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खेती में नया आयाम लाएगा- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस

एआई ऐसी प्रक्रिया होगी, जिसमे इंसानी सोच और समझ तो होगी ही साथ में हिसाब और अनुमान में शुद्धता भी होगी. यह अपने फैसले खुद लेने की ताकत रखता होगा, जिससे इंसानो की दखल कम हो जाएगी. यह कृषि के लिए तो बहुत कारगर साबित होगा, क्योंकि यहां कई जगहों पर खेती में सही फैसले लेने होते है. जब इंसान अपनी सोच से काम करता है तो कई बार फैसले गलत साबित होने से नुकसान झेलना पड़ता है. खेती के भविष्य से खिलवाड़ नहीं किया जा सकता क्योंकि यह अभी बहुत नाजुक मोड़ से गुजर रहा है, कभी उपभोक्ता तो कभी किसान इसका खामियाजा भुगतते हैं. दुनिया में खुले दिल से एआई का खेती में स्वागत हो रहा है. बाजार में रिपोर्ट के बताती है कि 2025 के अंत तक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का फैल कर 1550 मिलियन डालर तक पहुंच जाएगा.

artificial intelligence bring revolutionary change in agriculture
प्रतीकात्मक चित्र
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Published : Jan 31, 2020, 5:42 PM IST

Updated : Feb 28, 2020, 4:36 PM IST

कृषि मानव का सबसे पुराना पेशा है, जोकि समय के मार का बखूबी सामना करता आया है. बड़ी-बड़ी चुनौतियों को झेलने के बाद आज भी खेती अपने सबसे नए अवतार में दिख रही है. कभी मौसम की मार तो कभी गुणवत्ता और मात्रा की समस्या आई, लेकिन कृषि टस से मस न होते हुए तकनीकी और नए अविष्कारों की मदद से रुकी नहीं. अब भारत को ही लीजिए, एक वक्त था जब यहां खाने की रोजमर्रा की चीजे भी निर्यात होती थी. लेकिन आज हम न केवल अपना पेट भर पा रहे हैं बल्कि दुनिया के कोने कोने में भी खाना पहुंचा रहे हैं. इसका बड़ा श्रेय जाता है हरित क्रांति और तकनीकी में आए दिन हो रहे बदलावों को, यही कारण है कि हम आज 300 मिलियन टन का उत्पादन कर पा रहे हैं, कहां हरित क्रांति से पहले हम सिर्फ 50 मिलियन टन ही उगा पाते थे. तभी से तकनीकी भारतीय कृषि का मुख्य हिस्सा बन गया है, उत्पादक सामग्री में सुधार करना हो या फसलों की रक्षा करनी हो तकनीकी के बिना नामुमकिन सा है. बची खुचा कसर सूचना-संचार और प्रौद्योगिकी की तेजी ने पूरी कर दी, जिससे खेती में उत्पादन के सही सही आंकड़े मिलने लगे. तो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस(एआई) के खेती में कदम रखने से हैरानी नहीं होनी चाहिए.

एआई ऐसी प्रक्रिया होगी, जिसमे इंसानी सोच और समझ तो होगी ही साथ में हिसाब और अनुमान में शुद्धता भी होगी. यह अपने फैसले खुद लेने की ताकत रखता होगा, जिससे इंसानो की दखल कम हो जाएगी. यह कृषि के लिए तो बहुत कारगर साबित होगा, क्योंकि यहां कई जगहों पर खेती में सही फैसले लेने होते है. जब इंसान अपनी सोच से काम करता है तो कई बार फैसले गलत साबित होने से नुकसान झेलना पड़ता है. खेती के भविष्य से खिलवाड़ नहीं किया जा सकता क्योंकि यह अभी बहुत नाजुक मोड़ से गुजर रहा है, कभी उपभोक्ता तो कभी किसान इसका खामियाजा भुगतते हैं. दुनिया में खुले दिल से एआई का खेती में स्वागत हो रहा है. बाजार में रिपोर्ट के बताती है कि 2025 के अंत तक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का फैल कर 1550 मिलियन डालर तक पहुंच जाएगा.

