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विशेष लेख : खाड़ी देशों में भारत की बढ़तीं चुनौतियां - भारत की कूटनीतिक चुनौतियां

भारत के सामने बड़ी चुनौती है खाड़ी के देशों से आने वाली कच्चे तेल की सप्लाई, जोकि देश में आने वाले कुल तेल का 60% है. 2018 में भारत ने खाड़ी से कुल $112 बिलियन का तेल खरीदा था. भारत इस समय दुनिया में कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा आयातक है. खाड़ी देशों में बढ़ रही अस्थिरता का भारत की सेहत पर क्या असर पड़ेगा, पढ़ें एक विवेचानात्मक आलेख...

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प्रतीकात्मक चित्र
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Published : Jan 9, 2020, 9:19 PM IST

3 जनवरी 2020 को अमेरिकी ड्रोन हमले में ईरानी कुद्स सेना के जनरल कासिम सुलेमानी की मौत और इसके बाद आठ जनवरी को ईरान द्वारा इराक में अमेरिकी सैन्य ठिकाने पर मिसाइल हमले की जवाबी कार्रवाई ने इस क्षेत्र में भारत की चुनौतियों को केंद्र में ला दिया है.

भारत ने अपने आधिकारिक जवाब में इस क्षेत्र में शांति, संयम, स्थिरता और सुरक्षा बनाए रखने की अपील की है. अगर खाड़ी क्षेत्र की बात करें तो यहां भारत का काफी कुछ दांव पर लगा है. भारत के विदेशी मामलों के रणनीतिकारों को तुरंत देश के राजनीतिक और आर्थिक हितों को यहां होने वाली घटनाओं के विपरीत असर से बचाने के लिए कोशिशें तेज कर देनी चाहिए.

बढ़ती राजनीतिक अस्थिरता के कारण इस क्षेत्र में भारत के सबसे महत्वपूर्ण निवेश पर असर पड़ना लाजिमी है. वहीं खाड़ी की अर्थव्यवस्थाओं में काम करने वाले आठ मिलियन भारतीय मूल के कर्मचारी जो भारत की अर्थव्यवस्था में सालाना करीब $40 बिलियन का योगदान करते हैं.

भारतीय राजनयिकों के सामने सबसे बड़ी चुनौती इन लोगों का बड़ी संख्या में देश वापस आने को रोकना. यह कहने में जितना आसान है, उतना ही करने में मुश्किल. इसका कारण यह है कि ऐसे लोगों की बड़ी तादाद और यह बात कि इनमें से ज्यादातर लोगों को खाड़ी के देशों में भारत सरकार ने नहीं भेजा है.

इस क्षेत्र से लाखों की तादाद में लोगों को सुरक्षित निकालने के सामने अप्रैल 2015 में (करीब 5000) और 2011 में लीबिया से (18,000) भारत द्वारा अपने नागिरकों को निकालना कुछ भी नहीं लगता. भारत को इस क्षेत्र की राजनीतिक ताकतों से निरंतर संवाद कर राजनीतिक स्थिरता बरकरार रखने की तरफ काम करना चाहिए, जिससे वहां काम करने वाले भारतीय मूल के कर्मचारी इन देशों की अर्थव्यवस्था में सार्थकता से काम करते रहें.

भारत के सामने दूसरी बड़ी चुनौती है खाड़ी के देशों से आने वाली कच्चे तेल की सप्लाई, जोकि देश में आने वाले कुल तेल का 60% है. 2018 में भारत ने खाड़ी से कुल $112 बिलियन का तेल खरीदा था. भारत इस समय दुनिया में कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा आयातक है.

हालांकि अमेरिका द्वारा ईरान से तेल की खरीद के भुगतान पर लगाए गए एकतरफा प्रतिबंध के कारण देश में ईरान से आने वाले तेल की मात्रा में कमी आई है, इसके बावजूद क्षेत्र में मौजूदा अस्थिरता के कारण कच्चे तेल की खरीद के भारत के खर्चे मे इजाफा हो गया है. इसका असर तेल पर निर्भर भारत के घरेलू उद्योंगों पर भी पड़ेगा. देश के ऊर्जा क्षेत्र में आने वाले दिनों में खपत और खर्च का अनुमान लगाना भी एक बड़ी चुनौती है.

