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विशेष : चीन से तल्खी के बीच रूस व अमेरिका से भारत के रक्षा संबंध अहम

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह एक ओर जहां द्वितीय विश्व युद्ध में रूस की जीत की 75वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में आयोजित विजय जुलूस में भाग लेने पिछले सप्ताह रूस की तीन दिनी यात्रा पर गए, वहीं अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने कहा कि भारत को चीन से उपजे खतरे से निबटने के लिए अमेरिकी फौज को यूरोप से हटा कर मलेशिया, इंडोनेशिया और दक्षिण चीनी सागर की तरफ भेजा जा रहा है.

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Published : Jun 29, 2020, 8:01 AM IST

Updated : Jun 29, 2020, 9:46 AM IST

नई दिल्ली : विस्तारवादी महत्वाकांक्षाओं वाले चीन से लद्दाख में टकराव के कारण भारत के रूस और अमेरिका के साथ रक्षा संबंधों को पहले से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण बना दिया है. विशेष कर तब जब चीन के एक शहर से उत्पन्न महामारी ने समूचे विश्व में हाहाकार मचा रखा है.

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह एक ओर जहां द्वितीय विश्व युद्ध में रूस की जीत की 75वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में आयोजित विजय जुलूस में भाग लेने पिछले सप्ताह रूस की तीन दिनी यात्रा पर गए, वहीं अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने कहा कि भारत को चीन से उपजे खतरे से निबटने के लिए अमेरिकी फौज को यूरोप से हटा कर मलेशिया, इंडोनेशिया और दक्षिण चीनी सागर की तरफ भेजा जा रहा है.

जून 22-24 की मास्को की मुलाकात के दौरान रूस के उप प्रधानमंत्री युरी बोरिसोव से मिलने के बाद राजनाथ सिंह ने ट्वीट जारी कर कहा, 'उप प्रधानमंत्री श्री युरी बोरिसोव से मेरी चर्चा बहुत सकारात्मक और उत्पादक रही. मुझे आश्वासन दिया गया कि हमारे बीच के करारों को न केवल जारी रखा जाएगा, बल्कि उनमें से कई किस्सों में उन्हें कम समय में आगे बढ़ाया जाएगा.' उन्होंने आगे यह भी कहा कि रूस ने भारत के सभी प्रस्तावों के सकारात्मक प्रतिभाव दिए.

राजनाथ और बोरिसोव विज्ञान और टेक्नोलॉजी पर भारत-रूस की उच्चस्तरीय समिति के सह-अध्यक्ष हैं. हालांकि, भारत ने रूस से तत्काल क्या मांगा, इस बारे में सिलसिलेवार कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है. यह माना जा सकता है कि लम्बी दूरी तक जमीन से आकाश में मार करने वाली एस-400 ट्राइंफ मिसाइल प्राप्त करने के बारे में चर्चा हुई होगी.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच वार्षिक द्विपक्षीय नई दिल्ली में 2018 में हुए सम्मलेन के दौरान 5.4 बिलियन डॉलर के मिसाइल सौदे पर हस्ताक्षर किए गए थे.

अमेरिका द्वारा जनवरी 2018 से लागू अमेरिका के दुश्मन देशों के खिलाफ आर्थिक और व्यापारिक प्रतिबंधों के कानून के बाद से एस-400 मिसाइल सौदे के बारे में अटकलें तेज हो गई थीं. इस कानून से उन देशों को निशाना बनाया गया, जो रूस, इरान और उत्तरी कोरिया की रक्षा कंपनियों से व्यापार करते हैं.

अमेरिकी सांसदों के एक समूह ने रूस पर यह कह कर प्रतिबंध लगाया कि वह लगातार यूक्रेन और सीरिया के युद्ध में शामिल है और उसने अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव में हस्तक्षेप किया था.

पिछले वर्ष जून में अमेरिका के दक्षिण और केंद्रीय एशिया मामलों की प्रिंसिपल डिप्टी असिस्टेंट सेक्रेटरी ऐलिस वेल्स ने प्रतिनिधि सभा के विदेश संबंधों की उप समिति के समक्ष बयान दिया कि एस-400 रक्षा प्रणाली की खरीदी की वजह से भारत-अमेरिकी के बढ़ते हुए सैन्य संबंध प्रभावित हो सकते हैं.

