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असम विस चुनाव : क्षेत्रीय दल 'जागे', बीजेपी के लिए चुनौती

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Published : Aug 26, 2020, 5:33 PM IST

Updated : Aug 27, 2020, 2:20 PM IST

असम में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर सभी राजनीतिक पार्टियां कमर कस रही है. सत्तारूण भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टी असम गण परिषद (एजीपी) ने भी अपनी तैयारी शुरू कर दी है. चुनाव के मद्देनजर राज्य में कई क्षेत्रीय दल उभरकर सामने आ रहे हैं.

असम विस चुनाव के मद्देनजर कई क्षेत्रीय दल उभरकर आ रहे हैं सामने
असम विस चुनाव के मद्देनजर कई क्षेत्रीय दल उभरकर आ रहे हैं सामने

गुवाहाटी : असम में अगले वर्ष विधानसभा चुनाव होने हैं. चुनाव के मद्देनजर सभी राजनीतिक दल तेजी से कमर कसना शुरू कर दिए हैं. सत्तारूढ़ भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टी असम गण परिषद (एजीपी) भी अपनी तैयारी शुरू कर दी है. चुनाव जीतने के लिए सभी पार्टियां अलग-अलग रणनीति बनाने में व्यस्त हैं.

असम के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता तरुण गोगोई जिस बदरुद्दीन अजमल को सांप्रदायिक और उनकी पार्टी ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) को भाजपा की बी टीम कहा करते थे, उसी पार्टी से कांग्रेस ने हाथ मिला लिया है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट..

पूर्व में गोगोई ने अजमल के राजनीतिक अस्तित्व का मजाक उड़ाते हुए पूछा था, 'कौन है बदरुद्दीन अजमल?'.

राज्य में नए सदस्यों को विभिन्न राजनीतिक दलों में शामिल करने की प्रक्रिया भी जोरों पर है. सर्बानंद सोनोवाल सरकार से जनता की नाराजगी का लाभ उठाते हुए, कई राजनीतिक दल राज्य की राजनीति में अपने कदम रख रहे हैं. सभी दल जनता के बीच अपने मौजूदगी दर्ज कराने का प्रयास कर रहे हैं.

चुनाव को देखते हुए असम में कई राजनीतिक पार्टियां बन रही हैं.

आंचलिक गण मोर्चा : राज्यसभा सांसद और पत्रकार अजीत कुमार भुयान ने इस पार्टी की स्थापना की है.

असम संग्रामी मंच : यह पार्टी अदिप फुकन के नेतृत्व में बनाई गई है.

वहीं असम की कृषक मुक्ति संग्राम समिति ने भी राजनीतिक पार्टी बनाई है. समिति ने अखिल गोगोई को मुख्यमंत्री पद के लिए नामित किया है. इसके अलावा असम आंचलिकताबाद सुरक्षा मंच भी नई पार्टी बना सकता है. इतना ही नहीं असम छात्र संघ (AASU) भी राजनीतिक पार्टी बनाने के बारे में विचार कर रहा है.

इस पर टिप्पणी करते हुए बिष्णु प्रसाद राभा के पुत्र पृथ्वीराज राभा ने कहा कि बिहू समुदायों और स्वयं सहायता समूहों के तरीके से राजनीतिक दल बनाना निरर्थक साबित होगा.

राभा ने आगे कहा कि एक राजनीति में सभी दोस्तों और दुश्मनों को अपने व्यक्तिगत मतभेदों को भूलकर एक साथ आना चाहिए. राजनीतिक दलों के गठन से पहले जनता को एकजुट करना आवश्यक है.

राज्य के नागरिक इस बात से चिंतित हैं कि विभिन्न राजनीतिक दल राज्य में क्षेत्रीयता की लहर को मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं. 1985 के असम आंदोलन के दौरान जनता ने पूरी शिद्दत से एजीपी को वोट दिए. हालांकि पार्टी जनता के आकांक्षाओं पर खरा नहीं उतर पाई थी.