एआई की अमुमन जरुरत हर स्तर पर पड़ेगी, सबसे ज्यादा तो फसलों को चुनने, देखरेख करने और अनुमान लगाने इस्तेमाल होगा. भारत की खेती बहुत हद तक मौसम पर निर्भर करती है. बारिश के सहारे होने वाली खेती भारत की जीडीपी में 60 प्रतिशत का योगदान रखती है. इसलिए कोई ठोस मौसम जानकारी होने सावधानी बरती जा सकेगी. ज्यादा गीली मिट्टी या सूखा मौसम हो तो खेती करने और फसल उगाने में तकलीफ होती है. यहां एआई मौसम की सही जानकारी और उत्पादक सामग्री, बाजार में कीमत, लोगों की खरीद को देखकर समझ जाएगा कि किस फसल की खेती में सबसे ज्यादा फायदा देगी. माइक्रोसाफ्ट ने अंतरराष्ट्रीय फसल अर्थ-शुष्क उष्णकटिबंधीय अनुसंधान संस्थान से हाथ मिलाया है, जिसमें भूचेतना प्रोजेक्ट के तहत खरीफ फसलों के मौसम में बोआई सलाहकार की सेवा दी जाएगी. इसमे एक ऐप के जरिए यह बोआई करने का सही वक्त और तरीका बताया जाता है.

इससे एक कदम आगे एआई से फसलों और मिट्टी की पूरी देखरेख और जानकारी भी मिल जाएगी. जब तस्वीरों के साथ बढ़ते मौसम में फसलों की हालत की जानकारी किसानों को समय मिल जाएगी तो नुकसान के लिए तैयारी की जा सकती है. अगर गहराई से जांच और खांचा तैयार किया जाए तो फसलों की बीमारी और कीटनाशक से जुड़े समस्या की जानकारी पाई जा सकती है. पैमानों के साथ एआई बीमारी का इलाज कैसे हो और इनसे कैसे बचा जाए, जैसी दुविधा का भी हल निकाल सकते हैं. दिलचस्प बात है कि किसी प्रयोगशाला के बिना ही एआई तस्वीरों के आधार पर मिट्टी की गुणवत्ता का पता लगा सकते हैं. एआई रिमोट सैटेलाइट की मदद से डाटा सिग्नल और तस्वीरे निकाल लेते हैं, जिससे किसानों मिट्टी की हालत का अंदाजा लग जाता है और समय रहते उसका इलाज हो जाता है.

कृषि निर्यात नीति 2018 के बाद सरकार के हस्तक्षेप से किसानों के लिए कई रास्ते खुलने से बाजार में पकड़ आई है, सके बाद से उत्पादन में ग्रडिंग से मानक तय किए गए है. एआई प्रणाली आने से गुणवत्ता की सही जानकारी मिलेगी, इससे अंर्तराष्ट्रीय स्तर पर विश्वसनीय व्यापार करने में आसानी होगी. स्वचालित गुणवत्ता विश्लेषण से तस्वीरें लेने से खाने के पदार्थों (फल, अनाज, सब्जियां, कपास आदि) की एक दम सही और विश्वसनीय जानकारी हासिल होती है. उनकी विशेषता का पता रंग और आकार से चलता है. किसानों द्वारा फोन से ली गई तस्वीरों से भी तुरंत उनकी गुणवत्ता का पता लगा लेते हैं. वो बिना किसी बाहरी दखल अंदाजी के.

यही नही खेती आने वाले वक्त की संभावनाओं और आशंकाओं का विश्लेषण भी एआई बखूबी कर लेते हैं. कर्नाटक सरकार ने माइक्रोसॉफ्ट से छोटे किसानों को भविष्य के दाम बता कर मदद करने के लिए बाकायदा एमओयू साइन किया है. माइक्रोसाफ्ट के निर्देशों से कर्नाटक कृषि लागत और मूल्य आयोग डिजिटल टूल्स बनाएगी, जिसमें पहले से अनुमान लगाने वाला बार बार बदलने वाला मल्टीवेरिएट खेती के उत्पादन के कीमतों की जानकारी होगी. इसके मापदंड होंगे-बोआई की जमीन, उत्पादन का समय, उगने का समय,मौसम की जानकारी, और दूसरी जरुरी डाटासेट. माइक्रोसाफ्ट ने भारत के सबसे बड़े कृषि केमिकल बनाने वाली कंपनी युनाइटिड फोस्फोरस से भी साझेदारी की है, जिसमें एआई कीटाणुओं से होने वाले नुकसान का पता पहले ही चल जाएगा.