वेल्स को कहते हुए उद्धृत किया गया, 'किसी एक निश्चित बिंदु पर साझेदारी के बारे में और एक देश के, जो हथियार प्रणालियों और प्लेटफार्मों को अपनाने जा रहा है, बारे में एक रणनीतिक विकल्प सोचा जाना चाहिए.'

हालांकि अमेरिका ने भारत को एम.आई.एम -104 एफ पेट्रियट (पी.ए.सी.-3) जमीन से आसमान तक मार करने वाली मिसाइल रक्षा प्रणाली और टर्मिनल हाई एल्टीट्यूड एरिया डिफेन्स (टी.एच. ए.ए.डी) प्रणाली देने की पेशकश की जबकि भारत, रूस से एस-400 प्रणाली खरीदने के अपने फैसले पर कायम रहा.

पढ़ें - जी-7 में अमेरिका का भारत को निमंत्रण : जानें वास्तविकता और अवसर

विशेषज्ञों के अनुसार, एस-400 प्रणाली विश्व की सबसे बेहतरीन वायु रक्षा प्रणाली है. इसमें बहुआयामी रडार, लक्ष्य को स्वचालित ढूंढ कर निशाना बनाने का संयंत्र, हवाई जहाज भेदी मिसाइल प्रणाली, मिसाइल को दागने और नियंत्रित करने की व्यवस्था है. यह तीन प्रकार की मिसाइल को छोड़ कर कई स्तर पर रक्षा उपलब्ध करा सकती है.

आर्मी-टेक्नोलॉजी वेबसाइट के अनुसार 'इस प्रणाली से हवाई जहाज, मनुष्य विहीन हवाई यान, बैलिस्टिक और क्रूज मिसाइल्स को 400 किलोमीटर की दूरी और 30 किलोमीटर की ऊंचाई तक मार गिराने की क्षमता है. इस प्रणाली से एक साथ 36 लक्ष्यों पर वार किया जा सकता है.'

'एस-400 प्रणाली रूस की पूर्व रक्षा प्रणाली से दो गुनी प्रभावशाली है और इसे पांच मिनट में तैनात किया जा सकता है. इसे वर्तमान में उपलब्ध वायु सेना, स्थल सेना और जल सेना की रक्षा प्रणालियों से संकलित किया जा सकता है.'

पिछले साल वॉशिंगटन में आयोजित एक कार्यक्रम में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि भारत ने अमेरिका के साथ एस-400 पर चर्चा की थी और उन्हें अपनी समझाने की क्षमता का पूरा विश्वास है.

जयशंकर ने एक रूसी पत्रकार के सवाल के जवाब में कहा, 'मुझे आशा है कि लोग यह समझते हैं कि हमारे लिए यह सौदा कितना महत्त्व रखता है और इसलिए मुझसे जो आपने सवाल किया है, वह मात्र काल्पनिक है.'

फिर पिछले साल नवंबर में अमेरिका के विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी को उद्धृत करते हुए मीडिया ने संकेत दिए कि अमेरिका के दुश्मन देशों के खिलाफ आर्थिक और व्यापारिक प्रतिबंधों का कानून भारत पर लागू नहीं होगा क्योंकि इस कानून की समय सीमा तय नहीं है और इसे लागू किया जाना जरूरी नहीं है.' अमेरिकी वरिष्ठ अधिकारी ने भारत को अपनी रक्षा प्रणाली को और मजबूत बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया ताकि रूस के द्वारा उस पर जासूसी न हो सके.

इमागिन्डिया इंस्टिट्यूट के अध्यक्ष और यूएस– इंडिया पॉलिटिकल एक्शन कमेटी के संस्थापक सदस्य और निदेशक रोबिंदर सचदेव के अनुसार एस-400 सौदे को लेकर अमेरिका ने बिना कुछ कहे भारत पर प्रतिबंध न लगा कर अनदेखी कर दी.'

