नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने 2018 के आत्महत्या के लिए कथित तौर पर उकसाने के मामले में पत्रकार अर्नब गोस्वामी को अंतरिम जमानत दे दी है. उन पर एक इंटीरियर डिजाइनर को कथित तौर पर आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप है. महाराष्ट्र सरकार ने इस मामले को दोबारा से खोला था. कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार पर काफी कड़ी टिप्पणी की है.
साथ ही न्यायालय ने दो अन्य आरोपियों नितेश सारदा और प्रवीण राजेश सिंह को पचास-पचास हजार रुपये के निजी मुचलके पर अंतरिम जमानत दी. बता दें कि इस दौरान न्यायालय ने कहा, हम नहीं चाहते कि रिहाई में देरी हो और जेल अधिकारियों को इसकी व्यवस्था करनी चाहिए.
न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति इन्दिरा बनर्जी की अवकाश कालीन पीठ ने दो अन्य -नीतीश सारदा और प्रवीण राजेश सिंह- को भी 50-50 हजार रूपए के निजी मुचलके पर अंतरिम जमानत प्रदान की.
पीठ ने कहा कि इन सभी की रिहाई में विलंब नहीं होना चाहिए और जेल प्राधिकारियों को इसे सुगम बनाना चाहिए.
शीर्ष अदालत ने अर्नब गोस्वामी, सारदा और सिंह को निर्देश दिया कि वे किसी भी साक्ष्य के साथ छेड़छाड़ नहीं करेंगे और मामले की जांच में सहयोग करेंगे.
रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक अर्नब गोस्वामी ने बंबई उच्च न्यायालय के नौ नवंबर के आदेश को चुनौती दी है जिसमें उन्हें और दो अन्य आरोपियों को अंतरिम जमानत देने से इंकार करते हुये कहा गया था कि इसमें हमारे असाधारण अधिकार का इस्तेमाल करने के लिये कोई मामला नहीं बनता है.
अर्नब और अन्य आरोपियों ने अंतरिम जमानत के साथ ही इस मामले की जांच पर रोक लगाने और उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी निरस्त करने का अनुरोध उच्च न्यायालय से किया था.
उच्च न्यायालय प्राथमिकी निरस्त करने की मांग वाली याचिकाओं पर 10 दिसंबर को सुनवाई करेगा.
गोस्वामी को चार नवंबर को मुंबई में उनके निवास से गिरफ्तार करके पड़ोसी जिले रायगड के अलीबाग ले जाया गया था. उन्हें और दो अन्य आरोपियों को बाद में मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया गया जिन्होंने आरोपियों को पुलिस हिरासत में भेजने से इंकार कर दिया था. अदालत ने तीनों को 18 नवंबर तक के लिये न्यायिक हिरासत में भेज दिया था.
गोस्वामी को शुरू में अलीबाग जेल के लिये कोविड-19 पृथकवास केन्द्र के रूप में एक स्थानीय स्कूल परिसर में रखा गया था लेकिन रविवार को उन्हें रायगड जिले में स्थित तलोजा जेल भेज दिया गया क्योंकि उन पर न्यायिक हिरासत के दौरान मोबाइल फोन के इस्तेमाल का आरोप था..
न्यायालय का अर्नब मामले में महाराष्ट्र सरकार से सवाल
बता दें कि शीर्ष अदालत 2018 के आत्महत्या मामले में अर्नब को अंतरिम जमानत नहीं मिलने के मामले में सुनवाई की. न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चंद्रचूड और न्यायमूर्ति इन्दिरा बनर्जी की पीठ ने कहा कि अगर राज्य सरकारें लोगों को निशाना बनाती हैं तो उन्हें इस बात का अहसास होना चाहिए कि नागरिकों की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए उच्चतम न्यायालय है.
शीर्ष अदालत ने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि राज्य सरकारें कुछ लोगों को विचारधारा और मत भिन्नता के आधार पर निशाना बना रही हैं.
अर्नब गोस्वामी की अंतरिम जमानत की याचिका पर सुनवाई करते हुए पीठ ने कहा, हम देख रहे हैं कि एक के बाद एक ऐसा मामला है जिसमें उच्च न्यायालय जमानत नहीं दे रहे हैं और वे लोगों की स्वतंत्रता, निजी स्वतंत्रता की रक्षा करने में विफल हो रहे हैं.
न्यायालय ने राज्य सरकार से जानना चाहा कि क्या गोस्वामी को हिरासत में लेकर उनसे पूछताछ की कोई जरूरत थी क्योंकि यह व्यक्तिगत आजादी से संबंधित मामला है.
पीठ ने टिप्पणी की कि भारतीय लोकतंत्र असाधारण तरीके से लचीला है और महाराष्ट्र सरकार को इन सबको (टीवी पर अर्नब के ताने) नजरअंदाज करना चाहिए.
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, उनकी जो भी विचारधारा हो, कम से कम मैं तो उनका चैनल नहीं देखता लेकिन अगर सांविधानिक न्यायालय आज इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगा तो हम निर्विवाद रूप से बर्बादी की ओर बढ़ रहे होंगे.
पीठ ने कहा, 'सवाल यह है कि क्या आप इन आरोपों के कारण व्यक्ति को उसकी व्यक्तिगत आजादी से वंचित कर देंगे.
न्यायालय ने कहा, अगर सरकार इस आधार पर लोगों को निशाना बनाएंगी...आप टेलीविजन चैनल को नापसंद कर सकते हैं लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए.