जून 2018 के दस्तावेज जिसका शीर्षक था, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के लिए राष्ट्रीय रणनीति मे नीति आयोग ने खुद भारत मे एआई के महत्व को माना था. भारत तेजी से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था और दुनिया में दूसरे स्थान पर आबादी होने वाले देश के लिए यह बहुत जरुरी है. नीति आयोग ने भारत को पांच क्षेत्रों पर गौर देने की बात कही है, जिससे भारत दुनिया के नक्शे में प्रमुख दर्जे पर आ सकता है. पांच में से सबसे पहले नाम है कृषि का.
भारत मे कृषि अब तक पारंपरिक, पुराने तौर तरीकों, अनुमानों और योजनाओं की मोहताज रही है. इस क्षेत्र को बद से बदतर हालत मे पहुंचाने में मौसम, राजनीति, अंतर्राष्ट्रीय दबाव और प्राकृतिक आपदाओं ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी. जान पड़ता है कि एआई तकनीकी के पास खेती से जुड़ी समस्याओं से लड़ने की क्षमता है. कभी खेती के मामलों में पहले से सचेत कर, तो कभी सही सही जानकारी, समय पर देकर किसान अब तक हो रहे भारी नुकसान से निपट सकते हैं. एआई से कृषि नए मुकाम पा सकता है. हो सकता है शुरुआत में तकनीकी का एक दम सही होना मुश्किल हो, लेकिन वक्त के साथ हम आखिरकार मांग और आपूर्ति में मेल रख पाने निश्चय ही सफल होंगे.

लेखक - डॉ एमजे खान

(इंडियन चैंबर ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चर, चेयरमैन)

कृषि मानव का सबसे पुराना पेशा है, जोकि समय के मार का बखूबी सामना करता आया है. बड़ी-बड़ी चुनौतियों को झेलने के बाद आज भी खेती अपने सबसे नए अवतार में दिख रही है. कभी मौसम की मार तो कभी गुणवत्ता और मात्रा की समस्या आई, लेकिन कृषि टस से मस न होते हुए तकनीकी और नए अविष्कारों की मदद से रुकी नहीं. अब भारत को ही लीजिए, एक वक्त था जब यहां खाने की रोजमर्रा की चीजे भी निर्यात होती थी. लेकिन आज हम न केवल अपना पेट भर पा रहे हैं बल्कि दुनिया के कोने कोने में भी खाना पहुंचा रहे हैं. इसका बड़ा श्रेय जाता है हरित क्रांति और तकनीकी में आए दिन हो रहे बदलावों को, यही कारण है कि हम आज 300 मिलियन टन का उत्पादन कर पा रहे हैं, कहां हरित क्रांति से पहले हम सिर्फ 50 मिलियन टन ही उगा पाते थे. तभी से तकनीकी भारतीय कृषि का मुख्य हिस्सा बन गया है, उत्पादक सामग्री में सुधार करना हो या फसलों की रक्षा करनी हो तकनीकी के बिना नामुमकिन सा है. बची खुचा कसर सूचना-संचार और प्रौद्योगिकी की तेजी ने पूरी कर दी, जिससे खेती में उत्पादन के सही सही आंकड़े मिलने लगे. तो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस(एआई) के खेती में कदम रखने से हैरानी नहीं होनी चाहिए.