सचदेव ने ईटीवी भारत को बताया, 'ऐसा करने के साथ ही अमेरिका ने यह स्पष्ट कर दिया कि भविष्य में भारत को रूस से रक्षा सामग्री खरीदी कम करनी होगी ताकि उस पर अमेरिकी कानून के तहत पाबंदी न लगानी पड़े.' उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका ने एस-400 सौदे को प्रवर्तमान भू-राजनैतिक परिस्थिति की वजह से मंजूरी दे दी.

सचदेव ने कहा, 'साथ ही अमेरिका ने भारत से यह आश्वासन भी लिया कि वह वॉशिंगटन द्वारा ईरान पर लगाए प्रतिबंध का पूरा पालन करेगा.'

पढ़ें - हिमाचल प्रदेश : शिमला के इस 'चीनी' का भारत के लिए धड़कता है दिल

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्य, जर्मनी और यूरोपियन यूनियन के साथ तेहरान ने जिस संयुक्त कार्य योजना पर हस्ताक्षर किए, उसमें से अमेरिका बाहर निकल गया और 2018 में ईरान के कथित परमाणु कार्यक्रम के विरोध में उस पर प्रतिबंध लगा दिए. इसके बाद भारत ने पिछले साल से ईरान से तेल आयात करना बंद कर दिया जबकि ईरान दूसरा बड़ा देश है, जहां से भारत तेल आयात किया करता था.

लेकिन अमेरिका ने नई दिल्ली द्वारा दक्षिण पूर्व ईरान के चाबहार बंदरगाह के विकास करने का विरोध नहीं किया. इस बंदरगाह को भारत, अफगानिस्तान और ईरान साथ मिल कर विकसित कर रहे हैं. यह बंदरगाह अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण यातायात मार्ग की महत्वपूर्ण कड़ी होगा, जिससे भारत, ईरान, अफगानिस्तान, आर्मेनिया, अजरबैजान, रूस, मध्य एशिया और यूरोप के बीच 7,200 किलोमीटर की दूरी के बीच जहाज, रेलवे ओर सड़क मार्ग से माल-सामान का परिवहन हो सकेगा.

भारत इस बंदरगाह के विकास और उससे अफगानिस्तान को जोड़ने वाली सड़क को बनाने में 500 मिलियन डॉलर का निवेश कर रहा है ताकि पाकिस्तान को बिना पार किए अफगानिस्तान को ईरान से जोड़ा जा सके.

अब लद्दाख में जून 15-16 की रात को हुई मध्यकालीन युग को याद दिलाने वाली लड़ाई में 20 भारतीय सैनिकों की मृत्यु के बाद भौगोलोक रणनीति के मद्देनजर भारत के रूस और अमेरिका के साथ रक्षा संबंधों का महत्व बढ़ जाता है.

राजनाथ सिंह की रूस यात्रा के तुरंत बाद गुरुवार को अमेरिकी विदेश मंत्री पोम्पिओ ने ब्रसेल्स फोरम में, जो ट्रांस-अटलांटिक मुद्दों पर महत्व के निर्णय तय करता है, कहा कि चीन, मुक्त विश्व में हुए विकास को समाप्त करना चाहता है, इसलिए वॉशिंगटन अपनी फौज को यूरोप से हटा कर दुनिया के दूसरे हिस्सों में तैनात कर रहा है.

भारतीय सैनिकों की मौत पर दुख प्रकट करते हुए उन्होंने कहा, 'चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने सीमा पर दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत से तनाव को गंभीर बना दिया है. उसने दक्षिण चीन समुद्र में सेना का जमावड़ा कर गैर कानूनी ढंग से ज्यादा क्षेत्रों पर अपना दावा ठोक दिया है, जिससे समुद्री मार्ग के सामने खतरा पैदा हो गया है.'

चीनी सेना की भारतीय सीमा में घुसपैठ बीजिंग की इस क्षेत्र में उसकी विस्तारवादी आकांक्षाओं को ही दर्शाने वाला ताजा उदहारण है. पर्यवेक्षकों के अनुसार चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्वारा वुहान से फैली कोरोना वायरस महामारी के बारे में गोपनीयता बरतने को लेकर दुनियाभर में उनकी जो थू-थू हो रही रही है और उनके अपने देश में उनके खिलाफ माहौल खड़ा हो रहा है, उससे लोगों का ध्यान भटकाने के लिए वह ऐसा कर रहे हैं.

