नई दिल्ली : मणिपुर में 10 अगस्त से शुरू होने वाले विधानसभा के मॉनसून सत्र के समय तक कांग्रेस द्वारा भाजपा के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाए जाने के बीच मुख्यमंत्री एन बिरेन सिंह द्वारा इस सप्ताह सभी सत्तारूढ़ विधायकों की बैठक बुलाने के बाद इस पूर्वोत्तर राज्य की राजनीति और भी पेचीदा हो गई है.
कांग्रेस ने मंगलवार को मणिपुर विधानसभा के सचिव को राज्य सरकार के खिलाफ अविश्वास की याचिका सुपुर्द की, जिसमें पुलिस द्वारा एक भाजपा नेता के पास से भारी मात्रा में मादक पदार्थ बरामद किए जाने के मामले में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंपने की मांग की गई.
कांग्रेस द्वारा सरकार के खिलाफ दायर की गई अविश्वास की याचिका मणिपुर उच्च न्यायालय में पुलिस अधिकारी वृंदा द्वारा मादक पदार्थ के मामले में दायर एक हलफनामे के मद्देनज़र की गई. इस मामले में चंदेल स्वायत्त जिला परिषद के पूर्व अध्यक्ष लखूसी ज़ू शामिल हैं, जो राज्य में पार्टी के सत्ता में आने के बाद भाजपा में शामिल हो गए थे.
बृंदा ने जो अब नारकोटिक्स और बॉर्डर क्षेत्र की अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक हैं, 2018 में ज़ू के सरकारी आवास से मादक पदार्थ और पुराने करेंसी नोटों की एक खेप बरामद की थी.
इस महीने की शुरुआत में दायर अपने हलफनामे में बृंदा ने कहा कि मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने ज़ू को रिहा करने और मामले में उनके और अन्य के खिलाफ आरोप पत्र वापस लेने के लिए दबाव डाला. हालांकि मुख्यमंत्री ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है.
मादक पदार्थ की बरामदगी का मामला जब से सामने आया है, तब से कांग्रेस इस मामले को CBI को सौंपने की मांग कर रही है. अब जब बृंदा ने अदालात में हलफनामा दाखिल कर दिया है तब पार्टी ने सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का फैसला किया.
इसके बाद बुधवार को मुख्यमंत्री सिंह ने नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी), नगा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ), एक टीएमसी विधायक और एक निर्दलीय विधायक सहित भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन के सभी 29 विधायकों की बैठक बुलाई.
खबर है कि इस बैठक में बीजेपी के चार विधायक, एन. इंद्रजीत, एल. रमेशर मीतेई, हियांगलाम के डॉ वाई. राधेश्याम और एल. राधाकेशोर अनुपस्थित थे. वर्तमान सरकार को टिके रहने के लिए इन विधायकों का समर्थन महत्वपूर्ण बन जाता है.
इससे राज्य की राजनीति में एक बार फिर आंकड़ों का संकट पैदा हो गया है. सरकार इस साल जून में भी इसी तरह के संकट से बाहर निकली थी.
पिछले महीने भाजपा के तीन विधायकों ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया और कांग्रेस में शामिल हो गए, जबकि एनपीपी ने बीरेन सिंह सरकार से निकल जाने की धमकी दे दी थी. पूर्वोत्तर में बीजेपी के मुख्य संकटमोचक और पूर्वोत्तर डेमोक्रेटिक अलायंस (NEDA) के संयोजक हिमंत बिस्वा सरमा और मेघालय के मुख्यमंत्री और एनपीपी नेता कोनराड संगमा के हस्तक्षेप के बाद ही संकट टल पाया था.
फिर इस महीने की शुरुआत में कांग्रेस ने अपने दो विधायकों आरके इमो और ओकराम हेनरी को कारण बताओ नोटिस जारी किए, क्योंकि उन्होंने राज्यसभा चुनावों में मणिपुर के पूर्व राजपरिवार के भाजपा के उम्मीदवार लिसेम्बा संजाओबा को वोट दिया था. इमो कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री आरके जयचंद्र सिंह के पुत्र और वर्तमान मुख्यमंत्री बीरेन सिंह के दामाद हैं, जबकि हेनरी कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री और सीएलपी नेता ओकराम इबोबी सिंह के भतीजे हैं.
खबरों के मुताबिक, इमो और इबोबी सिंह के बीच अनबन बढ़ गई है. इबोबी सिंह इमो को पार्टी के लिए खतरा मानते हैं, क्योंकि वह कांग्रेस विधायक होने के साथ-साथ भाजपा मुख्यमंत्री के दामाद भी हैं.
दूसरी ओर मुख्यमंत्री बिरेन सिंह को भी अपनी पार्टी के भीतर से एक और मुख्यमंत्रीपद के प्रतिद्वंदी बिस्वजीत सिंह के विद्रोह का सामना करना पड़ रहा है. पिछले साल बीरेन सिंह को हटाने की कोशिश को भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के समर्थन से विफल कर दिया गया था.
हालांकि यह देखा जाना बाकी है कि जब 10 अगस्त को विधानसभा की बैठक होगी तो क्या वह अविश्वास प्रस्ताव को चर्चा में लेगी.