एक और तीसरा मोर्चा, जो भारत के लिए महत्वपूर्ण है, है खाड़ी क्षेत्र में मौजूदा आवाजाही के दो बड़े रास्तों को खुला रखना. इनमें ईरान और अरेबियन प्रायद्वीप के बीच मौजूद परशियन खाड़ी, स्ट्रेट ऑफ होरमूज और, यमन और हॉर्न ऑफ अफ्रीका के बीच बाद अल-मंदाब की स्ट्रेट, जिसमें लाल सागर और भारतीय महासागर को जोड़ने वाला मार्ग शामिल है.

मार्च 2015 पीएम मोदी ने सिक्योरिटी एंड ग्रोथ फॉर ऑल इन द रीजन (एसएजीएआर) नीति की बात कही थी. इस नीति में समुद्री रास्तों की सुरक्षा पर खास ध्यान देने की बात कही गई है. इसके बाद नवंबर 2019 में गुरुग्राम में, इन्फॉर्मेशन फियूशन सेंटर फोर द इंडियन ओशन रीजन (आईएफसी-आईओआर) की स्थापना की गई. इसका मकसद क्षेत्र में समुद्री सीमाओं में सुरक्षा और खतरों को भांपने और उनसे निबटने के बारे में जागरूकता फैलाना है.

जून 2019 में परशियन खाड़ी में भारतीय व्यावसायिक जहाजों को सुरक्षा देने के मकसद से भारत ने यहां नौसेना के जो जहाजों को तैनात किया. खाड़ी के क्षेत्र में लगातार बढ़ती अस्थिरता के कारण समुद्री रास्तों को सुरक्षित रखने के लिए आपसी साझेदारी और सूचना के आदान-प्रदान को नई दिशा देने की जरूरत है. मौजूदा हालात को संभालने में संयुक्त राष्ट्र अधिक कारगर साबित नहीं हो रहा है, इसलिए भारत को क्षेत्रीय पहल कर खाड़ी के उन देशों को साथ लाना चाहिए, जिनके एक जैसे आर्थिक, सुरक्षा और ऊर्जा के हित हों. इससे क्षेत्र में स्थिरता लाने में मदद मिलेगी.

भारत की कूटनीतिक रणनीति का बड़ा मकसद है कि खाड़ी क्षेत्र में फैल रही अस्थिरता के कारण देश के अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर खराब असर न पड़े. खाड़ी में यूएई भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. दोनों देशों के बीच 2018 में करीब $60 बिलियन का व्यापार हुआ.

पश्चिमी देशों और यूरोपीय संघ के देशों से भारत का अधिकतर व्यापार, बाद अल-मंदाब के रास्ते होता है. 2018 में भारत- ईयू के बीच $102 बिलियन का व्यापार हुआ. डिजिटल इंडिया को यूरोप और बाहरी देशों से जोड़ने वाले दो बड़ी फाइबर ऑप्टिक तारों का जाल भी बाद अल-मंदाब से गुजरता है.

भारतीय जीडीपी में अंतरराष्ट्रीय व्यापार की 40% हिस्सेदारी है. और इस लिहाज से 2025 तक भारत को पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने में इसका बड़ा योगदान होगा. द्विपक्षीय और क्षेत्रीय कूटनीति से अगर भारत खाड़ी क्षेत्र में बड़े तनाव को कम कर पाता है तो इस लक्ष्य को हासिल करने में उसे मदद मिलेगी.

(लेखक - अशोक मुखर्जी, पूर्व राजनयिक)

3 जनवरी 2020 को अमेरिकी ड्रोन हमले में ईरानी कुद्स सेना के जनरल कासिम सुलेमानी की मौत और इसके बाद आठ जनवरी को ईरान द्वारा इराक में अमेरिकी सैन्य ठिकाने पर मिसाइल हमले की जवाबी कार्रवाई ने इस क्षेत्र में भारत की चुनौतियों को केंद्र में ला दिया है.

भारत ने अपने आधिकारिक जवाब में इस क्षेत्र में शांति, संयम, स्थिरता और सुरक्षा बनाए रखने की अपील की है. अगर खाड़ी क्षेत्र की बात करें तो यहां भारत का काफी कुछ दांव पर लगा है. भारत के विदेशी मामलों के रणनीतिकारों को तुरंत देश के राजनीतिक और आर्थिक हितों को यहां होने वाली घटनाओं के विपरीत असर से बचाने के लिए कोशिशें तेज कर देनी चाहिए.