एआई ऐसी प्रक्रिया होगी, जिसमे इंसानी सोच और समझ तो होगी ही साथ में हिसाब और अनुमान में शुद्धता भी होगी. यह अपने फैसले खुद लेने की ताकत रखता होगा, जिससे इंसानो की दखल कम हो जाएगी. यह कृषि के लिए तो बहुत कारगर साबित होगा, क्योंकि यहां कई जगहों पर खेती में सही फैसले लेने होते है. जब इंसान अपनी सोच से काम करता है तो कई बार फैसले गलत साबित होने से नुकसान झेलना पड़ता है. खेती के भविष्य से खिलवाड़ नहीं किया जा सकता क्योंकि यह अभी बहुत नाजुक मोड़ से गुजर रहा है, कभी उपभोक्ता तो कभी किसान इसका खामियाजा भुगतते हैं. दुनिया में खुले दिल से एआई का खेती में स्वागत हो रहा है. बाजार में रिपोर्ट के बताती है कि 2025 के अंत तक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का फैल कर 1550 मिलियन डालर तक पहुंच जाएगा.

एआई की अमुमन जरुरत हर स्तर पर पड़ेगी, सबसे ज्यादा तो फसलों को चुनने, देखरेख करने और अनुमान लगाने इस्तेमाल होगा. भारत की खेती बहुत हद तक मौसम पर निर्भर करती है. बारिश के सहारे होने वाली खेती भारत की जीडीपी में 60 प्रतिशत का योगदान रखती है. इसलिए कोई ठोस मौसम जानकारी होने सावधानी बरती जा सकेगी. ज्यादा गीली मिट्टी या सूखा मौसम हो तो खेती करने और फसल उगाने में तकलीफ होती है. यहां एआई मौसम की सही जानकारी और उत्पादक सामग्री, बाजार में कीमत, लोगों की खरीद को देखकर समझ जाएगा कि किस फसल की खेती में सबसे ज्यादा फायदा देगी. माइक्रोसाफ्ट ने अंतरराष्ट्रीय फसल अर्थ-शुष्क उष्णकटिबंधीय अनुसंधान संस्थान से हाथ मिलाया है, जिसमें भूचेतना प्रोजेक्ट के तहत खरीफ फसलों के मौसम में बोआई सलाहकार की सेवा दी जाएगी. इसमे एक ऐप के जरिए यह बोआई करने का सही वक्त और तरीका बताया जाता है.

इससे एक कदम आगे एआई से फसलों और मिट्टी की पूरी देखरेख और जानकारी भी मिल जाएगी. जब तस्वीरों के साथ बढ़ते मौसम में फसलों की हालत की जानकारी किसानों को समय मिल जाएगी तो नुकसान के लिए तैयारी की जा सकती है. अगर गहराई से जांच और खांचा तैयार किया जाए तो फसलों की बीमारी और कीटनाशक से जुड़े समस्या की जानकारी पाई जा सकती है. पैमानों के साथ एआई बीमारी का इलाज कैसे हो और इनसे कैसे बचा जाए, जैसी दुविधा का भी हल निकाल सकते हैं. दिलचस्प बात है कि किसी प्रयोगशाला के बिना ही एआई तस्वीरों के आधार पर मिट्टी की गुणवत्ता का पता लगा सकते हैं. एआई रिमोट सैटेलाइट की मदद से डाटा सिग्नल और तस्वीरे निकाल लेते हैं, जिससे किसानों मिट्टी की हालत का अंदाजा लग जाता है और समय रहते उसका इलाज हो जाता है.

कृषि निर्यात नीति 2018 के बाद सरकार के हस्तक्षेप से किसानों के लिए कई रास्ते खुलने से बाजार में पकड़ आई है, सके बाद से उत्पादन में ग्रडिंग से मानक तय किए गए है. एआई प्रणाली आने से गुणवत्ता की सही जानकारी मिलेगी, इससे अंर्तराष्ट्रीय स्तर पर विश्वसनीय व्यापार करने में आसानी होगी. स्वचालित गुणवत्ता विश्लेषण से तस्वीरें लेने से खाने के पदार्थों (फल, अनाज, सब्जियां, कपास आदि) की एक दम सही और विश्वसनीय जानकारी हासिल होती है. उनकी विशेषता का पता रंग और आकार से चलता है. किसानों द्वारा फोन से ली गई तस्वीरों से भी तुरंत उनकी गुणवत्ता का पता लगा लेते हैं. वो बिना किसी बाहरी दखल अंदाजी के.