भारत और अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया एक चतुर्भुज के हिस्से हैं, जो जापान के पूर्वी तट से अफ्रीका के पूर्वी तट तक विस्तृत भारत-प्रशांत महासागर क्षेत्र में शांति और विकास चाहते हैं. इसका महत्व इसलिए भी है कि इस क्षेत्र मे बीजिंग दक्षिण चीन सागर में आक्रामक बन कर अपना प्रभाव बनाना चाहता है.

चीन दक्षिण चीन सागर में स्थित स्प्रैटली और परासल द्वीप समूहों को लेकर कई देशों के साथ विवाद में है. स्प्रैटली द्वीप समूह पर ब्रूनेई, मलेशिया, फिलिपींस, ताइवान और वियतनाम का दावा है जबकि पारासल द्वीप समूह पर वियतनाम और ताइवान दावा कर रहे हैं.

पढ़ें - भारत विरोधी कदमों से अपनी ही पार्टी में घिरे नेपाली पीएम ओली

2016 में, हेग स्थित स्थायी कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन ने फैसला सुनाया था कि चीन ने दक्षिण चीन सागर में फिलिपींस के अधिकारों का उल्लंघन किया, जो दुनिया के सबसे व्यस्त वाणिज्यिक शिपिंग मार्गों में एक है.

अदालत ने चीन पर फिलिपींस की मछली पकड़ने और पेट्रोलियम की खोज में हस्तक्षेप करने, पानी में कृत्रिम द्वीप बनाने और चीनी मछुआरों को क्षेत्र में मछली पकड़ने से रोकने में विफल रहने का आरोप लगाया था.

इस सप्ताह फिर से वियतनाम और फिलीपींस ने दक्षिण चीन सागर में चीन द्वारा समुद्री कानूनों के बार-बार उल्लंघन पर चिंता जताई.

वियतनाम के प्रधानमंत्री गुयेन फुआन फुक को एसोसिएशन ऑफ साउथईस्ट एशियन नेशंस (आसियान) के नेताओं की एक आभासी बैठक में उद्धृत किया गया था कि (कोविड-19) महामारी के खिलाफ लड़ाई में जब पूरी दुनिया की हालत पतली है, तब अंतरराष्ट्रीय कानून के उल्लंघन में गैर-जिम्मेदाराना हरकतें अब भी हो रही हैं, जिससे हमारे क्षेत्र सहित कुछ क्षेत्रों में सुरक्षा और स्थिरता प्रभावित हो रही है.'

चीन दक्षिण चीन सागर के अलावा जापान और ताइवान के साथ भी क्षेत्रीय विवादों में शामिल रहा है.

इस महीने की शुरुआत में जापान के तट रक्षक ने बताया कि 67 चीनी सरकारी जहाजों को दीयाऊ द्वीप समूह (पूर्वी चीन सागर) में सेनकाकू द्वीपों के पास देखा गया था. इन द्वीपों पर बीजिंग और टोक्यो दोनों द्वारा दावा किया जाता है.

इस बीच, चीनी वायु सेना के विमानों ने इस महीने में कम से कम चार बार ताइवान के हवाई क्षेत्र में घुसपैठ की, जिससे पूर्वी एशियाई राष्ट्र अपने जेट विमानों को सक्रिय प्रतिक्रिया देने के लिए मजबूर कर दिया.

चीन स्वयंशासित ताइवान को अपने क्षेत्र के रूप में देखता है और अन्य देशों को ताईपे को राजनयिक मान्यता नहीं देने के लिए मजबूर करता है.

चीन द्वारा निर्मित इस सभी भू-राजनीतिक उथल-पुथल के बीच, भारत के प्रमुख शक्तियों-रूस और अमेरिका के साथ रक्षा संबंधों ने अब सबसे अधिक महत्व पा लिया है.

भारत जहां रूस के साथ एक 'विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी' साझा करता है वहीं अमेरिका के साथ उसका संबंध एक 'व्यापक वैश्विक रणनीतिक साझेदारी' से बढ़ा है.