बढ़ती राजनीतिक अस्थिरता के कारण इस क्षेत्र में भारत के सबसे महत्वपूर्ण निवेश पर असर पड़ना लाजिमी है. वहीं खाड़ी की अर्थव्यवस्थाओं में काम करने वाले आठ मिलियन भारतीय मूल के कर्मचारी जो भारत की अर्थव्यवस्था में सालाना करीब $40 बिलियन का योगदान करते हैं.

भारतीय राजनयिकों के सामने सबसे बड़ी चुनौती इन लोगों का बड़ी संख्या में देश वापस आने को रोकना. यह कहने में जितना आसान है, उतना ही करने में मुश्किल. इसका कारण यह है कि ऐसे लोगों की बड़ी तादाद और यह बात कि इनमें से ज्यादातर लोगों को खाड़ी के देशों में भारत सरकार ने नहीं भेजा है.

इस क्षेत्र से लाखों की तादाद में लोगों को सुरक्षित निकालने के सामने अप्रैल 2015 में (करीब 5000) और 2011 में लीबिया से (18,000) भारत द्वारा अपने नागिरकों को निकालना कुछ भी नहीं लगता. भारत को इस क्षेत्र की राजनीतिक ताकतों से निरंतर संवाद कर राजनीतिक स्थिरता बरकरार रखने की तरफ काम करना चाहिए, जिससे वहां काम करने वाले भारतीय मूल के कर्मचारी इन देशों की अर्थव्यवस्था में सार्थकता से काम करते रहें.

भारत के सामने दूसरी बड़ी चुनौती है खाड़ी के देशों से आने वाली कच्चे तेल की सप्लाई, जोकि देश में आने वाले कुल तेल का 60% है. 2018 में भारत ने खाड़ी से कुल $112 बिलियन का तेल खरीदा था. भारत इस समय दुनिया में कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा आयातक है.

हालांकि अमेरिका द्वारा ईरान से तेल की खरीद के भुगतान पर लगाए गए एकतरफा प्रतिबंध के कारण देश में ईरान से आने वाले तेल की मात्रा में कमी आई है, इसके बावजूद क्षेत्र में मौजूदा अस्थिरता के कारण कच्चे तेल की खरीद के भारत के खर्चे मे इजाफा हो गया है. इसका असर तेल पर निर्भर भारत के घरेलू उद्योंगों पर भी पड़ेगा. देश के ऊर्जा क्षेत्र में आने वाले दिनों में खपत और खर्च का अनुमान लगाना भी एक बड़ी चुनौती है.

एक और तीसरा मोर्चा, जो भारत के लिए महत्वपूर्ण है, है खाड़ी क्षेत्र में मौजूदा आवाजाही के दो बड़े रास्तों को खुला रखना. इनमें ईरान और अरेबियन प्रायद्वीप के बीच मौजूद परशियन खाड़ी, स्ट्रेट ऑफ होरमूज और, यमन और हॉर्न ऑफ अफ्रीका के बीच बाद अल-मंदाब की स्ट्रेट, जिसमें लाल सागर और भारतीय महासागर को जोड़ने वाला मार्ग शामिल है.

मार्च 2015 पीएम मोदी ने सिक्योरिटी एंड ग्रोथ फॉर ऑल इन द रीजन (एसएजीएआर) नीति की बात कही थी. इस नीति में समुद्री रास्तों की सुरक्षा पर खास ध्यान देने की बात कही गई है. इसके बाद नवंबर 2019 में गुरुग्राम में, इन्फॉर्मेशन फियूशन सेंटर फोर द इंडियन ओशन रीजन (आईएफसी-आईओआर) की स्थापना की गई. इसका मकसद क्षेत्र में समुद्री सीमाओं में सुरक्षा और खतरों को भांपने और उनसे निबटने के बारे में जागरूकता फैलाना है.

जून 2019 में परशियन खाड़ी में भारतीय व्यावसायिक जहाजों को सुरक्षा देने के मकसद से भारत ने यहां नौसेना के जो जहाजों को तैनात किया. खाड़ी के क्षेत्र में लगातार बढ़ती अस्थिरता के कारण समुद्री रास्तों को सुरक्षित रखने के लिए आपसी साझेदारी और सूचना के आदान-प्रदान को नई दिशा देने की जरूरत है. मौजूदा हालात को संभालने में संयुक्त राष्ट्र अधिक कारगर साबित नहीं हो रहा है, इसलिए भारत को क्षेत्रीय पहल कर खाड़ी के उन देशों को साथ लाना चाहिए, जिनके एक जैसे आर्थिक, सुरक्षा और ऊर्जा के हित हों. इससे क्षेत्र में स्थिरता लाने में मदद मिलेगी.