पीठ ने टिप्पणी की कि मान लीजिए की प्राथमिकी 'पूरी तरह सच' है लेकिन यह जांच का विषय है.
राज्य सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल से पीठ ने सवाल किया, 'क्या धन का भुगतान नहीं करना, आत्महत्या के लिए उकसाना है? यह न्याय का उपहास होगा अगर प्राथमिकी लंबित होने के दौरान जमानत नहीं दी जाती है.'
न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चंद्रचूड और न्यायमूर्ति इन्दिरा बनर्जी की पीठ ने राज्य सरकार से जानना चाहा कि क्या गोस्वामी को हिरासत में लेकर उनसे पूछताछ की कोई जरूरत थी क्योंकि यह व्यक्तिगत आजादी से संबंधित मामला है. पीठ ने महाराष्ट्र सरकार पर सवाल उठाए और कहा कि इस तरह से किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत आजादी पर बंदिश लगाया जाना न्याय का मखौल होगा.
पीठ ने टिप्पणी की कि भारतीय लोकतंत्र में असाधारण सहनशक्ति है और महाराष्ट्र सरकार को इन सबको (टीवी पर अर्नब के ताने) नजरअंदाज करना चाहिए.
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, उनकी जो भी विचारधारा हो, कम से कम मैं तो उनका चैनल नहीं देखता लेकिन अगर सांविधानिक न्यायालय आज इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगा तो हम निर्विवाद रूप से बर्बादी की ओर बढ़ रहे होंगे. पीठ ने कहा कि सवाल यह है कि क्या आप इन आरोपों के कारण व्यक्ति को उसकी व्यक्तिगत आजादी से वंचित कर देंगे.
जिला अदालत में जमानत पर फैसला सुरक्षित
इससे पहले मंगलवार को महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले की सत्र अदालत ने आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक अर्नब गोस्वामी की याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया. इस मामले में दो अन्य लोग भी हिरासत में लिए गए हैं. तीनों की जमानत से संबंधित महाराष्ट्र पुलिस की याचिका पर अलीबाग की कोर्ट ने मंगलवार को फैसला सुरक्षित रख लिया.
पुलिस ने आरोपियों की हिरासत न देने से जुड़े मजिस्ट्रेट के आदेश को अलीबाग की सत्र अदालत में चुनौती दी है. मंगलवार को याचिका पर विचार के दौरान अलीबाग के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश आर जी मलाशेट्टी ने कहा कि अदालत स्थानीय पुलिस द्वारा दायर समीक्षा याचिका पर 12 नवंबर को फैसला सुनाएगी.
अदालत ने कहा कि वह गोस्वामी और सह-आरोपी फिरोज शेख तथा नीतीश सारदा की जमानत याचिकाओं पर भी उसी दिन सुनवाई करेगी.
बता दें कि पुलिस ने मजिस्ट्रेट के आदेश को यह कहते हुए सत्र अदालत में चुनौती दी है कि वे पूछताछ के लिए आरोपियों को हिरासत में लेना चाहते हैं. गोस्वामी फिलहाल नवी मुंबई की तलोजा जेल में बंद हैं.
गौरतलब है कि इस मामले में महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने प्रदेश के गृहमंत्री अनिल देशमुख से बात की थी. उन्होंने गृहमंत्री से अर्नब की सेहत को लेकर चिंता जाहिर करते हुए उनके परिजनों को जेल में मिलने देने की अनुमति देने की बात भी कही थी.
यह भी पढ़ें: राज्यपाल कोश्यारी बोले- जेल में अर्नब को परिजनों से मिलने दें, गृहमंत्री का जवाब- कोरोना के कारण संभव नहीं
इसके बाद गृहमंत्री देशमुख ने कोरोना महामारी का हवाला देते हुए कहा कि कोरोना के कारण किसी भी कैदी को परिजनों से मिलने की अनुमति नहीं दी जा रही है. हालांकि, देशमुख ने कहा था कि कैदियों के परिजन फोन पर अनुमति लेने के बाद संपर्क कर सकते हैं.
क्या है पूरा मामला
अर्नब गोस्वामी और दो अन्य --फिरोज शेख और नीतीश सारदा को आर्किटेक्ट अन्वय नाईक एवं उनकी मां को कथित रूप से आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले के संबंध में गिरफ्तार किया गया है. विगत चार नवंबर को रायगढ़ जिले की अलीबाग पुलिस ने अर्नब को गिरफ्तार किया था. इन दोनों मां-बेटे ने आरोपियों की कंपनियों द्वार कथित रूप से भुगतान नहीं किए जाने को लेकर 2018 में आत्महत्या कर ली थी.
यह भी पढ़ें: अर्नब गोस्वामी को 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेजा गया
बता दें कि गोस्वामी को उनके आवास से गिरफ्तार करने के बाद अलीबाग ले जाया गया था जहां मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने उन्हें एवं दो अन्य को 18 नवंबर तक के लिए न्यायिक हिरासत में भेज दिया था. उन्हें न्यायिक हिरासत में कथित रूप से मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते हुए पाए जाने पर रविवार को रायगढ़ की तलोजा जेल ले जाया गया था.
गोस्वामी और दो अन्य आरोपियों को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया गया था, जिन्होंने आरोपियों को पुलिस हिरासत में भेजने से इनकार कर उन्हें 18 नवंबर तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया था.