2016 में अमेरिका ने भारत को 'मेजर डिफेंस पार्टनर' के रूप में मान्यता दी, जो वॉशिंगटन के निकटतम सहयोगियों और भागीदारों के साथ नई दिल्ली को बराबरी पर लाती है. यह अमेरिका को भारत के साथ रक्षा प्रौद्योगिकी साझा करने की सुविधा प्रदान करता है.

(अरुणिम भुयान)

नई दिल्ली : विस्तारवादी महत्वाकांक्षाओं वाले चीन से लद्दाख में टकराव के कारण भारत के रूस और अमेरिका के साथ रक्षा संबंधों को पहले से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण बना दिया है. विशेष कर तब जब चीन के एक शहर से उत्पन्न महामारी ने समूचे विश्व में हाहाकार मचा रखा है.

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह एक ओर जहां द्वितीय विश्व युद्ध में रूस की जीत की 75वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में आयोजित विजय जुलूस में भाग लेने पिछले सप्ताह रूस की तीन दिनी यात्रा पर गए, वहीं अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने कहा कि भारत को चीन से उपजे खतरे से निबटने के लिए अमेरिकी फौज को यूरोप से हटा कर मलेशिया, इंडोनेशिया और दक्षिण चीनी सागर की तरफ भेजा जा रहा है.

जून 22-24 की मास्को की मुलाकात के दौरान रूस के उप प्रधानमंत्री युरी बोरिसोव से मिलने के बाद राजनाथ सिंह ने ट्वीट जारी कर कहा, 'उप प्रधानमंत्री श्री युरी बोरिसोव से मेरी चर्चा बहुत सकारात्मक और उत्पादक रही. मुझे आश्वासन दिया गया कि हमारे बीच के करारों को न केवल जारी रखा जाएगा, बल्कि उनमें से कई किस्सों में उन्हें कम समय में आगे बढ़ाया जाएगा.' उन्होंने आगे यह भी कहा कि रूस ने भारत के सभी प्रस्तावों के सकारात्मक प्रतिभाव दिए.

राजनाथ और बोरिसोव विज्ञान और टेक्नोलॉजी पर भारत-रूस की उच्चस्तरीय समिति के सह-अध्यक्ष हैं. हालांकि, भारत ने रूस से तत्काल क्या मांगा, इस बारे में सिलसिलेवार कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है. यह माना जा सकता है कि लम्बी दूरी तक जमीन से आकाश में मार करने वाली एस-400 ट्राइंफ मिसाइल प्राप्त करने के बारे में चर्चा हुई होगी.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच वार्षिक द्विपक्षीय नई दिल्ली में 2018 में हुए सम्मलेन के दौरान 5.4 बिलियन डॉलर के मिसाइल सौदे पर हस्ताक्षर किए गए थे.

अमेरिका द्वारा जनवरी 2018 से लागू अमेरिका के दुश्मन देशों के खिलाफ आर्थिक और व्यापारिक प्रतिबंधों के कानून के बाद से एस-400 मिसाइल सौदे के बारे में अटकलें तेज हो गई थीं. इस कानून से उन देशों को निशाना बनाया गया, जो रूस, इरान और उत्तरी कोरिया की रक्षा कंपनियों से व्यापार करते हैं.

अमेरिकी सांसदों के एक समूह ने रूस पर यह कह कर प्रतिबंध लगाया कि वह लगातार यूक्रेन और सीरिया के युद्ध में शामिल है और उसने अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव में हस्तक्षेप किया था.

पिछले वर्ष जून में अमेरिका के दक्षिण और केंद्रीय एशिया मामलों की प्रिंसिपल डिप्टी असिस्टेंट सेक्रेटरी ऐलिस वेल्स ने प्रतिनिधि सभा के विदेश संबंधों की उप समिति के समक्ष बयान दिया कि एस-400 रक्षा प्रणाली की खरीदी की वजह से भारत-अमेरिकी के बढ़ते हुए सैन्य संबंध प्रभावित हो सकते हैं.

वेल्स को कहते हुए उद्धृत किया गया, 'किसी एक निश्चित बिंदु पर साझेदारी के बारे में और एक देश के, जो हथियार प्रणालियों और प्लेटफार्मों को अपनाने जा रहा है, बारे में एक रणनीतिक विकल्प सोचा जाना चाहिए.'