यही नही खेती आने वाले वक्त की संभावनाओं और आशंकाओं का विश्लेषण भी एआई बखूबी कर लेते हैं. कर्नाटक सरकार ने माइक्रोसॉफ्ट से छोटे किसानों को भविष्य के दाम बता कर मदद करने के लिए बाकायदा एमओयू साइन किया है. माइक्रोसाफ्ट के निर्देशों से कर्नाटक कृषि लागत और मूल्य आयोग डिजिटल टूल्स बनाएगी, जिसमें पहले से अनुमान लगाने वाला बार बार बदलने वाला मल्टीवेरिएट खेती के उत्पादन के कीमतों की जानकारी होगी. इसके मापदंड होंगे-बोआई की जमीन, उत्पादन का समय, उगने का समय,मौसम की जानकारी, और दूसरी जरुरी डाटासेट. माइक्रोसाफ्ट ने भारत के सबसे बड़े कृषि केमिकल बनाने वाली कंपनी युनाइटिड फोस्फोरस से भी साझेदारी की है, जिसमें एआई कीटाणुओं से होने वाले नुकसान का पता पहले ही चल जाएगा.

जून 2018 के दस्तावेज जिसका शीर्षक था, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के लिए राष्ट्रीय रणनीति मे नीति आयोग ने खुद भारत मे एआई के महत्व को माना था. भारत तेजी से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था और दुनिया में दूसरे स्थान पर आबादी होने वाले देश के लिए यह बहुत जरुरी है. नीति आयोग ने भारत को पांच क्षेत्रों पर गौर देने की बात कही है, जिससे भारत दुनिया के नक्शे में प्रमुख दर्जे पर आ सकता है. पांच में से सबसे पहले नाम है कृषि का.
भारत मे कृषि अब तक पारंपरिक, पुराने तौर तरीकों, अनुमानों और योजनाओं की मोहताज रही है. इस क्षेत्र को बद से बदतर हालत मे पहुंचाने में मौसम, राजनीति, अंतर्राष्ट्रीय दबाव और प्राकृतिक आपदाओं ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी. जान पड़ता है कि एआई तकनीकी के पास खेती से जुड़ी समस्याओं से लड़ने की क्षमता है. कभी खेती के मामलों में पहले से सचेत कर, तो कभी सही सही जानकारी, समय पर देकर किसान अब तक हो रहे भारी नुकसान से निपट सकते हैं. एआई से कृषि नए मुकाम पा सकता है. हो सकता है शुरुआत में तकनीकी का एक दम सही होना मुश्किल हो, लेकिन वक्त के साथ हम आखिरकार मांग और आपूर्ति में मेल रख पाने निश्चय ही सफल होंगे.

लेखक - डॉ एमजे खान

(इंडियन चैंबर ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चर, चेयरमैन)

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लेखक - डॉ एमजे खान

(इंडियन चैंबर ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चर, चेयरमैन)



खेती के नए आयाम- आर्टीफिशयल इंटेलिजेंस



कृषि, मानव का सबसे पुराना पेशा, जो वक्त का मार का बखूबी से सामना करता आया है। बड़ी बड़ी चुनौतियों को झेलने के बाद आज खेती अपने सबसे नए अवतार में दिख रही है। कभी मौसम की मार, तो कभी गुणवत्ता और मात्रा की समस्या आई लेकिन कृषि टस से मस न होते हुए तकनीकी और नए अविष्कारों की मदद से रुकी नहीं।अब भारत को ही ले लीजिए, एक वक्त था जब यहां खाने की रोजमर्रा की चीज़ें भी निर्यात होती थी। लेकिन आज हम न केवल अपना पेट भर पा रहे हैं बल्कि दुनिया के कोने कोने में भी खाना पहुंचा रहे हैं। इसका बड़ा श्रेय जाता है हरित क्रांति और तकनीकी में आए दिन हो रहे बदलावों को, यही कारण है कि हम आज 300 मिलियन टन का उत्पादन कर पा रहे हैं, कहां हरित क्रांति से पहले ह्म सिर्फ 50 मिलियन टन ही उगा पाते थे। तभी से तकनीकी भारतीय कृषि का मुख्य हिस्सा बन गया है, उत्पादक सामग्री में सुधार करना हो या फसलों की रक्षा करनी हो तकनीकी के बिना नामुमकिन सा हे। बची कुची कसर सूचना-संचार और प्रौद्योगिकी की तेज़ी ने पूरी कर दी। जिससे खेती में उत्पादन के सही सही आंकड़े मिलने लगे। तो आर्टीफिशयल इंटेलिजेंस(एआई) के खेती में कदम रखने से हैरानी नहीं होनी चाहिए।