भारत की कूटनीतिक रणनीति का बड़ा मकसद है कि खाड़ी क्षेत्र में फैल रही अस्थिरता के कारण देश के अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर खराब असर न पड़े. खाड़ी में यूएई भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. दोनों देशों के बीच 2018 में करीब $60 बिलियन का व्यापार हुआ.

पश्चिमी देशों और यूरोपीय संघ के देशों से भारत का अधिकतर व्यापार, बाद अल-मंदाब के रास्ते होता है. 2018 में भारत- ईयू के बीच $102 बिलियन का व्यापार हुआ. डिजिटल इंडिया को यूरोप और बाहरी देशों से जोड़ने वाले दो बड़ी फाइबर ऑप्टिक तारों का जाल भी बाद अल-मंदाब से गुजरता है.

भारतीय जीडीपी में अंतरराष्ट्रीय व्यापार की 40% हिस्सेदारी है. और इस लिहाज से 2025 तक भारत को पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने में इसका बड़ा योगदान होगा. द्विपक्षीय और क्षेत्रीय कूटनीति से अगर भारत खाड़ी क्षेत्र में बड़े तनाव को कम कर पाता है तो इस लक्ष्य को हासिल करने में उसे मदद मिलेगी.

(लेखक - अशोक मुखर्जी, पूर्व राजनयिक)

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खाड़ी क्षेत्र में भारत के लिये चुनौतियां



अशोक मुखर्जी, संयुक्त राष्ट्र में भारत के पूर्व राजदूत 





3 जनवरी 2020 को अमेरिकी ड्रोन हमले में, ईरानी कुद सेना के जनरल क़ासिम सुलेमानी की मौत, और इसके बाद, 8 जनवरी को ईरान द्वारा इराक़ में अमेरिकी सैन्य ठिकाने पर मिसाइल हमले की जवाबी कार्रवाई ने इस क्षेत्र में भारत की चुनौतियों को केंद्र में ला दिया है. 

भारत ने अपने आधिकारिक जवाब में, इस क्षेत्र में शांति, संयम, स्थिरता और सुरक्षा बनाये रखने की अपील की है. अगर खाड़ी क्षेत्र की बात करें तो यहां भारत का काफ़ी कुछ दांव पर लगा है. भारतीय विदेश रणनीतिकारों को तुरंत देश के राजनीतिक और आर्थिक हितों को यहां होने वाली घटनाओं के विपरीत असर से बचाने के लिये कोशिशें तेज़ कर देनी चाहिये.  

बढ़ती राजनीतिक अस्थिरता के कारण इस क्षेत्र में भारत के सबसे महत्वपूर्ण निवेश पर असर पड़ना लाज़मी है. ये हैं, खाड़ी की अर्थव्यवस्थाओं में काम करने वाले 8 मिलियन भारतीय मूल के कर्मचारी जो भारत की अर्थव्यवस्था में सालाना क़रीब $40 बिलियन का योगदान करते हैं.

भारतीय राजनयिकों के सामने सबसे बड़ी चुनौती इन लोगों का बड़ी संख्या में देश वापस आने को रोकना. यह जितना कहने में आसान है उतना ही करने में मुश्किल. इसका कारण है, ऐसे लोगों की बड़ी तादाद, और यह बात कि इनमें से ज़्यादातर लोगों को खाड़ी के देशों में भारत सरकार ने नहीं भेजा है.

इस क्षेत्र से लाखों की तादाद में लोगों को सुरक्षित निकालने के सामने, अप्रैल 2015 में (क़रीब 5000) और 2011 में लीबिया से (18,000) भारत द्वारा अपने नागिरकों को निकालना कुछ भी नहीं लगता. भारत को इस क्षेत्र की राजनीतिक ताक़तों से निरंतर संवाद कर राजनीतिक स्थिरता बरकरार रखने की तरफ़ काम करना चाहिये, जिससे, यहां काम करने वाले भारतीय मूल के कर्मचारी इन देशों की अर्थव्यवस्था में सार्थकता से काम करते रहें. 

