लेह : पूर्वी लद्दाख सेक्टर में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर गोलीबारी की घटना हुई है, जहां भारत और चीन की सेना में लगातार गतिरोध की स्थिति बनी हुई है. मामले को लेकर चीन के ग्लोबल टाइम्स का दावा है कि भारतीय सैनिकों ने सोमवार को पैंगोंग त्सो झील के दक्षिणी किनारे के पास वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) को पार किया है.
गौरतलब है कि लद्दाख की गलवान घाटी में भारत और चीन के बीच 10 जून को हिंसक झड़प हुई, जिसमें भारत के एक कर्नल समेत 20 जवान शहीद हो गए. इस घटना में चीन के भी कई सैनिक मारे गए, हालांकि चीन ने इस बात की कभी आधिकारिक तौर पर पुष्टि तो नहीं की.
घटना के बाद से ही चीन और भारत के बीच लगातार तनाव की स्थिति बनी हुई है. ऐसे में कई बार दोनों देशों के बीच कमांडर स्तर की बातचीत भी हुई, और सेनाएं पीछे भी हटीं. लेकिन फिर एक बार 29-30 अगस्त को एक बार फिर दोनों देशों के बीच तनाव के हालात बन गए. इस बार सीमा पर हुआ तनाव झड़प में तो नहीं बदला, लेकिन दोनों के कड़वे रिश्तों को एक हवा जरूर मिल गई.
ऐसे में ईटीवी भारत ने पूर्व सैन्य अधिकारी लेफ्टिनेंट जनरल (रि.) डीएस हुड्डा से यह समझने का प्रयास किया कि लद्दाख की गलवान घाटी को लेकर क्यों तनावपूर्ण हैं भारत और चीन के संबंध.
वास्तविक नियंत्रण रेखा
1962 के युद्ध के दौरान, चीनी सेना ने पश्चिमी लद्दाख में लगभग 38,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था. भारतीय क्षेत्र के चीनी कब्जे के कारण जो वास्तविक सीमा बनाई गई थी, उसे वास्तविक नियंत्रण रेखा कहा जाने लगा. चूंकि वास्तविक नियंत्रण रेखा का न तो मानचित्रों पर परिसीमन किया गया था और न ही जमीन पर सीमांकित किया गया था, इसलिए दोनों पक्षों की कुछ क्षेत्रों में वास्तविक नियंत्रण रेखा को लेकर अलग-अलग धारणा है.
1975, जब एक सीमा पर हुई घटना में चार भारतीय सैनिक मारे गए थे, उसके बाद से दोनों पक्षों द्वारा प्रोटोकॉल का सख्ती से पालन किया गया. इसने यह सुनिश्चित किया था कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर शांति बनी रहे. हाल के समय तक शांति बनी भी रही. लेकिन मई के पहले सप्ताह में हुई चीनी घुसपैठ के साथ अचानक सब कुछ बदल गया है.
पूर्वी लद्दाख का भूगोल
लद्दाख को ऊंचाई पर स्थित 'रेगिस्तान' कहा जाता है और पूर्वी लद्दाख के क्षेत्र तिब्बती पठार से सटे हुए हैं. पैंगोंग त्सो झील और गैलवान नदी घाटी 14,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है, और हॉट स्प्रिंग का क्षेत्र लगभग 15,500 फीट है. वर्तमान में इन्हीं तीन क्षेत्रों में चीन के साथ तनाव की स्थिति बनी हुई है.
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पैंगोंग त्सो और गलवान क्षेत्रों में भारी तनाव की स्थिति पैदा हो गई है. पैंगोंग त्सो के उत्तरी तट पर भारत और चीन, जिनकी वास्तविक नियंत्रण रेखा को लेकर अपनी-अपनी अलग धारणा है, और अतीत में दोनों पक्ष अपने-अपने दावे वाले क्षेत्रों में गश्त करते रहे हैं. चीन का दावा है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा फिंगर 4 पर स्थित है, जबकि भारत की धारणा है कि वह आगे पूर्व में फिंगर 8 पर है. वर्तमान में, चीन ने उन क्षेत्रों पर भौतिक रूप से कब्जा कर लिया है, जिनपर वह दावा करता रहा है, प्रभावी ढंग से वास्तविक नियंत्रण रेखा की हमारी धारणा के क्षेत्र में गश्त करने से भारत के सैनिकों को रोक रहा है.
स्थिति कितनी गंभीर है?
पहले भी कई घुसपैठें हुई हैं, जिनमें से कुछ ने 2013 में डेपसांग, 2014 में चुमार और 2017 में डोकलाम जैसे विस्तारित तनाव हुए हैं. हालांकि, ये स्थानीयकृत घटनाएं थीं, जिन्हें दोनों पक्षों के बिना किसी हिंसा के शांतिपूर्वक हल किया गया था. वर्तमान में चीन द्वारा की जा रही गतिविधियां पूरी तरह से अलग हैं. वास्तविक नियंत्रण रेखा के विभिन्न क्षेत्रों में चीनी सैन्य बल बड़ी संख्या में हैं और स्पष्ट रूप से चीनी सरकार के उच्चतम स्तर से रजामंदी प्राप्त है. चीनी सैन्य की कार्रवाई के साथ होने वाली हिंसा अभूतपूर्व है, और दोनों सेनाओं के आचरण को निर्देशित करने वाले सभी प्रोटोकॉल पूरी तरह से ताक पर रख दिए गए हैं.
भारत-चीन संबंधों के मिजाज और गुणवत्ता पर भी गहरा नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा और इसके संकेत अभी से दिखाई दे रहे हैं. चीन विरोधी भावना देशभर में तेजी से पैर पसार रही है और चाहे जैसे भी इस स्थिति को नियंत्रित किया जाए. इस देश के नागरिक चीन द्वारा किए गए सैन्य शक्ति के प्रदर्शन के माध्यम से भारत को डराने के इस प्रयास को भूलेंगे नहीं.