इस वजह से सवाल उठते हैं कि क्या असम की जनता नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) पर विचार कर अपना बहुमूल्य वोट डालेंगे या नहीं. क्या भाजपा जनाता का विश्वास एक बार फिर से जीतने में कामयाब होगी.

गुवाहाटी : असम में अगले वर्ष विधानसभा चुनाव होने हैं. चुनाव के मद्देनजर सभी राजनीतिक दल तेजी से कमर कसना शुरू कर दिए हैं. सत्तारूढ़ भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टी असम गण परिषद (एजीपी) भी अपनी तैयारी शुरू कर दी है. चुनाव जीतने के लिए सभी पार्टियां अलग-अलग रणनीति बनाने में व्यस्त हैं.

असम के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता तरुण गोगोई जिस बदरुद्दीन अजमल को सांप्रदायिक और उनकी पार्टी ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) को भाजपा की बी टीम कहा करते थे, उसी पार्टी से कांग्रेस ने हाथ मिला लिया है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट..

पूर्व में गोगोई ने अजमल के राजनीतिक अस्तित्व का मजाक उड़ाते हुए पूछा था, 'कौन है बदरुद्दीन अजमल?'.

राज्य में नए सदस्यों को विभिन्न राजनीतिक दलों में शामिल करने की प्रक्रिया भी जोरों पर है. सर्बानंद सोनोवाल सरकार से जनता की नाराजगी का लाभ उठाते हुए, कई राजनीतिक दल राज्य की राजनीति में अपने कदम रख रहे हैं. सभी दल जनता के बीच अपने मौजूदगी दर्ज कराने का प्रयास कर रहे हैं.

चुनाव को देखते हुए असम में कई राजनीतिक पार्टियां बन रही हैं.

आंचलिक गण मोर्चा : राज्यसभा सांसद और पत्रकार अजीत कुमार भुयान ने इस पार्टी की स्थापना की है.

असम संग्रामी मंच : यह पार्टी अदिप फुकन के नेतृत्व में बनाई गई है.

वहीं असम की कृषक मुक्ति संग्राम समिति ने भी राजनीतिक पार्टी बनाई है. समिति ने अखिल गोगोई को मुख्यमंत्री पद के लिए नामित किया है. इसके अलावा असम आंचलिकताबाद सुरक्षा मंच भी नई पार्टी बना सकता है. इतना ही नहीं असम छात्र संघ (AASU) भी राजनीतिक पार्टी बनाने के बारे में विचार कर रहा है.

इस पर टिप्पणी करते हुए बिष्णु प्रसाद राभा के पुत्र पृथ्वीराज राभा ने कहा कि बिहू समुदायों और स्वयं सहायता समूहों के तरीके से राजनीतिक दल बनाना निरर्थक साबित होगा.

राभा ने आगे कहा कि एक राजनीति में सभी दोस्तों और दुश्मनों को अपने व्यक्तिगत मतभेदों को भूलकर एक साथ आना चाहिए. राजनीतिक दलों के गठन से पहले जनता को एकजुट करना आवश्यक है.

राज्य के नागरिक इस बात से चिंतित हैं कि विभिन्न राजनीतिक दल राज्य में क्षेत्रीयता की लहर को मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं. 1985 के असम आंदोलन के दौरान जनता ने पूरी शिद्दत से एजीपी को वोट दिए. हालांकि पार्टी जनता के आकांक्षाओं पर खरा नहीं उतर पाई थी.

इस वजह से सवाल उठते हैं कि क्या असम की जनता नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) पर विचार कर अपना बहुमूल्य वोट डालेंगे या नहीं. क्या भाजपा जनाता का विश्वास एक बार फिर से जीतने में कामयाब होगी.

Last Updated : Aug 27, 2020, 2:20 PM IST
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