 एआई ऐसी प्रक्रिया होगी जिसमे इंसानी सोच और समझ तो होगी ही साथमें हिसाब और अनुमान में शुध्दता भी होगी। यह अपने फैसले खुद लेने की ताकत रखता होगा, जिससे इंसानो की दखल कम हो जाएगी। यह कृषि के लिए तो बहुत कारगर साबित होगा क्योंकि यहां कई जगहों पर खेती में सही फैसले लेने होते है। जब इंसान अपनी सोच से काम करता है तो कई बार फैसले गलत साबित होने से नुकसान झेलना पड़ता है। खेती के भविष्य से खिलवाड़ नहीं किया जा सकता क्योंकि यह अभी बहुत नाजुक मोड़ से गुजर रहा है, कभी उपभोक्ता तो कभी किसान इसका खामियाज़ा भुगतते हैं। दुनिया में खुले दिल से एआई का खेती में स्वागत हो रहा है। बाज़ार में रिपोर्ट के बताती है कि 2025 के अंत तक आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस का फैल कर 1550 मिलियन डालर तक पहुंच जाएगा। 



एआई की अमुमन जरुरत हर स्तर पर पड़ेगी, सबसे ज्यादा तो फसलों को चुनने, देखरेख करने और अनुमान लगाने इस्तेमाल होगा। भारत की खेती बहुत हद तक मौसम पर निर्भर करती है। बारिश के सहारे होने वाली खेती भारत की जीडीपी में 60 प्रतिशत का योगदान रखती है। इसलिए कोई ठोस मौसम जानकारी होने सावधानी बरती जा सकेगी। ज्यादा गीली मिट्टी या सूखा मौसम हो तो खेती करने और फसल उगाने में तकलीफ होती है। यहां एआई मौसम की सही जानकारी और उत्पादक सामग्री, बाजार में कीमत, लोगों की खरीद को देखकर समझ जाएगा कि किस फसल की खेती में सबसे ज्यादा फायदा देगी। माइक्रोसाफ्ट ने अंतरराष्ट्रीय फसल अर्थ-शुष्क उष्णकटिबंधीय अनुसंधान संस्थान से हाथ मिलाया है, जिसमें भूचेतना प्रोजेक्ट के तहत खरीफ फसलों के मौसम में बोआई सलाहकार की सेवा दी जाएगी। इसमे एक ऐप के जरिए यह बोआई करने का सही वक्त और तरीका बताया जाता है।



इससे एक कदम आगे एआई से फसलों और मिट्टी की पूरी देखरेख और जानकारी भी मिल जाएगी। जब तस्वीरों के साथ बढ़ते मौसम में फसलों की हालत की जानकारी किसानों को समय मिल जाएगी तो नुकसान के लिए तैयारी की जा सकती है। अगर गहराई से जांच और खांचा तैयार किया जाए तो फसलों की बीमारी और कीटनाशक से जुड़े समस्या की जानकारी पाई जा सकती है। पैमानों के साथ एआई बीमारी का इलाज कैसे हो और इनसे कैसे बचा जाए जैसी दुविधा का भी हल निकाल सकते हैं। दिलचस्प बात है कि किसी प्रयोगशाला के बिना ही एआई तस्वीरों के आधार पर मिट्टी की गुणवत्ता का पता लगा सकते हैं। एआई रिमोट सैटेलाइट की मदद से डाटा सिग्नल और तस्वीरे निकाल लेते हैं जिससे किसानों मिट्टी की हालत का अंदाजा लग जाता है और समय रहते उसका इलाज हो जाता है। 