हालांकि अमेरिका ने भारत को एम.आई.एम -104 एफ पेट्रियट (पी.ए.सी.-3) जमीन से आसमान तक मार करने वाली मिसाइल रक्षा प्रणाली और टर्मिनल हाई एल्टीट्यूड एरिया डिफेन्स (टी.एच. ए.ए.डी) प्रणाली देने की पेशकश की जबकि भारत, रूस से एस-400 प्रणाली खरीदने के अपने फैसले पर कायम रहा.

पढ़ें - जी-7 में अमेरिका का भारत को निमंत्रण : जानें वास्तविकता और अवसर

विशेषज्ञों के अनुसार, एस-400 प्रणाली विश्व की सबसे बेहतरीन वायु रक्षा प्रणाली है. इसमें बहुआयामी रडार, लक्ष्य को स्वचालित ढूंढ कर निशाना बनाने का संयंत्र, हवाई जहाज भेदी मिसाइल प्रणाली, मिसाइल को दागने और नियंत्रित करने की व्यवस्था है. यह तीन प्रकार की मिसाइल को छोड़ कर कई स्तर पर रक्षा उपलब्ध करा सकती है.

आर्मी-टेक्नोलॉजी वेबसाइट के अनुसार 'इस प्रणाली से हवाई जहाज, मनुष्य विहीन हवाई यान, बैलिस्टिक और क्रूज मिसाइल्स को 400 किलोमीटर की दूरी और 30 किलोमीटर की ऊंचाई तक मार गिराने की क्षमता है. इस प्रणाली से एक साथ 36 लक्ष्यों पर वार किया जा सकता है.'

'एस-400 प्रणाली रूस की पूर्व रक्षा प्रणाली से दो गुनी प्रभावशाली है और इसे पांच मिनट में तैनात किया जा सकता है. इसे वर्तमान में उपलब्ध वायु सेना, स्थल सेना और जल सेना की रक्षा प्रणालियों से संकलित किया जा सकता है.'

पिछले साल वॉशिंगटन में आयोजित एक कार्यक्रम में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि भारत ने अमेरिका के साथ एस-400 पर चर्चा की थी और उन्हें अपनी समझाने की क्षमता का पूरा विश्वास है.

जयशंकर ने एक रूसी पत्रकार के सवाल के जवाब में कहा, 'मुझे आशा है कि लोग यह समझते हैं कि हमारे लिए यह सौदा कितना महत्त्व रखता है और इसलिए मुझसे जो आपने सवाल किया है, वह मात्र काल्पनिक है.'

फिर पिछले साल नवंबर में अमेरिका के विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी को उद्धृत करते हुए मीडिया ने संकेत दिए कि अमेरिका के दुश्मन देशों के खिलाफ आर्थिक और व्यापारिक प्रतिबंधों का कानून भारत पर लागू नहीं होगा क्योंकि इस कानून की समय सीमा तय नहीं है और इसे लागू किया जाना जरूरी नहीं है.' अमेरिकी वरिष्ठ अधिकारी ने भारत को अपनी रक्षा प्रणाली को और मजबूत बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया ताकि रूस के द्वारा उस पर जासूसी न हो सके.

इमागिन्डिया इंस्टिट्यूट के अध्यक्ष और यूएस– इंडिया पॉलिटिकल एक्शन कमेटी के संस्थापक सदस्य और निदेशक रोबिंदर सचदेव के अनुसार एस-400 सौदे को लेकर अमेरिका ने बिना कुछ कहे भारत पर प्रतिबंध न लगा कर अनदेखी कर दी.'

सचदेव ने ईटीवी भारत को बताया, 'ऐसा करने के साथ ही अमेरिका ने यह स्पष्ट कर दिया कि भविष्य में भारत को रूस से रक्षा सामग्री खरीदी कम करनी होगी ताकि उस पर अमेरिकी कानून के तहत पाबंदी न लगानी पड़े.' उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका ने एस-400 सौदे को प्रवर्तमान भू-राजनैतिक परिस्थिति की वजह से मंजूरी दे दी.