भारत के सामने दूसरी बड़ी चुनौती है, खाड़ी के देशों से आने वाली कच्चे तेल की सप्लाई जो देश में आने वाले कुल तेल का 60% है. 2018 में भारत ने खाड़ी से कुल $112 बिलियन का तेल ख़रीदा था. भारत इस समय दुनिया में कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा आयातक है.  हालांकि अमरीका द्वारा ईरान से तेल की ख़रीद के भुगतान पर लगाये गये एकतरफ़ा प्रतिबंध के कारण, देश में ईरान से आने वाले तेल की संख्या में कमी आई है, लेकिन इसके बावजूद क्षेत्र में मौजूदा अस्थिरता के कारण भारत के कच्चे तेल की ख़रीद के खर्चे मे इजाफा हो गया है. इसका असर तेल पर निर्भर, भारत के घरेलू उद्योंगों पर भी पड़ेगा. देश के ऊर्जा क्षेत्र में आने वाले दिनों में खपत और खर्च का अनुमान लगाना भी एक बड़ी चुनौती है.   



एक और तीसरा मोर्चा जो भारत के लिये महत्वपूर्ण है वो है, खाड़ी क्षेत्र में मौजूद आवाजाही के दो बड़े रास्तों को खुला रखना. इनमें, ईरान और अरेबियन प्रायद्वीप के बीच मौजूद परशियन खाड़ी, स्ट्रेट ऑफ होरमूज और, यमन और हॉर्न ऑफ एफ्रीका के बीच बाद अल-मंदाब की स्ट्रेट, जो लाल सागर और भारतीय महासागर के जोड़ती है,  शामिल है. मार्च 2015 पीएम मोदी ने, सिक्योरिटी एंड ग्रोथ फ़ॉर ऑल इन द रीजन (एसएजीएआर) नीति की बात कही थी. इस नीति में समुद्री रास्तों की सुरक्षा पर ख़ास ध्यान देने की बात कही गई है. इसके बाद, नवंबर 2019 में, गुरूग्राम में, इन्फ़ॉर्मेशन फियूशन सेंटर फ़ोर द इंडियन ओशन रीजन (आईएफसी-आईओआर) की स्थापना की गई. इसका मक़सद, क्षेत्र में समुद्री सीमाओं में सुरक्षा और ख़तरों को भाँपने और उनसे निपटने के बारे में जागरूकता फैलाना है.      



जून 2019 में, परशियन खाड़ी में भारतीय व्यवसायिक जहाज़ों को सुरक्षा देने के मक़सद से भारत ने यहां दो  नौसेना के जहाज़ों को तैनात किया. खाड़ी के क्षेत्र में लगातार बढ़ती अस्थिरता के कारण, समुद्री रास्तों को सुरक्षित रखने के लिये आपसी साझेदारी और सूचना के आदान प्रदान को नई दिशा देने की ज़रूरत है. मौजूदा हालात को सँभालने में, संयुक्त राष्ट्र ज़्यादा कारगर साबित नहीं हो रहा है, इसलिये भारत को क्षेत्रीय पहल कर, खाड़ी के उन देशों को साथ लाना चाहिये, जिनके एक जैसे, आर्थिक, सुरक्षा और ऊर्जा के हित हों. इससे क्षेत्र में स्थिरता लाने में मदद मिलेगी.  



भारत की कूटनीतिक रणनीति का बड़ा मक़सद है कि खाड़ी क्षेत्र में फ़ैल रही अस्थिरता के कारण देश के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर ख़राब असर न पड़े. खाड़ी में, यूएई, भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. दोनों देशों के बीच 2018 में क़रीब $60 बिलियन का व्यापार हुआ.  पश्चिमी देशों और यूरोपीय संघ के देशों से भारत का ज़्यादातर व्यापार, बाद अल-मंदाब के रास्ते होता है.  2018 में भारत- ईयू के बीच $102 बिलियन का व्यापार हुआ. डिजिटल इंडिया को युरोप और बाहरी देशों से जोड़ने वाले दो बड़ी फ़ाइबर ऑप्टिक तारों का जाल भी बाद अल-मंदाब से गुजरता है. 



भारतीय जीडीपी में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की 40% हिस्सेदारी है. और इस लिहाज़ से, 2025 तक भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने में इसका बड़ा योगदान होगा. द्विपक्षीय और क्षेत्रीय कूटनीति से अगर भारत खाड़ी क्षेत्र में बड़े तनाव को कम कर पाता है तो इस लक्ष्य को हासिल करने में उसे मदद मिलेगी.



(लेखक - अशोक मुखर्जी, पूर्व राजनयिक) 


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