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असम : भूख की मार, अस्तित्व के लिए जूझता ट्रांसजेंडर समुदाय - ट्रांसजेंडर समुदाय

ट्रांसजेंडर समुदाय कोरोना वायरस के कारण लागू लॉकडाउन से पीड़ित हैं. वे अपने जीवन के अस्तित्व के लिए जूझ रहे हैं. उनसे जुड़े कई तथ्यों के चलते उन्हें समाज में स्वीकार नहीं किया जाता है. जानें विस्तार से...

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ट्रांसजेंडर समुदाय
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Published : May 13, 2020, 7:25 PM IST

दिसपुर : राष्ट्रव्यापी बंद से प्रभावित असम में ट्रांसजेंडर समुदाय अब अपने जीवन के अस्तित्व के लिए जूझ रहा है. देश के अधिकांश लोगों की तरह ट्रांसजेंडर्स भी कोरोना वायरस के कारण लागू लॉकडाउन से पीड़ित हैं. हालांकि इसके अलावा जिस बात ट्रांसजेंडर्स बुरी तरह प्रभावित है, वह है उनके साथ जुड़ा कलंक, जिससे उन्हें समाज की तरफ स्वीकार नहीं किया जाता है.

असम के गुवाहाटी में रहने वाला ट्रांसजेंडर नूर ने कहा, 'लॉक डाउन ने हमारे जीवन को बुरी तरह प्रभावित किया है. हम इस लॉकडाउन के कारण अपने काम के लिए बाहर नहीं जा पाए हैं. चूंकि लंबे समय से कोई आय नहीं है, अब हम अपने भोजन और अस्तित्व के लाले पड़ गए हैं.

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ट्रांसजेंडर नूर

असम में विभिन्न ट्रांसजेंडर संगठनों में करीब 11,000 ट्रांसजेंडर पंजीकृत हैं और वे आमतौर पर बसों, ट्रेनों और अन्य बाजार स्थानों पर ताली बजाकर अपना जीवनयापन करते हैं.

हालांकि भारतीय संसद ने पिछले साल 'द ट्रांसजेंडर पर्सन्स (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स) बिल, 2019' पारित किया गया है. समुदाय के सदस्यों की समस्याएं खत्म होनी अभी भी दूर हैं. उनका अभी भी सार्वजनिक रूप से मजाक बनाया जाता है और अलग तरह से व्यवहार किया जाता है.

लॉकडाउन ने हमें गंभीर रूप से प्रभावित किया है, लेकिन बाद में लॉकडाउन हटा लेने के बाद भी, हमारे जीवन को जारी रखना मुश्किल होगा. लोग हमें पैसे नहीं देना चाहेंगे और पुलिस हमें सामाजिक कारणों से सार्वजनिक स्थानों से बाहर निकाल देगी. नूर ने बताया.

नूर ने कहा, 'अगर अवसर हैं, तो हम काम करने के लिए तैयार हैं, लेकिन क्या लोग हमें समाज में स्वीकार करेंगे? वे आम तौर पर नहीं करते हैं. तो हम कहां जाए और क्या करेंगे?'.

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जज स्वाति बिधान बरुआ

इसपर ट्रांसजेंडर समुदाय के नेता और लोक अदालत के असम के पहले ट्रांसजेंडर जज स्वाति बिधान बरुआ ने कहा, 'हम आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति करके असम के पंजीकृत और गैर-पंजीकृत ट्रांसजेंडरों की मदद करने की कोशिश कर रहे हैं. मैं केंद्र सरकार के साथ भी संपर्क में हूं और वे जल्द ही अपने भरण-पोषण के लिए प्रति माह 1500 रुपये का भुगतान करेंगे.'

बिधान ने आगे कहा कि ट्रांसजेंडरों के लिए उचित कौशल प्रशिक्षण सुनिश्चित करने के लिए भी कदम उठाए जा रहे हैं, जिसके माध्यम से वे सार्वजनिक रूप से ताली बजाकर और भीख मांगकर कमाई करने के बजाय सम्मानजनक जीवन जी सकें.

दिसपुर : राष्ट्रव्यापी बंद से प्रभावित असम में ट्रांसजेंडर समुदाय अब अपने जीवन के अस्तित्व के लिए जूझ रहा है. देश के अधिकांश लोगों की तरह ट्रांसजेंडर्स भी कोरोना वायरस के कारण लागू लॉकडाउन से पीड़ित हैं. हालांकि इसके अलावा जिस बात ट्रांसजेंडर्स बुरी तरह प्रभावित है, वह है उनके साथ जुड़ा कलंक, जिससे उन्हें समाज की तरफ स्वीकार नहीं किया जाता है.

असम के गुवाहाटी में रहने वाला ट्रांसजेंडर नूर ने कहा, 'लॉक डाउन ने हमारे जीवन को बुरी तरह प्रभावित किया है. हम इस लॉकडाउन के कारण अपने काम के लिए बाहर नहीं जा पाए हैं. चूंकि लंबे समय से कोई आय नहीं है, अब हम अपने भोजन और अस्तित्व के लाले पड़ गए हैं.

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ट्रांसजेंडर नूर

असम में विभिन्न ट्रांसजेंडर संगठनों में करीब 11,000 ट्रांसजेंडर पंजीकृत हैं और वे आमतौर पर बसों, ट्रेनों और अन्य बाजार स्थानों पर ताली बजाकर अपना जीवनयापन करते हैं.

हालांकि भारतीय संसद ने पिछले साल 'द ट्रांसजेंडर पर्सन्स (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स) बिल, 2019' पारित किया गया है. समुदाय के सदस्यों की समस्याएं खत्म होनी अभी भी दूर हैं. उनका अभी भी सार्वजनिक रूप से मजाक बनाया जाता है और अलग तरह से व्यवहार किया जाता है.

लॉकडाउन ने हमें गंभीर रूप से प्रभावित किया है, लेकिन बाद में लॉकडाउन हटा लेने के बाद भी, हमारे जीवन को जारी रखना मुश्किल होगा. लोग हमें पैसे नहीं देना चाहेंगे और पुलिस हमें सामाजिक कारणों से सार्वजनिक स्थानों से बाहर निकाल देगी. नूर ने बताया.

नूर ने कहा, 'अगर अवसर हैं, तो हम काम करने के लिए तैयार हैं, लेकिन क्या लोग हमें समाज में स्वीकार करेंगे? वे आम तौर पर नहीं करते हैं. तो हम कहां जाए और क्या करेंगे?'.

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जज स्वाति बिधान बरुआ

इसपर ट्रांसजेंडर समुदाय के नेता और लोक अदालत के असम के पहले ट्रांसजेंडर जज स्वाति बिधान बरुआ ने कहा, 'हम आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति करके असम के पंजीकृत और गैर-पंजीकृत ट्रांसजेंडरों की मदद करने की कोशिश कर रहे हैं. मैं केंद्र सरकार के साथ भी संपर्क में हूं और वे जल्द ही अपने भरण-पोषण के लिए प्रति माह 1500 रुपये का भुगतान करेंगे.'

बिधान ने आगे कहा कि ट्रांसजेंडरों के लिए उचित कौशल प्रशिक्षण सुनिश्चित करने के लिए भी कदम उठाए जा रहे हैं, जिसके माध्यम से वे सार्वजनिक रूप से ताली बजाकर और भीख मांगकर कमाई करने के बजाय सम्मानजनक जीवन जी सकें.

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