सचदेव ने कहा, 'साथ ही अमेरिका ने भारत से यह आश्वासन भी लिया कि वह वॉशिंगटन द्वारा ईरान पर लगाए प्रतिबंध का पूरा पालन करेगा.'

पढ़ें - हिमाचल प्रदेश : शिमला के इस 'चीनी' का भारत के लिए धड़कता है दिल

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्य, जर्मनी और यूरोपियन यूनियन के साथ तेहरान ने जिस संयुक्त कार्य योजना पर हस्ताक्षर किए, उसमें से अमेरिका बाहर निकल गया और 2018 में ईरान के कथित परमाणु कार्यक्रम के विरोध में उस पर प्रतिबंध लगा दिए. इसके बाद भारत ने पिछले साल से ईरान से तेल आयात करना बंद कर दिया जबकि ईरान दूसरा बड़ा देश है, जहां से भारत तेल आयात किया करता था.

लेकिन अमेरिका ने नई दिल्ली द्वारा दक्षिण पूर्व ईरान के चाबहार बंदरगाह के विकास करने का विरोध नहीं किया. इस बंदरगाह को भारत, अफगानिस्तान और ईरान साथ मिल कर विकसित कर रहे हैं. यह बंदरगाह अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण यातायात मार्ग की महत्वपूर्ण कड़ी होगा, जिससे भारत, ईरान, अफगानिस्तान, आर्मेनिया, अजरबैजान, रूस, मध्य एशिया और यूरोप के बीच 7,200 किलोमीटर की दूरी के बीच जहाज, रेलवे ओर सड़क मार्ग से माल-सामान का परिवहन हो सकेगा.

भारत इस बंदरगाह के विकास और उससे अफगानिस्तान को जोड़ने वाली सड़क को बनाने में 500 मिलियन डॉलर का निवेश कर रहा है ताकि पाकिस्तान को बिना पार किए अफगानिस्तान को ईरान से जोड़ा जा सके.

अब लद्दाख में जून 15-16 की रात को हुई मध्यकालीन युग को याद दिलाने वाली लड़ाई में 20 भारतीय सैनिकों की मृत्यु के बाद भौगोलोक रणनीति के मद्देनजर भारत के रूस और अमेरिका के साथ रक्षा संबंधों का महत्व बढ़ जाता है.

राजनाथ सिंह की रूस यात्रा के तुरंत बाद गुरुवार को अमेरिकी विदेश मंत्री पोम्पिओ ने ब्रसेल्स फोरम में, जो ट्रांस-अटलांटिक मुद्दों पर महत्व के निर्णय तय करता है, कहा कि चीन, मुक्त विश्व में हुए विकास को समाप्त करना चाहता है, इसलिए वॉशिंगटन अपनी फौज को यूरोप से हटा कर दुनिया के दूसरे हिस्सों में तैनात कर रहा है.

भारतीय सैनिकों की मौत पर दुख प्रकट करते हुए उन्होंने कहा, 'चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने सीमा पर दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत से तनाव को गंभीर बना दिया है. उसने दक्षिण चीन समुद्र में सेना का जमावड़ा कर गैर कानूनी ढंग से ज्यादा क्षेत्रों पर अपना दावा ठोक दिया है, जिससे समुद्री मार्ग के सामने खतरा पैदा हो गया है.'

चीनी सेना की भारतीय सीमा में घुसपैठ बीजिंग की इस क्षेत्र में उसकी विस्तारवादी आकांक्षाओं को ही दर्शाने वाला ताजा उदहारण है. पर्यवेक्षकों के अनुसार चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्वारा वुहान से फैली कोरोना वायरस महामारी के बारे में गोपनीयता बरतने को लेकर दुनियाभर में उनकी जो थू-थू हो रही रही है और उनके अपने देश में उनके खिलाफ माहौल खड़ा हो रहा है, उससे लोगों का ध्यान भटकाने के लिए वह ऐसा कर रहे हैं.

भारत और अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया एक चतुर्भुज के हिस्से हैं, जो जापान के पूर्वी तट से अफ्रीका के पूर्वी तट तक विस्तृत भारत-प्रशांत महासागर क्षेत्र में शांति और विकास चाहते हैं. इसका महत्व इसलिए भी है कि इस क्षेत्र मे बीजिंग दक्षिण चीन सागर में आक्रामक बन कर अपना प्रभाव बनाना चाहता है.

