नामों का पुनर्निरीक्षण किया है, जो अगस्त 2019 में प्रकाशित किया गया था. गुवाहाटी उच्च न्यायालय के निर्देशानुसार पुनर्मूल्यांकन का आयोजन किया गया था. 10,119 नामों के पुनर्जीवन के दौरान यह पाया गया कि 4,795 व्यक्ति एनआरसी में अपना नाम दर्ज करने के लिए पात्र नहीं थे.
1032 संदिग्ध मतदाता
हलफनामे से यह भी स्पष्ट होता है कि 10,119 नामों में से कुल 5,404 (जिनकी पात्रता थी) को पिछले साल प्रकाशित अंतिम एनआरसी से बाहर रखा गया था. हलफनामे में यह भी स्पष्ट रूप से कहा गया है कि 1032 संदिग्ध मतदाताओं या डी मतदाताओं के नाम भी अंतिम एनआरसी में शामिल हैं.
आसू और एपीडब्लू ने दस्तावेज की निंदा की
यहां यह उल्लेख किया जा सकता है कि असम में एनआरसी को अपडेट करने की प्रक्रिया 2013 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद शुरू हुई थी, जिसमें राज्य के लगभग 33 मिलियन लोगों ने साबित किया था कि वे भारतीय नागरिक हैं, जो 24 मार्च 1971 से पहले असम में रहने वाले लोगों के वंशज हैं. ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) और असम पब्लिक वर्क (एपीडब्लू) जैसे संगठनों ने दस्तावेज की निंदा की और कहा कि राज्य और केंद्र में सरकार सही आंकड़ों के साथ आने में विफल रही है और इस पूरी प्रक्रिया के लिए पुनर्मूल्यांकन की मांग की है.