कृषि निर्यात नीति 2018 के बाद सरकार के हस्तक्षेप से किसानों के लिए कई रास्ते खुलने से बाजार में पकड़ आई है। जिसके बाद से उत्पादन में ग्रडिंग से मानक तय किए गए है। एआई प्रणाली आने से गुणवत्ता की सही जानकारी मिलेगी, इससे अंर्तराष्ट्रीय स्तर पर विश्वसनीय व्यापार करने में आसानी होगी। स्वचालित गुणवत्ता विश्लेषण से तस्वीरें लेने से खाने के पदार्थों (फल, अनाज, सब्जियां, कपास आदि) की एक दम सही और विश्वसनीय जानकारी हासिल होती है। उनकी विशेषता का पता रंग और आकार से चलता है। किसानों व्दारा, फोन से ली गई तस्वीरों से भी तुरंत उनकी  गुणवत्ता का पता लगा लेते हैं. वो बिना किसी बाहरी दख़ल अंदाजी के।



 यही नही खेती आने वाले वक्त की संभावनाओं और आशंकाओं का विश्लेषण भी एआई बखूबी कर लेते हैं। कर्नाटक सरकार ने माइक्रोसॉफ्ट से छोटे किसानों को भविष्य के दाम बता कर मदद करने के लिए बाकायदा एमओयू साइन किया है।  माइक्रोसाफ्ट के निर्देशों से कर्नाटक कृषि लागत और मूल्य आय़ोग डिजिटल टूल्स बनाएगी, जिसमें पहले से अनुमान लगाने वाला बार बार बदलने वाला मल्टीवेरिएट खेती के उत्पादन के कीमतों की जानकारी होगी, जिसके मापदंड होंगे-बोआई की जमीन, उत्पादन का समय, उगने का समय,मौसम की जानकारी, और दूसरी जरुरी डाटासेट। माइक्रोसाफ्ट ने भारत के सबसे बड़े कृषि केमिकल बनाने वाली कंपनी युनाइटिड फोस्फोरस से भी साझेदारी की है जिसमें एआई कीटाणुओं से होने वाले नुकसान का पता पहले ही चल जाएगा। 



जून 2018 के दस्तावेज जिसका शीर्षक था आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के लिए राष्ट्रीय रणनीति, मे लिहाजा नीति आयोग ने खुद भारत मे एआई के महत्व को माना था। भारत तेज़ी से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था और दुनिया में दूसरे स्थान पर आबादी होने वाले देश के लिए यह बहुत जरुरी है। नीति आयोग ने भारत को पांच क्षेत्रों पर गौर देने की बात कही है जिससे भारत दुनिया के नक्शे में प्रमुख दर्जे पर आ सकता है। पांच में से सबसे पहले नाम है कृषि का। 



भारत मे कृषि अब तक पारंपरिक, पुराने तौर तरीकों, अनुमानों और योजनाओं की मोहताज रही है। इस क्षेत्र को बद से बदतर हालत मे पहुंचाने में मौसम, राजनीति, अंतर्राष्ट्रीय दबाव और प्राकृतिक आपदाओं ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी। जान पड़ता है कि एआई तकनीकी के पास खेती से जुड़ी समस्याओं से लड़ने की क्षमता है। कभी खेती के मामलों में पहले से सचेत कर, तो कभी सही सही जानकारी, समय पर देकर किसान अब तक हो रहे भारी नुकसान से निपट सकते हैं। एआई से कृषि नए मुकाम पा सकता है। हो सकता है शुरुआत में तकनीकी का एक दम सही होना मुश्किल हो लेकिन वक्त के साथ हम आखिरकार मांग और आपूर्ति में मेल रख पाने निश्चय ही सफल होंगे। 


Conclusion:
Last Updated : Feb 28, 2020, 4:36 PM IST
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