चीन दक्षिण चीन सागर में स्थित स्प्रैटली और परासल द्वीप समूहों को लेकर कई देशों के साथ विवाद में है. स्प्रैटली द्वीप समूह पर ब्रूनेई, मलेशिया, फिलिपींस, ताइवान और वियतनाम का दावा है जबकि पारासल द्वीप समूह पर वियतनाम और ताइवान दावा कर रहे हैं.

पढ़ें - भारत विरोधी कदमों से अपनी ही पार्टी में घिरे नेपाली पीएम ओली

2016 में, हेग स्थित स्थायी कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन ने फैसला सुनाया था कि चीन ने दक्षिण चीन सागर में फिलिपींस के अधिकारों का उल्लंघन किया, जो दुनिया के सबसे व्यस्त वाणिज्यिक शिपिंग मार्गों में एक है.

अदालत ने चीन पर फिलिपींस की मछली पकड़ने और पेट्रोलियम की खोज में हस्तक्षेप करने, पानी में कृत्रिम द्वीप बनाने और चीनी मछुआरों को क्षेत्र में मछली पकड़ने से रोकने में विफल रहने का आरोप लगाया था.

इस सप्ताह फिर से वियतनाम और फिलीपींस ने दक्षिण चीन सागर में चीन द्वारा समुद्री कानूनों के बार-बार उल्लंघन पर चिंता जताई.

वियतनाम के प्रधानमंत्री गुयेन फुआन फुक को एसोसिएशन ऑफ साउथईस्ट एशियन नेशंस (आसियान) के नेताओं की एक आभासी बैठक में उद्धृत किया गया था कि (कोविड-19) महामारी के खिलाफ लड़ाई में जब पूरी दुनिया की हालत पतली है, तब अंतरराष्ट्रीय कानून के उल्लंघन में गैर-जिम्मेदाराना हरकतें अब भी हो रही हैं, जिससे हमारे क्षेत्र सहित कुछ क्षेत्रों में सुरक्षा और स्थिरता प्रभावित हो रही है.'

चीन दक्षिण चीन सागर के अलावा जापान और ताइवान के साथ भी क्षेत्रीय विवादों में शामिल रहा है.

इस महीने की शुरुआत में जापान के तट रक्षक ने बताया कि 67 चीनी सरकारी जहाजों को दीयाऊ द्वीप समूह (पूर्वी चीन सागर) में सेनकाकू द्वीपों के पास देखा गया था. इन द्वीपों पर बीजिंग और टोक्यो दोनों द्वारा दावा किया जाता है.

इस बीच, चीनी वायु सेना के विमानों ने इस महीने में कम से कम चार बार ताइवान के हवाई क्षेत्र में घुसपैठ की, जिससे पूर्वी एशियाई राष्ट्र अपने जेट विमानों को सक्रिय प्रतिक्रिया देने के लिए मजबूर कर दिया.

चीन स्वयंशासित ताइवान को अपने क्षेत्र के रूप में देखता है और अन्य देशों को ताईपे को राजनयिक मान्यता नहीं देने के लिए मजबूर करता है.

चीन द्वारा निर्मित इस सभी भू-राजनीतिक उथल-पुथल के बीच, भारत के प्रमुख शक्तियों-रूस और अमेरिका के साथ रक्षा संबंधों ने अब सबसे अधिक महत्व पा लिया है.

भारत जहां रूस के साथ एक 'विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी' साझा करता है वहीं अमेरिका के साथ उसका संबंध एक 'व्यापक वैश्विक रणनीतिक साझेदारी' से बढ़ा है.

2016 में अमेरिका ने भारत को 'मेजर डिफेंस पार्टनर' के रूप में मान्यता दी, जो वॉशिंगटन के निकटतम सहयोगियों और भागीदारों के साथ नई दिल्ली को बराबरी पर लाती है. यह अमेरिका को भारत के साथ रक्षा प्रौद्योगिकी साझा करने की सुविधा प्रदान करता है.

(अरुणिम भुयान)

Last Updated : Jun 29, 2020, 9:46 AM IST
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